कैसे समय गुज़र जाता है! कपड़े बदलते हुए सचिन सोच रहा था. अभी पाँच वर्ष पूर्व ही तो वह शोबना से पहली बार गुलिस्तां इंडियन रेस्तराँ में मिला था.
शोबना ‘बॉलिवुड सिंगर’ थी. हर शनिवार को वह रेस्तरां के मुख्य भोजन कक्ष में हिंदी सिनेमा के गाने गिटार पर बजा कर गाते हुए मेहमानों का मनोरंजन करती थी. शोबना हिंदी भाषी नहीं थी परन्तु हिंदी गाने वह जिस प्रवीणता से गाती थी उससे लगता ही नहीं था कि उसे हिंदी नहीं आती है. उसके गीतों में जहाँ एक ओर गीता दत्त की चुलबुलापन और उमंग थी तो दूसरी ओर उसकी ग़ज़लों में नूरजहाँ की संजीदगी, दर्द और कशिश भी थी. शोबना के चाहनेवालों की सूचि में हर तरह के लोग शामिल थें उसमें रेस्ट्रॉ के मालिको, ग्राहको के अतिरिक्त वेटर और रसोई घर में सारे दिन बर्तन-भांडे साफ़ करता, सब्ज़ी काटता वह स्वयं भी था.
उस दिनों सचिन और उसका साथी गोपाल दोनों ही उन तमाम इल्लीगल इमिग्रैंट में से थे जो लंदन के रेस्तराओं में काम करते हुए गुमनाम ज़िंदगी जी रहे थे. दोनों हर वक्त डरे-डरे, सहमें-सहमें, दब-छुप कर रेस्तराँ के निचले तल्ले में बने रसोई-घर में रहते थे. गोपाल खाना पकाता था. सब उसे ख़ानसामा कहते थे और वह प्याज़-लहसुन और सब्ज़ी वगैरह काटने के साथ बर्तन-भांडे धोने का काम करता, एक अदना नौकर था. उसकी कोई पहचान नहीं थी. फिर भी वह संतुष्ट था कि कम से कम उसे रहने और खाने पीने की सुविधा तो मिली हुई थी. पहले की तरह अब वह सड़कों पर लावारिस ज़िंदगी तो नहीं बिता रहा था. अपने अंदर पलते डर के कारण, वह चाहता था कि लोग उसे जितना कम जानें उसके लिए उतना ही अच्छा है,
सचिन के दिलो-दिमाग़ में गैर क़ानूनी होने का आतंक हर वक़्त छाया रहता था. सबसे ज़्यादा डर उसे लंदन के पुलिस का लगा रहता था कि कहीं वह पकड़ गया तो बस जेल में बंद दम तोड़ता नज़र आएगा. इसलिए वह हमेशा ख़ामोशी की चादर ओढ़े रहता. कभी कोई बात करता तो बस ‘हाँ या ना’ में जवाब देता. मल्होत्रा साब ने वैसे भी कान उमेंठ और थप्पड़ मारकर उसे ख़ास हिदायत दे रखी थी कि अगर उसने ज़रा भी चीं-चपड़ की तो वे उसे सीधे थाने का रास्ता दिखा देंगे. गोपाल की और बात थी. वह खाना पकाने माहिर था. मल्होत्रा उसे किसी क़ीमत पर खोना नहीं चाहता था. वैसे भी उसने गोपाल से कह रखा था कि अगर वह ठीक से काम करेगा तो वह उसकी शादी किसी स्थानीय लड़की से करा कर उसे लीगल करा देगा. पर उस जैसे नौकर टाइप लौंडे तो कीड़े मकोड़ों की तरह सारे लंदन में बजबजाते फिरते रहते हैं. एक गया और दूसरा आया.
ऊपर फ़्लोर पर काम करने वाले वेटर जब ऑडर देने निचले तल्ले में आते तो अक्सर शोबना के रूप और गाने की प्रशंसा ख़ानसामा गोपाल से करते, ‘यार यह जो नई आइटम आई है न एकदम कटरीना कैफ़ है. तुझे पता है उसे हिंदी नहीं आती है, पर हिंदी फिल्मी गाने एकदम टच्च गाती है.’ ‘हैं! क्या बोला? ’ गोपाल चकित हो कहता, ‘वही तो…… साली, आधी इंडियन है. माँ गोरी और बाप गुज्जू. खूबसूरत तो ऐसी कि जो देखे वह घायल!’ तो दूसरा कहता, ‘साली, खाने पर रुकती ही नहीं ‘टेक-अवे’ ले जाती है वर्ना तू भी देख लेता, सचिन.’ सचिन ने सुना पर चुप रहा. शोबना के गानों ने तो वैसे भी उसके दिलो दिमाग़ पर कब्ज़ा कर रखा था. सारी बातें सुनता हुआ भी वह हमेंशा की तरह चुप, अपने काम में लगा रहा. रोज़ शाम आठ बजे के बाद शोबना के गाए गानों की स्वर लहरी सरकते हुए निचले तल्ले तक आती थी. उस समय वह सबकुछ भूल कर तन्मयता से गानों की धुन पर सलाद, आलू, प्याज़, टमाटर और हरी मिर्च काटते हुए शोबना के गाए गीत सुन बचपन की सुरम्य गलियों के चक्कर लगाने लगता.
वे बहुत कठिन और अंधकारमय दिन थे. मल्होत्रा साब ने सख़्ती से कह रखा था कि वह काम ख़तम कर रात को ख़ानसामा गोपाल के साथ दिखावे के लिए रेस्तरां के मुख्य द्वार से बाहर निकल कर थोड़ी देर इधर-उधर टहल-घूम कर, चुपचाप रेस्तरां के निचले तल्ले के पिछले दरवाज़े से अंदर आकर के सो जाया करे. वह भी जानता था कि ज़रा सी भी लापरवाही पुलिस को सुराग दे सकती थी. पुलिस-रेड के तमाम किस्से वह ग्राहकों द्वारा छोड़े गए अखबारों में पढ़ा करता था.
रोज़ रात काम खतम कर सबकी नज़रों से बचते हुए दोनों अंधेरे में छुपते-छुपाते अंदर आकर उस बीहड़ अकेलेपन से जूझते जो उनके अवैध होने के कारण उन्हें निगलती जा रही थी. चुपचाप एक धीमी सी बत्ती जलाकर हल्की आवाज़ में विडियो लगा कर कोई हिंदी फ़िल्म देखते या सनराइज़ रेडियो पर गीत-ग़ज़ल सुनते. जब नींद आती तो सब्ज़ी और गोश्त काटनेवाली टेबल पर अखबार बिछा, उदास अपनी किस्मत और अकेलेपन को कोसते थक कर सो जाते.
गोपाल चुप्पी तोड़ने लिए अक्सर कहता, ‘यार इस कुत्ती ज़िंदगी और अकेलेपन को ढोने में अगर यह फ़िल्मों का अमृत और गानों का सोम रस हमें न मिलता तो हम लोग अपने देश और परिजनों को याद करते-करते गले में फांसी लगा कर जाने कब के अल्ला मियाँ के प्यारे हो चुके होते.’ रसोईघर के उस अकेलेपन में गोपाल उसे अच्छा ख़ासा नौटंकी लगता था, वह हँस पड़ता, प्यार से उसके गाल नोचते हुए कहता,
‘हाँ यार, तू ठीक कहता है. भला हो इस मल्होत्रा का जो उसने हमें यह पुराना विडियो रिकार्डर और टेलीविजन दे दिया है. ये फ़िल्में ही तो हैं जो हमें जिंदा रखती हैं. वर्ना यह सन्नाटा, यह अकेलापन तो कब का हमें निगल चुका होता.’ ‘हाँ यार! जन्माष्टमी के दिन जब अपन मंदिर गए थे न, वहाँ भगवान की मूरत के दर्शन में भी हमें वह सकून नहीं मिला था जो ‘जय श्री कृष्ण’ सीरियल देख कर मिला.’ और गोपाल उसे हँसाने के लिए बेलन पकड़, श्री कृष्ण की मुद्रा में खड़ा हो जाता. पर तब तक वह भावुक हो चुका होता, ‘यार! बॉलिवुड के ये गीत हमारे जीवन में शायद वही मायने रखते हैं जो गिरमिटियों के जीवन में राम चरित मानस और हनुमान चालिसा रखते थे. फिल्में और फिल्मी गाने हमारे दिलों में रस की फुहारें बरसाती देश को हमारे दिलों में बसाए रखती हैं. ’
कहते, कहते सचिन को अम्मा याद आ जाती जो उसे गिरमिटिया मज़दूरों की कथा-व्यथा सुनाते हुए उसे विदेश जाने से रोकती रही थी. अम्मा ने रोते रोते, सिसकियों के बीच उसे कई बार उसे बताया था कि उसके बप्पा और कई पुरखे अंग्रेज़ो के ज़माने में भुखमरी और ग़रीबी के कारण पानी के जहाज से डेढ़-पौने दो सौ वर्ष पूर्व फ़ीजी और मॉरिशस गए और फिर कभी नहीं लौटे. अम्मा के कहे का क्या कोई असर पड़ा उस पर? इधर अम्मा की तेरहवीं हुई और उधर वह विज़िटर वीजा लेकर किस्मत आजमाने लंदन पहुँच गया. कई बार उसे खुद पर गुस्सा भी बहुत आता था, पर वह कर भी क्या सकता था. अम्मा के साथ सारे मोह-बंधन खत्म हो गए. जो कुछ घर में था, बेच-बाच कर आ गया विज़िटर वीज़ा पर लंदन. अब तो वह फ़रार हो, ऐसे मकड़ जाल में फंस चुका था जिसमें से निकलना असंभव था.
क्या मिला यहाँ आकर उसे ग़रीबी, बिछड़न, सूनापन, डर और घबराहट के सिवा. दुनिया में कुछ भी नहीं बदला, वह सोचता. आज भी वही सब कुछ वैसा ही है, बस स्वरूप बदला है. ग़रीबी. भुखमरी और शोषण जो पहले थी अब भी है. पहले गोरे- अंग्रेज़ शोषण करते थे और अब अपने ही देसी बिज़नेसमैंन, फैक्ट्री, गोदामों और रेस्तरां में अपने ही लाचार देशवासियों का दोहन करते हुए उन्हें गुमनाम अंधेरी दुनिया रहने को मजबूर कर देते हैं. सचिन को इंग्लैंण्ड आए पाँच वर्ष हो चुके थे पर अभी भी वह अवैध का अवैध ही रहा. मल्होत्रा भी कम घाघ नहीं था उसने भी वही किया जो सबने किया था. पुलिस और कानून से डरा उसने उन्हें गुलिस्ताँ की रसोईघर में क़ैद कर रखा था. यूँ वह हर दिन हनुमान जी के आगे अगरबत्ती जला कर ईश्वर का शुक्र मानता कि इस क़ैद में कम से कम पेट भर ज़ायकेदार खाना और जाड़े की कड़कड़ाती सर्दियों में सोने को गर्म रसोई तो मिली हुई है.
वह उन दिनों को भूल जाना चाहता है जब वह नया नया आया था. पर यादें हैं कि किसी वफ़ादार कुत्ते की तरह वक्त-बेवक्त सूँघती हुई आ लपकती हैं. क्या क्या दुख नहीं देखे उसने, हवाई जहाज में मिले उस धूर्त मित्तल ने किस चालाकी से उसके ढाई सौ पौंड डकार लिए. बहला-फुसला कर मित्तल उसे अपने घर ले आया, दिलासा दिया कि उसे नौकरी दिलवा देगा. नौकरी तो दिलवाई नहीं उसने उल्टा रोज सुबह सात बजे घर से बाहर कर देता कि जा नौकरी खोज. दिन भर ठोकरें खा, शाम को सात बजे जब वह घर आता तो मित्तल की बीवी भुनभुनाती-तन्नाती बेक्ड-बीन्स और ब्रेड के टुकड़े उसके आगे रख देती. उधर मित्तल बोर्डिंग और लॉजिंग के नाम पर छाती पर खड़े होकर पंद्रह पौंड हर हफ्ते निकलवा लेता. जब उसका पैसा खतम हो गया तो उसने उसकी अटैची सड़क पर रख दी. कितना रोया और गिड़गिया था वह पर उसका दिल नहीं पसीजा, धमकाते हुए बोला, ‘चले आते हैं साले मुँह उठाए यहाँ. न हुनर न तमीज़, न कोई डिग्री. जैसे लंदन में ख़ैरात बटता हो. भाग यहाँ से, वर्ना पुलिस को इन्फ़ार्म कर दूँगा कि तेरे इरादे ठीक नहीं हैं.’
वह भौचक्का, उन्हें देखता रहा. जब तक उसके पास पौंड थे किस प्यार से बातें करता था मित्तल. आज जब उसके पैसे खतम हो गए तो कैसे गरजते सूनामी से तेवर दिखा रहा था जैसे वह उसकी मजबूरी जानता ही नहीं है. अब वह करे तो क्या करे? कहाँ जाए? वापस भारत जाने के सारे रास्ते बंद हो चुके थे. जेब में सिर्फ़ दस पौंड के चिल्लर! महीनों वह सीले हुए बिस्कुट खाते ‘होमलेस’ और ड्रग एडिक्टों के साथ कभी वाटरलू तो कभी चेरिंगक्रॉस स्टेशन के नीचे बनी पुलिया के नीचे अखबार और गत्ते बिछा कर सर्दी, गर्मी और बरसात में सोया.
उस एक रात जब उसकी फटी जेब में एक भी पैसा नहीं था उसकी अँतड़ियां भूख से कुड़कुड़ कर रही थी. वह रोटी के टुकड़ों के लिए किंग्सक्रॉस की गलियों में गुलिस्ताँ रेस्तरां के पीछे बने कमर्शियल कूड़े के बिन में खाने-पीने की चीज़ें टटोल रहा था कि तभी रसोई का कचरा फेंकने आए गोपाल की नज़र उस पर पड़ी. गोपाल को देख कर, डर से उसका चेहरा पीला पड़ गया था जैसे उसने भूत देख लिया हो. पकड़ा गया! बस अब उसे जेल हो जाएगी! गोपाल खुद ऐसे दिन गुज़ार चुका था. भोला सा देसी चेहरा देख उसे दया आ गई. इधर उधर देखते हुआ गोपाल फुसफुसाया. ‘अरे! ओ छोकरे यहाँ क्या कर रहा है? घर से भागा हुआ कोई बिगड़ैल है क्या?’ जाने क्या था गोपाल के चेहरे पर कि वह सच उगल गया. मिमियाता हुआ हाथ जोड़ कर बोला, ‘मेरे भाई मुझ पर दया कर. मैं भागा हुआ नहीं हूँ, विज़िटर वीज़ा पर आया था, एक आदमी ने धूर्तता से मेरा सारा पैसा निकलवा लिया और मुझे सड़क पर डाल गया.’
गोपाल को उस पर दया आ गई. वह रसोई घर में अकेला रहता- रहता तंग आ गया था. उसे अपना चचेरा भाई बताते हुए मल्होत्रा के पास लाया और उसी रात, उसके साफ़-सुथरे, भोले चेहरे को देख, मल्होत्रा ने उसे दस पौंड हफ्ते पर बर्तन-भांडा धोने के लिए रख लिया. दस में से पाँच पौंड मल्होत्रा किराए के काट लेता था. वह तो उसकी तो बस किस्मत अच्छी थी जो जल्दी ही उसकी मुलाक़ात शोबना से हो गई और वह मल्होत्रा के चंगुल से बाहर निकल आया.
उस दिन एक वेटर को खाना परोसते वक़्त खाँसी आ गई. ग्राहक गुस्से वाला था उसने मैनेजर, रनवीर मल्होत्रा की वो ऐसी-तैसी की कि वे भागे-भागे रसोई में आए, सामने उन्हें सचिन दिखा, बोले ‘चल, मुंडे वेटर के कपड़े पा, होर मेरे साथ ऊप्पर चलकर खाना सर्व कर’. उसने कभी खाने की सर्विस नहीं की थी. वह मिमियाया, ‘पर साब मैंने तो आज तक कभी खाना सर्व नहीं किया है. मैं कैसे….’ मल्होत्रा गुस्से से बोला ‘ओए! डरता क्यूँ है साले. मैं साथ हूँ न. उठा ट्रे, होर चल. चेहरे पर खुशी ला और मुस्करा.’ वह डरता हुआ चेहरे पर बनावटी मुस्कराहट चिपकाए ऊपर खाना सर्व करने गया था. उस गुस्सैल ग्राहक को अपने फिज़ूल गुस्से पर ग्लानि हुई या उसे उसकी सर्विस पसंद आ गई, उसे आज भी नहीं पता है. चलते चलते उसने उसके हाथ पर पाँच पौंड की टिप रख दी. बस उस दिन के बाद जब कभी कोई इमरजेंसी होती तो वह लाल कोट और ‘बो’ लगा कर ऊपरी तल्ले में कभी वेटर तो कभी बार-मैंन का काम करता. बार में ड्रिंक बनाते हुए जब उसने पहली बार शोबना को हाथ में माइक लिए सिंथेसाइज़र से निकले धुन पर गीत गाते देखा तो उसका दिल जोरों से धड़क उठा था.
ऐसे में एक दिन उसे लगा कि शोबना को शायद हल्का सा ज़ुकाम है. उसकी आँखें शबनमी और नाक सुर्ख़ हो रहे थे. सचिन के मन में जाने क्या आया कि गर्म पानी में ब्रांडी डाल कर शोबना को पकड़ा आया. उस रात जब सारे वर्कर खाने बैठे तो उसने शोबना के आगे गर्म पानी का जग रखते हुए कहा, ‘मुझे लगा कि शायद आपको सर्दी लग गई है इसलिए ठंडे पानी के बजाए आपके लिए गुनगुना पानी का जग लाया हूँ.’ शोबना ने ‘थैंक्स’ कहते हुए उसे अपनी बगल वाली कुर्सी पर हाथ पकड़ कर बैठा लिया.
रेस्तरां के बंद होने का समय हो रहा था. सारे वेटर जा चुके थे. सचिन किचन का काम जल्दी-जल्दी समेट, कोट पहन रेस्तरां के बाहर थोड़ा घूम-फिर कर पिछले दरवाज़े से अंदर जाने के लिए मुड़ने ही वाला था कि शोबना उसके बगल में धीरे से आकर खड़ी हो गई. वह चौंका, पर फिर संभल गया वह शोभना की खुशबू पहचानता था. ‘मैं.. शोबना, अपना नाम तो बता मेरे शुभचिंतक.’ शोबना ने हल्की हँसी के साथ कहा था. ‘सचिन, जी, मुझे सचिन कहते है.’ ‘मैं यही पास की पाँचवीं गली टायरलेन में रहती हूँ. तू मुझे घर तक छोड़ देगा. सचिन’ उसने अपने हाथ में पकड़े खाने का बैग सचिन को पकड़ाते हुए बिना लाग लपेट के कहा. ‘जी, जरूर, मैं आपका फ़ैन हूँ जी. हर शनिवार को आपके आवाज़ का इंतज़ार रहता है.’ ‘सच! तो फिर आज से मैं तेरी फ़ैन….. मेरे यार!’ रात के अँधेरे में, बिजली की हल्की रोशनी में वह शोबना के चेहरे पर आए उस कृतज्ञ प्रेम प्रस्ताव को पढ़ गया जो शायद दिन की रोशनी में वह कभी न पढ़ पाता. गोपाल ने भी उसकी बाहों में चुटकी काटते हुए इशारा किया, ‘जा, उसे घर पहुँचा आ.’
…….और फिर वह उसके साथ चल पड़ा. शोबना सारे रास्ते खिल-खिल करती उससे लेटेस्ट इंडियन फिल्मों की बातें करती बीच-बीच में गानों की कुछ रोमांटिक पंक्तियाँ भी गुनगुना जाती. उसे याद है किस तरह उस दिन उसके बदन में ठंडी और गर्म फुरहरिया उठ और गिर रही थी. थोड़ी देर में शोबना का घर आ गया. दोनों देर तक बाहर खड़े, पेड़ के नीचे बारिश की झिर-झिर से बेखबर बतियाते रहें. बातें थीं कि ख़तम होने को नहीं आ रही थीं. चलते-चलते शोबना बोली, ‘तो फिर कल मिलते है, सचिन. डेढ़ बजे, लंदन आई के नीचे टेम्स नदी के किनारे. देख! हम दोनों की रुचियाँ कितनी मिलती हुई हैं. तुझसे बात करके अभी मेरा दिल नहीं भरा है.’ कहते हुए शोबना ने उसे हल्का सा आलिंगन दिया. वह नर्वस, बुत खड़ा रहा. शोबना उसकी हालत देख कर मुस्कराई, उसका हाथ पकड़ कर बोली, ‘देख सचिन! तूने मेरे मन को छू लिया है. मैं तुझसे दोस्ती करना चाहती हूँ. अपने दुःख दर्द तुझसे शेयर करना चाहती हूँ और तेरे दुख- दर्द से वाक़िफ़ होना चाहती हूँ.’ ‘सच! शोबना जी, पर मल्होत्रा साब को यह सब ठीक नहीं लगेगा. कहीं किसी ने देख लिया तो?’ ‘मतलब?’ ‘आप नहीं समझेंगी!’ ‘ देख! सचिन, तू स्मार्ट है. एक अच्छा बार मैन और वेटर है. अपने को पहचान. तू मल्होत्रा से इतना मत डर. वेटर की नौकरी तुझे बहुतेरी मिलेंगी. और फिर ज़िंदगी भर तू वेटर थोड़े ही बना रहेगा. बोल आएगा न.’ ‘म…मैं….’ कुछ कहता हुआ वह चुप हो गया फिर बोला, ‘हाँ..आँ.. आऊँगा, शोबना जी.’
जब वह वापस आया तो शोबना के प्रेम प्रस्ताव के कारण कुछ घबराया हुआ था. गोपाल के पूछने पर वह कुछ नर्वस सा हकलाकर बोला, ‘शोबना ने कल मिलने को लंदन आई के नीचे बुलाया है.’ गोपाल कुछ देर गहराई से सोचता रहा फिर बोला, ‘देख! तू घबरा मत, सचिन. तू कल शोबना से मिलने जाएगा.’ आगे उसने उसे गले से लगाते हुए पीठ थपथपा कर कहा, ‘देख, मुझे समझ आ रहा है कि तेरी किस्मत बदल रही है. शोबना तेरी लेडी-लक है. वेटर के कपड़ों और पैंट- टाई जैसे आम कपड़ों से इंसान के पर्सनैलिटी में बड़ा फर्क आ जाता. कल तू मेरा धूप का चश्मा और हुड वाला कोट पैंट-शर्ट के ऊपर पहन कर जाएगा फिर कोई माई का लाल तुझे नहीं पहचान पाएगा.’
और फिर तो ड्यूटी के बाद जब भी दोनों को समय मिलता, दोनों कहीं न कहीं मिल बैठते. शोबना चटर-पटर खूब बातें करती. वह खुद्दार और ईमानदार थी. तीन चार हफ़्ते बाद जब सचिन को पूरी तरह लगने लगा कि शोबना दिल की पूरी गहराई से उसे पसंद करती है तो उसने उसे बताया कि वह अवैध नागरिक है, इसलिए डरा-डरा और दब-छुप कर रहता है. वह नहीं चाहता है कि वह पकड़ा जाए, जेल जाए और फिर बेइज़्ज़त हो कर वापस देश पहुँच जाए, जहाँ अब उसका कोई नहीं है. यहाँ न तो उसके पास कोई रुपया- पैसा है न ही वह ज़्यादा पढ़ा लिखा है कि अपना केस लड़ सके. शोबना ने उसे तसल्ली देते हुए कहा कि वह कोई अकेला अवैध नागरिक नहीं है. इंग्लैंण्ड में ढेरों हर जाति, रंग और नस्ल के अवैध नागरिक भरे पड़े हैं. सब कभी न कभी, किसी न किसी बहाने लीगल हो जाते हैं. वैसे भी यहाँ लीगलाइज़ होने के बहुतेरे तरीके हैं. फिर मैं तेरे साथ हूँ न. मैं तो यहीं जन्मी और बड़ी हुई हूँ. और उस रोज़ शाम को शोबना उसे अपने परिवार से परिचित कराने के लिए घर ले गई.
शोबना का परिवार एक छोटे से ख़स्ताहाल फ्लैट में उसके ममा, पापा, एक पैर से विकलांग छोटा भाई और शोबना की तीन महीने की नन्हीं बच्ची के साथ रहता था. यह बच्ची शोबना के साथ हुए एक बालात्कार की उपज थी. शोबना को मजबूरन उसे जन्म देना पड़ा. शोबना को बच्ची से घृणा थी. वह उसे उस नृशंस घटना की याद दिला देती थी जिसे वह भुलाना चाहती थी. उसे बच्ची को देख कर अपने आप से घिन आने लगती थी. काफी दिनों वह डिप्रेशन में रही. अभी भी उसका इलाज चल रहा था. इसलिए बच्ची को शोबना की माँ फिलिप्पा पाल रही थी. बच्ची उसी के कमरे में सोती थी.
जिस समय शोबना, सचिन को लेकर घर आई, शोबना का पिता जिगनेश और भाई आंद्रे काम पर जाने के लिए तैयार खड़े बस सचिन और शोबना से मिलने के लिए रुके हुए थे. जिगनेश टेस्को सुपर मार्केट में सेक्यूरिटी गार्ड और विकलांग आंद्रे सेक्यूरिटी टी.वी पर वाच मैन लगा हुआ था. इन दिनों उनकी रात की ड्यूटी थी. वे सचिन से बड़ी गर्म जोशी से गले मिले और कहा कि उसकी दोस्ती ने शोबना को नई ज़िंदगी दी है. अब वह खुश रहती है. हर शाम, घर में उसकी ही चर्चा होती है. शोबना ने उसके बारे में सबको इतना कुछ बता दिया है कि वह उनके लिए अपरिचित नहीं है. उन्होंने सचिन को अगले रविवार को फिर घर आने को कहा जब वे साथ बैठ कर खाना खाएँगे और ढेरों गपशप करते हुए तबला, हारमोनियम और गिटार पर ढेरों गीत गाएँगे..
उनके जाने के बाद फिलिप्पा ने सचिन और शोबना के लिए टेबल पर चाय रखते हुए कहा, ‘तुम लोग चाय पियो तब तक मैं रसोई समेट, बेबी का दूध बनाकर लाती हूँ.’ नन्हीं बेबी वहीं छोटे से पालने में सो रही थी. ‘ओह! कितनी प्यारी बेबी है. इसका रंग तो बिल्कुल तुम्हारी तरह सुनहरा और आँखें शरबती हैं. मैं इसे गोद में लेना चाहता हूँ शोबना.’ ‘तो उठा लो.’ शोबना ने अनिच्छा से कहा, ‘जगाना तो होगा ही माँ दूध लाने गई है. वर्ना सोती रहेगी.’ गोद में उठाते ही बच्ची जग गई और टुकर टुकर सचिन को देखने लगी. सचिन को बच्ची पर बहुत प्यार आया वह उसे लेकर कुर्सी पर बैठ गया. फिर जब फिलिपा दूध की बोतल लेकर आई तो वह बोला, ‘मेरा जी इसे गोद से उतारने को नहीं कर रहा है. लाइए इसे आज मैं दूध पिलाने की कोशिश करता हूँ.’ बच्ची भूखी थी. बोतल मुँह से लगाते ही गटर गटर दूध पीने लगी. ‘इसका नाम क्या है?’ ‘कोई नाम नहीं है इस लावारिस का.’ शोबना ने उदास और रूखे स्वर में कहा. ‘क्यूँ? बच्चों के जन्म में उनका कोई दोष नहीं होता है शोबना. वे तो भगवान का वरदान होते है. तो फिर आज से इस प्यारी सी गुड़िया को हम जिया कहेंगे. इसने मेरा जी जो मोह लिया है.’
उस शाम फिलिपा ने अनुभव किया कि पूरे एक वर्ष बाद शोबना के चेहरे पर एक सहज चमक आई है जो उस हादसे के बाद से उसके चेहरे से ग़ायब हो गई थी. फिलिप्पा गहन दृष्टिवाली माँ थी उसने सचिन से कहा, ‘बाहर मूसलाधार बारिश हो रही है. रात भी काफ़ी गुज़र चुकी है. आज तू यहीं रुक जा. आँद्रे का सोफा-बेड ख़ाली है.’ सचिन के रुक जाने से उस रात शोबना और उसके परिवार को ऐसी ख़ुशी मिली कि उन्होंने शोबना को पूरी तरह आश्वस्त करने के लिए जल्दी ही एक वकील द्वारा होम ऑफिस में सचिन का केस लगवा दिया. शोबना का केस चूँकि सच्चा था और वकील शोबना के विषम जीवन-संघर्ष से पूरी तरह परिचित था. उसने केस इस तरह कोर्ट में रखा कि शोबना को जल्दी ही सचिन से विवाह की इजाज़त मिल गई और सचिन जिगनेश कामदार के परिवार का स्थाई सदस्य बन गया.
फिलिप्पा के इस छोटे से दो कमरे के फ्लैट में अधिक जगह नहीं थी. जब दिन की ड्यूटी होती तो रात में आंद्रे सोफा बेड पर सोता था. बच्ची शुरू से फिलिप्पा और जिगनेश के कमरे में पालने में सोती थी. शोबना के छोटे से कमरे के सिंगल बेड पर अब सचिन भी सोता था. शोबना के बालात्कार, पीड़िता और सिंगल माँ होने के कारण सदर्क काउँसिल ने उसे फ्लैट देने का आश्वासन दिया हुआ था. शोबना ने अर्ज़ी लगा रखी थी पर काउँसिल की आर्थिक विपन्नता के कारण अब तक उसकी बारी नहीं आई थी. जिया एक वर्ष की होने जा रही थी. पालना उसके लिए छोटा पड़ने लग गया. नन्हीं जिया को उस छोटे से पालने में सोता देख जब स्वास्थ्य विभाग की नर्स ने शिक़ायत की तो काउँसिल को मजबूरन लाइन तोड़, शोबना और सचिन को लिनकोर्ट नाम की एक पुरानी खस्ताहाल बिल्डिंग में फ्लैट देनी पड़ी. लिन कोर्ट में पूर्वी यूरोप और थर्ड वर्ल्ड से आए इमिग्रैंट और अभावग्रस्त लोगों को रिहाइश दी जाती थी.
शादी के बाद सचिन को भी वैध नागरिक का स्टेटस मिल गया और वह एक सरकारी फर्म में सेक्यूरिटी गार्ड लग गया. शोबना खुशमिजाज़ थी उसकी सब पड़ोसियों से दोस्ती थी. जब शोबना रेस्ट्राँ जाती तो उसकी पड़ोसन सिंथिया हर शनिवार को दो-तीन घंटे जिया और सिया की बेबी सिटिंग कर देती बदले में वह उनकी शॉपिंग वगैरह कर देती.
सचिन जिया से बहुत प्यार करता था. जब जिया ने उसे पहली बार ‘डैडी’ कह कर पुकारा तो वह उसे गोदी में लेकर बहुत देर तक बंदर की तरह उछलता नाचता रहा था. उसने मोबाइल फोन में जिया की आवाज भर ली और जब कभी काम पर उसकी याद आती तो बड़े प्यार से उसे बार बार सुनता. इसी बीच जिया की छोटी बहन सिया भी आ गई.
उस दिन सुबह शोबना ने कब बिस्तर छोड़ा, सचिन को पता नहीं चल पाया. आम तौर पर सचिन और शोबना साथ ही उठते हैं. दोनों साथ ही बच्चों के कमरे में जाकर उन्हें जगाते हैं. फिर उनके नित्यकर्म शुरू होते हैं, जैसे बच्चों के नख़रे उठाना, उन्हें स्कूल के लिए तैयार करना, नाश्ता कराना वगैरह….वगैरह. सचिन अभी बालों पर हाथ फिरा कर आँखें मल ही रहा था कि गेंद सी उछलती पाँच वर्ष की जिया हाथ में बर्थ-डे कार्ड लिए धप से आकर उसकी गोद में बैठ गई. कार्ड को उसके चेहरे के पास लाते हुए बोली, ‘हैपी बर्थ-डे डैडी, देखो मैंने खुद तुम्हारे लिए बर्थ-डे कार्ड बनाया है.’ कार्ड पर दो सींक जैसी लंबी टाँगों पर एक अनगढ़ अंडा टिका था जिसमें दो मेंढक जैसी आँखें और गाजर जैसी लंबी नाक बनी हुई थीं ‘और मैंने भी…’ कहते हुए छोटी बेटी, तीन वर्ष की सिया भी अपना कार्ड दिखाने लगी. ‘ये आप हैं डैडी’ दो लकीरों पर रखा आलू जैसा टेढ़ा मेंढ़ा एक गोला जिसमें आँखों के लिए दो बुंदकियाँ यहाँ-वहाँ लगी हुई थीं. ख़ुद की ऐसी विचित्र तस्वीर देख कर सचिन की हँसी छूट पड़ी, बच्चे भी खिलखिलाते हुए उसके पेट पर बैठ कर गुदगुदी मचाने लगे तभी शोबना चाय की ट्रे लेकर अँदर दाखिल हुई, भौंहें नचाते हुए हँस कर बोली, ‘हैपी बर्थ-डे डार्लिंग. देखा, बच्चों ने तुम्हारी कैसी सुंदर तस्वीर बनाई है….’ शोबना जब हँसती है तो बहुत खूबसूरत लगती है. खासकर तब जब वह सचिन की खिंचाई करती है. सचिन और उसका परिवार देर तक हँसता और खिलखिलाता रहा. इन सबके बीच सचिन मन ही मन भगवान् को धन्यवाद देता रहा कि ईश्वर ने कठिन से कठिन समय में भी उसे और उसके परिवार को असीम ख़ुशी के क्षण दिए हैं.
शोबना कहती रही, ‘सचिन आज तुम्हारा जन्मदिन, तुम आज आराम करो.’ पर सचिन नहीं माना. बच्चों और शोबना के साथ बिताया एक-एक क्षण उसे अमूल्य लगता है. वह दोनों शोर मचाते बच्चों को कंधे पर बैठा कर बाथरूम ले गया. उनके हाथ मुँह धुलवाकर रसोईघर में नाश्ता करने के लिए बैठाया फिर अपने चारों के लिए टोस्टर में टोस्ट लगा कर, कार्नफ्लेक्स कटोरों में डालने लगा था कि तभी शोबना भी तैयार हो कर आ गई. वह धुली-धुली, ताज़ी और खिली-खिली गुलाब जैसी दिख रही थी.
बच्चों को स्कूल ले जाते वक्त चलते-चलते दरवाजे पर रुक कर शोबना उसे आलिंगन देते हुए बोली, ‘सचिन, आज तेरा जन्मदिन है. कल रात, ड्यूटी कर के तू साढ़े तीन बजे आया है. तेरी नींद अभी पूरी नहीं हुई है. अभी तो तू जाकर सो जा. साढ़े तीन बजे जब हम वापस आते हैं तो साथ मिल कर खाना बनाएँगे, खाएँगे और फिर तेरा बर्थ-डे मनाएँगे. और देख, जिया, सिया कैसी एक्साइटेड हो रही हैं.’ फिर जिया सिया का बैग कंधे पर ठीक से टाँगते हुए उसके होठों पर चुंबन देते हुए बोली ‘सिंथिया कल तेरे लिए बर्थ-डे केक बना कर लाई थी. शाम को केक काटने के बाद ही काम पर जाना वर्ना सिया और जिया बहुत शोर मचाएँगी… प्लीज़, बर्तन सिंक में छोड़ देना. मैं शाम को आकर निपटा दूँगी.’ शोबना रोज़ जिया को स्कूल छोड़कर, सिया की नर्सरी क्लास में टीचर की दो घंटे सहायता करती है फिर एक बजे अंजना साराभाई को बौलिवुड गाने सिखाती है. साढ़े तीन बजे बच्चों को स्कूल से लेते हुए घर आती है. शोबना रोज़ उससे मिन्नतें करती है कि शाम का खाना वह बनाएगी पर सचिन को बच्चों और शोबना की पसंद का खाना बनाने में जो मज़ा मिलता वह उसे किसी और चीज़ में नहीं आता है. वह अपना सारा प्यार खाना बनाने में उड़ेल देता.
उस दिन भी शोबना के जाने के बाद सचिन ने थोड़ा आराम करने के बाद मशीन में से कपड़े निकाल कर बाल्कनी पर फैलाए फिर शाम का खाना बनाया. टेबल सजाया, उसे पता था बच्चों की खुशी के लिए शोबना नन्हें नन्हें फ़ेयरी केक, जेली-बीन्स और फूल लेकर आएगी, उसने मोमबत्तियों के साथ एक गुलदस्ता मेज़ पर रखा साथ में वाइन ग्लास और रेड वाइन की बोतल खोल कर रख दी ताकि वाइन कमरे के तापमान पर आ जाए. बच्चों की खुशी के लिए जन्म दिन की टोपियाँ, दो तीन गुब्बारे और सीटियाँ भी मेज़ की दराज़ से निकाल कर टेबुल पर सजा दी. दो-तीन घंटे बाद उसे अपनी ड्यूटी पर जाना होगा. उसने अपना सेक्यूरिटी गार्ड का यूनिफॉर्म निकाल कर बिस्तर पर रखा ही था कि जिया और सिया फेयरी केक लिए हैपी बर्थ-डे गाते शोर मचाते हुए घर में घुसे…..
‘लेटस कट द केक, लेटस कट द केक’ कहते हुए जिया और सिया शोर मचाती हुई बर्थ-डे वाली टोपी सिर पर लगा कर सीटी बजाती हुई गुब्बारे लेकर इधर-उधर दौड़ने और सोफ़े पर कूद-फांद करने लगीं. शोबना उन्हें शांत करने की कोशिश करने लगी पर सचिन ख़ुद उनके साथ बच्चा बनकर पकड़-छू खेलने लगा. ‘ओ माई गॉड! जिया, सिया अगर तुम लोग इसी तरह धमा-चौकड़ी करते रहे तो कोई न कोई चीज़ आज जरूर टूटेगी.’ शोबना की तेज़ आवाज़ सुनकर तीनों ख़ामोश हो गए. ‘देखो मेरी बात सुनो, हम पहले खाना खाएँगे फिर केक काटेंगे और फिर गिटार पर वह प्यारा सा गीत ‘…जिंदगी एक सफर है सुहाना, कल क्या हो किसने जाना… ’. गाते हुए डैडी को काम पर जाने के लिए बिदा करेंगे, बाद में ‘रेड राइडिंग हुड’ की कहानी सुनते हुए सो जाएँगे और सुबह डैडी के वापस आने का इंतज़ार करेंगे…ठीक. ‘यप्प’ कहते हुए सब उस छोटी सी मेज़ के इर्द-गिर्द आकर अपनी अपनी कुर्सियों पर बैठ गए. समय भाग रहा था इतनी देर में पाँच बज गएँ. सात बजे सचिन को काम पर जाने को निकल जाना था.
छेड़-छाड़, शोर-शराबें और शरारतों के बीच खाना हुआ, जीया, सिया और सचिन ने मिलकर बर्थ-डे केक की बत्तियों पर फूँक मारी और केक काटा. हँसते-खिलखिलाते गीत गाते परिवार को प्यार से बाई बाई करता हुआ सचिन लिफ्ट में जाने के मुड़ा ही था कि जिया उसका मोबाइल फ़ोन दिखाते हुए बोली, ‘डैडी! आप अपना फोन लेना तो भूल ही गएँ.’ ‘ओह! नटखट लड़की तूने इसे मेरी जेब से कब निकाल लिया.’ उसने जिया को गोद में उठा कर माथे पर एक चुंबन जड़ा, इतने में सिया भी टैडी बेयर पकड़े हुए उसकी गोद में चढ़ने के लिए मचलने लगी. शोबना ने सिया को गोद में उठाते हुए सचिन को भरपूर आलिंगन दे कर कहा, ‘वन्स अगेन हैपी बर्थ-डे डार्लिंग, सी यू सून. टेक केयर’ और बिदा का चुंबन देते हुए लिफ्ट का दरवाज़ा बंद कर दिया. ‘डैडी लुक्स स्मार्ट इन हिज़ ब्लू यूनिफार्म. डसन्ट ही.’ उसने जिया और सिया से कहा. ‘डैडी इज़ द बेस्ट. ही इज द बेस्ट इन द होल वर्ल्ड.’ दोनों बच्चों ने एक साथ कहा. शोबना जिया और सिया को सीने से लगाए सचिन के प्यार में सराबोर बच्चों के कपड़े बदल कर लोरियाँ गाकर सुलाने का प्रयास कर ही रही थी कि उसे ख़ुद भी गहरी नींद आ गई.
उधर सचिन ने ऑफिस आकर अपना टाइम कार्ड पंच कर सी.सी.टी.वी. का स्क्रीन ऑन कर पूरे ऑफिस का निरीक्षण किया कि सारी खिड़कियाँ और दरवाजे बंद हैं. कहीं कोई गड़बड़ तो नहीं! पता नहीं क्यों आज उसे ऐसा लग रहा था कि कहीं कुछ ठीक नहीं है. ख़ुद को आश्वस्त करने के लिए उसने एकबार फिर स्क्रीन पर आँखें गड़ाकर देखा. बाहर निकल कर भी चारों ओर देखा कहीं कुछ भी संदेहपूर्ण नहीं, साथ वाले सेक्यूरिटी गार्ड से फ़ोन पर पूछा वहाँ भी सब ठीक था.
यह मन आज इतना अस्थिर क्यों हो रहा है. थोड़ी देर वह मोबाइल फोन ऑन कर शोबना और बच्चों की तस्वीरें देखता उनकी रिकॉर्डेड आवाज़ें सुनता रहा. रात के साढ़े ग्यारह बज रहे थें जिया और सिया की खिलखिलाहट का ट्यून उसके फोन पर बज उठा, फोन शोबना का था डर और घबराहट से थरथराती आवाज में वह बोली ‘सचिन लगता हमारी इमारत में आग लग गई है, मैं धुआँ सूँघ रही हूँ. बिजली भी चली गई है.’ ‘ओह! माई गॉड, शोबना दरवाज़ा कस कर बंद कर लो ताकि धुआँ अंदर न पहुँचे. मैं नाइन- नाइन- नाइन को फ़ोन लगाता हूँ. और हाँ मोबाइल फ़ोन हर वक़्त साथ रखना. ’ सचिन ने कांपते हाथो से नाइन- नाइन- नाइन पंच किया. इमरजेंसी ऑपरेटर ने सचिन को आश्वस्त करते हुए बताया कि उन तक लिन-कोर्ट में आग लगने की ख़बर आ चुकी है. पाँच फ़ायर ब्रिगेड लक्ष्य पर पहुँचने के लिए चल चुके हैं तीन और निकलने वाले है.
सचिन ने अपने साथ वाले ऑफ़िस के सेक्यूरिटी गार्ड और ऑफ़िस के आपात्कालीन विभाग को फ़ोन कर के बताया कि जिस इमारत में वह रहता है उसमें आग लग गई है और उसकी पत्नी और बच्चे आग की लपटों में घिरे हुए हैं वह घर जा रहा है.
उसने लपक कर टैक्सी पकड़ी और ड्राइवर से बोला, ‘प्लीज़…प्लीज़ ज़रा तेज़ गाड़ी चलाओ. मेरा घर आग की चपेट में आ गया है.’ वह जैसे ख़ुद से बात कर रहा हो ‘अभी बस चार घंटे पूर्व ही तो मैं शोबना और बच्चों के माथे पर चुम्बन दे कर शुभ-रात्री कहते हुए ड्यूटी पर आया था और अभी अभी मेरी शोबना ने फ़ोन पर बताया कि हमारी इमारत में आग लग गई है. ओह! मेरा परिवार सातवें मंज़िल पर है आग छठें मंज़िल पर लगी है. माई गॉड! छठे मज़िल पर ही तो वे तमाम ख़ाली फ़्लैट हैं जो खस्ताहाल है जिनकी वायरिंग वगैरह उखड़ी पड़ी है जिनमें रहना ग़ैर-कानूनी है. पर काउँसिल आँखें मूँदे हुए है. बिल्डिंग में न तो आग बुझानेवाले यंत्र लगे है न ही पानी छिड़कनेवाले फौहारे. तमाम ग़रीब माइग्रैंट परिवार कीड़ों-मकोड़ों की तरह यहाँ बसे हुए हैं. प्लीज़, मुझे जल्दी से जल्दी घटना स्थल पर पहुँचना है ताकि मैं अपने परिवार को बचा सकूँ. ओह गॉड! शोबना बता रही थी कि बिजली चली गई है तो फिर लिफ़्ट कैसे चलेगी…..फिर उन्हें बचाया कैसे जाएगा…. ’ अभी सचिन यह प्रलाप कर ही रहा था कि शोबना का फोन फिर आया, ‘सचिन, मुझे ख़तरे का आभास हो रहा है. प्लीज़ हमें बचा लो. धुआँ फर्श के सुराखों और दरवाज़ों के नीचे से और तेज़ी से अंदर आने लगा है. जिया और सिया खाँस रही हैं.’
‘मेरी जान! उपाय सोचो, उपाय! फायर स्केप… ओह गाँड! उसकी तो सीढ़ियाँ टूटी हुई हैं. और वह दूसरे किनारे पर है.’ वह जल्दी से बोला ‘तुम फ़ौरन बच्चों को लेकर बाथरूम में चली जाओ और बच्चों को नाक, मुँह और आँख पर रखने को फ्लैनेल भिगो कर देना और सुनों बाथटब पानी से भर लेना. तौलिए गीले कर के सुराख़ों को ढँक देना. बच्चों को गीले तौलिए और चादरों में लपेट दो. धीरज रखो मेरी जान. मैं फायर-ब्रिगेड और पुलिस से बात कर चुका हूँ. प्लीज़..प्लीज़…वे तुम तक जल्दी ही पहुँच रहे हैं.’ और वह पागलों की तरह टैक्सी से उतर कर लाल और नीली पट्टियों को तोड़ते हुआ आग लगी इमारत की ओर फायर ब्रिगेडों, पुलिस कारों और ऐम्बुलेन्सों के बीच चिल्लाता हुआ भागा, ‘बचाओ! बचाओ! मेरी पत्नी और बच्चे 71 नम्बर के फ्लैट के बाथरूम में आग और धुएँ में घिर गए हैं. ’ उसने एक फायर मैन को झकझोरते हुए कहा, ‘प्लीज़…प्लीज़ मेरी पत्नी और बच्चों को बचाओ.’
‘वे बेडरूम से बाथरूम में कैसे पहुँच गए. अभागे!. हम तो बार बार लाउडस्पीकर से घोषणा कर रहें हैं कि आप लोग जहाँ है वहीं रहें. बेडरूम से अधिकतर लोगो को निकाला जा चुका है. अब दक्षिणी हवा चल रही है. बाथरूम की तरफ़ से लोगो को बचाना मुश्किल है पर हम को कोशिश करते हैं.’
‘ओह! ओह!’ कहते हुए सचिन खुद को संभाले शोबना से लगातार बातें करता, उसे धीरज बँधाता रहा, ‘जान! हिम्मत रखो, फ़ायर ब्रिगेड के जवान सीढ़ियाँ लगा रहे हैं. दमकल पानी के तेज़ बौछारों से इमारत की दीवारों को भिगोता जा रहा है. आग पर नियंत्रण हो रहा है. फायर ब्रिगेड के जवान तुम सबको बचा लेंगे.’ पर ख़तरे की गहरी गंध, घबराहट और भय के कारण शोबना की आवाज़ सिसकियों में रुंध रही थी, बच्चों के खांसियों और रोने- चिल्लाने की आवाज़ तेज़ होती जा रही रही थी. शोबना हिम्मत न हारते हुए भी हिम्मत हार रही थी. धुआँ उसके और बच्चों के फेफड़ों में घुस रहा था. सिया बेहोश हो चुकी थी. शोबना बुरी तरह खांस रही थी और फिर सचिन का संपर्क उससे टूट गया था. सचिन ‘हैलो, हैलो’ करता रहा पर शोबना का फोन ‘डेड’ हो चुका था.
तभी हवा के बहाव में बदलाव आया आग की लपटें सित्कारिया भरती तेज़ी से सातवीं मंज़िल के दीवारों और खिड़कियों की ओर बढ़ती एक झटके में आग की लाल-पीली लपलपाती जिह्वा सातवें मंज़िल को तेज़ी से निगल गई. सचिन पागलों की तरह चिल्ला रहा था, ‘उधर- उधर उस खिड़की के अंदर मेरी शोबना और मेरे बच्चे हैं. उन्हें बचा लो…. प्लीज़.’ फ़ायर ब्रिगेड के नौजवानों के तमाम कोशिशों के बावजूद सातवें मंजिल के बाथरूम से स्ट्रेचर पर युगों में बीते एक घंटे बाद शोबना और बच्चों की देह कंबल में लिपटी बाहर आई. शोबना का बाया हाथ स्ट्रेचर में से बाहर लटक रहा था जिसमें वह चाँदी का ब्रेसलेट अभी भी पड़ा हुआ था जो उसने उसे पिछले जन्मदिन पर उसे दिया था. शोबना का सुनहरा देह झुलस कर काला और चितकबरा हो रहा था. सचिन चीखा यह मेरी पत्नी है और उसके पास जाने की कोशिश की, पर सदमें से बेहोश हो, वह वहीं ढेर हो गया. शोबना के साथ उसका सर्वस्व जल गया.
जब सचिन को होश आया तो नर्स ने बड़ी हमदर्दी और अफ़सोस के साथ उसे बताया कि वे उसकी पत्नी और छोटी बच्ची को नहीं बचा सके किंतु तौलिए के कई परतों में लिपटी उसकी बड़ी बेटी पानी के टब में गिर जाने के कारण शायद जिंदा है किंतु अभी वह भयंकर मानसिक आघात और तेज़ तापमन के कारण सदमें में है. उसकी शारीरिक और मानसिक स्थिति चिंताजनक है. उसे इंटेन्सिव केयर में रखा गया है. नर्स सचिन को आई. सी.यू में ले गई जिया बिस्तर पर निर्जीव पड़ी थी उसका सुनहरा रंग धुएँ के कारण काला हो रहा था जिस पर नर्स ने मरहम लगा दिया था.
अब तक शोबना के पिता जिगनेश और माँ फिलिप्पा भी आ गए थे. कानूनी कार्यवाही के लिए जब सचिन से कहा गया कि वह आकर अपनी पत्नी और अपनी बच्ची के शवों का शिनाख़्त कर उन्हें क्रिया-कर्म के लिए ले जाए तो वह टूट गया और फूट फूट कर रोने लगा. जोगनेश ने उसकी हालत देख कर कहा, धीरज रखो सचिन मैं शोबना और सिया के देह का शिनाख़्त कर शव गृह में रखवा देता हूँ.
एक हफ़्ते बाद शव-दाह की तिथि मिली. सचिन अभी भयंकर सदमें में था. उसे रोज़ सेडिटिव का इंजेक्शन दिया जा रहा था. शव-दाह तो होना ही था किसी तरह यह कार्य शोबना के माता पिता ने ख़ुद को संभालते हुए सादगी से कर दिया.
अवसाद और नैराश्य से पीड़ित सचिन अपने आप को संभाल नहीं पा रहा था और एक रात उसने नींद की ढेरों गोलिया खा लीं, वह तो फिलिप्पा कुछ सामान लेने के लिए कमरे में गई तो वैलियम की ख़ाली बोतल देख कर शंकित हो उठी और एम्बुलेंस को फ़ोन कर दिया. अस्पताल ने सचिन को बचा लिया पर उसका शोक, उसका दर्द और अपनी प्रिया शोबना और बेटी को खोने का दुःख कम न हुआ. समाज सेविकाएँ उसकी काउँसिलिंग करती रहीं.
अस्पताल के इंटेन्सिव केयर में जिया आश्चर्यजनक रूप से स्वास्थ्य लाभ कर रही थी. सचिन को जब पता चला कि जिया बच गई है, ज़िंदा है और बार बार उसे पुकार रही है तो उसमें न जाने कहाँ से ऐसी जीवन शक्ति आई कि वह दौड़ा दौड़ा जिया के पास पहुँच गया और उसे सीने लगा लगा कर रो पड़ा, ‘मेरी बच्ची, मैंने तुम्हारी ममी और बहन को खो दिया मैं तुम्हारा अपराधी हूँ. पर तुम…तुम बेटी जिया, मेरी शोबना की निशानी, मेरे पास हो, मेंरी जान. मैं तुम्हें नहीं खोउँगा. तुम सदा मेरे पास रहोगी. जिया उससे चिपटती हुई बोली, ‘सॉरी डैडी मैं ममी और सिया को नहीं बचा पाई. मुझे टब में लिटा, ममा सिया को गोद में उठाए, अंतिम समय तक खिड़की से तुम्हें पुकारती रही…डैडी तुम हमें बचाने क्यों नहीं आए. हम तुम्हें बार बार पुकार रहे थे.’ कहते कहते जिया फिर बेहोश हो गई. ‘ओह! जिया मेरी जान, मेरी बच्ची, ममा और सिया कहीं नहीं गई है वे हमारे हृदय में जीवित हैं. हम उनकी याद में रोज़ दिये जलाएँगे……’
उषा राजे सक्सेना
…..और जल गया उसका सर्वस्व
उषा राजे सक्सेना
कैसे समय गुज़र जाता है! कपड़े बदलते हुए सचिन सोच रहा था. अभी पाँच वर्ष पूर्व ही तो वह शोबना से पहली बार गुलिस्तां इंडियन रेस्तराँ में मिला था.
शोबना ‘बॉलिवुड सिंगर’ थी. हर शनिवार को वह रेस्तरां के मुख्य भोजन कक्ष में हिंदी सिनेमा के गाने गिटार पर बजा कर गाते हुए मेहमानों का मनोरंजन करती थी. शोबना हिंदी भाषी नहीं थी परन्तु हिंदी गाने वह जिस प्रवीणता से गाती थी उससे लगता ही नहीं था कि उसे हिंदी नहीं आती है. उसके गीतों में जहाँ एक ओर गीता दत्त की चुलबुलापन और उमंग थी तो दूसरी ओर उसकी ग़ज़लों में नूरजहाँ की संजीदगी, दर्द और कशिश भी थी. शोबना के चाहनेवालों की सूचि में हर तरह के लोग शामिल थें उसमें रेस्ट्रॉ के मालिको, ग्राहको के अतिरिक्त वेटर और रसोई घर में सारे दिन बर्तन-भांडे साफ़ करता, सब्ज़ी काटता वह स्वयं भी था.
उस दिनों सचिन और उसका साथी गोपाल दोनों ही उन तमाम इल्लीगल इमिग्रैंट में से थे जो लंदन के रेस्तराओं में काम करते हुए गुमनाम ज़िंदगी जी रहे थे. दोनों हर वक्त डरे-डरे, सहमें-सहमें, दब-छुप कर रेस्तराँ के निचले तल्ले में बने रसोई-घर में रहते थे. गोपाल खाना पकाता था. सब उसे ख़ानसामा कहते थे और वह प्याज़-लहसुन और सब्ज़ी वगैरह काटने के साथ बर्तन-भांडे धोने का काम करता, एक अदना नौकर था. उसकी कोई पहचान नहीं थी. फिर भी वह संतुष्ट था कि कम से कम उसे रहने और खाने पीने की सुविधा तो मिली हुई थी. पहले की तरह अब वह सड़कों पर लावारिस ज़िंदगी तो नहीं बिता रहा था. अपने अंदर पलते डर के कारण, वह चाहता था कि लोग उसे जितना कम जानें उसके लिए उतना ही अच्छा है,
सचिन के दिलो-दिमाग़ में गैर क़ानूनी होने का आतंक हर वक़्त छाया रहता था. सबसे ज़्यादा डर उसे लंदन के पुलिस का लगा रहता था कि कहीं वह पकड़ गया तो बस जेल में बंद दम तोड़ता नज़र आएगा. इसलिए वह हमेशा ख़ामोशी की चादर ओढ़े रहता. कभी कोई बात करता तो बस ‘हाँ या ना’ में जवाब देता. मल्होत्रा साब ने वैसे भी कान उमेंठ और थप्पड़ मारकर उसे ख़ास हिदायत दे रखी थी कि अगर उसने ज़रा भी चीं-चपड़ की तो वे उसे सीधे थाने का रास्ता दिखा देंगे. गोपाल की और बात थी. वह खाना पकाने माहिर था. मल्होत्रा उसे किसी क़ीमत पर खोना नहीं चाहता था. वैसे भी उसने गोपाल से कह रखा था कि अगर वह ठीक से काम करेगा तो वह उसकी शादी किसी स्थानीय लड़की से करा कर उसे लीगल करा देगा. पर उस जैसे नौकर टाइप लौंडे तो कीड़े मकोड़ों की तरह सारे लंदन में बजबजाते फिरते रहते हैं. एक गया और दूसरा आया.
ऊपर फ़्लोर पर काम करने वाले वेटर जब ऑडर देने निचले तल्ले में आते तो अक्सर शोबना के रूप और गाने की प्रशंसा ख़ानसामा गोपाल से करते, ‘यार यह जो नई आइटम आई है न एकदम कटरीना कैफ़ है. तुझे पता है उसे हिंदी नहीं आती है, पर हिंदी फिल्मी गाने एकदम टच्च गाती है.’ ‘हैं! क्या बोला? ’ गोपाल चकित हो कहता, ‘वही तो…… साली, आधी इंडियन है. माँ गोरी और बाप गुज्जू. खूबसूरत तो ऐसी कि जो देखे वह घायल!’ तो दूसरा कहता, ‘साली, खाने पर रुकती ही नहीं ‘टेक-अवे’ ले जाती है वर्ना तू भी देख लेता, सचिन.’ सचिन ने सुना पर चुप रहा. शोबना के गानों ने तो वैसे भी उसके दिलो दिमाग़ पर कब्ज़ा कर रखा था. सारी बातें सुनता हुआ भी वह हमेंशा की तरह चुप, अपने काम में लगा रहा. रोज़ शाम आठ बजे के बाद शोबना के गाए गानों की स्वर लहरी सरकते हुए निचले तल्ले तक आती थी. उस समय वह सबकुछ भूल कर तन्मयता से गानों की धुन पर सलाद, आलू, प्याज़, टमाटर और हरी मिर्च काटते हुए शोबना के गाए गीत सुन बचपन की सुरम्य गलियों के चक्कर लगाने लगता.
वे बहुत कठिन और अंधकारमय दिन थे. मल्होत्रा साब ने सख़्ती से कह रखा था कि वह काम ख़तम कर रात को ख़ानसामा गोपाल के साथ दिखावे के लिए रेस्तरां के मुख्य द्वार से बाहर निकल कर थोड़ी देर इधर-उधर टहल-घूम कर, चुपचाप रेस्तरां के निचले तल्ले के पिछले दरवाज़े से अंदर आकर के सो जाया करे. वह भी जानता था कि ज़रा सी भी लापरवाही पुलिस को सुराग दे सकती थी. पुलिस-रेड के तमाम किस्से वह ग्राहकों द्वारा छोड़े गए अखबारों में पढ़ा करता था.
रोज़ रात काम खतम कर सबकी नज़रों से बचते हुए दोनों अंधेरे में छुपते-छुपाते अंदर आकर उस बीहड़ अकेलेपन से जूझते जो उनके अवैध होने के कारण उन्हें निगलती जा रही थी. चुपचाप एक धीमी सी बत्ती जलाकर हल्की आवाज़ में विडियो लगा कर कोई हिंदी फ़िल्म देखते या सनराइज़ रेडियो पर गीत-ग़ज़ल सुनते. जब नींद आती तो सब्ज़ी और गोश्त काटनेवाली टेबल पर अखबार बिछा, उदास अपनी किस्मत और अकेलेपन को कोसते थक कर सो जाते.
गोपाल चुप्पी तोड़ने लिए अक्सर कहता, ‘यार इस कुत्ती ज़िंदगी और अकेलेपन को ढोने में अगर यह फ़िल्मों का अमृत और गानों का सोम रस हमें न मिलता तो हम लोग अपने देश और परिजनों को याद करते-करते गले में फांसी लगा कर जाने कब के अल्ला मियाँ के प्यारे हो चुके होते.’ रसोईघर के उस अकेलेपन में गोपाल उसे अच्छा ख़ासा नौटंकी लगता था, वह हँस पड़ता, प्यार से उसके गाल नोचते हुए कहता,
‘हाँ यार, तू ठीक कहता है. भला हो इस मल्होत्रा का जो उसने हमें यह पुराना विडियो रिकार्डर और टेलीविजन दे दिया है. ये फ़िल्में ही तो हैं जो हमें जिंदा रखती हैं. वर्ना यह सन्नाटा, यह अकेलापन तो कब का हमें निगल चुका होता.’ ‘हाँ यार! जन्माष्टमी के दिन जब अपन मंदिर गए थे न, वहाँ भगवान की मूरत के दर्शन में भी हमें वह सकून नहीं मिला था जो ‘जय श्री कृष्ण’ सीरियल देख कर मिला.’ और गोपाल उसे हँसाने के लिए बेलन पकड़, श्री कृष्ण की मुद्रा में खड़ा हो जाता. पर तब तक वह भावुक हो चुका होता, ‘यार! बॉलिवुड के ये गीत हमारे जीवन में शायद वही मायने रखते हैं जो गिरमिटियों के जीवन में राम चरित मानस और हनुमान चालिसा रखते थे. फिल्में और फिल्मी गाने हमारे दिलों में रस की फुहारें बरसाती देश को हमारे दिलों में बसाए रखती हैं. ’
कहते, कहते सचिन को अम्मा याद आ जाती जो उसे गिरमिटिया मज़दूरों की कथा-व्यथा सुनाते हुए उसे विदेश जाने से रोकती रही थी. अम्मा ने रोते रोते, सिसकियों के बीच उसे कई बार उसे बताया था कि उसके बप्पा और कई पुरखे अंग्रेज़ो के ज़माने में भुखमरी और ग़रीबी के कारण पानी के जहाज से डेढ़-पौने दो सौ वर्ष पूर्व फ़ीजी और मॉरिशस गए और फिर कभी नहीं लौटे. अम्मा के कहे का क्या कोई असर पड़ा उस पर? इधर अम्मा की तेरहवीं हुई और उधर वह विज़िटर वीजा लेकर किस्मत आजमाने लंदन पहुँच गया. कई बार उसे खुद पर गुस्सा भी बहुत आता था, पर वह कर भी क्या सकता था. अम्मा के साथ सारे मोह-बंधन खत्म हो गए. जो कुछ घर में था, बेच-बाच कर आ गया विज़िटर वीज़ा पर लंदन. अब तो वह फ़रार हो, ऐसे मकड़ जाल में फंस चुका था जिसमें से निकलना असंभव था.
क्या मिला यहाँ आकर उसे ग़रीबी, बिछड़न, सूनापन, डर और घबराहट के सिवा. दुनिया में कुछ भी नहीं बदला, वह सोचता. आज भी वही सब कुछ वैसा ही है, बस स्वरूप बदला है. ग़रीबी. भुखमरी और शोषण जो पहले थी अब भी है. पहले गोरे- अंग्रेज़ शोषण करते थे और अब अपने ही देसी बिज़नेसमैंन, फैक्ट्री, गोदामों और रेस्तरां में अपने ही लाचार देशवासियों का दोहन करते हुए उन्हें गुमनाम अंधेरी दुनिया रहने को मजबूर कर देते हैं. सचिन को इंग्लैंण्ड आए पाँच वर्ष हो चुके थे पर अभी भी वह अवैध का अवैध ही रहा. मल्होत्रा भी कम घाघ नहीं था उसने भी वही किया जो सबने किया था. पुलिस और कानून से डरा उसने उन्हें गुलिस्ताँ की रसोईघर में क़ैद कर रखा था. यूँ वह हर दिन हनुमान जी के आगे अगरबत्ती जला कर ईश्वर का शुक्र मानता कि इस क़ैद में कम से कम पेट भर ज़ायकेदार खाना और जाड़े की कड़कड़ाती सर्दियों में सोने को गर्म रसोई तो मिली हुई है.
वह उन दिनों को भूल जाना चाहता है जब वह नया नया आया था. पर यादें हैं कि किसी वफ़ादार कुत्ते की तरह वक्त-बेवक्त सूँघती हुई आ लपकती हैं. क्या क्या दुख नहीं देखे उसने, हवाई जहाज में मिले उस धूर्त मित्तल ने किस चालाकी से उसके ढाई सौ पौंड डकार लिए. बहला-फुसला कर मित्तल उसे अपने घर ले आया, दिलासा दिया कि उसे नौकरी दिलवा देगा. नौकरी तो दिलवाई नहीं उसने उल्टा रोज सुबह सात बजे घर से बाहर कर देता कि जा नौकरी खोज. दिन भर ठोकरें खा, शाम को सात बजे जब वह घर आता तो मित्तल की बीवी भुनभुनाती-तन्नाती बेक्ड-बीन्स और ब्रेड के टुकड़े उसके आगे रख देती. उधर मित्तल बोर्डिंग और लॉजिंग के नाम पर छाती पर खड़े होकर पंद्रह पौंड हर हफ्ते निकलवा लेता. जब उसका पैसा खतम हो गया तो उसने उसकी अटैची सड़क पर रख दी. कितना रोया और गिड़गिया था वह पर उसका दिल नहीं पसीजा, धमकाते हुए बोला, ‘चले आते हैं साले मुँह उठाए यहाँ. न हुनर न तमीज़, न कोई डिग्री. जैसे लंदन में ख़ैरात बटता हो. भाग यहाँ से, वर्ना पुलिस को इन्फ़ार्म कर दूँगा कि तेरे इरादे ठीक नहीं हैं.’
वह भौचक्का, उन्हें देखता रहा. जब तक उसके पास पौंड थे किस प्यार से बातें करता था मित्तल. आज जब उसके पैसे खतम हो गए तो कैसे गरजते सूनामी से तेवर दिखा रहा था जैसे वह उसकी मजबूरी जानता ही नहीं है. अब वह करे तो क्या करे? कहाँ जाए? वापस भारत जाने के सारे रास्ते बंद हो चुके थे. जेब में सिर्फ़ दस पौंड के चिल्लर! महीनों वह सीले हुए बिस्कुट खाते ‘होमलेस’ और ड्रग एडिक्टों के साथ कभी वाटरलू तो कभी चेरिंगक्रॉस स्टेशन के नीचे बनी पुलिया के नीचे अखबार और गत्ते बिछा कर सर्दी, गर्मी और बरसात में सोया.
उस एक रात जब उसकी फटी जेब में एक भी पैसा नहीं था उसकी अँतड़ियां भूख से कुड़कुड़ कर रही थी. वह रोटी के टुकड़ों के लिए किंग्सक्रॉस की गलियों में गुलिस्ताँ रेस्तरां के पीछे बने कमर्शियल कूड़े के बिन में खाने-पीने की चीज़ें टटोल रहा था कि तभी रसोई का कचरा फेंकने आए गोपाल की नज़र उस पर पड़ी. गोपाल को देख कर, डर से उसका चेहरा पीला पड़ गया था जैसे उसने भूत देख लिया हो. पकड़ा गया! बस अब उसे जेल हो जाएगी! गोपाल खुद ऐसे दिन गुज़ार चुका था. भोला सा देसी चेहरा देख उसे दया आ गई. इधर उधर देखते हुआ गोपाल फुसफुसाया. ‘अरे! ओ छोकरे यहाँ क्या कर रहा है? घर से भागा हुआ कोई बिगड़ैल है क्या?’ जाने क्या था गोपाल के चेहरे पर कि वह सच उगल गया. मिमियाता हुआ हाथ जोड़ कर बोला, ‘मेरे भाई मुझ पर दया कर. मैं भागा हुआ नहीं हूँ, विज़िटर वीज़ा पर आया था, एक आदमी ने धूर्तता से मेरा सारा पैसा निकलवा लिया और मुझे सड़क पर डाल गया.’
गोपाल को उस पर दया आ गई. वह रसोई घर में अकेला रहता- रहता तंग आ गया था. उसे अपना चचेरा भाई बताते हुए मल्होत्रा के पास लाया और उसी रात, उसके साफ़-सुथरे, भोले चेहरे को देख, मल्होत्रा ने उसे दस पौंड हफ्ते पर बर्तन-भांडा धोने के लिए रख लिया. दस में से पाँच पौंड मल्होत्रा किराए के काट लेता था. वह तो उसकी तो बस किस्मत अच्छी थी जो जल्दी ही उसकी मुलाक़ात शोबना से हो गई और वह मल्होत्रा के चंगुल से बाहर निकल आया.
उस दिन एक वेटर को खाना परोसते वक़्त खाँसी आ गई. ग्राहक गुस्से वाला था उसने मैनेजर, रनवीर मल्होत्रा की वो ऐसी-तैसी की कि वे भागे-भागे रसोई में आए, सामने उन्हें सचिन दिखा, बोले ‘चल, मुंडे वेटर के कपड़े पा, होर मेरे साथ ऊप्पर चलकर खाना सर्व कर’. उसने कभी खाने की सर्विस नहीं की थी. वह मिमियाया, ‘पर साब मैंने तो आज तक कभी खाना सर्व नहीं किया है. मैं कैसे….’ मल्होत्रा गुस्से से बोला ‘ओए! डरता क्यूँ है साले. मैं साथ हूँ न. उठा ट्रे, होर चल. चेहरे पर खुशी ला और मुस्करा.’ वह डरता हुआ चेहरे पर बनावटी मुस्कराहट चिपकाए ऊपर खाना सर्व करने गया था. उस गुस्सैल ग्राहक को अपने फिज़ूल गुस्से पर ग्लानि हुई या उसे उसकी सर्विस पसंद आ गई, उसे आज भी नहीं पता है. चलते चलते उसने उसके हाथ पर पाँच पौंड की टिप रख दी. बस उस दिन के बाद जब कभी कोई इमरजेंसी होती तो वह लाल कोट और ‘बो’ लगा कर ऊपरी तल्ले में कभी वेटर तो कभी बार-मैंन का काम करता. बार में ड्रिंक बनाते हुए जब उसने पहली बार शोबना को हाथ में माइक लिए सिंथेसाइज़र से निकले धुन पर गीत गाते देखा तो उसका दिल जोरों से धड़क उठा था.
ऐसे में एक दिन उसे लगा कि शोबना को शायद हल्का सा ज़ुकाम है. उसकी आँखें शबनमी और नाक सुर्ख़ हो रहे थे. सचिन के मन में जाने क्या आया कि गर्म पानी में ब्रांडी डाल कर शोबना को पकड़ा आया. उस रात जब सारे वर्कर खाने बैठे तो उसने शोबना के आगे गर्म पानी का जग रखते हुए कहा, ‘मुझे लगा कि शायद आपको सर्दी लग गई है इसलिए ठंडे पानी के बजाए आपके लिए गुनगुना पानी का जग लाया हूँ.’ शोबना ने ‘थैंक्स’ कहते हुए उसे अपनी बगल वाली कुर्सी पर हाथ पकड़ कर बैठा लिया.
रेस्तरां के बंद होने का समय हो रहा था. सारे वेटर जा चुके थे. सचिन किचन का काम जल्दी-जल्दी समेट, कोट पहन रेस्तरां के बाहर थोड़ा घूम-फिर कर पिछले दरवाज़े से अंदर जाने के लिए मुड़ने ही वाला था कि शोबना उसके बगल में धीरे से आकर खड़ी हो गई. वह चौंका, पर फिर संभल गया वह शोभना की खुशबू पहचानता था. ‘मैं.. शोबना, अपना नाम तो बता मेरे शुभचिंतक.’ शोबना ने हल्की हँसी के साथ कहा था. ‘सचिन, जी, मुझे सचिन कहते है.’ ‘मैं यही पास की पाँचवीं गली टायरलेन में रहती हूँ. तू मुझे घर तक छोड़ देगा. सचिन’ उसने अपने हाथ में पकड़े खाने का बैग सचिन को पकड़ाते हुए बिना लाग लपेट के कहा. ‘जी, जरूर, मैं आपका फ़ैन हूँ जी. हर शनिवार को आपके आवाज़ का इंतज़ार रहता है.’ ‘सच! तो फिर आज से मैं तेरी फ़ैन….. मेरे यार!’ रात के अँधेरे में, बिजली की हल्की रोशनी में वह शोबना के चेहरे पर आए उस कृतज्ञ प्रेम प्रस्ताव को पढ़ गया जो शायद दिन की रोशनी में वह कभी न पढ़ पाता. गोपाल ने भी उसकी बाहों में चुटकी काटते हुए इशारा किया, ‘जा, उसे घर पहुँचा आ.’
…….और फिर वह उसके साथ चल पड़ा. शोबना सारे रास्ते खिल-खिल करती उससे लेटेस्ट इंडियन फिल्मों की बातें करती बीच-बीच में गानों की कुछ रोमांटिक पंक्तियाँ भी गुनगुना जाती. उसे याद है किस तरह उस दिन उसके बदन में ठंडी और गर्म फुरहरिया उठ और गिर रही थी. थोड़ी देर में शोबना का घर आ गया. दोनों देर तक बाहर खड़े, पेड़ के नीचे बारिश की झिर-झिर से बेखबर बतियाते रहें. बातें थीं कि ख़तम होने को नहीं आ रही थीं. चलते-चलते शोबना बोली, ‘तो फिर कल मिलते है, सचिन. डेढ़ बजे, लंदन आई के नीचे टेम्स नदी के किनारे. देख! हम दोनों की रुचियाँ कितनी मिलती हुई हैं. तुझसे बात करके अभी मेरा दिल नहीं भरा है.’ कहते हुए शोबना ने उसे हल्का सा आलिंगन दिया. वह नर्वस, बुत खड़ा रहा. शोबना उसकी हालत देख कर मुस्कराई, उसका हाथ पकड़ कर बोली, ‘देख सचिन! तूने मेरे मन को छू लिया है. मैं तुझसे दोस्ती करना चाहती हूँ. अपने दुःख दर्द तुझसे शेयर करना चाहती हूँ और तेरे दुख- दर्द से वाक़िफ़ होना चाहती हूँ.’ ‘सच! शोबना जी, पर मल्होत्रा साब को यह सब ठीक नहीं लगेगा. कहीं किसी ने देख लिया तो?’ ‘मतलब?’ ‘आप नहीं समझेंगी!’ ‘ देख! सचिन, तू स्मार्ट है. एक अच्छा बार मैन और वेटर है. अपने को पहचान. तू मल्होत्रा से इतना मत डर. वेटर की नौकरी तुझे बहुतेरी मिलेंगी. और फिर ज़िंदगी भर तू वेटर थोड़े ही बना रहेगा. बोल आएगा न.’ ‘म…मैं….’ कुछ कहता हुआ वह चुप हो गया फिर बोला, ‘हाँ..आँ.. आऊँगा, शोबना जी.’
जब वह वापस आया तो शोबना के प्रेम प्रस्ताव के कारण कुछ घबराया हुआ था. गोपाल के पूछने पर वह कुछ नर्वस सा हकलाकर बोला, ‘शोबना ने कल मिलने को लंदन आई के नीचे बुलाया है.’ गोपाल कुछ देर गहराई से सोचता रहा फिर बोला, ‘देख! तू घबरा मत, सचिन. तू कल शोबना से मिलने जाएगा.’ आगे उसने उसे गले से लगाते हुए पीठ थपथपा कर कहा, ‘देख, मुझे समझ आ रहा है कि तेरी किस्मत बदल रही है. शोबना तेरी लेडी-लक है. वेटर के कपड़ों और पैंट- टाई जैसे आम कपड़ों से इंसान के पर्सनैलिटी में बड़ा फर्क आ जाता. कल तू मेरा धूप का चश्मा और हुड वाला कोट पैंट-शर्ट के ऊपर पहन कर जाएगा फिर कोई माई का लाल तुझे नहीं पहचान पाएगा.’
और फिर तो ड्यूटी के बाद जब भी दोनों को समय मिलता, दोनों कहीं न कहीं मिल बैठते. शोबना चटर-पटर खूब बातें करती. वह खुद्दार और ईमानदार थी. तीन चार हफ़्ते बाद जब सचिन को पूरी तरह लगने लगा कि शोबना दिल की पूरी गहराई से उसे पसंद करती है तो उसने उसे बताया कि वह अवैध नागरिक है, इसलिए डरा-डरा और दब-छुप कर रहता है. वह नहीं चाहता है कि वह पकड़ा जाए, जेल जाए और फिर बेइज़्ज़त हो कर वापस देश पहुँच जाए, जहाँ अब उसका कोई नहीं है. यहाँ न तो उसके पास कोई रुपया- पैसा है न ही वह ज़्यादा पढ़ा लिखा है कि अपना केस लड़ सके. शोबना ने उसे तसल्ली देते हुए कहा कि वह कोई अकेला अवैध नागरिक नहीं है. इंग्लैंण्ड में ढेरों हर जाति, रंग और नस्ल के अवैध नागरिक भरे पड़े हैं. सब कभी न कभी, किसी न किसी बहाने लीगल हो जाते हैं. वैसे भी यहाँ लीगलाइज़ होने के बहुतेरे तरीके हैं. फिर मैं तेरे साथ हूँ न. मैं तो यहीं जन्मी और बड़ी हुई हूँ. और उस रोज़ शाम को शोबना उसे अपने परिवार से परिचित कराने के लिए घर ले गई.
शोबना का परिवार एक छोटे से ख़स्ताहाल फ्लैट में उसके ममा, पापा, एक पैर से विकलांग छोटा भाई और शोबना की तीन महीने की नन्हीं बच्ची के साथ रहता था. यह बच्ची शोबना के साथ हुए एक बालात्कार की उपज थी. शोबना को मजबूरन उसे जन्म देना पड़ा. शोबना को बच्ची से घृणा थी. वह उसे उस नृशंस घटना की याद दिला देती थी जिसे वह भुलाना चाहती थी. उसे बच्ची को देख कर अपने आप से घिन आने लगती थी. काफी दिनों वह डिप्रेशन में रही. अभी भी उसका इलाज चल रहा था. इसलिए बच्ची को शोबना की माँ फिलिप्पा पाल रही थी. बच्ची उसी के कमरे में सोती थी.
जिस समय शोबना, सचिन को लेकर घर आई, शोबना का पिता जिगनेश और भाई आंद्रे काम पर जाने के लिए तैयार खड़े बस सचिन और शोबना से मिलने के लिए रुके हुए थे. जिगनेश टेस्को सुपर मार्केट में सेक्यूरिटी गार्ड और विकलांग आंद्रे सेक्यूरिटी टी.वी पर वाच मैन लगा हुआ था. इन दिनों उनकी रात की ड्यूटी थी. वे सचिन से बड़ी गर्म जोशी से गले मिले और कहा कि उसकी दोस्ती ने शोबना को नई ज़िंदगी दी है. अब वह खुश रहती है. हर शाम, घर में उसकी ही चर्चा होती है. शोबना ने उसके बारे में सबको इतना कुछ बता दिया है कि वह उनके लिए अपरिचित नहीं है. उन्होंने सचिन को अगले रविवार को फिर घर आने को कहा जब वे साथ बैठ कर खाना खाएँगे और ढेरों गपशप करते हुए तबला, हारमोनियम और गिटार पर ढेरों गीत गाएँगे..
उनके जाने के बाद फिलिप्पा ने सचिन और शोबना के लिए टेबल पर चाय रखते हुए कहा, ‘तुम लोग चाय पियो तब तक मैं रसोई समेट, बेबी का दूध बनाकर लाती हूँ.’ नन्हीं बेबी वहीं छोटे से पालने में सो रही थी. ‘ओह! कितनी प्यारी बेबी है. इसका रंग तो बिल्कुल तुम्हारी तरह सुनहरा और आँखें शरबती हैं. मैं इसे गोद में लेना चाहता हूँ शोबना.’ ‘तो उठा लो.’ शोबना ने अनिच्छा से कहा, ‘जगाना तो होगा ही माँ दूध लाने गई है. वर्ना सोती रहेगी.’ गोद में उठाते ही बच्ची जग गई और टुकर टुकर सचिन को देखने लगी. सचिन को बच्ची पर बहुत प्यार आया वह उसे लेकर कुर्सी पर बैठ गया. फिर जब फिलिपा दूध की बोतल लेकर आई तो वह बोला, ‘मेरा जी इसे गोद से उतारने को नहीं कर रहा है. लाइए इसे आज मैं दूध पिलाने की कोशिश करता हूँ.’ बच्ची भूखी थी. बोतल मुँह से लगाते ही गटर गटर दूध पीने लगी. ‘इसका नाम क्या है?’ ‘कोई नाम नहीं है इस लावारिस का.’ शोबना ने उदास और रूखे स्वर में कहा. ‘क्यूँ? बच्चों के जन्म में उनका कोई दोष नहीं होता है शोबना. वे तो भगवान का वरदान होते है. तो फिर आज से इस प्यारी सी गुड़िया को हम जिया कहेंगे. इसने मेरा जी जो मोह लिया है.’
उस शाम फिलिपा ने अनुभव किया कि पूरे एक वर्ष बाद शोबना के चेहरे पर एक सहज चमक आई है जो उस हादसे के बाद से उसके चेहरे से ग़ायब हो गई थी. फिलिप्पा गहन दृष्टिवाली माँ थी उसने सचिन से कहा, ‘बाहर मूसलाधार बारिश हो रही है. रात भी काफ़ी गुज़र चुकी है. आज तू यहीं रुक जा. आँद्रे का सोफा-बेड ख़ाली है.’ सचिन के रुक जाने से उस रात शोबना और उसके परिवार को ऐसी ख़ुशी मिली कि उन्होंने शोबना को पूरी तरह आश्वस्त करने के लिए जल्दी ही एक वकील द्वारा होम ऑफिस में सचिन का केस लगवा दिया. शोबना का केस चूँकि सच्चा था और वकील शोबना के विषम जीवन-संघर्ष से पूरी तरह परिचित था. उसने केस इस तरह कोर्ट में रखा कि शोबना को जल्दी ही सचिन से विवाह की इजाज़त मिल गई और सचिन जिगनेश कामदार के परिवार का स्थाई सदस्य बन गया.
फिलिप्पा के इस छोटे से दो कमरे के फ्लैट में अधिक जगह नहीं थी. जब दिन की ड्यूटी होती तो रात में आंद्रे सोफा बेड पर सोता था. बच्ची शुरू से फिलिप्पा और जिगनेश के कमरे में पालने में सोती थी. शोबना के छोटे से कमरे के सिंगल बेड पर अब सचिन भी सोता था. शोबना के बालात्कार, पीड़िता और सिंगल माँ होने के कारण सदर्क काउँसिल ने उसे फ्लैट देने का आश्वासन दिया हुआ था. शोबना ने अर्ज़ी लगा रखी थी पर काउँसिल की आर्थिक विपन्नता के कारण अब तक उसकी बारी नहीं आई थी. जिया एक वर्ष की होने जा रही थी. पालना उसके लिए छोटा पड़ने लग गया. नन्हीं जिया को उस छोटे से पालने में सोता देख जब स्वास्थ्य विभाग की नर्स ने शिक़ायत की तो काउँसिल को मजबूरन लाइन तोड़, शोबना और सचिन को लिनकोर्ट नाम की एक पुरानी खस्ताहाल बिल्डिंग में फ्लैट देनी पड़ी. लिन कोर्ट में पूर्वी यूरोप और थर्ड वर्ल्ड से आए इमिग्रैंट और अभावग्रस्त लोगों को रिहाइश दी जाती थी.
शादी के बाद सचिन को भी वैध नागरिक का स्टेटस मिल गया और वह एक सरकारी फर्म में सेक्यूरिटी गार्ड लग गया. शोबना खुशमिजाज़ थी उसकी सब पड़ोसियों से दोस्ती थी. जब शोबना रेस्ट्राँ जाती तो उसकी पड़ोसन सिंथिया हर शनिवार को दो-तीन घंटे जिया और सिया की बेबी सिटिंग कर देती बदले में वह उनकी शॉपिंग वगैरह कर देती.
सचिन जिया से बहुत प्यार करता था. जब जिया ने उसे पहली बार ‘डैडी’ कह कर पुकारा तो वह उसे गोदी में लेकर बहुत देर तक बंदर की तरह उछलता नाचता रहा था. उसने मोबाइल फोन में जिया की आवाज भर ली और जब कभी काम पर उसकी याद आती तो बड़े प्यार से उसे बार बार सुनता. इसी बीच जिया की छोटी बहन सिया भी आ गई.
उस दिन सुबह शोबना ने कब बिस्तर छोड़ा, सचिन को पता नहीं चल पाया. आम तौर पर सचिन और शोबना साथ ही उठते हैं. दोनों साथ ही बच्चों के कमरे में जाकर उन्हें जगाते हैं. फिर उनके नित्यकर्म शुरू होते हैं, जैसे बच्चों के नख़रे उठाना, उन्हें स्कूल के लिए तैयार करना, नाश्ता कराना वगैरह….वगैरह. सचिन अभी बालों पर हाथ फिरा कर आँखें मल ही रहा था कि गेंद सी उछलती पाँच वर्ष की जिया हाथ में बर्थ-डे कार्ड लिए धप से आकर उसकी गोद में बैठ गई. कार्ड को उसके चेहरे के पास लाते हुए बोली, ‘हैपी बर्थ-डे डैडी, देखो मैंने खुद तुम्हारे लिए बर्थ-डे कार्ड बनाया है.’ कार्ड पर दो सींक जैसी लंबी टाँगों पर एक अनगढ़ अंडा टिका था जिसमें दो मेंढक जैसी आँखें और गाजर जैसी लंबी नाक बनी हुई थीं ‘और मैंने भी…’ कहते हुए छोटी बेटी, तीन वर्ष की सिया भी अपना कार्ड दिखाने लगी. ‘ये आप हैं डैडी’ दो लकीरों पर रखा आलू जैसा टेढ़ा मेंढ़ा एक गोला जिसमें आँखों के लिए दो बुंदकियाँ यहाँ-वहाँ लगी हुई थीं. ख़ुद की ऐसी विचित्र तस्वीर देख कर सचिन की हँसी छूट पड़ी, बच्चे भी खिलखिलाते हुए उसके पेट पर बैठ कर गुदगुदी मचाने लगे तभी शोबना चाय की ट्रे लेकर अँदर दाखिल हुई, भौंहें नचाते हुए हँस कर बोली, ‘हैपी बर्थ-डे डार्लिंग. देखा, बच्चों ने तुम्हारी कैसी सुंदर तस्वीर बनाई है….’ शोबना जब हँसती है तो बहुत खूबसूरत लगती है. खासकर तब जब वह सचिन की खिंचाई करती है. सचिन और उसका परिवार देर तक हँसता और खिलखिलाता रहा. इन सबके बीच सचिन मन ही मन भगवान् को धन्यवाद देता रहा कि ईश्वर ने कठिन से कठिन समय में भी उसे और उसके परिवार को असीम ख़ुशी के क्षण दिए हैं.
शोबना कहती रही, ‘सचिन आज तुम्हारा जन्मदिन, तुम आज आराम करो.’ पर सचिन नहीं माना. बच्चों और शोबना के साथ बिताया एक-एक क्षण उसे अमूल्य लगता है. वह दोनों शोर मचाते बच्चों को कंधे पर बैठा कर बाथरूम ले गया. उनके हाथ मुँह धुलवाकर रसोईघर में नाश्ता करने के लिए बैठाया फिर अपने चारों के लिए टोस्टर में टोस्ट लगा कर, कार्नफ्लेक्स कटोरों में डालने लगा था कि तभी शोबना भी तैयार हो कर आ गई. वह धुली-धुली, ताज़ी और खिली-खिली गुलाब जैसी दिख रही थी.
बच्चों को स्कूल ले जाते वक्त चलते-चलते दरवाजे पर रुक कर शोबना उसे आलिंगन देते हुए बोली, ‘सचिन, आज तेरा जन्मदिन है. कल रात, ड्यूटी कर के तू साढ़े तीन बजे आया है. तेरी नींद अभी पूरी नहीं हुई है. अभी तो तू जाकर सो जा. साढ़े तीन बजे जब हम वापस आते हैं तो साथ मिल कर खाना बनाएँगे, खाएँगे और फिर तेरा बर्थ-डे मनाएँगे. और देख, जिया, सिया कैसी एक्साइटेड हो रही हैं.’ फिर जिया सिया का बैग कंधे पर ठीक से टाँगते हुए उसके होठों पर चुंबन देते हुए बोली ‘सिंथिया कल तेरे लिए बर्थ-डे केक बना कर लाई थी. शाम को केक काटने के बाद ही काम पर जाना वर्ना सिया और जिया बहुत शोर मचाएँगी… प्लीज़, बर्तन सिंक में छोड़ देना. मैं शाम को आकर निपटा दूँगी.’ शोबना रोज़ जिया को स्कूल छोड़कर, सिया की नर्सरी क्लास में टीचर की दो घंटे सहायता करती है फिर एक बजे अंजना साराभाई को बौलिवुड गाने सिखाती है. साढ़े तीन बजे बच्चों को स्कूल से लेते हुए घर आती है. शोबना रोज़ उससे मिन्नतें करती है कि शाम का खाना वह बनाएगी पर सचिन को बच्चों और शोबना की पसंद का खाना बनाने में जो मज़ा मिलता वह उसे किसी और चीज़ में नहीं आता है. वह अपना सारा प्यार खाना बनाने में उड़ेल देता.
उस दिन भी शोबना के जाने के बाद सचिन ने थोड़ा आराम करने के बाद मशीन में से कपड़े निकाल कर बाल्कनी पर फैलाए फिर शाम का खाना बनाया. टेबल सजाया, उसे पता था बच्चों की खुशी के लिए शोबना नन्हें नन्हें फ़ेयरी केक, जेली-बीन्स और फूल लेकर आएगी, उसने मोमबत्तियों के साथ एक गुलदस्ता मेज़ पर रखा साथ में वाइन ग्लास और रेड वाइन की बोतल खोल कर रख दी ताकि वाइन कमरे के तापमान पर आ जाए. बच्चों की खुशी के लिए जन्म दिन की टोपियाँ, दो तीन गुब्बारे और सीटियाँ भी मेज़ की दराज़ से निकाल कर टेबुल पर सजा दी. दो-तीन घंटे बाद उसे अपनी ड्यूटी पर जाना होगा. उसने अपना सेक्यूरिटी गार्ड का यूनिफॉर्म निकाल कर बिस्तर पर रखा ही था कि जिया और सिया फेयरी केक लिए हैपी बर्थ-डे गाते शोर मचाते हुए घर में घुसे…..
‘लेटस कट द केक, लेटस कट द केक’ कहते हुए जिया और सिया शोर मचाती हुई बर्थ-डे वाली टोपी सिर पर लगा कर सीटी बजाती हुई गुब्बारे लेकर इधर-उधर दौड़ने और सोफ़े पर कूद-फांद करने लगीं. शोबना उन्हें शांत करने की कोशिश करने लगी पर सचिन ख़ुद उनके साथ बच्चा बनकर पकड़-छू खेलने लगा. ‘ओ माई गॉड! जिया, सिया अगर तुम लोग इसी तरह धमा-चौकड़ी करते रहे तो कोई न कोई चीज़ आज जरूर टूटेगी.’ शोबना की तेज़ आवाज़ सुनकर तीनों ख़ामोश हो गए. ‘देखो मेरी बात सुनो, हम पहले खाना खाएँगे फिर केक काटेंगे और फिर गिटार पर वह प्यारा सा गीत ‘…जिंदगी एक सफर है सुहाना, कल क्या हो किसने जाना… ’. गाते हुए डैडी को काम पर जाने के लिए बिदा करेंगे, बाद में ‘रेड राइडिंग हुड’ की कहानी सुनते हुए सो जाएँगे और सुबह डैडी के वापस आने का इंतज़ार करेंगे…ठीक. ‘यप्प’ कहते हुए सब उस छोटी सी मेज़ के इर्द-गिर्द आकर अपनी अपनी कुर्सियों पर बैठ गए. समय भाग रहा था इतनी देर में पाँच बज गएँ. सात बजे सचिन को काम पर जाने को निकल जाना था.
छेड़-छाड़, शोर-शराबें और शरारतों के बीच खाना हुआ, जीया, सिया और सचिन ने मिलकर बर्थ-डे केक की बत्तियों पर फूँक मारी और केक काटा. हँसते-खिलखिलाते गीत गाते परिवार को प्यार से बाई बाई करता हुआ सचिन लिफ्ट में जाने के मुड़ा ही था कि जिया उसका मोबाइल फ़ोन दिखाते हुए बोली, ‘डैडी! आप अपना फोन लेना तो भूल ही गएँ.’ ‘ओह! नटखट लड़की तूने इसे मेरी जेब से कब निकाल लिया.’ उसने जिया को गोद में उठा कर माथे पर एक चुंबन जड़ा, इतने में सिया भी टैडी बेयर पकड़े हुए उसकी गोद में चढ़ने के लिए मचलने लगी. शोबना ने सिया को गोद में उठाते हुए सचिन को भरपूर आलिंगन दे कर कहा, ‘वन्स अगेन हैपी बर्थ-डे डार्लिंग, सी यू सून. टेक केयर’ और बिदा का चुंबन देते हुए लिफ्ट का दरवाज़ा बंद कर दिया. ‘डैडी लुक्स स्मार्ट इन हिज़ ब्लू यूनिफार्म. डसन्ट ही.’ उसने जिया और सिया से कहा. ‘डैडी इज़ द बेस्ट. ही इज द बेस्ट इन द होल वर्ल्ड.’ दोनों बच्चों ने एक साथ कहा. शोबना जिया और सिया को सीने से लगाए सचिन के प्यार में सराबोर बच्चों के कपड़े बदल कर लोरियाँ गाकर सुलाने का प्रयास कर ही रही थी कि उसे ख़ुद भी गहरी नींद आ गई.
उधर सचिन ने ऑफिस आकर अपना टाइम कार्ड पंच कर सी.सी.टी.वी. का स्क्रीन ऑन कर पूरे ऑफिस का निरीक्षण किया कि सारी खिड़कियाँ और दरवाजे बंद हैं. कहीं कोई गड़बड़ तो नहीं! पता नहीं क्यों आज उसे ऐसा लग रहा था कि कहीं कुछ ठीक नहीं है. ख़ुद को आश्वस्त करने के लिए उसने एकबार फिर स्क्रीन पर आँखें गड़ाकर देखा. बाहर निकल कर भी चारों ओर देखा कहीं कुछ भी संदेहपूर्ण नहीं, साथ वाले सेक्यूरिटी गार्ड से फ़ोन पर पूछा वहाँ भी सब ठीक था.
यह मन आज इतना अस्थिर क्यों हो रहा है. थोड़ी देर वह मोबाइल फोन ऑन कर शोबना और बच्चों की तस्वीरें देखता उनकी रिकॉर्डेड आवाज़ें सुनता रहा. रात के साढ़े ग्यारह बज रहे थें जिया और सिया की खिलखिलाहट का ट्यून उसके फोन पर बज उठा, फोन शोबना का था डर और घबराहट से थरथराती आवाज में वह बोली ‘सचिन लगता हमारी इमारत में आग लग गई है, मैं धुआँ सूँघ रही हूँ. बिजली भी चली गई है.’ ‘ओह! माई गॉड, शोबना दरवाज़ा कस कर बंद कर लो ताकि धुआँ अंदर न पहुँचे. मैं नाइन- नाइन- नाइन को फ़ोन लगाता हूँ. और हाँ मोबाइल फ़ोन हर वक़्त साथ रखना. ’ सचिन ने कांपते हाथो से नाइन- नाइन- नाइन पंच किया. इमरजेंसी ऑपरेटर ने सचिन को आश्वस्त करते हुए बताया कि उन तक लिन-कोर्ट में आग लगने की ख़बर आ चुकी है. पाँच फ़ायर ब्रिगेड लक्ष्य पर पहुँचने के लिए चल चुके हैं तीन और निकलने वाले है.
सचिन ने अपने साथ वाले ऑफ़िस के सेक्यूरिटी गार्ड और ऑफ़िस के आपात्कालीन विभाग को फ़ोन कर के बताया कि जिस इमारत में वह रहता है उसमें आग लग गई है और उसकी पत्नी और बच्चे आग की लपटों में घिरे हुए हैं वह घर जा रहा है.
उसने लपक कर टैक्सी पकड़ी और ड्राइवर से बोला, ‘प्लीज़…प्लीज़ ज़रा तेज़ गाड़ी चलाओ. मेरा घर आग की चपेट में आ गया है.’ वह जैसे ख़ुद से बात कर रहा हो ‘अभी बस चार घंटे पूर्व ही तो मैं शोबना और बच्चों के माथे पर चुम्बन दे कर शुभ-रात्री कहते हुए ड्यूटी पर आया था और अभी अभी मेरी शोबना ने फ़ोन पर बताया कि हमारी इमारत में आग लग गई है. ओह! मेरा परिवार सातवें मंज़िल पर है आग छठें मंज़िल पर लगी है. माई गॉड! छठे मज़िल पर ही तो वे तमाम ख़ाली फ़्लैट हैं जो खस्ताहाल है जिनकी वायरिंग वगैरह उखड़ी पड़ी है जिनमें रहना ग़ैर-कानूनी है. पर काउँसिल आँखें मूँदे हुए है. बिल्डिंग में न तो आग बुझानेवाले यंत्र लगे है न ही पानी छिड़कनेवाले फौहारे. तमाम ग़रीब माइग्रैंट परिवार कीड़ों-मकोड़ों की तरह यहाँ बसे हुए हैं. प्लीज़, मुझे जल्दी से जल्दी घटना स्थल पर पहुँचना है ताकि मैं अपने परिवार को बचा सकूँ. ओह गॉड! शोबना बता रही थी कि बिजली चली गई है तो फिर लिफ़्ट कैसे चलेगी…..फिर उन्हें बचाया कैसे जाएगा…. ’ अभी सचिन यह प्रलाप कर ही रहा था कि शोबना का फोन फिर आया, ‘सचिन, मुझे ख़तरे का आभास हो रहा है. प्लीज़ हमें बचा लो. धुआँ फर्श के सुराखों और दरवाज़ों के नीचे से और तेज़ी से अंदर आने लगा है. जिया और सिया खाँस रही हैं.’
‘मेरी जान! उपाय सोचो, उपाय! फायर स्केप… ओह गाँड! उसकी तो सीढ़ियाँ टूटी हुई हैं. और वह दूसरे किनारे पर है.’ वह जल्दी से बोला ‘तुम फ़ौरन बच्चों को लेकर बाथरूम में चली जाओ और बच्चों को नाक, मुँह और आँख पर रखने को फ्लैनेल भिगो कर देना और सुनों बाथटब पानी से भर लेना. तौलिए गीले कर के सुराख़ों को ढँक देना. बच्चों को गीले तौलिए और चादरों में लपेट दो. धीरज रखो मेरी जान. मैं फायर-ब्रिगेड और पुलिस से बात कर चुका हूँ. प्लीज़..प्लीज़…वे तुम तक जल्दी ही पहुँच रहे हैं.’ और वह पागलों की तरह टैक्सी से उतर कर लाल और नीली पट्टियों को तोड़ते हुआ आग लगी इमारत की ओर फायर ब्रिगेडों, पुलिस कारों और ऐम्बुलेन्सों के बीच चिल्लाता हुआ भागा, ‘बचाओ! बचाओ! मेरी पत्नी और बच्चे 71 नम्बर के फ्लैट के बाथरूम में आग और धुएँ में घिर गए हैं. ’ उसने एक फायर मैन को झकझोरते हुए कहा, ‘प्लीज़…प्लीज़ मेरी पत्नी और बच्चों को बचाओ.’
‘वे बेडरूम से बाथरूम में कैसे पहुँच गए. अभागे!. हम तो बार बार लाउडस्पीकर से घोषणा कर रहें हैं कि आप लोग जहाँ है वहीं रहें. बेडरूम से अधिकतर लोगो को निकाला जा चुका है. अब दक्षिणी हवा चल रही है. बाथरूम की तरफ़ से लोगो को बचाना मुश्किल है पर हम को कोशिश करते हैं.’
‘ओह! ओह!’ कहते हुए सचिन खुद को संभाले शोबना से लगातार बातें करता, उसे धीरज बँधाता रहा, ‘जान! हिम्मत रखो, फ़ायर ब्रिगेड के जवान सीढ़ियाँ लगा रहे हैं. दमकल पानी के तेज़ बौछारों से इमारत की दीवारों को भिगोता जा रहा है. आग पर नियंत्रण हो रहा है. फायर ब्रिगेड के जवान तुम सबको बचा लेंगे.’ पर ख़तरे की गहरी गंध, घबराहट और भय के कारण शोबना की आवाज़ सिसकियों में रुंध रही थी, बच्चों के खांसियों और रोने- चिल्लाने की आवाज़ तेज़ होती जा रही रही थी. शोबना हिम्मत न हारते हुए भी हिम्मत हार रही थी. धुआँ उसके और बच्चों के फेफड़ों में घुस रहा था. सिया बेहोश हो चुकी थी. शोबना बुरी तरह खांस रही थी और फिर सचिन का संपर्क उससे टूट गया था. सचिन ‘हैलो, हैलो’ करता रहा पर शोबना का फोन ‘डेड’ हो चुका था.
तभी हवा के बहाव में बदलाव आया आग की लपटें सित्कारिया भरती तेज़ी से सातवीं मंज़िल के दीवारों और खिड़कियों की ओर बढ़ती एक झटके में आग की लाल-पीली लपलपाती जिह्वा सातवें मंज़िल को तेज़ी से निगल गई. सचिन पागलों की तरह चिल्ला रहा था, ‘उधर- उधर उस खिड़की के अंदर मेरी शोबना और मेरे बच्चे हैं. उन्हें बचा लो…. प्लीज़.’ फ़ायर ब्रिगेड के नौजवानों के तमाम कोशिशों के बावजूद सातवें मंजिल के बाथरूम से स्ट्रेचर पर युगों में बीते एक घंटे बाद शोबना और बच्चों की देह कंबल में लिपटी बाहर आई. शोबना का बाया हाथ स्ट्रेचर में से बाहर लटक रहा था जिसमें वह चाँदी का ब्रेसलेट अभी भी पड़ा हुआ था जो उसने उसे पिछले जन्मदिन पर उसे दिया था. शोबना का सुनहरा देह झुलस कर काला और चितकबरा हो रहा था. सचिन चीखा यह मेरी पत्नी है और उसके पास जाने की कोशिश की, पर सदमें से बेहोश हो, वह वहीं ढेर हो गया. शोबना के साथ उसका सर्वस्व जल गया.
जब सचिन को होश आया तो नर्स ने बड़ी हमदर्दी और अफ़सोस के साथ उसे बताया कि वे उसकी पत्नी और छोटी बच्ची को नहीं बचा सके किंतु तौलिए के कई परतों में लिपटी उसकी बड़ी बेटी पानी के टब में गिर जाने के कारण शायद जिंदा है किंतु अभी वह भयंकर मानसिक आघात और तेज़ तापमन के कारण सदमें में है. उसकी शारीरिक और मानसिक स्थिति चिंताजनक है. उसे इंटेन्सिव केयर में रखा गया है. नर्स सचिन को आई. सी.यू में ले गई जिया बिस्तर पर निर्जीव पड़ी थी उसका सुनहरा रंग धुएँ के कारण काला हो रहा था जिस पर नर्स ने मरहम लगा दिया था.
अब तक शोबना के पिता जिगनेश और माँ फिलिप्पा भी आ गए थे. कानूनी कार्यवाही के लिए जब सचिन से कहा गया कि वह आकर अपनी पत्नी और अपनी बच्ची के शवों का शिनाख़्त कर उन्हें क्रिया-कर्म के लिए ले जाए तो वह टूट गया और फूट फूट कर रोने लगा. जोगनेश ने उसकी हालत देख कर कहा, धीरज रखो सचिन मैं शोबना और सिया के देह का शिनाख़्त कर शव गृह में रखवा देता हूँ.
एक हफ़्ते बाद शव-दाह की तिथि मिली. सचिन अभी भयंकर सदमें में था. उसे रोज़ सेडिटिव का इंजेक्शन दिया जा रहा था. शव-दाह तो होना ही था किसी तरह यह कार्य शोबना के माता पिता ने ख़ुद को संभालते हुए सादगी से कर दिया.
अवसाद और नैराश्य से पीड़ित सचिन अपने आप को संभाल नहीं पा रहा था और एक रात उसने नींद की ढेरों गोलिया खा लीं, वह तो फिलिप्पा कुछ सामान लेने के लिए कमरे में गई तो वैलियम की ख़ाली बोतल देख कर शंकित हो उठी और एम्बुलेंस को फ़ोन कर दिया. अस्पताल ने सचिन को बचा लिया पर उसका शोक, उसका दर्द और अपनी प्रिया शोबना और बेटी को खोने का दुःख कम न हुआ. समाज सेविकाएँ उसकी काउँसिलिंग करती रहीं.
अस्पताल के इंटेन्सिव केयर में जिया आश्चर्यजनक रूप से स्वास्थ्य लाभ कर रही थी. सचिन को जब पता चला कि जिया बच गई है, ज़िंदा है और बार बार उसे पुकार रही है तो उसमें न जाने कहाँ से ऐसी जीवन शक्ति आई कि वह दौड़ा दौड़ा जिया के पास पहुँच गया और उसे सीने लगा लगा कर रो पड़ा, ‘मेरी बच्ची, मैंने तुम्हारी ममी और बहन को खो दिया मैं तुम्हारा अपराधी हूँ. पर तुम…तुम बेटी जिया, मेरी शोबना की निशानी, मेरे पास हो, मेंरी जान. मैं तुम्हें नहीं खोउँगा. तुम सदा मेरे पास रहोगी. जिया उससे चिपटती हुई बोली, ‘सॉरी डैडी मैं ममी और सिया को नहीं बचा पाई. मुझे टब में लिटा, ममा सिया को गोद में उठाए, अंतिम समय तक खिड़की से तुम्हें पुकारती रही…डैडी तुम हमें बचाने क्यों नहीं आए. हम तुम्हें बार बार पुकार रहे थे.’ कहते कहते जिया फिर बेहोश हो गई. ‘ओह! जिया मेरी जान, मेरी बच्ची, ममा और सिया कहीं नहीं गई है वे हमारे हृदय में जीवित हैं. हम उनकी याद में रोज़ दिये जलाएँगे……’
उषा राजे सक्सेना
usharajesaxena@gmail.
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