मनोरंजन
आशा को लेखन का बेहद शौक था ।या यूँ कहें कि लेखन द्वारा वह अपने दिल के हर दर्द को कागज़ पर उतार अपनी व्यस्त भागदौड़ और घुटन भरी जिन्दगी में कुछ पल सुकून के जी लेती थी । मगर उसके पति मनोज और सासू माँ को उसका लेखन कलम घिसाई और टाइम की बर्बादी लगता ।वह दोनों जब तब उसके लेखन पर व्यंग्य बाण छोड़ते और लेखन को ठलुओं का काम कहकर सबके सामने उसका मजाक उड़ाते ।उस वक्त आशा की आँखों से बेबसी और अपमान के आंसू निकल पढ़ते थे ।एक दिन एक साहित्यिक कार्यक्रम में आशा को विशिष्ट अतिथि के रूप में बुलाया गया तो वह मना न कर सकी और कुछ देर के लिए कार्यक्रम में चली गयी ।मगर जब घर लौटी तो सासू माँ ने दरवाजे से ही अपशब्दों की बौछार करना शुरू कर दिया ।इस अपमान से दुखी हो आशा अपने कमरे में आंसू पोंछती जब पहुंची तो उसका पति फोन पर उसके पिताजी को धमकी दे रहा था कि आशा ने यह लेखनबाजी नहीं छोड़ी तो वह उसे छोड़ देगा ।घर के बाहर पराये पुरुषों के साथ बैठकें करने वाली आवारा औरतों की उसे कोई जरूरत नहीं है ।आशा तड़प कर बोली “मनोज मैं घर के सारे कार्य निपटा कर अगर कुछ देर अपना मनोरंजन कर आई तो इसमें क्या गलत है ?”मनोज लगभग चीखते हुए बोला “तुम्हारा मनोरंजन और मनोरंजन करने वालों को मैं खूब समझता हूँ उन्हह ” । रोज रोज के अपमान से तंग आकर आशा ने घर से बाहर निकलना ही बंद कर दिया ।मनोज को गुनगुनाते हुए अटेची पैक करते देख आशा ने उसे सवालिया नजरों से देखा तो मनोज बोला “अरे मैं तुम्हे बताना भूल गया हमारे क्लब के सभी पुरुष थाईलेंड ट्रिप पर जा रहे हैं “आशा ने पूछा ” औरतें नहीं जा रहीं ?” मनोज “पागल हो वहां औरतों का क्या काम ” आशा ने हैरानी से पूछा “फिर मर्दों का वहां कौनसा जरूरी काम है ” मनोज आँख मारते हुए “मनोरंजन नहीं करें अपना ,बस तुम बीवियों से ही चिपके रहे “।
होली
अर्पिता की यह पहली होली थी ।उसने और निखिल ने घरवालों के खिलाफ जाकर प्रेम विवाह किया था ।उनकी शादी में कोई भी अपना शरीक नहीं हुआ और उनका दांपत्य जीवन बड़ों के आशीर्वाद के बिना शुरू हुआ, इसका निखिल से ज्यादा अर्पिता को मलाल था ।मगर विवाह के दो महीने बाद जब होली का त्यौहार पास आने लगा तो अर्पिता ने इस होली में सबके गिले शिकवे दूर कर निखिल और उसके परिवार को एक करने की ठानी ।उसके मन में अनेक उमंग उठ रहीं थी कि होली पर मैं यह बनाउंगी वो बनाउंगी और सब मेरी तारीफ करेंगे मुझे आशीर्वाद प्रदान करेंगे ।होली वाले दिन अर्पिता निखिल के साथ ससुराल पहुंची दोनों ने बड़ों के पैर छूकर आशीर्वाद लिया ।माता-पिता बच्चों से कबतक नाराज रहते उन्होंने भी दोनों को माफ़ कर दिया ।घर में खुशियों की खिलखिलाहट गूँज उठी ।तभी निखिल के जीजाजी वहां आये और अर्पिता को रंग लगाने लगे ।अर्पिता भी अपने ससुराल की पहली होली का भरपूर लुत्फ़ उठाते हुए खुद बचते हुए जीजाजी को रंग लगाने की कोशिश करने लगी ।होली की इस धरपकड़ में अचानक एक तमाचे की आवाज सबको सुनाई दी ।जीजाजी अपना गाल सहलाते हुए बडबडा रहे “मैं तो पहले ही कह रहा था यह लड़की सही नहीं है ,दिखा दी न अपनी औकात “उधर अर्पिता रोते हुए तमतमाए चेहरे के साथ घर से बाहर निकल गई ,आखिर उसकी पहली होली की मिठास हमेशा – हमेशा के लिए कडवाहट में जो बदल गई थी ।