” गहरी रात के एकांत की कविताएँ ”
-शहंशाह आलम
(समीक्ष्य कृति : ” इस रूट की सभी लाइनें व्यस्त हैं ” ( काव्य-संग्रह ) /
कवि : सुशांत सुप्रिय / प्रकाशक : अंतिका प्रकाशन , C-56 , यूजीएफ़ – 4 ,
शालीमार गार्डन एक्सटेंशन- 2 , ग़ाज़ियाबाद – 201005 ( उ. प्र. ) / वर्ष:2015 /
मूल्य : ₹335/- ; मो: ( कवि ) : 851207008
कोई छायाकार रात की नींद में जाकर जिन दृश्यों के बारे में सोचता है , उन दृश्यों को दिन में कैमरे में क़ैद करते हुए वह अपनी नींद को सार्थक करता है । ठीक उसी तरह एक कवि दिन में देखे , भोगे हुए यथार्थ को गहरी रात के एकांत में काग़ज़-क़लम लिए अपना कवि-धर्म समझकर प्रकट करता है । सुपरिचित कवि सुशांत सुप्रिय ऐसे ही कवियों में हैं जो पूरी ईमानदारी व मासूमियत से अपने देखे , भोगे हुए यथार्थ को अपनी कविताओं में दर्ज़ करते चले जाते हैं :
मैंने अपनी बाल्कनी के गमले में
वयस्क हाथ बो दिए
वहाँ कोई फूल नहीं निकला
किंतु मेरे घर का सारा सामान
चोरी होने लगा ( मासूमियत / पृ. 9 ) ।
सुशांत सुप्रिय की कविताओं में जो भी दर्ज है , सब उल्लेखनीय है । उल्लेखनीय इसलिए भी है क्योंकि इनके यहाँ मनुष्य अपने कठिन-जटिल समय से पराजित नहीं होता , न किसी को पराजित होने देता है । यहाँ पूरी मनुष्यता जीतती दिखाई देती है :
हारकर मैंने अपनी बाल्कनी के गमले में
एक शिशु मन बो दिया
अब वहाँ एक सलोना सूरजमुखी
खिला हुआ है ( वही ) ।
सुशांत के संग्रह की लगभग सारी कविताएँ एक अच्छे आदमी , एक अच्छे नागरिक की कविताएँ हैं जो अच्छाई के पक्ष में लड़ाई के मूलार्थ सही तरीके से ज़ाहिर कर पाने में सक्षम दिखाई देती हैं । इन कविताओं की भाषा हमें गहराई तक प्रभावित करती है :
हर हत्या के बाद
वहीं से जी उठता हूँ
जहाँ से मारा गया था
जहाँ से तोड़ा गया था
वहीं से घास की नई पत्ती-सा
फिर से उग आता हूँ ( हर बार / पृ. 61 ) ।
दुनिया भर में आदमी के विरुद्ध षड्यंत्र बढ़ते चले जा रहे हैं । सुशांत सुप्रिय भी अपनी कविताओं के माध्यम से इनका मुक़ाबला करते हैं । उनकी कविताएँ हमें अपने समय के दुखों से निजात दिलाने के लिए सदैव तत्पर रहती हैं :
तुम आई
और मैं तुम्हारे लिए
सर्दियों की
गुनगुनी धूप हो गया ( विडम्बना / पृ. 84 ) ।
मेरे विचार से सुशांत सुप्रिय की कविताएँ समकालीन हिंदी कविता में किसी सुखद अनुभूति की तरह हैं — ‘ आकाश को नीलाभ कर रहे पक्षी ‘ और ‘ पानी को नम बना रही मछलियों ‘ की तरह । या फिर ‘ आत्मा में धार ‘ की तरह ।
“इप्टा वार्ता – थोड़े मे बहुत कुछ कहने बताने की पत्रिका है”
इप्टा वार्ता के दो अंक फरवरी और मार्च के मेरे ज़हन में हैं, हाथ मे तीन दिन पहले थे | इप्टा वार्ता कला का खबरनामा है, कला को खबर बनाने की कला की बेहतरीन पत्रिका है ” इप्टा वार्ता ” |
रंगमंच से जुड़े लोगों का इससे जुड़ाव होना ही चाहिये |
जैसे स्वादिष्ट भोजन ही पर्याप्त नही होता परोसने का सलीका भी लुभावना होना चाहिये, यही फार्मूला पत्रिका पर भी लागू होता है, उसकी सामग्री तो हम बाद में पढ़ते है लेकिन सामग्री परोसे जाने के सलीके से पहले प्रभावित हो जाते है, सम्पादक श्री हिमांशु राय के परोसने के सलीके मे जो कलात्मकता है वह पत्रिका के जिस्म मे रूह की भूमिका निभा रही है | यह रंगमंच पर केंद्रित पत्रिका है, इसमें नाटकों से संबंधित आलेख शामिल है, इसमें महत्वपूर्ण है आलेखों को तरतीब देना, क्रमबद्ध करना, चित्रों को संयोजित करना, रचनाओं के चयन में सतर्कता इसका अतिरिक्त गुण है ,चिकने कागज़ पर सुंदर छपाई इसके बोनस अंक है | नाटकों की पञिका मे सम्पादक हिमांशु राय का काम नाटक मे प्रकाश व्यवस्थापक के काम की तरह है | पत्रिका का फरवरी अंक भारंगम पर आैर मार्च का अंक नाटककार मरहूम शाहिद अनवर पर केंद्रित है , भारंगम जैसी बड़ी खबर को इप्टा वार्ता मे तो आना ही था, लेकिन शाहिद अनवर को बड़ी खबर बनाना यह इप्टा वार्ता के अंक की खासियत है |
यह पतली नर्म नाज़ुक सी पत्रिका अपना प्रभाव बहुत मज़बूती से भीतर गहरे तक पहुँचाती है, जितने पृष्ठों की यह पत्रिका है उतने पृष्ठों का तो कई पत्रिकाओं में सिर्फ सम्पादकीय होता है जिसमें से निकल कर कुछ नहीं आता |
यदि आप रंगमंच से किसी भी सूरत से जुड़े है तो मैं यह नहीं कहता कि यह पत्रिका आपको पढ़नी चाहिये, बल्कि मैं यह कहता हूँ कि यह पत्रिका आपको पढ़नी ही पड़ेगी |
अख्तर अली
फ़ज़ली अपार्टमेंट
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