साहित्य की अनुपम दीपशिखा;अमृता प्रीतम
अमृता प्रीतम ( 31 अगस्त 1919—31 अक्टूबर 2005)
* यह अमृता प्रीतम है, अपनी तरह की कलम, किसी से राह न मांगती हुई, किसी के कंधे पर हाथ न धरती हुई,स्वाधीन. उसकी कोई रचना उठा कीजिए-आप कह देंगे कि यह अमृता प्रीतम है. ( प्रभाकर श्रोत्रिय)
* एक बहुमुखी प्रतिभा से भरी, संवेदनशील, विस्तृत फ़लक की मार्मिक सर्जक के उठ जाने का गम पाठक और लेखक समाज को सालता रहेगा. वे जितनी पंजाबी की थीं उतनी ही हिन्दी की थीं. उन्हें मौलिक लेखक की तरह हिन्दी पाठक ने पढा और उनसे अभिभूत हुआ. वे अपनी रचना-देह में इस वक्त भी मौजूद हैं (प्रभाकर श्रोत्रिय)
* अन्त में इतना ही कि वे बीसवीं सदी की पंजाबी की महान “कवियित्री”थीं, जो तब तक याद की जाएंगी, जब तक पंजाबी काव्य रह पायेगा. ( गुरुदयाल सिंह)
* अमृता नहीं रहीं…खबर ने यूँ आक्रान्त किया गोया मेरी पसलियों पर किसी ने हतौडॆ की चोट कर दी हो ( अजीत कौर)
* ये 1957 के अन्तिम दिन थे…..अमृता के कहानी-संग्रह “आखिरी खत” का कवर-डिजाईन बनाना था, अमृता आर्टिस्ट की तलाश कर रही थी. एक सांझे दोस्त ने मुझे इस काम के लिए अमृता से मिला दिया. कवर०डिजाईन भी बन गया और अमृता से मेरी वाकफ़ियत भी. और धीरे-धीरे यह वाकफ़ियत दोस्ती बनने लगी. और दोस्त चलते-चलते हमसफ़र बन गई ( इमरोज)
* अमृता खुद भी खूबसूरत है, ख्याल की भी खूबसूरत थी…उसने मेरी जिन्दगी भी खूबसूरत बना दी.अमृता प्यार ही प्यार है- मैं लफ़्जों में बता नहीं सकूँगा कि उसने मुझसे कितना प्यार किया है. मेरी सोच से भी कहीं ज्यादा….. (इमरोज)
* अमृता प्रीतम एक हसीन अऔरत थीं. उससे भी ज्यादा हसीन साहित्यकार ( कर्त्तारसिंह दुग्गल)
* जितनी सदियाँ पंजाबी नारी लोक गीतों की ओट में छिपकर अपना दुःख सुख बेनाम रुप से गाती रहीं. ओडक बीसवीं शताब्दी में अमृता प्रीतम का चेहरा पंजाब उफ़क पर उदय हुआ. आमृता से पहले पीरो और हरनाम कौर का भी नाम लिया जाता है पर उनकी रचनाएँ अपनी संभावनाओं की संपूर्णता तक नहीं पहुँचतीं ( सुरजीत पातर)
* अमृता प्रीतम पंजाबी साहित्य की एक ऎसी शख्शियत रहीं,जिन्होंने राष्ट्रीय तथा अन्तराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति हासिल कीं. ( करमजीत सिंह)
* एक ऎसा विकास या गति अमृता की कविता में दृष्टिगोचर होता है, जबकि उसके गलपा में बहुत ज्यादा विकास नजर नहीम आता, बाल्कि उसके पहले के कुछ उपन्यास अधिक प्रभावशाली हैं. इसलिए अमृता के बारे में भविष्य में भीऊ भी विशेष चर्चा कविता के आधार पर ही होगी ( सुतिन्द्रसिंह कौर)
* आज अमृता प्रीतम होने का अर्थ है….नरी यातना के इतिहास का विखण्डन और “शब्दार्थ” की बहुलार्थक सांस्कृतिक गरिमा की पुनर्प्रतिष्ठा.
* (कृष्णदत्त पालीवाल)
* अमृता अन्तिम वर्षों तक तक बहुत सक्रीय होकर लिखती रहीं. पंजाबी के युवा पीढी के लेखक-लेखिकाओं के लिए उनका घर किसी तीर्थ से कम नही था. लगभग पांच दशकों तक उनकी छाया बनकर जिए इमरोज किसी समर्पित साथी के जीवन्त उदाहरण हैं (महीप सिंह)
साभार , कृष्ण कुमार यादव की पुस्तक सोलह आने सोलह लोग से
अमृता प्रीतम जी को पढना जैसे दिल की गहराइयों मे डूब कर प्यार के एक एक कतरेलम्हे को जी लेना एक खूबसूरत सफ़र जिंदगी का बिना किसी व्यवधान के -बहुत अच्छा लगता है उनकी कहानियों कविताओं को पढकर। वे मेरी पसंदीदा कवयित्री थीं हार्दिक श्रद्धांजलि