वसंत
वही आदर्श मौसम
और मन में कुछ टूटता-सा :
अनुभव से जानता हूँ कि यह वसंत है
बौर
नीम में बौर आया
इसकी एक सहज गंध होती है
मन को खोल देती है गंध वह
जब मति मंद होती है
प्राणों ने एक और सुख का परिचय पाया।
मेरे अनुभव
कितने अनुभवों की स्मृतियाँ
ये किशोर मुँह जोहते हैं सुनने को
पर मैं याद कर पाता हूँ
तो बताते हुए डरता हूँ
कि कहीं उन्हें पथ से भटका न दूँ
मुझे बताना चाहिए वह सब
जो मैंने जीवन में देखा समझा
परंतु बहुत होशियारी के साथ
मैं उन्हें
अपने जैसा बनने से बचाना चाहता हूँ
मत पूछना
मत पूछना हर बार मिलने पर कि ‘कैसे हैं’
सुनो, क्या सुन नहीं पड़ता तुम्हें संवाद मेरे क्षेम का
लो, मैं समझता था कि तुम भी कष्ट में होंगी
तुम्हें भी ज्ञात होगा दर्द अपने इस अधूरे प्रेम का अतुकांत
बढ़िया अँग्रेजी
वह आदमी बोलने लगा
जो अभी तक मेरी बोली बोल रहा था
मैं डर गया
हमारी हिंदी
हमारी हिंदी
एक दुहाजू की नई बीवी है
बहुत बोलनेवाली बहुत खानेवाली बहुत सोनेवाली
गहने गढ़ाते जाओ सर पर चढ़ाते जाओ
वह मुटाती जाए पसीने से गंधाती जाए
घर का माल मैके पहुँचाती जाए पड़ोसिनों से जले
कचरा फेंकने को ले कर लड़े
घर से तो खैर निकलने का सवाल ही नहीं उठता
औरतों को जो चाहिए घर ही में है
एक महाभारत है एक रामायण है
तुलसीदास की भी राधेश्याम की भी
एक नागिन की स्टोरी मय गाने
और एक खारी बावली में छपा कोकशास्त्र
एक खूसट महरिन है परपंच के लिए
एक अधेड़ खसम है जिसके प्राण अकच्छ किए जा सकें
एक गुचकुलिया-सा आँगन
कई कमरे कुठरिया एक के अंदर एक
बिस्तरों पर चीकट तकिए
कुरसियों पर गौंजे हुए उतारे कपड़े
फर्श पर ढंनगते गिलास
खूँटियों पर कुचैली चादरें
जो कुएँ पर ले जाकर फींची जाएँगी
घर में सबकुछ है जो औरतों को चाहिए
सीलन भी और अंदर की कोठरी में पाँच सेर सोना भी
और संतान भी जिसका जिगर बढ गया है
जिसे वह मासिक पत्रिकाओं पर हगाया करती है
और जमीन भी जिस पर हिंदी भवन बनेगा
कहनेवाले चाहे कुछ कहें
हमारी हिंदी सुहागिन है सती है खुश है
उसकी साध यही है कि खसम से पहले मरे
और तो सब ठीक है पर पहले खसम उससे बचे
तब तो वह अपनी साध पूरी करे ।
गुलामी
मनुष्य के कल्याण के लिए
पहले उसे इतना भूखा रखो
कि वह औऱ कुछ सोच न पाए
फिर उसे कहो कि तुम्हारी पहली जरूरत रोटी है
जिसके लिए वह गुलाम होना भी मंजूरर करेगा
फिर तो उसे यह बताना रह जाएगा
कि अपनों की गुलामी
विदेशियों की गुलामी से बेहतर है
और विदेशियों की गुलामी वे अपने करते हों
जिनकी गुलामी तुम करते हो
तो वह भी क्या बुरी है
तुम्हें रोटी तो मिल रही है एक जून।
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