नाविक मन
एक मजधार है दो किनारा है,
ना जाने कहाँ मुझे ले जाता मन बेचारा है.
एक आस है दूर मंजिल की,
जल पथ पर बस यही एक सहारा है.
छूट गए कितने किनारे
मजधार में ये मतवाला है
दुःख सुख को पाट बीच में
चलता हंसमुख ये हिम्मतवाला है.
आयी किसी की मंजिल किसी का ठिकाना
उतरे सब जिसको जहाँ था जाना
मैं बैठा चुपचाप नाविक मन के पास
अनजान कि मुझे कहाँ है जाना .
-सुभाष श्याम सहर्ष
मो. 8896045759 9044959301
मैं माझी
मझधारों का राजा
पर व्यर्थ
कि साथ नहीं है
” नाव ”
-राजेश दूबे, गोरखपुर
उसकी होगी या मेरी होगी
जाने नौका पार कहां होगी
हर बार छला किनारों ने
छिछले ने , मजधारो ने
डूब गयी नौका अपनी
खूब डुबोया पतवारो ने
कसम मांझी की संग न होगी
जाने नौका पार कहां होगी ”
-दिनेश चन्द्र,मुगलसराय
पतवारें ना साथ
मौसम का आघात
नाव विवश है
खेवट बिन
पार जा सकती नहीं
पार लगा सकती नहीं
बेबस ये लहरों पे
लेती हिलोरें
नाव विवश है
खेवट बिन
तूफानों से जूझी थी निशि दिन
पलट सकती थी किस्मत इसकी भी
नाव विवश है
खेवट बिन…
कैसा सपना था वह
जहाँ न कोई नाव
न कोई माझी
ना ही कोई किनारा
बस एक शांत झील थी
और निर्विकार से
बह रहे थे हम
-शैल अग्रवाल
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