नाविक मन/ लेखनी-जून-जुलाई 2015

 

                              नाविक मन

naav 21

एक  मजधार है दो किनारा है,

ना जाने कहाँ मुझे ले जाता मन बेचारा है.

एक आस है दूर मंजिल की,

जल पथ पर बस यही एक सहारा है.

 

 

 

 

naav 21

छूट गए कितने किनारे

मजधार में ये मतवाला है

दुःख सुख को पाट बीच में

चलता हंसमुख ये हिम्मतवाला है.

 

 

 

naav 21

आयी किसी की मंजिल किसी का ठिकाना

उतरे सब जिसको जहाँ था जाना

मैं बैठा चुपचाप नाविक मन के पास

अनजान कि मुझे कहाँ है जाना .

-सुभाष श्याम सहर्ष

मो.  8896045759 9044959301

 

 

 

naav 21

मैं माझी

मझधारों का राजा

पर व्यर्थ

कि साथ नहीं है

” नाव  ”

-राजेश दूबे, गोरखपुर

 

 

 

 

naav 21

उसकी होगी या मेरी होगी

जाने नौका पार कहां होगी

हर बार छला किनारों ने

छिछले ने , मजधारो ने

डूब गयी नौका अपनी

खूब डुबोया पतवारो ने

कसम मांझी की संग न होगी

जाने नौका पार कहां होगी ”

-दिनेश चन्द्र,मुगलसराय

 

 

 

naav 21

पतवारें ना साथ

मौसम का आघात

नाव विवश है

खेवट बिन

पार जा सकती नहीं

पार लगा सकती नहीं

बेबस ये लहरों पे
लेती हिलोरें

नाव विवश है

खेवट बिन

तूफानों से जूझी थी निशि दिन

पलट सकती थी किस्मत इसकी भी

नाव विवश है

खेवट बिन…

 

 

 

 

naav 21

कैसा सपना था वह

जहाँ न कोई नाव

न कोई माझी

ना ही कोई किनारा

बस एक शांत झील थी

और निर्विकार से

बह रहे थे हम

-शैल अग्रवाल

 

 

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