चाँद तन्हा है आसमान तन्हा
दिल मिला है कहाँ कहाँ तन्हा
बुझ गई आस छुप गया तारा
थर-थराता रहा धुंआ तन्हा
ज़िंदगी क्या इसी को कहते हैं
जिस्म तन्हा है और जान तन्हा
हमसफ़र कोई गर मिले भी कहीं
दोनों चलते रहे तन्हा तन्हा
जलती बुझती सी रौशनी के परे
सिमटा सिमटा सा एक मकान तन्हा
राह देखा करेगा सदियों तक
छोड़ जायेंगे ये जहां तन्हा
यूं तेरी रह गुज़र से दीवाना-वार गुजरे
कांधे पे अपने रख के अपना मज़ार गुजरे !
बैठे है रास्ते में , दिल का खंडहर सजा कर
शायद इसी तरफ से एक दिन बहार गुजरे !
बहती हुई ये नदिया ,घुलते हुए किनारे
कोई तो पार उतरे ,कोई तो पार गुजरे !
तूने भी हमको देखा , हमने भी तुझको देखा
तू दिल ही हार गुज़रा हम जान हार गुजरे !
आगाज़ तॊ होता है अंजाम नहीं होता
जब मेरी कहानी में वॊ नाम नहीं होता
जब ज़ुल्फ़ की कालिख़ में घुल जाए कोई
राही बदनाम सही लेकिन गुमनाम नहीं हॊता
हँस- हँस के जवां दिल के हम क्यों न चुनें टुकडे़
हर शख्स़ की किस्मत में ईनाम नहीं होता
बहते हुए आँसू ने आँखॊं से कहा थम कर
जो मय से पिघल जाए वॊ जाम नहीं होता
दिन डूबे हैं या डूबे बारात लिये कश्ती
साहिल पे मगर कोई कोहराम नहीं होता
टुकड़े-टुकड़े दिन बीता, धज्जी-धज्जी रात मिली
जिसका जितना आँचल था, उतनी ही सौगात मिली
रिमझिम-रिमझिम बूँदों में, ज़हर भी है और अमृत भी
आँखें हँस दीं दिल रोया, यह अच्छी बरसात मिली
जब चाहा दिल को समझें, हँसने की आवाज़ सुनी
जैसे कोई कहता हो, ले फिर तुझको मात मिली
मातें कैसी घातें क्या, चलते रहना आठ पहर
दिल-सा साथी जब पाया, बेचैनी भी साथ मिली
होंठों तक आते आते, जाने कितने रूप भरे
जलती-बुझती आँखों में, सादा-सी जो बात मिली
-मीना कुमारी
बहुत ही सुंदर ग़ज़लें। … मीना कुमारी जी की कलमकारी। प्रकाशित करने का आभार। । कुछ अन्य नज़्में भी यदि संभव हो तो प्रकाशित करें। …आभार !!