गीतः मंजरी पांडे

एक छोटी मुलाक़ात ऐसी हुई
उम्र भर के लिये मीत तुम हो गए ।
हर घडी बेवजह गुनगुनाने लगी
ज़िंदगी के लिये गीत तुम हो गए।

राह पर मैं अकेली चली थी मगर
क्या पता था अचानक तुम मिल जाओगे
मन के आकाश पर था अँधेरा घना
चाँद पूनो का बन के तुम खिल जाओगे ।
हार करके भी मैं मुस्कुराने लगी
हार मैं बन गई जीत तुम हो गए ।

एक उम्मीद लेकर तेरे द्वार पर
आ गई मुझको जीने का अहसास दो
लाख सावन झरे पर बुझे ना कभी
मेरे अधरों को वो अनबुझी प्यास दो ।
राग तुम हो गए रागिनी मैं बनी
साज मैं और संगीत तुम हो गए ।

नैन जब ये खुले सामने तुम रहो
नींद आए तो सपने में आते रहो ।
मन के आँगन के मधुबन में तुम हर घडी
इक कली की तरह मुस्कुराते रहो
तुम मेरे मैं तेरी साँस में बस गई
प्राण मैं बन गई प्रीत तुम हो गए ।


काम है मन मेरा कामिनी उसकी मै
घन वो श्यामल मेरा दामिनी उसकी मै ।
रूप श्रृंगार करती औ सजती हूँ मै
नाचता मन मेरा मोरनी उसकी मै ।
लोग देखें तो श्रृंगार देखा करें
आइना मन मेरा मोहनी उसकी मै ॥

छोरा ब्रज का वो छोरी मै बरसाने की
वो रसीला हठीली छबीली हूँ मैं ।
रास रचता है वो उसमे रचती हूँ मै
बन्सरी वो मेरा रागिनी उसकी मै । ।

मुझको ठोकर लगी मन ये आहत हुआ
राह मुझको दिखा साथ मेरे हुआ ।
आँसू बहते मेरे भीगता मन मेरा
“मञ्जरी ” चाँद मन चाँदनी उसकी मै । ।

डॉक्टर मञ्जरी पाण्डेय
संस्कृत अध्यापिका
केन्द्रीय विद्यालय न. -४
डी एल डब्ल्यू ,वाराणसी .

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