कहानी समकालीनः पतझण के बाद – पद्मा मिश्रा/ अगस्त सितंबर 2015

पतझड़ के बाद …

Women
पोस्टमैन बड़ी देर से दरवाजे की घंटी बजा रहा था .शायद रजनी कहीं व्यस्त थी,–घंटी की आवाज सुन दौड़ कर दरवाजा खोला -कोई चिट्ठी थी -गुलाबी लिफाफे में  ..धडकते दिल से  लिफाफा खोला ,पता नहीं किसकी है ?..आज कल ई मेल के ज़माने में -किसने लिखी चिट्ठी  ?जानी  .पहचानी ..स्मृतियों की धुंध में लिपटे ,मोतियों सेअक्षर,,,,अदृश्य दीवारें हटने लगीं ,,,,,एक चेहरा उभरने लगा यादों में—”सुमन ?,,वह गोल मटोल भोला भाला सांवला सौन्दर्य -मानो  मुस्करा उठा –”कैसी हो बुआ?”.मुझे भुला दिया न ?यादों के खजाने में दफ़न मेरी यादों को मुक्त करके मुस्कराओ ना बुआ !..आ रही हूँ ,आपके पास .अपनी माँ के पास।,25 को मेरी शादी है -आपके ही घर से ,समय कम है बस ,तैयारियों में व्यस्त हो जाओ ..मिलूंगी जल्दी ही ”
-”हाँ हाँ .यह अपनी सुमन ही है ,ऐसी ही बातें करती थी  हमेशा ..पगली ”.
रजनी भौंचक थी ,हँसे या रोये ? जिसके खो जाने पर पल पल उसकी यादों में रातों रोई ,वह अचानक यूँ मिल जाएगी –सोचा न था, आँखों से बहते आंसू उस पत्र को  भिंगोते रहे ..वह चुपचाप खड़ी सोच रही थी।।अचानक कंधे पर विपुल का हाथ मह्सूस कर चौंकी –”किसकी चिट्ठी है रजनी ?”…उसने चुपचाप पत्र  बढ़ा दिया -‘वह भी चकरा  कर बैठ गए पलंग पर –”आज इतने वर्षों के बाद !..कहाँ थी वह .किसके पास थी ?..”.पर मन में  उमड़ते घुमड़ते इन सवालों का  जवाब सुमन ही दे सकती थी ..रजनी ने आंसू पोंछ विपुल का हाथ थाम  कहा –”चलिए, समय कम है ,और शादी की ढेर सारी  तैयारियां करनी हैं,गहने- कपडे -बरातियों का स्वागत -पता नहीं क्या क्या !..रजनी का गला रुंध गया था,,……–”यादें उसके आस पास सावन के बादलों की  उमड़ घुमड़ रही थीं —वह  –दिन जब ट्रेन दुर्घटना में मृत उसके भाई भाभी की एक मात्र संतान सुमन को माँ ने उसकी झोली में डाल कहा था–”अब तू ही इसकी माँ है संभल बेटा ,”…
संतान सुख से वंचित रजनी की आँखें बरस उठी थीं   .सुमन को कलेजे से  लगाये ससुराल  लौटी थी  रजनी ..विपुल ने गले से लगा लिया था उस नन्हीं सी जान को, ..बस उसके सास ससुर ने जल्दी उसे नहीं अपनाया पुरानी रुढियों में जकड़े उनके विचारों में इतनी जल्दी बदलाव नहीं आ सकता था,..अपना वंश .अपने खून की चाहत ,वे कैसे भुला देते ?यह बात वे दोनों अच्छी तरह समझ गए थे .पर सुमन के आने से उनका सपना जैसे साकार हो गया था, क्योंकि वे समझ  रहे थे कि  प्यार में बड़ी ताकत होती है ..बस उनके पूरे  घर आँगन में सुमन की किलकारियां –गूंजी नन्हे क़दमों कीआहट से मन का कोना कोना महक उठा,.और जब पहली बार माँ कहा सुमन ने ..तो वह निहाल हो उठी थी ,…..पर न जाने कब बड़ी होती सुमन को उसकी सासु माँ ने यह अहसास करा ही दिया कि वह उसकी सगी माँ नहीं बुआ है, ..पर यह बात उसके बाल मन ने कभी स्वीकार नहीं की थी, वह चुपके से कभी कभी उसे ‘माँ’ पुकार उठती ,..कब सुमन बड़ी हुई,कब स्कूल गई ,और कब डांस प्रतियोगिता में भाग लेकर लौटते
समय ….वह ..क्रूर .. भयानक हादसा ..उसे याद  कर रजनी काँप उठी,–”सहेलियों संग हंसती खेलती सुमन ..जब उनसे अलग होकर  गली के मोड़ पर पहुंची ..तो अचानक शराब
पिए झूमते  झामते  कुछ सिरफिरों की की टोली ने उसे घेर लिया ..वह अकेली .डर कर चीखती -चिल्लाती अपना बचाव करती रही , उनभेड़ियों से ..वे बलिष्ठ थे और उस पर भारी  पड़  रहे थे ,
..वह छोटी सी बच्ची सिंहनी की तरह उनका सामना करती रही …अपना भारी  बस्ता पूरी ताकत से घुमाती  रही –दांतों से काटा …अंततः एक बड़ा  पत्थर उठाकर उनमे से एक के सिर  पर दे मारा   –और भाग आई थी घर ..परन्तु उस बारह वर्षीया किशोरी के अंतर्मन में उस हादसे ने गहरी जड़ें जमा ली थीं ,..रजनी की गोद में रोते सिसकते रात भर कांपती रही सुमन,…ईश्वर ने उसके सहस को नमन कर उसे सुरक्षित बचा तो लिया  था ..पर उसके कोमल मन ने जो घाव  खाए थे ,वे ही नहीं भर पा रहे थे , उसकी सासु माँ ?.कुछ भी अघटित न होने पर भी वे उसे ही दोषी मान रही थी कितने लांछन ..कितने आरोप ..वह बच्ची थी
–क्या जानती थी दुनिया के प्रपंच की बातें, वह घुट रही थी  मन ही मन ,.. कई रातों तक  सोई नहीं थी , न कुछ न पीती …वह चंचल मैना चहकना ही भूल गई थी …  सासु माँ उसे झूठी ..मक्कार न जाने क्या क्या कहतीं रहतीं .और वह चुपचाप अपनी नम आँखों से उन्हें देखती रहती ….विपुल भी माँ से कुछ नहीं बोल पाते थे कि –‘बूढी हैं ,,पुरानी  विचारधारा की हैं ,-एक दिन सब ठीक हो जायेगा ,,,पर वह दिन कभी नहीं आया .और एक रात घर से कहीं चली गई सुमन  ,
रजनी तो जैसे पागल हो गई थी ..विपुल रात भर खोजते रहे उसे ,,,,,,पर सुमन तो जैसे पटल में समां गई थी …रजनी के जीवन की शुन्यता पूर्ण नहीं होपाई  थी वह उसके भाई की भी एकमात्र संतान, उनकी आखिरी निशानी थी ,..उसकी ममता एक बार पुनः पराजित हो गई थी …बाद के वर्षों में सासु माँ नहीं रहीं ,,फिर ससुर जी ,..और वे दोनों अकेले रह गए थे ,धीरे धीरे अकेलेपन की आदत पड़ गई थी ..और सुमन की यादें धुंध में कहीं खो गई ,….!
..गैस पर दूध उबलने  था ,गर्म चाय से उसका हाथ जलते ही वह घबरा कर अपनी तन्द्रा से लौट आई ..आंसू पोंछ शीघ्रता से कार्य निपटाया ,–शाम को खरीददारी की लिस्ट तैयार करने बैठ गई ..अचानक रजनी एक उमंग ..उछाह से भर उठी ,उसकी बेटी की शादी है, ..कौन सा रंग उस पर फबेगा ?..कैसे गहने ख़रीदे ?..कैसी दिखती होगी वह ?…क्या उस पर गुलाबी  रंगअब भी खिलता होगा ? वह मुस्करा उठी .
विवाह से ठीक दो दिन पहले सुमन आ गई थी …सुबह सुबह बड़ी सी काले रंग की गाड़ी का दरवाजा ड्राइवर ने सैल्यूट देकर खोल —”वह धडकते दिल से देख रही थी -एक सांवली -सलोनी युवती –कन्धों तक लहराते बाल …हिरनी सी काली आँखें ..गुलाबी साड़ी में –हाँ हाँ यही है उसकी ‘सुमन ,वही तो थी -बिलकुल वनदेवी की तरह खुबसूरत ….उसने दौड़कर रजनी के चरण स्पर्श किये और गले लग गई –”कैसी हो बुआ ?”..उसकी भी आँखें  उठी थीं फिर विपुल को प्रणाम कर पूछ -पापा कैसे  हैं ?’…….विपुल ने बांहें फैला बेटी को थाम लिया था,,।उसके पीछे दो शालीन ,सज्जन से वृद्ध दम्पति भी थे ..मुस्कराते हुए रानी और विपुल ने उनके पाँव छुए और स्वागत किया ….
रात को गरम काफी पिटे हुए सुमन ने बताया की —”वह भाग कर किस यात्रा के लिए ,,कहाँ बिना सोचे ,,समझे घर सेबाहर निकल आई थी ….
–”दादी माँ ने मुझे धमकाया था कि भाग जा यहाँ से वर्ना वो बुरा हाल करुँगी तेरा कि …उनकी बातें सुन सुन कर पड़ोस वाली मेरी सहेलियां मुझसे बात नहीं करती थीं -और उनकी माँ मेरे साथ उन्हें खेलने से मना करने लगी थीं ,–मै डर  गई थी बुआ –क्या करती ?..आप लोगों को बताने पर भी दादी नाराज होती,,,कहाँजाउंगी,, ,नहीं जानती थी ,बस घर से निकल पड़ी .थी ,रास्ता अँधेरा था और मेरे पीछे कुत्ते भौंकते हुए दौड़ रहे थे –मै उनसे बचने के लिए दौडती दौडती रेलवे स्टेशन तक पहुँच गई -सन्नाटा था ,मै  एक कोयले वाली मालगाड़ी में छुप गई ..रात  भर वहीँ बैठी ,रोती रही थी ,सुबह कोयले की ढुलाई करने वाले मजदूरों ने मुझे देखा तो भौंचक रह गए ,उन्हें देख मै जोर जोर से रोने लगी थी और वे सब मुझे चुप कराते रहे .और मुझे अपने साथ ले गए -खाना खिलाया ,जब मेरा नाम पता पूछा तो भयवश मै कुछ नहीं बोल पाई -मै वापस नहीं आना चाहती थी –.घर, परिवार से दूर रोजी रोटी कमाने आये उन गरीब मजदूरों ने मुझे बेटी की तरह प्यार- दुलार दिया –वे दिहाड़ी पर काम करने वाले मजदूर थे ,कोयला ढोने, रेलवे लाइने बिछाने का काम करने वाले ..मै उनके साथ बहुत दिनों तक रही पर जब उनका काम ख़त्म हो गया तब उन्होंने मुझसे फिर पूछा-बेटा ,अपने घर जाओगी ?पता मालूम हो तो हमें बताओ -हम तुम्हें वहां पहुंचा देंगे ”..पर मेरी चुप्पी से वे विवश थे, मै तो केवल इलाहाबाद का नाम जानती थी, पर घर कहाँ है याद नहीं था, .उन भोले भाले मजदूरों ने मुझे पुलिस के पास नहीं दिया की वे पता नहीं मेरे साथ क्या सुलूक करेंगे या कहीं उन्हें ही
लड़की को अगवा करने के जुर्म में न  फंसा लें ? उन्होंने पड़ोस में रहने वाली दादी माँ रूपा वर्मा के पास भेज दिया था,उनके यहाँ कुछ लड़कियां किराये में रह कर पढ़ती थीं उनके पति फौज में आसाम में कार्यरत थे,अतः उन्होंने मेरे मासूम बचपन को ध्यान में रख प्यार से मुझे भी अपना लिया था, वे निसंतान थी,मुझे अपनी नातिन मानकर पढाया लिखाया ..उनके प्यार दुलार से मै बिखर गई थी और टुकड़ों में अपनी व्यथा उन्हें कह सुनाई ..उन्होंने मेरा हौसला बढाया -कोई बात नहीं  बेटा ..एक दिन योग्य और सक्षम बन कर वापस लौटना ..”आज मै प्रशासनिक सेवा में हूँ माँ ..राजेश मेरा बैचमेट है और दादी माँ का रिश्तेदार भी ,मेरा विवाह मेरे ही सहकर्मी और मेरी पसंद है ..25 ता- को,वे बारात लेकर आयेंगे ” ….मेरी किस्मत अच्छी थी बुआ,.. कि मुझे अच्छे लोग मिले पर मैंने अपने जैसी हजारों लड़कियों को भटकते देखा है अब मै उनके लिए कुछ बड़ा काम करुँगी .मै  उनकी  पीड़ा समझती हूँ ..अगर माँ बाप ,अपने बच्चों को समझते तो इतने लड़कियां आज सड़कों पर नहीं भटकतीं न,बुआ ?..इस दौर में मैंने यह भी सीखा बुआ माँ ..कि सभी पुलिस वाले भी अविश्वसनीय नहीं होते ..मुझे उन लोगों ने बहुत प्यार व् सम्मान दिया है,और आप  लोगों को खोजने  की बहुत  कोशिश की ,पर आप नहीं मिले ,,फिर जब आपका पता चला तो आपसे मिलवाने में एक पल की देरी नहीं की ..की कन्यादान का हक़ तो आपका ही है  ”.फिर प्यार से रजनी की गोद में सिमट बिलख उठी —”मुझे माफ़ कर दो .बुआ -माँ !”
सुमन की बातों पर अविश्वास करने का तो प्रश्न ही नहीं  उठता था ,उसकी सच्चाई उसके आंसू बयांन कर रहे थे, ..रजनी को अपने बेटी पर पूरा विश्वास था ,,काश वह किसी की परवाह नहीं करती और अपनी बेटी के हक़ के लिए माँ से, समाज से लड़ जाती तो ऐसा नहीं होता,..रजनी सोच रही थी –”विकृत रुढियों और अपरिपक्व सोच वाली एक बुजुर्ग महिला ने उसे सड़कों पर भटकने के लिए विवश किया तो –एक परिपक्व  मानसिकता, सुलझे सोच वाली रूपा जी  ने उसे जिन्दगी दी ..”’वह भाव विह्वल हो उठी ,उसने वहीँ  बैठी रूपा जी केआगे दोनों हाथ जोड़ दिए –उन्होंने रजनी को सहारा दिया —”सारा सवाल तो  इसी सोच का है ..हमें समाज  के साथ बदलना ही होगा ,,, हम अपने बच्चों पर अविश्वास करके ही उन्हें मौत की और  धकेलते हैं .”.
रोती  हुई सुमन को बांहों में समेटे रजनी बहुत खुश थी …”आज वर्षों बाद बसंत लौट आया है ..जीवन में अनेक पतझड़ के थपेड़े सहने के बाद  –लौट आया है उसका बसंत …अब ..इसकी कोमल पंखुरियों को मुरझाने से बचाना ही होगा …..!”
–पद्मा मिश्रा

पद्मा मिश्रा
–स्वतन्त्र लेखन, अध्ययन ,अध्यापन
–विधा -कहानी ,कविता,ललित निबन्ध
–अनेक राष्ट्रिय ,स्थानीय पात्र पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित
-कहानी संग्रह –”साँझ का सूरज”
LIG-114,row house ,आदित्यपुर -2,जमशेदपुर-13[झारखण्ड
–09955614581

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