चाँद परियाँ और तितलीः चीन और चमगादड़ -शैल अग्रवाल


बच्चों, यह चीन और चमगादड़ की कहानी इतनी भी डरावनी नहीं कि आप जीना ही भूल जाएँ।
चीन एक दूर देश में रहने वाला व्यापारी था जो बस दिन रात अपने व्यापार और प्रभुता के बारे में ही सोचता और उसी में व्यस्त रहता था।
घर में बस उसकी अंधी पत्नी चमदागड़ ही थी, जो दिनरात उसका घर और माया संभालने में ही उलटी लटकी रहती।
इसके अलावा और कुछ कर ही नहीं पाती थी, बेचारी।
इतने व्यस्त रहते थे दोनों अपने घर-संसार में कि कब सूरज उगा, कब डूबा, होश नहीं था उन्हें। दिन रात तक का भी पता न चलता उन्हें।
अकूत दौलत , शान-शौकत, नाम और पहचान सभी कुछ थे उनके पास सिवाय एक औलाद के।
बहुत पूजा-जतन के बाद उनके घर बेटा हुआ।
चमगादड़ और चीन दोनों की खुशी का ठिकाना न था। चमगादड़ जो ज्यादा कुछ नहीं कर पाती थी उसने मन-ही-मन सोचा अब यह उसके सारे सपने पूरे करेगा। बड़े ही प्यार से माथा चूमकर उसने बेटे का नाम रखा- ‘करो-ना’। पर यह नहीं बताया कि करना क्या है उसे।
बेटे ने भी तुरंत ही पंख फैलाए और उड़ चला श्रवण कुमार की तरह माँ की इच्छा पूरी करने, बिना कुछ सोचे-समझे, बिना कुछ पूछे और जाने कि क्या करवाना चाहती है माँ उससे ।
सबसे पहले धरती के दो चक्कर लगाए ।
फिर हर चीज का जी भरकर जायजा लिया।
हरे-भरे मानवता के सुंदर पेड़ ने उसे बहुत लुभाया। उसकी सुंदरता पे रीझा करोना, आवेश में आकर लगा वह उसे कस-कसकर झकझोरने। और तब फूल पत्तियों से ही, असहाय मानव झर-झरकर गिरने लगे चारो तरफ।
बड़ा आनन्द आने लगा उसे अपने इस अमानवीय खेल में। जोर-जोर से अट्टाहास करके हंसने लगा वह। सारे इन्सान डर गए पर किसी की दर्दभरी चीख, दारुण पुकार, कुछ भी सुनाई नहीं दे रही थी उसे, कुछ ऐसा तीव्र हो चला था उसका उन्माद। वैसे भी, दूसरों का दुःख-दर्द सुनता और समझता कैसे , आधा जानवर जो था। और फिर अब तो अद्भुत शक्तियों से भी भरपूर था वह। हवा से भी तेज गति से कहीं भी पहुंच जाता था और चाहे जिसे मिनटों में पटककर धाराशायी कर देता। चीन और चमगादड़ के उतावले बेटे करोना ने पूरी दुनिया में त्राहि-त्राहि मचा दी। लाखों लोग अपनी जान खो बैठे , उनका आरामदेह संसार नष्ट होने की कगार पर जा पहुँचा।
पूरी दुनिया में त्राहि-त्राहि मच गई, पर मुश्किल यह थी कि इससे लड़ें तो लड़ें कैसे?
दुश्मन मिस्टर इंडिया की तरह से पूरी तरह से अदृश्य था ।
न तो कोई उसे देख ही पा रहा था और ना ही पकड़ फिर मारते कैसे?

जान-जाने के खतरे के डर में लोग घरों में छुप गए। मुँह छुपाकर घर से निकलते। दुनिया की सारी चहल-पहल ही खतम हो गई।
आलम अब यह था कि आदमी तो डर के मारे घरों में बन्द हो चुके थे और जानवर सड़कों पर खुले घूमने को मजबूर, जंगल से बाहर निकल आए। सूनी सड़कों और बाजारों पर अब उन्हें आदमियों का डर नहीं था। पर जानवरों को भी यह सूनापन अच्छा नहीं लग रहा था। चारो तरफ, हर वक्त , जंगल तक में बस आदमियों को ही देखते रहने की आदत जो पड़ चुकी थी उनकी और कोई उन्हें संभाल और खिला-पिला भी तो नहीं रहा था अब।
हारकर जानवरों ने सभा बुलाई ।….
और तब बहुत सोच-विचार के बाद, जानवरों ने निश्चय किया कि इन्सानों के पास एक समझदार दूत भेजा जाए, जो पता लगाए कि कहाँ और कैसे जानवर इन्सानों की मदद कर सकते हैं ।
वे नहीं चाहते थे कि डायनोसौरस की तरह इन्सानों का भी धरती से नामो-निशान मिट जाए ।
इन्सानों की दुनिया में पहले से ही चारोतरफ बदहवाशी का आलम था। कोई जूँ मारने वाली दवा से मरीज ठीक करने में लगा था, तो कोई कीटनाशक पिलाकर।
सभी के लिए समस्या बन चुका था यह कोरोना नाम का दैत्य वह भी अदृश्य, मच्छर से भी सौ गुना छोटा। पकड़ें तो पकड़ें कैसे? जब बड़े-बड़े वैज्ञानिक और सशक्त देश के महाबली नेता भी कुछ नहीं कर पाए तो जानवरों के लिए इन्सानों का यह दुःख मिटा पाना एक असाध्य और विकट प्रयास ही सिद्ध हुआ।
जू का बहादुर चीता जो इन्सानों का हमदर्द था , जब अपने जू कीपर के दुख-दर्द बांटने गया तो खुद इस दैत्य की चंगुल में आ गया। और अब सहमे-सहमे जानवरों को परिस्थिति की सारी भयावता भलीभांति समझ में आ रही थी ।
एक आपदकालीन सभा फिर और बुलाई गई। जिसमें शेर भालू हाथी घोड़ा आदि जैसे बड़े जानवरों के साथ बंदर, हिरन, यहाँ तक कि तोता मैना कबूतर चिड़िया, बड़े छोटे सब जानवर आए। छोटे बड़े जितने भी परवाले पक्षी थे, जो उड़ सकते थे सबको पेड़ पेड़, डाल डाल और कोटर-कोटर से ढूंढ-ढूंढकर बुलाया गया। घोंघा , चींटी और बिच्छू सांप को उनके बिल और बांबियों से जगाकर । सब आए पर चमदागड़ नहीं आए। थे ही नहीं वे वहाँ पर। पर कहाँ गए …बुलबुल ने अपनी मीठी आवाज में सबका ध्यान खींचा, तो सभी सिर खुजाने लगे। वाकई में चमगादड़ वहाँ कहीं नहीं थे। सारा जंगल छान मारा, एक चमगादड़ नहीं मिला किसी को । सबके सब जाने कहाँ उड़ गए थे?
एक और बात जानी समझदार उल्लू ने तभी-करोना तेजी से बढ़ रहा था।
एक की जगह उसकी संख्या अब लाखों में हो चुकी थी। नित-नित वह नए-नए रूप बदलकर जनम रहा था और लोगों को डरा रहा था, बेरहमी से मार रहा था। दिन रात लाखों मर रहे थे पर इस सारी आपदा के बीच भी चीन और चमगादड़ दोनों ही बिल्कुल ठीक थे। उन्हें कुछ नहीं हुआ था…कम-से-कम सुना तो ऐसा ही था।
इस सारे रहस्य का समाधान भी कहीं उनके पास ही तो नहीं ?
और उड़ चले वह कुछ बहादुर पक्षी उस ओर, जहाँ से वह काली आँधी आ रहीथी।…
अचानक वह एक ऐसे देश में जा पहुँचे , जहाँ चारो तरफ चमगादड़ों का चीत्कार था । हजारों नहीं लाखों चमगादड़ झटपटा रहे थे पर उड़ नहीं पा रहे थे और पलपल एक काला धुँआ सा उठ रहा था उनकी हर चीख के साथ जो पल भर में ही वातावरण में तिरोहित हो जाता था। हवा-पानी सब में घुलमिल जाता था। और फिर सांस लेते, पानी पीते हर इंसान को जकड़ लेता , बीमार कर देता था।

इन्सानों को भी चमगादड़ों की तरह असहाय और तड़पने को छोड़ देता था।
अब चारो तरफ सूनी सड़कें बाग-बगीचे थे। लोग डर के मारे घरों में ही छुपे बैठे रहते थे। चारो तरफ से बस लाशें ही निकलकर बाहर आ रही थीं। कहीं यह अंत की शुरुआत तो नहीं?
इसे तो रोकना ही होगा।
सभी ने एक स्वर में प्रतिज्ञा की। और अपनी व दूसरों की आदतें सुधारने की भी कसमें भी लीं।
समस्या की जड़ फिर भी नहीं मिली ।
लग गए बिचारे हवा पानी, खुद इन्सान और इन चमगादड़ों को कैसे साफ किया जाए , इसी उधेड़बुन में। हवा पानी तो साफ हो गए, बच्चों तुमने देखा ही होगा अब फिर से आकाश कितना गहरा नीला और साफ दिखता है। रात में तारे भी खिल-खिलाने लगे हैं चारो तरफ।
पर इस धुँए को कैसे नष्ट किया जाए, किसीकी समझ में नहीं आ रहा, क्योंकि समस्या की जड़ तो मिली ही नहीं थी ।
दोष दें तो किसे दें, पकड़ें तो. किसे पकड़ें- चीन को , चमगादड़ को या फिर माँ से ही अंधे उनके बेटे करोना को !
लग गए सब मिलकर हवा पानी, खुद इन्सान और इन चमगादड़ों को कैसे साफ किया जाए , इसी उधेड़बुन में।
हवा पानी तो साफ हो गए, पर…पर वह धुँआ तो ज्यों का त्यों ही है, इस धुँए को कैसे नष्ट किया जाए,न तो होशियार इन्सान ही कुछ कर पाए हैं और ना ही भोले-भाले जानवर ही!…पर होगा कुछ तो होगा…बुलबुस. चिड़िया , तितली और बगिया के फूलों की महक लेकर उड़ती ताजी हवा अभी भी हारी तो नहीं है…

शैल अग्रवाल


शैल अग्रवाल
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