औरत की देह ही
औरत का ताबूत है
जिसे वह जान पाती है—
उम्र ढलने के बाद
जीवन भर एक ही यात्रा
भौतिक ताबूत से दैहिक ताबूत तक।’
वह हमेशा जागती रहती है
नदी की तरह
वह हमेशा खड़ी रहती है
पहाड़ की तरह
वह हमेशा चलती रहती है
हवा की तरह
वह अपने भीतर कभी
अपनी ऋतुऍं
नहीं देख पाती है
वह अपनी ही नदी में
कभी नही नहा पाती है
वह अपने ही स्वाद को
कभी नहीं चख पाती है।
तुम्हारी सांसों के घर में
घर बनाया है—मेरी सांसों ने
तुम्हारे अधर में
धरे हैं—मेरी चाहतों के संकल्प
तुम्हारे स्पर्श में
छूट गयी है—एक खिली हुई ऋतु
तुम्हारे साथ प्रणय की परिक्रमा
हाथ थाम ले जाती है मुझे वहां—-
जहॉं न पाखी पहुंचते हैं न पंख
न मछली पहुंचती है न जल
न शब्द पहुंचते हैं न अर्थ
न शोर पहुंचता है न मौन।
– पुष्पिता अवस्थी
दमित इच्छा
इंद्रियों का फैलता जाल
भीतर तक चीरता
माँस के लटके चिथड़े
चोटिल हूँ बताता है
मटर की फली की भाँति
कोई बात कैद है
उस छिलके में
जिसे खोल दूँ तो
ये इंद्रियाँ घेर लेंगी
और भेदती रहेंगी उसे
परत दर परत
लहुलुहाल होने तक
बिसरे खून की छाप के साथ
क्या मोक्ष पा जायेगी
या परत दर परत उतारेगी
अपना वजूद / अस्तित्व
या जल जायेगी
चूल्हें की राख की तरह
वो एक बात
जो अब सुलगने लगी है।
-दीप्ति शर्मा
आत्मा की भूख
देह की जरूरत
कितने प्रवचन दिए
उसने नेह के नाम पर
जबकि उसके लिए
दो ही शब्द काफी थे
पहला विश्वास और
दूसरा समर्पण…
गुलाबों की बात क्या करनी
कंटीली डाल पर ही ये खिलते हैं
किसीको गुलाब कहते जो
किसी और के जूड़े में
उन्हे टांकते हैं।
साथ चलेगी?
दूरतक!
साथ रहेगी ?
हमेशा और हर हाल में !
वह पूछता रहा और वह
हाँ में सिर हिलाती गई
न वह थकी सवालों से
ना ही वह बदला कभी
शक करने की आदत से।
मेरी दुनिया है तू
कहा था उसने हंसकर
उसे बाँहों में कसकर
और दुनिया होने का अर्थ
जान गई थी औरत उस दिन से ही
धरती सी बिछकर, बसने की आस में
बारबार पैरों तले रुंदकर।
प्यार एक शब्द नहीं
स्वभाव था उसका
और उसके लिए
मात्र एक साधन …
सब कुछ हूँ मैं प्यार में
कठपुतली, गुड़िया, सखी माँ
बहन, पत्नी और प्रियतमा
परछांई- सी साथ चलूंगी सदा
बैसाखी बनने से ऐतराज नहीं मुझे
पर सीढ़ी या पायदान हरगिज नहीं।
लड़कियाँ
घोंसले छोड़कर
शाख छोड़कर
उड़ान छोड़कर
बारबार
दाना चुगने उतर आती हैं
और जाल में फंस जाती हैं
जानते हैं सभी
चिड़िया की अपनी फितरत है
और बहेलिए की अपनी
पर हम जो देख रहे हैं
दुखी हो रहे हैं
क्या करना चाहिए हमें?
-शैल अग्रवाल