जब मैं..
जब मैं पानी खर्च करता हूं
तो जरूर उन प्यासों के बारे में सोचता हूं
जिनके लिये पानी कीमती चीज है
भोजन करते समय मुझे उन भूखे बच्चो का
ख्याल आता है- जो जन्म के साथ लाते है भूख
भूख में ही गुजर जाती है , उनकी जिंदगी
जब मैं बारिश से बचने के लिये अपने छत
की पनाह लेता हूं – तो मुझे बेघर लोगो के
भीगे हुये चेहरे याद आते है
अफसोस यह है कि मैं उनके लिये
कुछ भी नही कर पाता
बस अपनी कविता मे उनके लिये
सम्वेदना बचाने की कोशिश जरूर करता हूं
एक दिन
एक दिन मैं अपने दुख संकलित करूंगा
मेरे ख्याल से यह मेरे जीवन का उम्दा
संग्रह होगा
दिक्कत यह है कि इस संग्रह को
कौन प्रकाशित करेगा ?
यह पेशेवर प्रकाशको के बस की
बात नही
यह किसी सूरमा के बूते का
मामला है
जिन रिसालों और अखबारों में
छपे थे मेरे दुख – उन्हे जीवन के
तलघरों में खोज रहा हूं
दीमको की कृपा से कुछ अभिलेख
बचे हुये है – लेकिन कुछ इतने पुराने है कि
पढ़ने योग्य नही रह गये है
इन घुंघली लिपियों को पढ़ना
मुश्किल काम है
लेकिन जब मैं सुरंग में उतर गया हूं
तो कुछ न कुछ लेकर जरूर
लौटूंगा
असल समस्या यह है कि इसका
शीर्षक कौन तय करेगा ?
यादों के पक्षी
जब घनघोर अंधेरा होता है
यादों के पक्षी खामोशी से उतरते हैं
और हमारे कंधों पर बैठ जाते है
वे हमे अपने पंखो से छूतें है
हमे चहकते हुये दिनों की याद
दिलाते हैं
वे गाते हैं
पंख फड़फड़ाते हैं
और बिना बताये उड़ जाते है
उनके जाने के बाद जो जगह
खाली हो जाती है – उसी में मैं
रहता हूं
शहर का नाम
शहर का नाम क्या बदला
लोग बदल गये
दोस्त पहले ऐसे नही
रह गये
शत्रुओं में नही रह गयी
मौलिकता
स्त्रियों में कम होने लगा प्रेम
लड़कियां उदास रहने लगी
मेहमाननवाजी के तौर – तरीके
बदलने लगे
नगर सेठ ने अपनी पार्टी और शरीके –हयात
को बदल कर यह साबित करने की कोशिश की
कि जो बदलता नही है , वह ठहर
जाता है
जिन सड़को के नाम शहीदो के नाम पर
रखे गये थे – उन पर खलनायको के नाम
दर्ज हो गये ।
बदलने की संस्कृति बुरी नही है
बशर्ते जो बदला जा रहा है
वह पहले से बेहतर हो
हविष्य
आग का असली मजा तब है
जब वह दोनो ओर से लगी हो
वह आग क्या – जो लग कर
बुझ जाये
भीतर की आग , बाहर की आग से
ज्यादा ताकतवर होती है
वह हमारे जिस्म और रूह को
एकाकार करती है
यह हवन की आग है
बिना हविष्य लिये नही
बुझती ।
………………….
स्वप्निल श्रीवास्तव
510- अवधपुरी कालोनी – अमानीगंज
फैज़ाबाद – 224001
मोबाइल – 09415332326
। परिचय ।
पूर्वी उ.प्र. के जनपद सिद्धार्थ नगर के गांव मेहनौना में 5 अक्तूबर 54 में जन्म
शुरूवाती तालीम गांव में । गोरखपुर विश्वविद्यालय से एम .ए यल यल वी । उ,प्र.सरकार में अधिकारी के रूप में जनपदों में तैनाती ।
कविता के लिये – भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार , फिराक सम्मान , केदार सम्मान तथा रूस का अंतर राष्ट्रीय पूश्किन सम्मान ।
कविता संग्रह – ईश्वर एक लाठी है –ताख पर दियासलाई , मुझे दूसरी पृथ्वी चाहिये , जिंदगी का मुकदमा तथा जब तक है जीवन
कहा,नी संग्रह – एक पवित्र नगर की दास्तान, स्तूप महावत तथा अन्य कहा,नियां
संस्मरण तथा समीक्षा विधाओं में भी अभिरूचि
फिलहाल फैज़ाबाद उ,प्र. में स्थायी निवास और स्वतंत्र लेखन
पता – 510 – अवधपुरी कालोनी – अमानीगंज
फैज़ाबाद – 224001
मोबाइल – 09415332326