तू अपना इतिहास कहेगा
उदय अस्त में सुख की दुःख की
कभी कमल ने बात नहीं की
कभी पतिंगे ने रो-रोकर पूरी
अपनी रात नहीं की
कभी सूर्य के आ जाने पर
तारों ने क्या आँसू ढाले
वज्राहत होकर क्या बादल ने
सुख की बरसात नहीं की
फिर ऐसा क्यों हुआ कि पगले
तू अपना परिहास करेगा
तू अपने सुख का या दुःख का
शब्दों में इतिहास कहेगा?
कठपुतली
कठपुतली
गुस्से से उबली
बोली- यह धागे
क्यों हैं मेरे पीछे-आगे?
इन्हें तोड़ दो;
मुझे मेरे पाँवों पर छोड़ दो।
सुनकर बोलीं और-और
कठपुतलियाँ
कि हाँ,
बहुत दिन हुए
हमें अपने मन के छंद छुए।
मगर…
पहली कठपुतली सोचने लगी-
यह कैसी इच्छा
मेरे मन में जगी?