तालिका
लेखनी/Lekhni-जुलाई-अगस्त 22
भव्य भारती(3) नमन मेरे देश
अंक 143 वर्ष 16
‘प्राण वायु हैं इसकी बातें
गंगा जमुना इसकी यादें
दूर होकर भी रहता संग
नमन तुझे ऐ मेरे देश…’
शैल अग्रवाल
लेखनी/Lekhni मई-जून 22
युद्ध के खिलाफ, होने और न होने के बीच…
(अंक 142-वर्ष 16)
‘जब नाश मनुज पर छाता है,
पहले विवेक मर जाता है।’
‘दिनकर’
लेखनी/Lekhni विशेषः होलीः अप्रैल22
होली के रंग
(अंक 141-वर्ष 16)
होली के रंग
सदा रहें सुहाने
अपनों संग
शैल अग्रवाल
लेखनी/Lekhni मार्च-अप्रैल 22
परिधि से केन्द्र तक
अंक 140-वर्ष 16
‘भटकन , उलझन और दर्द
लावे सा फिघल-पिघलकर
बहता भय, बस अंत कैसे
आदि अंत का नृत्य है यह
बसंत है यह!…’
-शैल अग्रवाल
लेखनी/Lekhni जनवरी-फरवरी 22
भव्य भारती (2)
अंक 139- वर्ष 15
अतीत की गौरव गाथायें
( श्रद्धा सुमन)
लेखनी/Lekhni नवंबर-दिसंबर 21
इस धरती की जिम्मेदारी कौन लेगा
(अंक 138- वर्ष 15)
‘This race to power
search for comfort
for Me and me only
Because…..
Me and mine is the best
We have not found yet
Another planet like earth
Still in a frantic search
We fight and loot each other.’
Shail Agrawal
लेखनी विशेष हमारे त्योहार
दीप पर्व पर
“नेहिल दिए
सजे ड्योढी पर
उजास भरे”
शैल अग्रवाल
(अंक 137 वर्ष 15
लेखनी/Lekhni सितंबर-अक्तूबर 21
समाज की नींव रिश्ते
( अंक 136-वर्ष 15)
फल फूल और टहनी जड़
एक दूजे बिन जी पाएँ कब
आँखों के आगे बिखरी यह दुनिया
यात्रा है आदि से अनंत की
नेह डोर से जो रहती सधी।’
-शैल अग्रवाल
लेखनी/Lekhni विशेष भव्य भारती -अगस्त 21
जड़ों की ओर
(अंक 135- वर्ष 15)
‘धर्म, भाषा और संस्कृति
ज्यों नदी की बहती धार
जुड़ी रहे संग सदा
जैसे कल आज और कल
जैसे जड़ तना और शाखा
पातपात खिल आते
नए-नए फल-फूल’
शैल अग्रवाल
लेखनी/Lekhni जुलाई-अगस्त 21
खग तुम उड़ते रहना जीवन भर
(अँक 134-वर्ष 15)
मैंने कागज पर एक फूल बनाया
फूल खिल उठा झूमा लहलहाया
फिर सुंदर सी एक तितली बनाई
पंख फड़फड़ाए और वह उड़ चली
मित्र बनाए कुछ हंसते-खेलते
आवाज न दी पर किसी ने मुझे
संग खेलने एक न आया…
शैल अग्रवाल
लेखनी/Lekhni मई-जून 21
सैलानी यादें
( अंक 133-वर्ष 15)
‘गुनगुन भ्रमर और सुरभित मलय
बहती नदिया पर ठहरे बादल
चंद पल और साथ चलो हमारे
रोकते पग पलपल मोहक नज़ारे
पथ के फूल सुनाते नित नई कहानी
तट तट घूमे उमड़ा पानी
आस और विश्वास के इन पंखों पर
खग, तुम उड़ते रहना जीवन भर।’
शैल अग्रवाल
लेखनी/Lekhni मार्च-अप्रैल 21
अंक 132, वर्ष 15- शब्दों की नाव में एक सफर साथ-साथ
सत्सइया के दोहरे ज्यों नाविक के तीर
देखन में छोटे लगें घाव करें गंभीर।
अज्ञात
लेखनी/Lekhni-जनवरी-फरवरी 2021
अंक 131-वर्ष 14- करोना के साथ या करोना के बाद
कितने बसंत बीते
जीवन घट रीते
सुरभित यह फिर भी
नित नए रूप में
नए वेश में
नेह की हरित डाल पे…
शैल अग्रवाल
लेखनी/Lekhni-नवंबर-दिसंबर 2020
वर्ष 14-अंक 130 -कहानी विशेषांक
”ओस में डूबा है जबजब आसमाँ
फूलों पे भी दिखती हैं निशानियाँ
बातों से बातें निकलती हैं यहाँ
जैसे कहानियों से निकलें कहानियाँ। ”
शैल अग्रवाल
लेखनी/Lekhni-सितंबर-अक्तूबर 2020
अंक 129 वर्ष 14 अभी लड़ाई जारी है
‘अक्सर चाँद जेब में
पड़ा हुआ मिलता है,
सूरज को गिलहरी
पेड़ पर बैठी खाती है,
अक्सर दुनिया
मटर का दाना हो जाती है,’
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
लेखनी/Lekhni-जुलाई-अगस्त 2020
अंक 128, वर्ष 14 रोशनी की एक लकीर के सहारे
‘ज़रा आहिस्ता चल तू ऐ हवा, पंछी परेशां है
मैं उनको कह न पाऊँगा कि वो दूजा शजर देखें ‘
‘नादान’
लेखनी/Lekhni-मई-जून-20
अंक 127-वर्ष 14- प्रार्थना में जुड़े हाथ
” पेड़ हर वक़्त परिंदों की जगह रखता है
गाँव ने मुझसे कहा है-सुनो, आते रहना”
प्रताप सोमवंशी
लेखनी/Lekhni-मार्च-अप्रैल 20
अंक 126 वर्ष 14- साथ तेरा साथ फूलों का
“हथेली पर,
इश्क की खुशबू का कोई दावा नहीं…
हिज्र का एक रंग है
और तेरे जिक्र की एक खुशबू”
अमृता प्रीतम
लेखनी/Lekhni-जनवरी-फरवरी 20
अंक 125/ वर्ष 13 आभासी उजास में
भोर-उजेरी लेकर आई
किरन किरन उम्मीदें
हर्ष और उत्कर्ष की
आस भरे संकल्प की
स्वागत तुम्हारा नव वर्ष!
शैल अग्रवाल
लेखनी/Lekhni-नवंबर-दिसंबर 19
अंक 124 / वर्ष 13 काश्मीर- यथार्थ की धरती पर
शांति है उल्लास है, खुदपर जब यूँ विश्वास है
अपनों का गर साथ हो,स्वर्ग सदा ही साथ है।
शैल अग्रवाल
लेखनी/Lekhni-सितंबर-अक्तूबर 19
वर्ष 13-अँक 123 लघुकथा विशेषांक
एक बूंद सहसा जो उछली
तलहट की सारी आँच लिए
भिगो गई, डुबो गई
जगा गई भीगा तन मन
एक बूंद सहसा जो उछली
लहर बनी आँखों में तैरी
एक बूंद मुठ्टी में जकड़ी
मोती-सी अनमोल धरोहर।
शैल अग्रवाल
लेखनी/Lekhni-जुलाई-अगस्त 19
वर्ष 13-अंक 122 / पर्यटन विशेषांक
मैं जुस्तजू और ख्वाहिशों का एक सहरा हूँ,
मिले जो प्यास को मेरे, वो समंदर कम हैं।
– श्रवणकुमार उर्मलिया
लेखनी/Lekhni-मई-जून 19
यादों के उजाले में
वर्ष 13 -अंक 121/ संस्मरण विशेषांक
कोने-कोने यादें बिखरीं और आंगन-आँगन किलकारी
भूले बिसरे मन आंगन की रंग-बिरंगी ये फुलवारी।।
शैल अग्रवाल
(संस्मरण विशेशांक)
(अंक 121 वर्ष 13)
लेखनी/Lekhni-मार्च-अप्रैल 19
वर्ष 13-अंक 120 घरौंदा
‘तिनके-तिनके चिड़िया चुनती हसरत-हसरत आदमी
बनते नहीं आसानी से घरौंदे कहीं पर ये आज भी।’
-शैल अग्रवाल
लेखनी/Lekhni जनवरी-फरवरी 19
वर्ष 12-अंक 119 बचपन
चिंता-रहित खेलना-खाना वह फिरना निर्भय स्वच्छंद।
कैसे भूला जा सकता है बचपन का अतुलित आनंद?
सुभद्रा कुमारी चौहान
लेखनी/Lekhni नवंबर-दिसंबर 18 हमारी बदलती दुनिया
( वर्ष 12 -अंक 118)
मन टीवी, तन डिस्को, संबंध शेयर बाजार हुए,
खुली व्यवस्था,खुली अवस्था, ग्लोबल सब व्यवहार हुए।
-संजीव निगम
लेखनी/Lekhni सितंबर-अक्तूबर 18 भाषा, संस्कार और संस्कृति
“माना आदान-प्रदान है भाषा फिर भी यह व्यापार नहीं
सुख दुख बतलाती समझाती जीना सिखलाती कदम-कदम
जीने का तरीका है मां बोली सिर्फ शब्दों का ज्ञान नहीं।”
-शैल अग्रवाल
वर्ष 12 अंक-117
लेखनी/Lekhni जुलाई-अगस्त 18 शांति की तलाश में
‘राम भटके बन-बन, लड़ाइयाँ लड़ीं
गांधी ने गोली खाई, ईसा भी सूली चढ़े
गौतम ने तजा घरद्वार तब जाकर बुद्ध बने
आज भी हल नहीं पर इन उलझनों का
तेरा पता क्या है तू ही बता दे, ए शांति
तेरे लिए युगों-युगों से हम लड़े तरसे’
-शैल अग्रवाल
वर्ष 12 अंक 116
लेखनी/Lekhni-मई-जून 18 निशस्त्रीकरण मानवता की मांग/ अलविदा मित्रः श्रद्धांजलि
“मन किसीका दर्द से बोझल न हो
आँसुओं से भीगता काजल न हो”
-प्राण शर्मा
वर्ष 12 अंक 115
लेखनी/Lekhni मार्च-अप्रैल 18 पर्यटन विशेषांक
पतझण में नित बसंत तलाशूँ
और बसंत में बरखा को तरसूँ
घूमूँ सूरज,चांद,तारों-सा
फिर-फिरके वही गगन निहारूँ
अपनी धरती से जुड़ा खड़ा
गोद में इसकी रोज मैं सोया-जागा
आकुल उर्मियों को बाहों में भरता-उलीचता
सफर में हूँ मैं और सफर में भी नहीं ।
-शैल अग्रवाल
वर्ष 12 अंक 114
लेखनी/Lekhni जनवरी-फरवरी 18 हमारी यह विकस यात्रा
“मंगल पर घूम आए चांद पर खेती करली
बूढ़ी धरती माँ की पर हमने सुध ही ना ली”
शैल अग्रवाल
वर्ष 11 अंक 113
लेखनी/Lekhni नवंबर-दिसंबर 17 परदेश में देश
लहरों ने बहाया, किनारों ने बुलाया
खिलते रहे हम नए देश में नए वेश में
बिखर-बिखर के भी जुड़ते संवरते
अजनबी माटी में नई खुशबूएं भरते…
शैल अग्रवाल
वर्ष 11 अंक 112
लेखनी/Lekhni सितंबर-अक्तूबर 17 एक भाषा एक देश
हवा और पानी पर
कोई रूख तो करे
तभी घर से निकलेगें लोग
तब तक हम चुप क्यों रहे
हम अपनी प्रतिबद्धता के कारण लड़ेगे।
–अग्निवेद
वर्ष 11 अंक 111
लेखनी/Lekhni- जुलाई- अगस्त 17 ये किताबें
“प्रतिमा में सजीवता-सी
बस गयी सुछवि आँखों में
थी एक लकीर हृदय में
जो अलग रही लाखों में। ”
-जयशंकर प्रसाद
लेखनी/Lekhni-मई-जून 17 प्रेम और युद्ध में
” अपहरण आक्रमण अत्याचार
या फिर फूलों के शस्त्र
और प्यार ही प्यार
किसने कहा कि सब सही
युद्ध और प्यार में
प्यार में संयम और युद्ध में नियम
वरना आखेटी मन के दोनों शिकार
युद्ध हो या फिर वो प्यार…”
– शैल अग्रवाल
लेखनी/Lekhni- मार्च-अप्रैल 17 ख्वाबों बीच हकीकत
ख्वावों की झोली के बीच हकीकत
जैसे तारों बीच चंद्रमा आधा अधूरा
पूरा होने की बेचैनी में चमके-दमके
पूरा होते ही पर घट फिरसे खाली
हुलस-हुलस बीने जादूगर ने
बौनी इच्छाओं के उलझे सपने
शैल अग्रवाल
लेखनी/Lekhni- जनवरी-फरवरी 17 नई शुरुवात
दुनिया देश समाज हम
सब कुछ तो वही का वही
फिर भी चाह सदा ये रही
नया कुछ करेंगे हम
बदलेंगे जर्जर अनचाहा
नहीं निभानी कोरी रस्म
बस यह अभिनंदन की…
-शैल अग्रवाल
लेखनी/Lekhni-नवंबर-दिसंबर 16 ये सरहदें
आगे बढ़ेंगे पर सबको साथ लेकर
रोड़े मत डालो, कांटे न बिछाओ
ये कंटीली नफरत की सरहदें
खड़ी न रह सकेंगी प्यार की आंधी में
विश्वबन्धु हैं हम…
-शैल अग्रवाल
लेखनी/Lekhni-सितंबर-अक्तूबर 16 केन्द्र से परिधि तक- नारी अस्मिता विशेषांक
तुम्हें लिख सकता तो लिखता….तुम्हें कह सकता तो कहता……
तुम्हें रच सकता तो रचता……बस सोचता रहा…
इस सोच में भी पूरे कहां समाए तुम…………
-माया मृग
लेखनी/Lekhni-जुलाई-अगस्त 16 महाभारतः अंधे युग का गूंगा सच
” झूठी थी सारी अनिवार्यता भविष्य की।
केवल कर्म सत्य है
मानव जो करता है, इसी समय
उसी में निहित है भविष्य
युग-युग तक का!”
– धर्मवीर भारती
लेखनी/Lekhni-मई-जून-16 समंदर
आधा चाँद मांगता है पूरी रात
पूरी रात के लिए मचलता है
आधा समुद्र
आधे चाँद को मिलती है पूरी रात…
आधी पृथ्वी की पूरी रात
आधी पृथ्वी के हिस्से में आता है
पूरा सूर्य
-नरेश सक्सेना
लेखनी/Lekhni-मार्च-अप्रैल 16 अमिट
” सूरज एक नाव है, जो पच्छिम की लहर से डूब गई…सूरज रूई का एक गोला है, जिसे गहरी आंधी ने धुन दिया…सूरज एक हरा जंगल है, जो सूख कर सरकंडा बन गया है…सूरज दिल की आग से खाली है, इसने मेरे दिल की आग से कोयला मांगकर अपनी आग सुलगाई थी…सूरज सूइयों की एक पोटली है, जो मेरे पोरों के आर-पार हो गई है…सूरज एक खौलती हुई देग़ है, जिसमें आज मेरे इश्क़ को बैठना है… सूरज एक पेड़ है, जिस पर से किसी ने किरनें तोड़ ली हैं…सूरज एक घोड़ा है, जिसके ऊपर से उजाले की काठी उतर गई है…सूरज एक दीया है, जिसे अंबर के आले में रखकर जलाया जा सकता है…सूरज मेरे दिल की तरह है, जो घबरा कर अंधेरे की सीढ़ियां उतर जाता है…सूरज एक बुझा हुआ कोयला है, जिससे अंबर लकीरें खींचकर किसी की राह देखता है…सूरज एक उम्मीद है, जिसके बिना रातें काली चीलों की तरह आसमान में उड़ रही हैं…”
-अमृता प्रीतम
लेखनी/Lekhni-जनवरी-फरवरी 16 किसकी धरती
” चाँद पर घर और मंगल पर पानी
हवा में की हमने यूँ हजार बातें
और तरसती रही यह धरती
कही गोली कहीं गंडासे खाती ”
शैल अग्रवाल
लेखनी/Lekhni-लेखनी-अक्तूबर-नवंबर 15 लेखनी सानिध्य 2015 विशेष
आत्मा के सौंदर्य का शब्द रूप है काव्य,
मानव होना भाग्य है, कवि होना सौभाग्य।
गोपालदास नीरज
लेखनी/Lekhni-अगस्त-सितंबर 15 बिछुड़ते समय
A book of verse, underneath the bough,
A jug of wine, a loaf of bread – and thou
Beside me singing in the wilderness –
Ah, wilderness were paradise now!
~ Omar Khayyam
लेखनी/Lekhni-जून-जुलाई 15 ये नावें
” लहर लहर डूबे-उतराए, नित ही सबको पार लगाए
नाविक तेरी यह नैया नयनों में नित नए स्वप्न जगाए”
शैल अग्रवाल
लेखनी/Lekhni-अप्रैल-मई 15 खिलती महकती ऋतु की आस में
एक खंडहर के हृदय सी एक जंगली फूल सी,
आदमी की पीर गूंगी ही सही गाती तो है।”
-दुष्यंत कुमार
लेखनी/Lekhni-फरवरी मार्च 15 होली है!!
रोलीमय संध्या ऊषा की चोली है।
तुम अपने रँग में रँग लो तो होली है।
हरिवंश राय बच्चन
लेखनी/Lekhni-अक्तूबर-नवंबर 14 धर्म-अधर्म
” एक इस आस पे अब तक है मेरी बन्द जुबाँ,
कल को शायद मेरी आवाज़ वहाँ तक पहुँचे । ”
गोपाल दास नीरज
लेखनी/Lekhni-अगस्त-सितंबर 14 लौटना
“लौटेगा तुम तक ही बारबार इस पार कभी उस पार कभी
लहरों पर हो-होकर सवार तूफानों से जूझ कभी
पानी का ये बुदबुदा प्यासा तो है कमजोर नहीं…”
-शैल अग्रवाल
http://www.lekhni.net/old-blog/index2.html
लेखनी/Lekhni-मई-जून 14 सृजन
” तुम सत्य रहे चिर सुन्दर!
मेरे इस मिथ्या जग के
थे केवल जीवन संगी
कल्याण कलित इस मग के।
जयशंकर प्रसाद
लेखनी/Lekhni- अप्रैल 14 भिखारी
” रोटी-सा चांद
सपनों का आकाश
भूखों का नहीं। ”
-शैल अग्रवाल
लेखनी/Lekhni-मार्च 14 चीन्ही-अनचीन्ही
” इस पाप-पुण्य की दुनिया में,
कुछ उजले कलकल सोते देखे।
मन के वीराने वन प्रान्तर में,
खिलते कुछ हरियल पौधे देखे।
कल मैंने मन के कुछ कोने देखे।”
अनूप शुक्ल
लेखनी/Lekhni फरवरी 14 अमृत कलश या विषघट
“सरल से भी गूढ़, गूढ़तर
तत्त्व निकलेंगे
अमित विषमय
जब मथेगा प्रेम सागर
हृदय ।”
शमशेर बहादुर सिंह
लेखनी/Lekhni जनवरी 14 उम्मीद की किरण
” लाख भंवरें हों नदी में
पर कहीं पर कूल भी है।
शाख पर इक फूल भी है॥ ”
-कुँवर बेचैन
लेखनी/Lekhni-दिसंबर 13 नहीं, अंत नहीं
” भूखी चिड़िया ने पलटे फिर फिरके सूखे पत्ते
और थकी गिलहरी सो गई डाल पे भूखी
सर्द हवाओं ने कहा तब पलट पलट
नहीं, नहीं, नहीं यह सृष्टि का अंत
शिशिर के बाद ही तो, देखो
आ पाता है फिर से बसंत… ”
शैल अग्रवाल
लेखनी/Lekhni-नवंबर 13 रौशन अंधेरे
” जान गए, बस कहा न जाए ,
रात ,सुबह को क्या समझाए |
मन का दीप जला कर रखना ,
फिर अँधियारा कब टिक पाए।”
ज्योत्सना शर्मा
लेखनी/Lekhni-अक्तूबर 13 भाषान्तर समन्वय विशेषांक
” छलना थी, तब भी मेरा
उसमें विश्वास घना था
उस माया की छाया में
कुछ सच्चा स्वयं बना था।”
जयशंकर प्रसाद
लेखनी/Lekhni-सितंबर 13 प्रगति और परंपरा
” सपना झरना नींद का
जागी आंखें प्यास
पाना, खोना, खोजना
सांसों का इतिहास। ”
निदा फाजली
लेखनी/Lekhni-अगस्त 13 आपद्काल
“पत्थर के शहर,पत्थर के खुदा, पत्थर के ही इंसा पाए हैं
तुम शहरे मुहब्बत कहते हो हम जान बचा कर आए हैं !’
सुनीता जैन
लेखनी/Lekhni-जुलाई 13 तलाश
इस विकल वेदना को ले
किसने सुख को ललकारा
वह एक अबोध अकिंचन
बेसुध चैतन्य हमारा। ”
जय़शंकर प्रसाद
लेखनी/Lekhni-जून 13 रचना धर्मिता
” मै अपलक इन नयनों से
निरखा करता उस छवि को
प्रतिभा डाली भर लाता
कर देता दान सुकवि को। ”
जयशंकर प्रसाद
लेखनी/Lekhni-मई 13 सूरज
किरणों का दिल चीर देख सबमें दिनमणि की लाली रे
चाहे जितने फूल खिलें, पर एक सभी का माली रे..
‘ दिनकर’
लेखनी/Lekhni-अप्रैल 13 किसके हैं ये शिलालेख
” शब्द बनकर बह चले मेरे सब चन्दा औ तारे
बहुत जतन से जो चूनर पर थे टांके
पक्की गांठ लगाकर टांका वह जोड़ा था
सूंई तो बहुत नुकीली थी, धागा ही कुछ छोटा था ”
शैल अग्रवाल
लेखनी/Lekhni-मार्च 13 फागुन के रंग
” पलट पलट मौसम तके, भौचक निरखे धूप,
रह रहकर चितवे हवा, ये फागुन के रूप।”
विनोद शुक्ल
लेखनी/Lekhni-जनवरी-फरवरी 13 विद्रोह के स्वर
‘हवा में कोई सिसकता है
सुर्ख़ पत्ते ओस में
चुपचाप
ढुलते चले जाते
आख़िर किसलिए
. ..प्राण में केसर बरसता है
आज के दिनमान की परछाइयों में
किरण का मासूम वैभव
वा में कोई सिसकता है’ —
शमशेर
लेखनी/Lekhni-दिसंबर 12 रौशनी की तलाश में
” कटेंगे तभी यह अंधरे घिरे अब,
स्वयं धर मनुज दीप का रूप आये |
जलाओ दिये पर रहे ध्यान इतना
अन्धेरा धरा पर कहीं रह न जाये | ”
गोपालदास नीरज
लेखनी/Lekhni-अक्तूबर 12 मिथक और परंपराएँ
दरिया है बहता पानी, हर मौज है रवानी
रुकती नहीं कहानी
जितना लिखा गया है उतना ही वाकया हो
यह बात तो ग़लत है”
निदा फाज़ली
लेखनी/Lekhni-सितंबर 12 समय
“अच्छा-बुरा सब रेत पर लिखा
रेतघड़ी में कैद समय
झर-झरके होगा संपूर्ण
लहर-लहर फिर-फिरके ”
-शैल अग्रवाल
लेखनी/Lekhni-अगस्त 12 आज़ाद भारतः कितना स्वाधीन, कितना सुखी ?
‘ तन जलता है¸ मन जलता है
जलता जन–घन–जीवन
एक नहीं जलते सदियों से
जकड़े गर्हित बन्धन।
दूर बैठकर ताप रहा है¸ आग लगाने वाला
मेरा देश जल रहा¸ कोई नहीं बुझाने वाला।’
शिवमंगल सिंह ‘सुमन’
लेखनी/Lekhni-जुलाई 12 आधे अधूरे
“रोया फिर फिर मुड़ मुड़के
धरती का वो चटका कोना
बूंद बूंद में भीगी धरती
एक बूंद ना मेरे पास…”
शैल अग्रवाल
लेखनी/Lekhni-जून 12 यात्रा विशेषांक
“जा रहा हूँ चला, जा रहा हूँ बढ़ा,
पर नहीं ज्ञात है किस जगह हो?
किस जगह पग रुके, किस जगह मगर छुटे
किस जगह शीत हो, किस जगह घाम हो,
मुस्कराए सदा पर धरा इसलिए
जिस जगह मैं झरूँ उस जगह तुम खिलो।”
गोपालदास नीरज
लेखनी/Lekhni मई 12 धूप
सूप-सूप भर
धूप-कनक
यह सूने नभ में गयी बिखर:
चौंधाया
बीन रहा है
उसे अकेला एक कुरर।
अज्ञेय
लेखनी/Lekhni-अप्रैल 12 हास्य-व्यंग्य विशेषांक
“दर्द में से फूटता है
हँसी का निर्झर
अनुभूति जन्म लेती है
चोट के अंतर में
रात काली न हो
तो व्यर्थ है- तारों का सौंदर्य।“
विष्णु प्रभाकर
लेखनी/Lekhni-फरवरी 12 राग विराग
” मैं बल खाता जाता था
मोहित बेसुध बलिहारी
अन्तर के तार खिंचे थे
तीखी थी तान हमारी ।”
जयशंकर प्रसाद
लेखनी/Lekhni-जनवरी 12 नववर्ष विशेषांक
” गीत नवल,
प्रीति नवल,
जीवन की रीति नवल,
जीवन की नीति नवल,
जीवन की जीत नवल ! ”
हरिवंशरॉय बच्चन
लेखनी/Lekhni-दिसंबर 11 धर्म की मानवता या मानवता का धर्म
” मंदिर मस्जिद की दुनिया में
मुझको पहचानते कहाँ हैं लोग ”
निदा फ़ाज़ली
लेखनी/Lekhni-नवंबर 11 अद्भुत रिश्ते-माँ
” प्रतिमा में सजीवता-सी
बस गयी सुछवि आँखों में
एक लकीर हृदय में
जो अलग रही लाखों में। ”
जयशंकर प्रसाद
लेखनी/Lekhni-अक्तूबर 11 नारी शक्ति
” कल मैंने धरती माँगी थी
मुझे समाधि मिली थी,
आज मैं आकाश माँगती हूँ
मुझे पंख दोगे ?”
ऋषभ देव शर्मा
लेखनी/Lekhni-सितंबर 11 प्रवास से
” एक चेहरा साथ-साथ रहा जो मिला नहीं,
किसको तलाश करते रहे कुछ पता नहीं |
शिद्दत की धूप तेज़ हवाओं के बावजूद,
मैं शाख़ से गिरा हूँ नज़र से गिरा नहीं।”
बशीर बद्र
लेखनी/Lekhni-अगस्त 11 सपनों का भारत
तुमुल कोलाहल कलह में, मैं हृदय की बात रे मन !
विफल होकर नित्य चंचल
खोजती जब नींद के पल
चेतना थक सी रही तब, मैं मलय की बात रे मन!
जयशंकर प्रसाद
लेखनी/Lekhni-जुलाई 11 मेरा शहर
छलना थी, तब भी मेरा
उसमें विश्वास घना था
उस माया की छाया में
कुछ सच्चा स्वयं बना था। ”
जयशंकर प्रसाद
लेखनी/Lekhni-जून 11 रिश्ते
“ हम अगर तोड़ दें उस पार के जंगल का तिलिस्म
घर से फिर भाग के क्यूँ लोग उधर जाएँगे ”
लक्ष्मीशंकर बाजपेयी
लेखनी/Lekhni-मई 11 स्वाधीन कलम
कोई जनता को क्या लूटे
कोई दुखियों पर क्या टूटे
कोई भी लाख प्रचार करे
सच्चा बनकर झूठे-झूठे
अनमोल सत्य का रत्नहार,
लाती चोरों से छीन कलम
मेरा धन है स्वाधीन कलम ”
गोपाल सिंह नेपाली
लेखनी/Lekhni-मार्च-अप्रैल 11 बासंती सवाल
मन टेसू टेसू हुआ तन ये हुआ गुलाल
अंखियों, अंखियों बो गया, फागुन कई सवाल।”
दिनेश शुक्ल
लेखनी/Lekhni-जनवरी-फरवरी 11 आगत का स्वागत
” तिमिर चीरता थके न स्वर्णिम
उद्घोष ज्योति का, उद्घोष सत्य का
विदा विगत से,आगत का स्वागत्
जयति जयति ज्योतिर्मय नव प्रभात। ”
– शैल अग्रवाल
लेखनी/Lekhni- दिसंबर 10 मृत्यु अंत या एक और शुरुआत
” डूबते सूरज की आंखों में देखा उगते सूरज का सपना
अंधेरा जो आँखों में घिर आया तोडेगा फिर कोई अपना।”
शैल अग्रवाल
लेखनी/Lekhni-नवंबर 10 संसार एक खुला बाजारः समस्या .ा समाधान?
“यह दीप, अकेला, स्नेह भरा,
है गर्व भरा मदमाता, पर
इस को भी पंक्ति को दे दो। ”
अज्ञेय
लेखनी/Lekhni-अक्तूबर 10 मानिनी
” कह न ठंडी सांस में अब भूल वह कहानी
आग हो उर में तभी दृग में सजेगा पानी
हार भी तेरी बनेगी माननी जय की पताका
राख क्षणिक पतंग की है अमर दीपक की निशानी।”
महादेवी वर्मा
लेखनी/Lekhni-सितंबर 10 शिक्षा विशेषांक
” रोज दिन के बस्ते में मां एक नया सूरज रखती है, रोज ही रात हो जाती है ।
न बेटा ही उठकर पढ़ता है, न मां आदत बदल पाती है ।। ”
शैल अग्रवाल
लेखनी/Lekhni-अगस्त 10 मेरा भारत
भारत नहीं स्थान का वाचक, गुण विशेष नर का है
एक देश का नहीं, शील यह भूमंडल भर का है
जहाँ कहीं एकता अखंडित, जहाँ प्रेम का स्वर है
देश-देश में वहाँ खड़ा भारत जीवित भास्कर है
निखिल विश्व को जन्मभूमि-वंदन को नमन करूँ मैं !”
रामधारी सिंह ‘दिनकर’
लेखनी/Lekhni-जुलाई 10 सावन विशेषांक
अलि घिर आए घन पावस के !
द्रुम समीर कंपित थर-थर-थर
झरती धाराएँ झर-झर-झर
जगती के प्राणों में स्मर शर
बेध गए कस के …
सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला ‘
लेखनी/Lekhni-जून 10 अवसाद
” तुम कौन! हृदय की परवशता? सारी स्वतंत्रता छीन रही,
स्वच्छंद सुमन जो खिले रहे जीवन-वन से हो बीन रही!”
जयशंकर प्रसाद
लेखनी/Lekhni-मई 10 पर्यावरण प्रदूषण
कटे हुए हर पेड़ से, चीखा एक कबीर
मूरख, कल को आज की, आरी से मत चीर”
नरेश सांडिल्य
लेखनी/Lekhni-अप्रैल 10 तारे दूर के -वंचना विशेषांक
मेरी दास्ताँ का उरूज था तेरी नर्म पलकों की छाँव में
मेरे साथ था तुझे जागना तेरी आँख कैसे झपक गई
बशीर बद्र
लेखनी/Lekhni-मार्च 10 फागुन विशेषांक
रचा महोत्सव पीत का, फागुन खेले फाग,
साँसों में कस्तूरियाँ, बोये मीठी आग।”
दिनेश शुक्ल
लेखनी/Lekhni-फरवरी 10 खोया स्वर्ग-एक तलाश
स्वप्न ने अपने करों से था जिसे रुचि से सँवारा,
स्वर्ग के दुष्प्राप्य रंगों से, रसों से जो सना था,
ढह गया वह तो जुटाकर ईंट, पत्थर, कंकड़ों को
एक अपनी शांति की कुटिया बनाना कब मना है ?
है अँधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है ?
हरिवंश राय बच्चन
लेखनी/Lekhni-जनवरी 10 बाल विशेषांक
” नव चेतना के नए पंख ले,
नव विहान हो, उन्मुक्त उड़ान हो!
खग, तुम थकना ना जीवन भर!!”
शैल अग्रवाल
लेखनी/Lekhni-दिसंबर 9 अनुवाद विशेषांक
“हल्की हल्की बारिशें होती रहें
हम भी फूलों की तरह भीगा करें
आँख मूँदे उस गुलाबी धूप में
देर तक बैठे उसे सोचा करें
दिल मुहब्बत दीन दुनिया शायरी
हर दरीचे से तुझे देखा करें ”
कुंवर बेचैन
लेखनी/Lekhni-नवंबर 9 धुंध के पार
सन्नाटा वसुधा पर छाया,
नभ में हमनें कान लगाया,
फ़िर भी अगणित कंठो का यह राग नहीं हम सुन पाते हैं
कहते हैं तारे गाते हैं ”
हरिवंशराय बच्चन
लेखनी/Lekhni-अक्तूबर 9 पर्व महोत्सव
” जाल चांदी का लपेटो,
खून का सौदा समेटो,
आदमी हर कैद से बाहर निकलकर ही रहेगा।
जल गया है दीप तो अंधियार ढल कर ही रहेगा।”
गोपाल दास नीरज
लेखनी/Lekhni-सितंबर 9 हिमालय विशेषांक
” मेरे नगपति! मेरे विशाल!
साकार, दिव्य, गौरव विराट्,
पौरुष के पुंजीभूत ज्वाल
मेरी जननी के हिम-किरीट
मेरे भारत के दिव्य भाल।”
रामधारी सिंह ‘दिनकर’
लेखनी/Lekhni-अगस्त 9 देश हमारा-कल,आज और कल
” हिमगिरि-सा उन्नत तव मस्तक,
तेरे चरण चूमता सागर,
श्वासों में हैं वेद-ऋचाएँ
वाणी में है गीता का स्वर
ऐ संसृति की आदि तपस्विनि, तेजस्विनि अभिराम।
मातृ-भू शत-शत बार प्रणाम।”
भगवती चरण वर्मा
लेखनी/Lekhni-जुलाई 9 समन्वय विशेषांक
“लहर पर लहर पर लहर पर लहर
सागर, तुम कुछ कहना नहीं चाहते
तुम होना चाहते हो… ”
अज्ञेय
लेखनी/Lekhni-जून 9 फुरसत का एक दिन
” तुम्हें खोजता था मैं,
पा नहीं सका,
हवा बन बहीं तुम, जब
मैं थका, रुका ।”
सूर्यकांत त्रिपाठी ‘ निराला ‘
लेखनी/Lekhni-मई 9 आँगन की चिड़िया
“घुमती हूं अपने पिंजर में
बिना खटखटाए दरवाजा
उगती हूँ अपनी आँखों में
आप ही चुपचाप
कहती हूँ आप-आप से
रब्बा! मैंने देखी है उसकी
आँखों में अपने लिए नमी।”
जया जादवानी
लेखनी/Lekhni-अप्रैल 9- समान अधिकारः एक अटका हुआ सवाल
” आँसू से भींगे अंचल पर मन का सब कुछ रखना होगा –
तुमको अपनी स्मित रेखा से यह संधिपत्र लिखना होगा।”
-जयशंकर प्रसाद
लेखनी/Lekhni-मार्च 9- हास्य-व्यंग्य विशेषांक
पिचकारी यह रंग बिरंगी
लाल गुलाबी प्यार भरी
पीली एक उमंगों वाली
और हरी हरियाली-सी
महकी-महकी यादोंभीगी
खुशियां बन तुमतक जाए!”
शैल अग्रवाल
Lekhni-फरवरी 9 वक्त की शाख पे खिलते पल
लग के साहिल से जो बहता है उसे बहने दो
ऐसे दरिया का कभी ऱुख नहीं मोड़ा करते
-गुलजार
लेखनी/Lekhni-जनवरी 9 -गांव की ओर
” गए बरस की दहशतगर्दी
ठिठुरन सी भर गई नसों में,
नया बरस
कुछ तो गरमाहट लाए ……… ”
रिषभ देव शर्मा
लेखनी/Lekhni-दिसंबर 8 -अनेकों में एकः इन्द्रधनुषी भारत (लोक संस्कृति विशेषांक)
कबीरा खड़ा बाजार में, मांगे सबकी खैर।
ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर ।।
संत कबीर
लेखनी/Lekhni-नवंबर 8- शरद विशेषांक
नाँव द्वार आवेगी बाहर,
स्वर्ण जाल में उलझ मनोहर,
बचा कौन जग में लुक छिप कर
बिंधते सब अनजान!
-सुमित्रानन्दन पंत
लेखनी/Lekhni-अक्तूबर 8-भारतीय चेतना के आदर्श मर्यादा पुरुषोत्तम रामः Legend that shaped our nation’s psyche)
रामनाम मनि धरी जीभ देहरी द्वार तुलसी भीतर बाहिरहुँ जौं चाहति उजियार।।
राम चरित मानस `
लेखनी/Lekhni-सितंबर 8- रिश्ते
” मानव जीवन बेदी पर, परिणय है विरह मिलन का
सुख-दुख दोनों नाचेंगे, है खेल आँख का मन का”
-जयशंकर प्रसाद
लेखनी/Lekhni-अगस्त 8- स्वदेश
‘तन तो आज स्वतंत्र हमारा, लेकिन मन आज़ाद नहीं है।’
गोपाल दास ‘ नीरज’
लेखनी/Lekhni-जुलाई 8 -नदी विशेषांक
” जीवन-सरिता की लहर-लहर,
मिटने को बनती यहाँ प्रिये
संयोग क्षणिक, फिर क्या जाने
हम कहाँ और तुम कहाँ प्रिये ।
पल-भर तो साथ-साथ बह लें,
कुछ सुन लें, कुछ अपनी कह लें ।”
-भगवती चरण वर्मा
लेखनी/Lekhni-जून 8 य़ुवा विशेषांक
“उठो
पांव रक्खो रकाब पर
जंगल-जंगल, नद्दी-नाले कूद-फांद कर
धरती रौंदो
जैसे भादों की रातों में
बिजली कौंधे
ऐसे कौंधो…”
-भवानी प्रसाद मिश्र
लेखनी/Lekhni-मई 8-घर की ओर
” ज़मीं भी उसकी,ज़मी की नेमतें उसकी
ये सब उसी का है,घर भी,ये घर के बंदे भी
खुदा से कहिये, कभी वो भी अपने घर आयें!”
-गुलजार
लेखनी/Lekhni-अप्रैल 8
नारी/ Feminity
अँक 14 वर्ष 2
“सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जायेगा
इतना मत चाहो उसे वो बेवफ़ा हो जायेगा
हम भी दरिया हैं, हमें अपना हुनर मालूम है
जिस तरफ भी चल पड़ेंगे, रास्ता हो जायेगा”
बशीर बद्र
लेखनी/Lekhni-मार्च 8
पहली वर्षगांठ पर/ On the first Anniversary
अंक 13 वर्ष 2
“चमन में बज रही है फूलों की पायल
सुरभि के स्वर पवन को कर रहे चंचल
किरण कलियां गगन से फेंकता कोई
किसी का हिल रहा लहरों भरा आंचल!”
-राजनरायण बिसारिया
लेखनी/Lekhni-फरवरी 8
हम तुम/ Between Us
अंक 12 वर्ष 1
चाहे गीता बाँचिए, या पढ़िए कुरान/ मेरा तेरा प्यार ही हर पुष्तक का ज्ञान।”
-निदा फाजली-
लेखनी/Lekhni-जनवरी 8
स्वागत नववर्ष / Stepping into New Year
अँक 11 वर्ष 1
खग तुम उड़ते रहना जीवन भर
गोपाल दास नीरज
लेखनी/Lekhni-दिसंबर 7
गीत और ग़ज़ल विशेषांक/ Songs & Poems
अंक 10 वर्ष 1
हमारा दिल सवेरे का सुनहरा जाम हो जाए ।
चराग़ों की तरह आँखें जलें, जब शाम हो जाए ।
-बशीर बद्र
लेखनी/Lekhni-नवंबर 7
ज्योति पर्व/ Festival of Light
अंक 9 वर्ष 1
A candle looses nothing by lighting another candle.
Annonumous
लेखनी/Lekhni-अक्तूबर 7
ज्योति पुंज बापू/ Father of the Nation
अंक 8 वर्ष 1
” An eye for eye only ends up making the whole world blind….Culture Of the mind must be subservient to the heart.”
– Mohan Das Karamchand Gandhi.
लेखनी/Lekhni-सितंबर 7
एकांत / Discovering the beauty of silence
अंक 7 वर्ष 1
In you the worlds arise
Like waves in the sea.
It is true!
You are awareness itself.
So free yourself
From the fever of the world.
-Ashtavakra Gita 15:7
लेखनी/Lekhni-अगस्त 7
हिन्दी के बढ़ते कदम / Indians rediscovering themselves
अंक 6-वर्ष 1
कुछ बात है कि हस्ती, मिटती नहीं हमारी
सदियों रहा है दुश्मन, दौरे जहां हमारा
मोहम्मद इकबाल
लेखनी/Lekhni-जुलाई 7
बरखा विशेषांक
अंक 5-वर्ष 1
आज वारि लो झरता झर-झर
भरे हुए मेघों से हैं;
फोड़ गगन आकुल जल-धारा
थमती नहीं कहीं भी है।
-रवीन्द्रनाथ टैगोर
लेखनी/Lekhni-जून 7
तपिश
अंक 4- वर्ष 1
“धूप किनारे पेड़ खड़े हैं साए के नीचे सड़कें
कितने हैं जो यूं दुख सह औरों को सुख देते।”
-शैल अग्रवाल
लेखनी/Lekhni-मई 7-
सुमन समारोह
अंक 3-वर्ष 1
“आज खिले हैं कल बिखरेंगे
बिखर-बिखरके फिर संवरेंगे
कोमल है तन-मन इनका
पर इरादा अटल और पक्का ”
-शैल अग्रवाल
लेखनी/Lekhni-अप्रैल 7
सच की तलाश में/Reflecting upon truth
अंक 2 -वर्ष 1
‘ इतना सुख जो न समाता, अन्तरीक्ष में जल थल मे।
उनकी मुठ्ठी में बन्द था, आस्वासन के छल में।’
-जयशंकर प्रसाद।
लेखनी/Lekhni-मार्च 7
एक सपना जो आँखों में किलका
अंक 1-वर्ष 1
प्रथम वर्ष की पांख खुली है,
शाख-शाख-किसलयों तुली है,
एक और माधुरी घुली है,
गीतों-गन्ध-रस वर्णों अनुपम।
– सूर्यकांत त्रिपाठी निराला
Lekhni/लेखनी