संस्मरणः गांव में छठ-पद्मा मिश्रा

पहला दिन
वर्षों बाद अपने गांव की धरती पर हमारा होना किसी आंतरिक उल्लास और आह्लाद से कम नहीं था, अपने पुत्रवत राजा की सगाई के अवसर पर हम दोनों, मैं और मेरे पति, वहां आए थे,,जिसका आयोजन छपरा शहर के एक हौटल में किया गया,भावी पुत्रवधू कल्पना और अपने परिजनों से मुलाकात बहुत ही सुखद लगी, शुभता भरा सुप्रभात मंगलकामनाओं से सुशोभित हो रहा था, और इस पावन मंगलकारी वातावरण में दो नव जीवन एक होने के लिए संकल्पित हो रहे थे,,मेरे लिए यह धरती मेरी ससुराल थी और आदर मान सम्मान की अधिकारिणी भी,,हम लोग शहर के ही एक होटल*मयूर*में ठहरे हुए थे जो,जगदम कालेज के सामने,बस स्टैंड के पास स्थित था, वहां दो दिन की मेहमानी के बाद आज अपने गांव आ गई हूं,,, सिद्धपुर-सिधवलिया*जहां अपने पुरखों के घर से मिलना, उनके वहां मौजूद रहने के अहसास को जीना बहुत ही भावुक पल थे हमारे लिए,, वहां कोई नहीं रहता है अब,बस अपने माता-पिता और पूर्वजों के निवास स्थान को एक मंदिर की भांति संजो मैंने की भावना थी,जो हमारे संकल्प को दृढ़ बनाती रहती है कि इस घर को नष्ट नहीं होने देना है,यह धरोहर है हमारी,इसकी रक्षा करनी है,,यद्यपि दीवारें पुरानी हो गई थी,दालान की छत पर न जाने कितनी जानी अनजानी सब्जियों की बेलें लद गयी थीं, आंगन में बेतरतीब उगी झाड़ियां,मौसम की मार झेलती घर की चारदीवारी,, बहुत कुछ कह रही थी,इस बार फिर घर की व्यवस्था ठीक करवानी होगी,, घर केवल ईंट पत्थर और गारे मिट्टी से बना नहीं होता, उसमें हमारी भावनाएं, संस्कार, परंपराएं माता पिता का आशीर्वाद सभी कुछ होता है,, पुरखों की धरती पर हर उत्सुक, परिचित अपरिचित निगाहें हमारे स्वागत में तत्पर,, बरसात के दिनों में हुई बारिश की अधिकता से चारों ओर पानी भरा हुआ था,,इसी कारण धान की फसल नहीं हो पाई, और न ही खेती की सुरक्षा,, केवल जलकुंभी और सिंघाड़े की फसलें जहां तहां स्वत: उग आई थी, फिर भी इस परेशानी में भी सबके चेहरों पर मुस्कान थी, एक अव्यक्त उल्लास, उत्साह दिखाई दिया वहां पर, शाय़द सबने कठिनाइयों में भी जीना सीख लिया था,यही तो गांव की विशेषता है,जिसे हम शहरवासियों को सीख लेनी चाहिए,, यहां कठिनाइयों में भी समाधान ढूंढ लेते हैं, बेवजह,शोर नहीं होता,,
अपने देवर अजय जी के घर पर हमारा भरपूर स्वागत हुआ,यह भी एक सुखद संयोग था कि हम आस्था के पवित्र पर्व छठ पर गांव में थे,, हमारी देवरानी छठ कर रही थीं,,मेरे पति बहुत ही उत्साहित थे कि बचपन के बाद इस छठ पूजा में शामिल हो रहे थे, हमारे होने से सभी उत्साहित थे, बच्चे, बहुएं सभी स्वागत और सेवा के लिए तत्पर,, पहली बार छठ पूजा में करीब से शामिल हो रही हूं,,
#गाव में छठ-दूसरा दिन
इस वर्ष गांव के पावन, हरित परिवेश में,,घुली एक अनिवर्चनीय पवित्रता,मन को शांत, शीतलता प्रदान कर रही थी,,छठ के सूर्य को नमन करने का अवसर मिला यह हमारे लिए गर्व की बात थी,,रात दो बजे से जगकर पूजा स्थल की साफ सफाई,, प्रसाद बनाने की पवित्र भावना के साथ आस्था की ज्योति जल रही थी, और मेरी देवरानी अपनी अपार निष्ठा के साथ हंसमुख मन, गीत गाते हुए प्रसाद, में खरना की खीर और रोटी बनाने में व्यस्त थी,,पूरा परिवार उसी समर्पित भावना के साथ फल,,दूध,घी, गन्ना और अनेक मौसमी फलों, सामग्रियों को जुटाने की तैयारियों में लगा हुआ था, इस पवित्र अनुष्ठान की पूर्णता के लिए एक ऐसा उत्साह व्याप्त था घर में जैसे,बेटी की शादी की तैयारियां,,
मेरे गांव में नदी नहीं है लेकिन घर के बाहर कुएं पर ही अर्ध्य देने की परंपरा थी,, और पूजा की भी,
#गाव मे छठ –तीसरा दिन
गांव के बीच में मां काली के मंदिर के सामने ही छठ का पूजा स्थल बना था,,बालू और मिट्टी से बना छठि मां का प्रतिरुप,, गेंदे के फूलों से सजा था, और उसके चारों तरफ व्रती महिलाएं अपना डाला सजाकर बैठी छठ के गीत गा रही थी,, कहीं चटाई तो कहीं दरी बिछाकर अच्छी खासी भीड़ भी जुटी हुई थी,, छोटे से गांव में छठ पर्व का उल्लास एक अद्भुत आनंद की सृष्टि करता है,मेले का सा दृश्य,,, अपनी अपनी श्रद्धा के अनुसार पूजा, अभ्यर्थना के स्वरों में, घर परिवार, गांव की सुख समृद्धि की कामना थी, कहीं पुत्र की लालसा लिए मौन प्रार्थना थी तो कहीं,अवध के राम की तरह अखंड सौभाग्य की याचना,,इस व्रत में अमीर गरीब, ऊंच नीच की खाई मिट जाती है, सभी एक ही दिशा में, एक ही स्वरों में केवल सूर्य से तेज, आशिर्वाद और सुख की कामना करते हैं,,यह सुख मन का भी है, जीवन का भी, और एक अभाव की पूर्णता हेतु भी,,, दर्शन दीही ना आपन, दीनानाथ,,*हे दीनबंधु दीनानाथ हमारी कामनाएं पूर्ण करें, कष्टों का हरण करें!!!जय हो छठि मां!
आस्था का सैलाब उमड़ पड़ा है, जैसे,सबकी आंखें नम हैं, और मन भींगा है,न जाने क्यों अति प्राचीन इस प्रकृति पर्व में एक स्वाभाविक पवित्रता जन्म लेने लगती है, कोई विभेद नहीं होता मन में,,,
मैं गांव की बहू हूं,,इस नाते कहीं बुजुर्गों को प्रणाम किया तो कहीं नयी पीढ़ी ने मुझे,, यद्यपि वर्षों बाद आने पर अपरिचितों की संख्या ज्यादा थी,,
भगवान भुवन भास्कर अस्त हो रहे थे,उनको अर्ध्य देना प्रारंभ हो गया था,सूप में सजे फल ठेकुआ, नैवेद्य और जलते दीपक से सूर्य को अर्घ्य देकर नमन किया गया,,
हम घर लौट आए थे,,
घर में गन्ने का मंडप बनाकर कोसी भरने की परंपरा है, उसके चारों ओर नन्हे नन्हे दीप जलाकर और क्रम से फल, पूड़ी और ठेकुआ सजाकर पूजा की गई,,
आज पहला अर्ध्य था,,कल व्रत की पूर्णाहुति है,, सुबह उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा,,
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गांव में छठ,,,भाग-3-आज चार दिनों के कठिन अनुष्ठान की समाप्ति हुई,,रात दो बजे पूजा स्थल पर जाकर कोसी भरा गया,,शीत की शीतलता भी जिनके संकल्प को डिगा नहीं पाती है,उस आस्था को अशेष नमन ?? गीत गूंज रहे थे,, कुछ बच्चे पटाखे जलाने में व्यस्त थे,,उनका उत्साह देखने लायक था,,आज ठेकुआ का प्रसाद जो मिलेगा,व्रती के मन में भी अपने संकल्प की पूर्णता प्राप्त होने से एक संतुष्टि का भाव व्याप्त था,, उसके पहले होने वाली तैयारियां इस प्रकृति पर्व को जीवंतता प्रदान करती है,,
छठ पर्व का दूसरा दिन -सृष्टि के साक्षात् देवता उदीयमान सूर्य को नमन करने के साथ ही लोक आस्था के महान उत्सव का समापन —”उगिह सुरुज देव -अरघ के बेर ‘गीत की मधुरता मन को छू जाती है, प्रकृति के शक्ति पुंज भगवान भास्कर की पूजा का पवित्र पर्व छठ -आस्था, विश्वास ,भाव भरी मान्यताओं का अनूठा सांस्कृतिक उत्सव ,,,,संवेदनाओं के सलिल प्रवाह में छलकते मन के आंसू और सूने घर आँगन में चहकते बचपन की कामनाएं हैं तो कहीं जीवन,तन ,मन,के अंधकार को दूर कर खुशियों के उजाले की चाह,,,,सबकी आशा पूर्ण करना प्रभु दीनानाथ,,, बरस रही हैं भावनाएं ,, संवरती कामनाएं ,,मन की थाह से ,अटल गहराइयों से कातर स्वरों की पुकार जरूर सुनना –हे छठि मैया !,,रस्ते पर,गलियों में,सड़कों पर गूंजते गीत और संग संग चलते कदमो की एक ही मंजिल -बस घर के सामने कुएं पर ही तो अर्ध्य देना है, चलो,कहीं देर न हो जाये ,,बच्चो,वृद्धों,महिलाओं एवं छठ व्रतियों के बीच अथाह उत्साह का माहौल ,मन भर आता है -बार बार ,कैसा मोह है जो बढ़ता ही जाता है,श्रद्धा का आवेग,पवित्रता का अहसास मन पर छाने लगता है,- कांचहिं बांस के बहंगिया -बहँगी लचकत जाय — स्वर की विह्वलता मार्मिकता की सृष्टि करती है,,,,यही एक विशेषता भरा संदेश भी समाज को मिलता है, जहाँ बेटी की कामना की जाती है,–रूनकी झुनकी बेटी मागिले-पढ़ल पंडितवा दमाद छठी मैया -अरज सुनिल हमार ”,सामाजिक समरसता और मंगल कामना का यह पुनीत पर्व सार्थक हो ,,,,सफल हो,अनेक शुभ-कामनाएं !-
-आज हम जमशेदपुर लौट रहे हैं, बच्चों का स्नेह दुलार आदर बहुत याद आएगा,, बहुत बहुत धन्यवाद आभार प्रिय रितु, रिंकू,, तुम दोनों की यादें साथ ले जा रहे हैं,, धन्यवाद भीम, नरसिंहा,किशन और मेरा राजा बेटा,, स्नेह आयुषी, श्रुति,,,विदा,,हम फिर मिलेंगे, जल्दी ही,


पद्मा मिश्रा

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