रेखाचित्रः वोदका भरी आँखों वाली लड़की-शिखा वाष्णेँय

Indian WomenFashion Gallery-1कुछ कुछ किसी ग्रीक लड़की सा डील- डौल था उसका.लंबा कद, भरा हुआ बदन, लंबे काले बाल और लंबी चौड़ी सी स्कर्ट के ऊपर ढीली ढाली सी टी- शर्ट, उन बड़े शहरों की चुस्त जींस टॉप में इतराती, लड़कियों के झुण्ड में कुछ अलग सी लग तो रही थी वो पर फिर भी मैंने उससे बात करने की कोई पहल नहीं की थी. और चुपचाप अपनी बारी का इंतज़ार करती हुई भीड़ में खड़ी रही. ९ घंटे की थकाऊ उड़ान, घर से पहली बार अकेले निकलने की नर्वसनेस और एक ठंडा अनजान देश का वह काम चलाऊ से होटल का संकरा सा कॉरीडोर जहाँ हम पचपन छात्र – छात्राएं थके निढाल से दीवार या आसपास के स्टूल पर टेक लगाए खड़े थे. सभी को अपने नाम पुकारे जाने का इंतज़ार था कि जल्दी से जल्दी हमारे व्यवस्थापक हमें हमारी व्यवस्था बता दें तो कुछ आराम आए. धीरे धीरे भीड़ छंट रही थी और आखिर में उस ग्रीक दिखने वाली लड़की के साथ मैं और ८-९ लड़के ही बचे थे. अत: हम दोनों लड़कियों को एक कमरे में अपना डेरा डाल देने के लिए कहा गया कि कल तक तुम दोनों को तुम्हें मिले विश्वविद्यालय में भेज दिया जायेगा अब जाकर आराम करो
कमरे में घुसकर सामान एक तरफ रखकर जैसे ही मुड़ने को हुई जोर से आवाज आई
चूं ……..
वह जिस पलंग पर बैठ रही थी वह गद्दे के नीचे स्प्रिंग वाला था और उसके बैठते ही उसने उसका स्वागत इस आवाज से किया था.
थोड़ी देर सकपकाने के बाद वह खिल खिल करके हंस दी. न जाने क्या था उसकी इस हंसी में कि, इतनी हास्यास्पद स्थिति होने के बाद भी मुझे हंसी नहीं, उसपर बच्चों सा प्यार आया और तब मैंने उसका चेहरा पास से साफ़ तौर पर देखा. ऊंचा माथा, छोटी थोड़ी फ़ैली सी नाक, पतले स्माइलिंग से होठ जो उसके बोलते ही अपने आप पाऊट बना लेते थे, और चेहरे पर हलके मुहांसों के निशान. कुल मिलाकर एक बेहद साधारण सा चेहरा था परन्तु उसे असाधारण बना रहीं थीं उसकी वो दो आँखें जिनमे हमेशा हल्का सा पानी भरा रहता और उसके बोलते या मुस्कराते ही वह पानी झील के पानी सा हिलोरे मारने लगता. गज़ब की मादकता थी उसकी उन आँखों में. मुझे यूँ घूरते देख उसका हँसना बंद हुआ और हाथ बढ़ा कर बोली हेल्लो, मैं मीता. अब मैंने भी हाथ बढ़ाया और अपना परिचय दिया. वह एक बड़े मेट्रो शहर की पली बड़ी लड़की थी और मैं एक छोटे शहर से आई थी परन्तु उसकी सहजता के आगे मुझे सुपिरियोरिटी का अहसास होने लगा. वह आगे बोली कौन सी यूनिवार्सिटी मिली तुम्हें ? मेडिकल के लिए ही आई हो न ? उसके दोनों सवालों के उत्तर न में सुनने के बाद वह थोड़ी कन्फ्यूज सी मुझे देखने लगी पर कुछ बोली नहीं. उसके बाद अपने दोस्तों से मिलने उनके कमरे में चली गई.
अगले दिन हम छात्रों से भरी वह पूरी मंजिल लगभग खाली हो चुकी थी. जिस जिसको जहाँ जाना था उसे वहाँ भेज दिया गया था. और अब सिर्फ मैं, वो और कुछ छात्र रह गए थे. अब उसके पास मुझसे दोस्ती करने के अलावा शायद कोई और चारा नहीं था परन्तु मेरा विषय उससे एकदम अलग था शायद इसलिए मुझसे ज्यादा दोस्ती करने में उसे फायदा नहीं नजर नहीं आ रहा था. उसकी वाली यूनिवार्सिटी में या उसी जगह पर ही मेरा भी जाना उसे शायद नामुमकिन लग रहा था परन्तु फिलहाल कोई और विकल्प न देख उसने थोड़ी बहुत बात करनी शुरू कर दी थी.

रोज एक एक दिन करके निकल रहे थे और हमें समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर हमारे लिए ही इतनी देर क्यों हो रही है. एक सी मन:स्थिति में मीता और मैं न चाहते हुए भी करीब आते जा रहे थे. उसने मुझे अपने स्कूल के लड़कों के साथ दोस्ती के सीक्रेट किस्से सुनाने शुरू कर दिए थे और मैंने उसे अपनी अभी तक सिर्फ डायरी में बंद कवितायें दिखानी शुरू कर दीं थीं. शायद हम दोनों ही यह सोच रहे थे कि आज नहीं तो कल हम अपने अपने रास्ते चले जायेंगे और इसके साथ ही हमारे सीक्रेट भी. उसी दौरान एक दिन मेरा नंबर आ गया और मुझे उस अनजान देश के एक और अनजान शहर के लिए रवाना कर दिया गया.
उस होस्टल के सभी कमरे पहले से भरे हुए थे और सबको अपने पसंद के रूम मेट्स मिल गए थे अत: मुझे एक कमरा अकेले के लिए दिया गया. अकेलेपन में एक और इजाफ़ा हुआ परन्तु किया कुछ नहीं जा सकता था. होस्टल, कॉलेज की औपचारिकताओं में १ हफ्ता बीता कि एक दिन सुबह ६ बजे किसी ने दरवाजा खटखटाया, खोलकर देखा तो सामने एक रूसी टीचर के साथ मीता खड़ी थी. उस रूसी टीचर ने टूटी फूटी अंग्रेजी में मुझे बताया कि मीता मेरी रूम मेट है और चली गई .
उसके जाते ही मीता जोर से मेरे गले लग गई और मेरी आँखें फिर उसकी उन मादक, भरी भरी आँखों पर जम गईं. जाने क्यों वह जब भी ज्यादा मुस्कराकर या खुश होकर बोलती ऐसा लगता जैसे अभी उसकी आँखों में भरा पानी भरभरा कर बहने लगेगा पर ऐसा कभी नहीं होता था. वह पानी ऐसे ही उसके आँखों के कटोरों में अटखेलियाँ करता रहता था.
मीता के आने से मुझे थोड़ी खुशी तो जरूर हुई थी परन्तु मैं जानती थी कि एकदम अलग -थलग विषय होने के कारण वह अपने ही विषय के छात्रों से मिलने जुलने में ज्यादा दिलचस्पी लेगी। वो तो उनके साथ उसे कमरा मिला नहीं वर्ना वह तो एक कमरे में और दो लोगों के बीच ही तीसरी बनने को भी तैयार थी. अत : मेरा उसका आमना सामना एक कमरे में रहते हुए भी तभी होता जब रात का खाना बनाना होता वह भी वो कई बार अपने मेडिकल वाले दोस्तों के यहाँ खाकर आ जाती थी.
उसी हफ्ते हम सब लोगों के मेडिकल चेकअप हो रहे थे. रोज किसी न किसी ग्रुप को क्लिनिक ले जाया जाता था. अजीब सा सिस्टम था चेकअप का उन लोगों का. लड़के लड़कियों का समूह और कमरा जरूर अलग होता था परन्तु सबको एक लाइन से भेड़ों की तरह खड़ा कर दिया जाता था. और एक मोटी सी नर्स एलान करती “राज्दिवायेत्स्या” (कपड़े उतारिये) और फिर भेड़ों की पीठ पर मोहर लगाने की तरह लाइन से एक एक का जाने क्या टेस्ट लेती जाती. भाषा का एक भी शब्द हममें से किसी को समझ में आता नहीं था अत: चुपचाप उनका कहा मानने के अलावा किसी के पास कोई विकल्प नहीं था. उसके बाद हम सबको वापस होस्टल भेज दिया जाता. परन्तु एक दिन एक टेस्ट के बाद मीता को रोक लिया गया. शाम को वह घर आई तो उसके साथ एक और सफ़ेद कोट वाली महिला थी मीता ने जल्दी जल्दी अपने कुछ कपड़े एक बैग में डाले और मेरे कुछ पूछने से पहले उस महिला के साथ चली गई. मेरी समझ में जब कुछ नहीं आया तो मैं एक मंजिल ऊपर अपनी एक सीनियर को बताने चली गई.
मीता का एक टेस्ट पोजिटिव आया है तो इलाज के लिए उसे अस्पताल लेकर गए हैं. कुछ दिन उसे वहीं रहना होगा उस सीनियर ने आकर मुझे यह खबर दी.
हमारी सबकी कक्षाएं शुरू हो चुकीं थीं. सब अपनी अपनी पढाई में और रूसी भाषा सीखने में व्यस्त हो चुके थे. अत: ज्यादा फर्क किसी को नहीं पड़ा. पड़ता भी तो क्या कर सकते थे उस देश के नियम बहुत कठोर थे, और उनमें किसी भी तरह की ढील नहीं दी जाती थी. परन्तु २ हफ्ते गुज़रते- गुज़रते मुझे मीता की कमी महसूस होने लगी. आखिर और कितने दिन ? ऐसी क्या बीमारी हो गई उसे? इन लोगों ने उसके घर खबर भी की है या नहीं ? हम तो यहाँ कक्षाओं में रूसी सीख रहे हैं उस बेचारी को तो एक शब्द भी रूसी का नहीं आता. हे प्रभु, क्या हो रहा होगा उसके साथ.
सीनियर से बात की तो उन्होंने कहा,यहाँ उस अस्पताल में किसी को भी मरीज से मिलने जाने की इजाजत नहीं है. उसका वहाँ इलाज हो रहा है तुम अपनी पढाई पर ध्यान दो.
तभी एक दिन क्लास से आते ही मेरे कमरे के बाहर एक नर्स खड़ी मिली उसने मुझे कुछ दवाएं पकड़ाईं, एक ब्लड सेम्पल लिया और दवाएं ठीक से खाने की हिदायत देकर चली गई. मुझे फिर कुछ समझ में नहीं आया. कुछ दिनों बाद वह नर्स फिर आई, एक और खून का नमूना लिया. अब मैंने हाथ, पैर, मुँह, सब भाषाओँ का इस्तेमाल कर उससे पूछ ही लिया
वह बहुत कुछ बोली पर मेरी समझ में इतना ही आया कि मीता को टीबी हुआ है और क्योंकि वह कुछ दिन मेरी रूम मेट बनकर रही थी इसलिए एहतियात के लिए मेरी जांच और दवाएं भी हो रहीं थीं. पर अब मुझे सुरक्षित घोषित कर वह चली गई थी.

तीन महीने गुजर गए थे अब मीता को कभी कभी १-२ दिन के लिए होस्टल आकर हम लोगों से मिलने की इजाजत मिल जाती थी. मतलब उसकी बीमारी खतरे से बाहर हो चुकी थी।कभी कभी वह खुद कोई त्यौहार आदि का बहाना बना कर या अस्पताल वालों को इमोशनल करके चली आती थी. अस्पताल में ही उसके साथ वाले बेड की एक रूसी लड़की से उसकी दोस्ती हो गई थी और मीता उसे अंग्रेजी सिखाने के एवज में उससे रूसी सीखने लगी थी. इधर हम सब बाकायदा कक्षाओं में रूसी सीख रहे थे और अभी तक काक दैला (क्या हाल है), शतो एता (यह क्या है) जैसे कुछ बेसिक शब्द ही बोल पाते थे परन्तु मीता बिना किताब या औपचारिक शिक्षा के कामचलाऊ रूसी बोलने समझने लगी थी. होस्टल आकर मीता में गजब का उत्साह आ जाता. उसके पास अस्पताल की, वहां के तौर तरीकों की और उस रूसी दोस्त की बातों का ज़खीरा होता जिन्हें वह बड़े चाव और मनोभाव से सुनाया करती। अपनी उस रूसी दोस्त के साथ उसने रूसी लोगों की जिंदगी को भी बड़े नजदीक से देख लिया था वह उनके साथ उनके दाचे (फार्म हाउस) पर जाती, उसके परिवार के साथ सप्ताहांत बिताती। मीता के किस्से खत्म ही नहीं होते थे.
पता है तुझे अपनी आँखें नाटकीय अंदाज में घुमाकर, आवाज भारी बनाकर मीता सुनाती – पिछले महीने न, मैं मारिया (उसकी रूसी दोस्त) के साथ बीच पर सन बाथिंग के लिए गई थी. ये लोग भी क्या बिंदास हैं यार, एक तो दो इत्ते से कपड़ों का कुल स्विम सूट, उसपर भी थोड़ी देर बाद उसने मुझे कहा कि इसकी डोरी खोल दो…खिल… खिल… खिल…
तूने भी लिया ऐसा सन बाथ ? मैंने उसे चिढ़ाने की गरज से पूछा।
काश … नकली गहरी सांस लेकर मीता बोली और फिर खिल खिल करके हंस दी.
एक महीने बाद मीता को अस्पताल से रिहा कर दिया गया था वह अपना सारा सामान लेकर अब पूरी तरह से मेरी रूम मेट बनकर आ गई थी. , उसे अभी एक हफ्ता इंतज़ार करने के लिए कहा गया था, जब तक कॉलेज वाले, इतने महीनों के नुक्सान के बाद उसे किस ग्रुप में भेजना है, इसका निर्णय लेते। मीता बेहद खुश थी, सारा दिन किताबें खोलकर बैठी रहती, चहकती रहती। मैं क्लास चली जाती तो लंच के लिए तैयार होकर मेरा इंतज़ार करती, फिर हम साथ कैंटीन जाकर खाना खाते।
तू बिना नॉनवेज खाए कैसे जियेगी यहाँ, एक बार खाकर तो देख. ब्रेड पर आलू और पत्तागोभी लगा कर कब तक खायेगी? एक दिन बड़े अधिकार से उसने मुझसे कहा.
पर मुझे तो यह तक नहीं पता कि खाते कैसे हैं. इस ग्रिल चिकेन में ग्रेवी तो होती नहीं, क्या खाना है,कैसे खाना है, कुछ भी तो नहीं पता.
रुक मैं बताती हूँ. फिर मीता उस ग्रिल चिकेन से छोटा छोटा पीस निकाल कर मुझे देने लगी. एकदम निश्छल उस चिड़िया माँ की तरह लग रही थी मीता जो अपने बच्चों को एक एक दाना चुगाती है.
कैसा है ? आँखें चमका कर उसने पूछा
फीका , बेस्वाद मैंने मुँह बना कर कहा.
कोई बात नहीं। पहली बार में ऐसे ही लगता है. थोड़ा नमक , काली मिर्च ऊपर से लगा कर खा. कुछ दिनों में इतना अच्छा लगने लगेगा कि बाकी सब खाना भूल जाएगी। और वह फिर मुलायम पीस निकालकर मेरी प्लेट में रखने लगी.
एक हफ्ता होने को आया था और वह बेसब्री से अपनी क्लास में जाने का इंतज़ार कर रही थी. पिछले दिनों हम शौपिंग करके आए थे और उसने अपने और मेरे लिए जबरदस्ती एक जैसी दो मिनी ड्रेस खरीदीं। होस्टल आकर फिर वह ड्रेस पहन कर फोटो सेशन हुआ था. आज वही फोटोज वह अपने घर भेज रही थी. मिनी ड्रेस वाली फोटो उसने लिफ़ाफ़े में नहीं डाली तो मैंने उससे पूछा क्यों जब खिंचवाई है तो यह क्यों नहीं भेजती ? उसने हाथ नचाकर जबाब दिया – पागल है ? मेरे डैडी लौटती डाक से ही मुझे वापस बुला लेंगे कि यह सब करने गई है तू वहाँ ? उसने अब तक अपने घर में अपनी बीमारी या अस्पताल में रहने की बात नहीं बताई थी. और अब उसे उम्मीद थी कि अपनी मेहनत से वह बाकी छात्रों के बराबर जल्दी ही पहुँच जायेगी, सब ठीक हो जायेगा तो घरवालों को दुखी करने का क्या मतलब।
तभी दरवाजे पर हमारे एक सीनियर ने दस्तक दी और बताया कि मीता को इंडिया वापस जाना होगा। इन लोगों ने फैसला किया है कि इसके स्वास्थ्य के लिए इस देश का मौसम ठीक नहीं है. टिकट का इंतजाम हो रहा है १-२ दिन में ही मीता को वापस भेज दिया जायेगा। हमारे छोटे से कमरे में यह बम फेंक कर वह सीनियर चले गए और तब पहली बार मैंने मीता की भरी आँखों को बहते हुए देखा। क्या कहूंगी मैं वापस जाकर डैडी को ? तुझे पता है… यह बाबा जी ने मुझे सजा दी है. अस्पताल में बहुत कोसा था न मैंने उन्हें, उसी की यह सजा दी है उन्होंने मुझे। उसकी उन गहरी गहरी आँखों से झरना बहता रहा कुछ देर, सामने पड़ा लिफ़ाफा गीला होकर फटने लगा. मैं अवाक, सुन्न सी खड़ी मीता के नहीं, उसके घरवालों के बारे में सोच रही थी. जब कुछ भी और नहीं सूझा तो मैंने उसे कहा. कोई बात नहीं मीता, देख बाबा जी पर विश्वास करती है न ? जरूर इसमें ही तेरी कुछ भलाई होगी। कुछ इससे भी अच्छा उन्होंने तेरे लिए सोच कर रखा होगा न, या हो सकता है तेरे मम्मी डैडी को ही तेरी ज्यादा जरुरत हो. अब तक मीता शायद संभल चुकी थी तुरंत आंसू पोंछ कर हंसने की कोशिश करते हुए बोली। हाँ देख न और फ्री में मेरा इलाज भी तो हो गया, एक नई भाषा सीख ली. नहीं तो तुझे तो पता ही है इंडिया में मेडिकल का क्या हाल है, डैडी का तो घर बिक जाता मेरा इलाज कराने में फिर भी ठीक होती या नहीं पता नहीं खिल… खिल… खिल…
यह लड़की है या समुन्दर ? कितना कुछ समेट सकती है अपने अंदर? मेरे लिए मीता एक अजूबा ही थी.
दूसरे दिन मीता की टिकट आ गई उसे अगले दिन ही निकलना था. पेकिंग के नाम पर बस कुछ कपड़े थे जो उसे अपने सूटकेस में डालने थे. हमारे कमरे के बाहर कोरिडोर में पूरा होस्टल जमा था. मीता मुस्करा कर सबसे अपनी स्क्रैब बुक में कुछ -कुछ लिखवा रही थी. अंत में उसने शरारत से मुझसे कहा – इतनी कवितायें लिखती है, कुछ मेरी तारीफ़ में भी लिख दे कभी.
मैंने उसकी स्क्रैब बुक में लिख दिया –
“वोदका भरी है तेरी इन आँखों में,
जो डूबा कोई तो नशे में झूम जायेगा।
मयस्सर कहाँ सबको साकी,
जो छलकती रही तो सुकून जाएगा”
वोदका… हा हा हा तू घर आयेगी न मेरे, तो यही वोदका पिलाऊंगी तुझे देखना. खिल खिल खिल…जोर से ठहाके मार कर हँसती हुई मीता सबको यह पंक्तियाँ दिखाने लगी.
चलो मीता समय हो गया. उसे छोड़ने जाने वाले दुभाषिये ने उसे इशारा किया तो मीता की हंसी थमी. उसने एक बार नजर भर सबको देखा और हाथ हिलाती हुई टैक्सी में बैठ गई. मीता चली गई और उसके साथ ही चली गई मेरे कमरे की खिल खिल और नशीली आँखों वाली लड़की।
उसके बाद कुछ समय तक मीता की खबर कभी कभी मुझे मिल जाती कभी यह कि उसने इंडिया में ही किसी कॉलेज में दाखिला ले लिया है, कभी यह कि कोई शोध करने वह किसी दूसरे शहर गई है. मुझे यकीन था मीता अब अधिक मजबूत हो गई थी और जरूर एक दिन कुछ अनोखा और खास करते हुए वह मुझे मिलेगी क्योंकि कुछ आम और सामान्य करने के लिए तो वह बनी ही नहीं थी.

शिखा वाष्णेँय़

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