मेरे मित्र एवं ख्याति प्राप्त कहानीकार तथा समीक्षक श्री गोवर्धन यादव जी की प्रेरणा से मुझे माननीय देवी नागरानी जी का कहानी संग्रह ‘प्रांत प्रांत की कहानियाँ’ पढ़ने को उपलब्ध हुआ. अनुवादित कहानियों को पढ़ने की जिज्ञासा प्रारंभ से अंत तक बनी रही, कारण कहानियों का रम्य शब्द विन्यास, उक्ताहट नहीं आने देता. इसी को मैं अनुवादक की सफलता मानता हूँ.
वास्तविकता यह है कि शेक्सपियर, वर्ड्सवर्थ, कीट्स, रोमियो रोलाँ, इरविंग स्टोन, दोस्तोवस्की, चार्ल्स डिकेंस, थॉमस हार्डी आदि महान साहित्यकारों को हम अनुवादकों के माध्यम से ही जानते हैं. अरबी, फारसी और उर्दू के साहित्य का परिचय भी हमें अनुवादकों ने करवाया. साहित्य प्रेमियों को अनुवादकों के प्रति आभारी होना चाहिए. जो स्वयं अच्छे साहित्य का सृजन कर सकते हैं (जिसमें देवी नागरानी जी का नाम भी सम्मिलित करता हूँ) अपनी ऊर्जा बचाकर अनुवाद भी कर रहे हैं, यह विशिष्ट साहित्य सेवा है. दो भाषाओं का ज्ञान और साहित्यिक शब्दावली की नस पकड़ना एक दुरूह कार्य है. अनुवाद करते समय अनुवादक को मूल लेखक की भाषा और बोली के मुहावरों – कहावतों आदि का अनुवाद करने में बड़ी कठिनाई आती है. संप्रेषणीयता और जीवंतता बनी रहे इसके लिए अनुवादक को मानसिक तनाव भी झेलना पड़ता है. हरिवंश राय बच्चन और रांगेय राघव को मैं कुशल अनुवादक मांगता हूँ. अनुवाद करना साहित्यिक दु:साहस है, जिसे देवी नागरानी ने करके दिखाया है.
इन 18 कहानियों को पढ़ते समय मुझे ऐसा नहीं लगा कि मैं अनुवाद पढ़ रहा हूँ, अपितु ऐसा लगा कि हम मूल लेखक को पढ़ रहे हैं. इस कुशलता एवं सिद्धहस्तता के लिए मैं देवी नागरानी जी को हार्दिक बधाई देता हूँ.
मैं सहज कल्पना कर सकता हूँ कि 18 कहानियों का चयन करने के लिए लेखिका को 18 दर्जन कहानियां पढ़नी पड़ी होंगी, जिस के लिए समय और श्रम दोनों लगे होंगे. इस असाध्य कार्य के लिए उन्हें साधुवाद.
‘ ओरेलियो एस्कोबार’ मुझे अपनी परिचित लगी क्योंकि मेरे शहर में भी एक दूसरे की डिग्री का उपयोग करके दंत चिकित्सक बना डॉक्टर हुआ है और वह भी अपने कार्य में दक्ष था. ‘ बारिश की दुआ’ कहानी भी समय की भोगी हुई लगी क्योंकि मेरे घर के आस-पास भी बारिश के समय बहुत परेशानी होती है. मुंशी प्रेमचंद की ‘दो बैलों की कहानी’ की याद आई, जब बिल्ला बिल्ली के प्रेम की कहानी पढ़ी. लगता है फरीदा राज़ी की अन्य कहानियां भी अनुवाद की बाट जोह रही है. इब्ने कँवल की ‘घर जलाकर’ तो आज की सस्ता राजनीति का जनता की सोच पर प्रभाव जताने वाली कहानी है.
सच कहूँ तो 18 कहानीकारों में से मैं केवल खुशवंत सिंह से ही पूर्व परिचित था अर्थात उन्हीं को पढ़ा था. शेष लेखक मेरे लिए अपरिचित थे, उनसे परिचित कराने के लिए देवी नागरानी जी को धन्यवाद.
हमारे इलाके के फल फूलों के स्वाद को हम जानते हैं. पर दूसरे इलाके के फलों में भी माधुर्य होता है उनकी स्पेशल डिश ‘प्रान्त प्रान्त की कहानियों’ के रूप में देवी नागरानी जी ने हमें भेंट की है. हम उनकी इस कृति की सराहना करते हैं और कामना करते हैं कि वे स्वस्थ रहें और सक्रिय रहे.
सुरेंद्र वर्मा, पूर्व प्राचार्य, छिंदवाड़ा(म.प्र.)
M-९१९९२६३४७९९७
कहानी संग्रह:प्रान्त प्रान्त की कहानियाँ, अनुवादक-देवी नागरानी, वर्ष: २०१८, कीमत: रु. ४००, पन्ने, १५०, प्रकाशक: भारत श्री प्रकाशन, 16/119 पटेल गली, सूरजमल पार्क साइड, विश्वास नगर, शाहदरा, दिल्ली-110032, Satish Sharma/ 09999553332, shilalekhbooks@rediffmail.com,