रैफ्लिसिया के फूलः रेणु सहाय/ लेखनी-जुलाई-अगस्त 17


भाग साली,………,………..,…..और जाने कितनी गालियों के साथ जुगनी के कमर पर भरपूर लात का प्रहार करते हुए जोगिन्दर सिंह चिल्लाया.
अबे साला, ……, ………, सब के सब कहाँ मर गए.
लात खा कर जुगनी ख़ुशी के मारे दोनों हाथों से अपना सर खुजलाते हुए हिरणी की तरह कुलांचे भरते हुए अँधेरे में गायब हो गई.
गोपाल, केदार, भीमा. कहाँ मर गए सब के सब. गुस्से में जोगिन्दर सिंह आगबबूला हो रहा था.
जी हुजूर.
हुजूर का बच्चा, भीमा के गा्ल पर एक तमाचा जड़ते हुए जोगिन्दर सिंह ने कहा.
अब मेरा ऐसा दिन आ गया है कि ये…….., ये साली नाली का कीड़ा…….ला कर मेरे सामने परोस दिया. साली पता नहीं बरसों से नहीं नहाई थी. दो हाथ की दूरी से उससे दुर्गन्ध आ रहा था. छूना तो दूर उसके सामने खड़े रहने से घिन आ रही थी.
अब चुप क्या खड़े हो, कुछ बोलते क्यों नहीं ?
हुजूर आज बंदी के कारण शहर जाना मुश्किल था और बस्ती में भी पुलिस की गस्ती चल रही है. अँधेरे में हमने देखा नहीं कि वह कौन है, बस उठा लाये.
हिस्स साला, अपनी बालों को नोचते हुए जोगिन्दर सिंह ने झुंझलाते हुए कहा- अच्छा ठीक है नया वाला बोतल, गिलास सब यहीं ले आओ, और सब भागो यहाँ से. सालों किसी काम के नहीं हो.
जब जोगिन्दर सिंह जैसे दबंगों को मस्ती चढ़ती तो उनके लठैत गाँव से या बाहर से किसी लड़की को उठा लाते और खेत में बने इस कमरे में पटक देते.
जुगनी और उसकी बस्ती के लोगों को सभी जानते हैं कि कितने मैले कुचैले रहते हैं. साल छह महीने पर नहाते हैं. पता नहीं कैसे रह लेते हैं ऐसे ये लोग. उनका जिक्र होते ही लोग बुरा सा मुँह बना लेते हैं. बस्ती क्या है गाँव के लिए बदनुमा दाग है. इसे झोपड़पट्टी अर्थात स्लम कहते हैं. इस बस्ती में तथाकथित सभ्य इन्सान तभी आता है जब इनकी वोट की जरुरत होती है. अपने साफ सुथरे कपडों को बचाते हुए, लोगों से बचते बचाते, नाक पर रूमाल रख कर किसी तरह आता और फिर कभी नहीं आता. जगह जगह छोटे बच्चे शौच करते नजर आयेंगे. और वह पोखर, एक गन्दा सा पानी का तालाब. आधे में जलकुम्भी ने अपना डेरा डाल रखा है. यहाँ की हर बातों के पीछे कोई तर्क होता है जब शौच करने लोग उस पोखर के किनारे बैठते तो ये घने जलकुम्भी उनके लिए पर्दा का काम करते. शायद इस गंदगी को इस वितृष्णा को बनाये रखना उनकी मज़बूरी है. इसी वितृष्णा के कारण शायद जमीन कारोबारियों की नजर से अब तक बचे हुए हैं. वरना इस घर से भी बेघर हो गए होते.
अमावस्या की उस काली अँधेरी रात में भी जुगनी को अपने घर उस फूस की झोपड़ी का रास्ता अच्छी तरह नजर आ रहा था. वह सरपट दौड़ी जा रही थी अपने उस घर की ओर. और सीधे अपने घर पहुँच कर ही दम लिया उसने. अपनी माँ से लिपट कर जोर जोर से रोने लगी.
अरे का हुआ, अईसे काहे रो रही है. अपने को छुड़ाने की कोशिश करते हुए उसकी माँ ने कहा. लेकिन जुगनी माँ को छोड़ने के बजाए और जोर से लिपट गई. जोर लगा कर अपने आप को छुड़ाते हुए, किसी अनहोनी की आशंका से ( जिसका डर इन लोगों को हमेशा रहता है.) उसे भरपूर नजरों से घूरा. सब कुछ ठीक जान कर आश्वस्त होते हुए कहा- हूँ तो आज फिर लाजो से लड़ कर आई है न. हमने तुम्हें भेजा था कि खाना बना कर बाबा को खिला देना. और यह सहेलियों के साथ समय बिता कर अभी आ रही है. चौधरी जी के घर से खाना मिठाई लाये हैं, कुछ खाएगी तो खा ले.
जुगनी ने न में सर हिलाया.
तो जा सो जा. हमको भी नींद आ रही है. बहुत थक गए है. सुबह बात करेंगे.
जुगनी माँ से लिपट कर सोने की कोशिश करने लगी. पर नींद तो उसकी आँखों से कोसों दूर थी. जी में आ रहा था कि माँ को सबकुछ बता दे. फिर लगा कि बता कर क्या होगा. माँ क्या कर लेगी. माँ ही क्यों बाबा, भैया, काका कोई भी क्या कर लेगा. पिछले साल भीखू काका की बहू को ले गए थे तो पूरी बस्ती ने विरोध किया था. नतीजा, सारी बस्ती को उनलोगों ने जला डाला. पुलिस ने रपट तक नहीं लिखा. आज से पच्चीस साल पहले पास की ही बस्ती में जो कुख्यात कांड हुआ था, उसे तो सारा देश जानता है. परन्तु उसमे शामिल सारे अपराधी अदालत से बाइज्जत बरी हो कर शान से रह रहे हैं. और वह बस्ती जो उजड़ा सो आज तक वीरान पड़ा है. माँ को बताएगी तो ज्यादा से ज्यादा वह रोने और दबंगों को गाली देने में उसका साथ दे देगी. फिर इशारों से उसे धीरे बोलने और मुँह बंद रखने की हिदायत देगी. बाबा के कानों में बात गई तो वह कुछ कर तो पाएंगे नहीं और बेबसी में और दारू पी कर चीखे चिल्लाएंगे. आज अगर वह नहा कर मेम साहेब की दी हुई सूट पहन कर सज संवर ली होती तो क्या होता सोंच कर वह सिहर उठी. उसी क्षण वह उठ कर गई और उस सूट को पोखर में फेंक आई.
जुगनी की माँ बस्ती के कई घरों में शौचालय, नालियों की सफाई करने जाती है. कई बार जुगनी भी साथ चली जाती है. अक्सर इन घरों में चाय नास्ता मिल जाता है. चाय पीने के लिए पुरानी टूटी फूटी प्यालियाँ आँगन में रखी होती है जिसे वही लोग बाथरूम के नल पर धो लेती हैं और घर पर काम करने वाली नौकरानी किसी गिलास में चाय ला कर दूर से उन प्यालियों में उड़ेल देती है. माँ जी दूर बैठी ध्यान से देखती रहती हैं. ए, ए, दूर से, दूर से, सटा देगी का.अब जा उस गिलास को अच्छे से मांज ले. उनकी आवाज सुन कर दोनों माँ बेटी थोडा और पीछे सिमट जाती हैं. खाने के लिए भी कागज या पत्ते पर मिलता है. उनके जाने के बाद उस जगह को जहाँ वो बैठी थी, पानी से धुलवाया जाता है. यह माँ बेटी जानती है. जुगनी की माँ को तो जरा भी बुरा नहीं लगता. वह दुनियादार है. यह तो रिवाज है. वो ऊँची जाति के हैं, हम भंगियों से छूत तो मानेंगे ही. ऐसा तो हजारों साल से हो रहा है. लेकिन जुगनी को यह सब बहुत बुरा लगता है. अगर हमारे छूने से इनका धर्म भ्रष्ट होता है तो भीखू काका की बहु के साथ—–, उस समय इनका धर्म भ्रष्ट नहीं हुआ.
तभी तो कहती हूँ, सज धज हमारे लिए नहीं है. उसका तो चरितर ही ख़राब था. देखती नहीं थी कितना सज संवर कर रहती थी.
अरे वाह कुकर्म करें वो और चरितर ख़राब औरत का.
अब चुप बहस मत कर, जिस समाज में पैदा हुई है उस की सीमा में रह.
यह सब सुन कर जुगनी बेचैन हो उठती.

जुगनी को साहेब लोगों के क्वार्टर में जाना बहुत अच्छा लगता है. माँ जब भी वहाँ जाती है वह जरुर साथ में चली जाती है. वह जो नए साहेब आये हैं उनकी पत्नी बड़ी अच्छी हैं. वह अपनी सास के जितना छुआ-छूत भी नहीं मानती. उनकी ये बातें उनकी सास को बिलकुल पसंद नहीं. इसीलिए जब भी ये लोग वहाँ सफाई के लिए जाती हैं, माँ जी सामने कुर्सी लगा कर बैठ जाती हैं. ताकि किसी से कोई चूक न हो जाए.
वह जब भी वहाँ जाती है मेम साहेब को ही देखती रहती है. कितनी सुन्दर लगती है. कितना सज धज कर रहती है. सुन्दर सुन्दर सलवार सूट, कभी साड़ी. एकदम टीवी की हीरोइन जैसा हेयर स्टाइल. चमकीली छोटी सी बिंदी. टीवी की दुकान पर सारे टीवी चला कर छोड़ देते हैं तो वह अक्सर दुकान के बाहर खड़ी हो कर देखती रहती है. .जुगनी का भी मन करता वह भी सजे धजे. एक दिन जुगनी ने उन्हें कह दिया- मेम साहेब आप कितनी सुन्दर हैं.
सुन कर हँसते हुए उसे देख कर आँखे तरेरा, आँ… और तू क्या कम सुन्दर है. अरे जरा नहा धो कर साफ सुथरे कपड़े पहन बाल संवार फिर देख कितनी सुन्दर लगती है. उन दोनों को चाय नास्ता दिलवाती हुई मेम साहेब ने कहा, भूतनी की तरह बालों को नोचती फिरती है.
ना ना मेम साहेब हमलोगों को यह सब शोभा नहीं देता. हम तो ऐसे ही ठीक हैं. जुगनी की माँ ने चौंकते हुए कहा.
अरे इसमें शोभा नहीं देने वाली क्या बात है. नहा धो कर साफ सुथरा कपड़ा पहनना कोई गुनाह है क्या. गंदगी के कारण तुमलोग अक्सर बीमार भी रहते हो. देख तो तेरी बेटी कितनी सुन्दर है.
यही तो गुनाह है मेम साहेब.
अरे ये कैसी बातें कर रही हो.
सही कह रही हूँ . भगवान गरीब के घर में बेटी न दे. अगर दे तो सुन्दर न दे. आप नहीं समझोगी मेम साहेब. ए जुगनी तू जल्दी-जल्दी चाय ख़तम कर, घर जाना है. स्वयं भी जल्दी- जल्दी चाय गटकने लगी. इस बीच मेम साहेब ने अपनी एक सुन्दर सी सलवार सूट ला कर जुगनी को दी.
लो मैंने इसे दो- तीन बार ही पहना है. बिलकुल नई है. बेटे के जन्म के बाद यह मुझे काफी टाइट हो गई और ऐसे ही पड़ी हुई है. तुम पर यह बहुत अच्छी लगेगी.
जुगनी लगभग उसे छीनती हुई ख़ुशी से चीख पड़ी, इतना सुन्दर सूट. पर जुगनी की माँ का चेहरा सख्त होने लगा.
अगली बार आना तो नहा कर साफ सुथरा हो कर, इसे पहन कर आना. और हाँ बाल जरुर संवारना. बोलो आओगी न.
हाँ, हाँ मेम साब.
किन्तु उसका वाक्य पूरा होने से पहलेउसकी माँ उसे खींचती हुई ले गई. चल- चल बड़ी देरी हो रही है.
यह कैसी औरत है. मेम साहेब को बड़ा बुरा लगा. माना गरीब हैं, महंगे कपड़े नहीं खरीद सकते. पर साफ सुथरा रहने में, नहा धो कर जरा सा बाल संवार लेने में क्या खर्च लगता है. जहाँ सारे देश में स्वच्छता अभियान चल रहा हो वहाँ इन जैसे लोग भी हैं. पता नहीं ऐसी सोंच के पीछे क्या मनोविज्ञान होता है. जो भी हो हम और क्या कर सकते हैं.
अम्मा आज हम पोखर में नहाने जा रहे हैं. नहा कर मेम साहेब का दिया हुआ सलवार सूट पहनेंगे. लाजो देखेगी तो जल कर राख हो जाएगी. उनकी बस्ती में एक छोटा सा गन्दा सा तालाब है जिसे ये पोखर कहते हैं. सारी बस्ती के लोगों का खाना- पीना, नहाना धोना, जानवरों को नहलाना, कपड़े धोना सब कुछ इसी पोखर से होता है.
कोई जरुरत नहीं है नहाने और सजने संवरने की. माँ ने आँखे तरेरते हुए कहा.
काहे अम्मा. देख न आज कितनी गर्मी है. पसीना के मारे बदन से बदबू आ रही है. और फिर वह सूट भी पहनने का मन कर रहा है. कितना सुन्दर है न माँ.
कल चौधरी जी के घर शादी है, आज हल्दी है, अभी तीन चार दिन उनके घर साफ सफाई का काम करना होगा. चौधराईन ने बुलवाया है. तू भी चल मेरे साथ. मै अकेले कितना कुछ करुँगी. शादी का घर है. भरपेट खाना और मिठाइयाँ भी मिलेंगी. पैसे तो मिलेंगे ही.
तो अच्छा है न माँ शादी के घर में अच्छे कपड़े पहन कर जाउंगी.
आहा हा …, जैसे तू वहाँ न्योता पर जा रही है कि सज धज कर जाएगी. अरे वहाँ संडास और नालियाँ साफ करने जाना है, चल. उसके हाथ से वह सूट छीन कर कमरे में फेंकते हुए और उसे पकड़ कर खींचती हुई ले गई. रुआंसी जुगनी माँ के पीछे- पीछे चल पड़ी
रात के आठ बज रहे हैं, हल्दी की रस्म होने में अभी देरी है. अभी तो सब का सजना संवरना ही चल रहा है. हंसी-ठिठोली, शोर-शराबा चल रहा है. सामने वाले कमरे में लड़कियां सज रही हैं. जुगनी खिड़की के पास खड़ी हो कर उन्हें देखने लगी. कोई किसी का बाल संवार रही है, कोई किसी को साड़ी पहनने में मदद कर रही है और कोई किसी के लहंगे के दुपट्टे का चुन्नट बना दे रही है. और अंत में सभी एक बोतल के मुहँ पर अंगूठे से दबाती तो फर्र से सुगंध का झोंका बिखर जाता. आहा क्या सुगंध है. जुगनी को यह सब देखने में बड़ा मजा आ रहा है, ऐसा लग रहा है जैसे वह स्वयं सज संवर रही है. तभी एक लड़की की नजर उस पर पड़ी और बुरा सा मुहँ बनाते हुए फटाक से खिड़की बंद कर दिया उसने.
जुगनी तू घर जा. बाबा को खाना दे देना. यहाँ हल्दी होगी, घर के लोग खायेंगे तभी हमलोगों को खाना मिलेगा. बहुत देरी होगी. मै तुमलोगों के लिए मिठाइयाँ ले आउंगी.
ठीक है माँ. और वह भागती हुई घर की ओर जा रही थी कि एक अँधेरे मोड़ पर घात लगा कर खड़े जोगिन्दर सिंह के आदमी उसे उठा कर ले गए. और जोगिन्दर सिंह के सामने उसे पटक कर चलते बने. जोगिन्दर सिंह ने शराब के नशे में आँखे बंद किए हुए ही उसकी बांहों को पकड़ कर अपनी ओर खींचा तो उसके बदन से आ रही दुर्गन्ध के भभके से उसका नशा काफूर हो गया. और जो आँखे खोल कर देखा तो गुस्से में आगबबूला हो उठा. और फिर——–.
उसके बाद जो हुआ उसे याद कर जुगनी को समझ में नहीं आ रहा था कि यह अच्छा हुआ या बुरा, उसे खुश होना चाहिए या दुखी. किन्तु और जो कुछ हो सकता था उसकी कल्पना करके वह सिहर उठी. अर्थात जो कुछ हुआ उसे उपरवाले की कृपा ही समझनी चाहिए. आज उसे समझ में आया कि माँ उसे रोज नहाने और सजने संवरने से क्यों रोकती है. आज वह अपनी माँ की समझदारी और दूरदर्शिता की कायल हो गई. आखिर जिन्दगी का अनुभव है उसे. उसने दुनिया देखी है. आज उसे अपनी माँ के बदन से आने वाली दुर्गन्ध बुरी नहीं लग रही थी. आज उसे समझ में आया कि बस्ती की सभी लड़कियां ऐसे मैली कुचैली क्यों रहती हैं. बालों में जूं भरे हुए, दोनों हाथों से नोचती हुई. जिन्हें देख कर ही वितृष्णा हो जाए. क्यों सब की माएं उन्हें नहाने से रोकती हैं, साफ कपड़ा पहनने, बाल संवारने से रोकती हैं. आज वह भी दुनियादार हो गई.
एक बार जुगनी अपनी माँ के साथ साहेब के घर काम करने गई थी तो साहेब अपने भाई को समझा रहे थे, प्रकृति ने हर प्राणियों एवं वनस्पतियों को भी कुछ न कुछ रक्षात्मक शक्तियां या उपांग प्रदान किए हैं. किसी-किसी जंगल में एक फूल पाया जाता है. रैफ्लिसिया का फूल. यह फूल जब खिलता है तो उससे सड़े मांस के जैसा दुर्गन्ध आता है. अतः जब यह फूल खिलता है तो जहाँ तक इसके दुर्गन्ध का दायरा होता है, वहाँ इन्सान तो क्या पशु पक्षी तक नहीं फटकते. यही उस फूल के लिए सुरक्षात्मक उपांग होता है.
जहाँ अन्य लड़किया गुलाब, जूही, चंपा का इत्र लगा कर सुगंध बिखेरती हैं, जुगनी जैसी लड़कियां रैफ्लिसिया का फूल होती हैं. यही दुर्गन्ध उनके लिए सुरक्षात्मक उपांग होते हैं.

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