कविता धरोहरःरूमी

 

 रूमीः अंतस्संगीतः अंग्रेजी से अनुवाद देवी नागरानी

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रूमी सूफ़ी दरवेश को पढ़ना एक अलग संसार में विचरना है, अपने आप से जुड़ने का पथ है. उनकी ३००० कावितायें “शम्स दीवान” से पाठकों को अध्यात्मक राह पर ठौर देती है और इस शोर के दौरान एक ख़ामोश संदेश भी देती है जो अंदर में तन्मयता प्रदान कर पाने में पहल करती है।

 

 

1.

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मैं कौन हूँ?

जो मैं ‘मैं’ नहीं,

तो कौन हूँ मैं?

गर मैं वो नहीं जो बात करता हूँ,

तो कौन हूँ मैं?

गर ये ‘मैं’ सिर्फ़ वस्त्र हूँ,

तो कौन है

जिसका मैं आवरण हूँ?

 

 

2.

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तुम मेरे हृदय की रोशिनी हो

और मेरे रूह का सुकून

पर! तुम उलझन पैदा करते हो

क्यों मुझसे पूछते हो

” क्या तुमने दोस्त को देखा है?”

जब तुम्हें अच्छी तरह मालूम है

कि दोस्त देखा नहीं जा सकता. 45

 

 

3.

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तुम दुनिया की दौलत खोज रहे हो

पर सच्ची दौलत तो तुम हो.

अगर तुम्हें रोटी लुभाती है

तुम्हें सिर्फ़ रोटी मिलेगी

जो तुम चाहोगे

वही बन जाओगे. ७२

 

 

4.

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मैं कवि नहीं हूँ

मैं कविता से

अपनी रोज़ी रोटी नहीं कमाता

मुझे अपने ज्ञान पर

शेखी बघारने की ज़रूरत नहीं

कविता तो प्यार का पैमाना है

जो मैं सिर्फ़अपने प्रियतम के

हाथ से स्वीकारता हूँ! १००

 

 

5.

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हर शब्द के साथ

तुम मेरा दिल तोड़ते हो

मेरे चेहरे पर खून से लिखी हुई

मेरी दास्ताँ देख रहे हो!

क्यों मुझे अनदेखा करते हो

क्या तुम्हारा दिल पत्थर का है? १९

 

 

 

6.

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प्रेम

पहले-पहले जब

प्रेम ने मेरे हृदय पर क़ब्ज़ा किया, तब

मेरे रोने की आवाज़ से

पड़ोसी रातभर जागते,

अब

मेरा प्रेम गहरा हुआ है

मेरा रोना थम गया है

जब आग भड़कती है

तो धुआँ ग़ायब हो जाता है. 81

 

 

 

7.

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खामोशी

क्यों तुम खामुशी से इतना डरते हो?

खामुशी हर चीज़ की जड़ है

अगर

तुम उसके ख़ालीपन में घूमोगे

सौ आवाज़ें तुम्हे गरजते संदेश देंगी

जो तुम सुनना चाह रहे हो. 131

 

 

 

8.

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मैं बिना शब्दों के

तुमसे बात करूँगा

सबसे छुपा रहकर

और कोई नहीं,

तुम सिर्फ़ मेरी कहानी सुनोगे

अगर मैं उस भीड़ के बीच में भी कहूँगा.112

 

 

 

9.

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तन्हा न रहोगे

जो तुम प्रियतम को दोस्त बना लोगे

तुम कभी तन्हा न रहोगे

जो तुम लचीला होना सीख लोगे

तुम कभी मायूस न रहोगे

चाँद चमकता है, क्योंकि

वह रात से नहीं भागता

गुलाब महकता है, क्योंकि

उसने काँटों को गले लगाया है 134

 

 

 

10

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लौट कर सो न जाना

शफ़क से पहले की ताज़गी

हर राज़ को समेटे है

वापस लौट कर सो न जाना

ये प्रार्थना का समाँ है

ये माँगने का समाँ है

यही हक़ीकत में तुम्हें चाहिए

वापस लौट कर सो न जाना

जिस ने रचना बनाई है

उसका दरवाज़ा हमेशा खुला रहता है

वापस लौट कर सो न जाना 35

 

 

 

11.

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मैं एक शिल्पकार हूँ

रोज़ नये स्वरूप बनाता हूँ

पर जब मैं तुम्हें देखता हूँ

वे सब पिघल जाते हैं.

मैं एक चित्रकार हूँ

मैं अक्स बनाकर-

उनमें जान फूंकता हूँ

पर मैं जब तुम्हें देखता हूँ

वे सब अदृश्य हो जाते हैं.

ऐ दोस्त! तुम कौन हो

वफ़ादार प्रेमी या फरेबी दुश्मन

तुम वो सब बर्बाद करते हो

जो मैं बनाता हूँ

मेरी रूह तुमसे अंकुरित हुई है

और

उसमें तुम्हारी खुश्बू की महक है

पर तुम्हारे बिन

मेरा हृदय चूर-चूर है

दया करो लौट आओ

या

मुझे यह तन्हा वीराना छोड़ने दो! 15

 

 

 

12.

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अगर तुम खुश्बू को साँसों में नहीं भरते

तो इश्क के गुलज़ार में मत जाओ

अगर तुम अपने आवरण नहीं उतार सकते

तो सच के सरोवर में मत उतरो

जहाँ भी हो वहीं रूको

हमारी राह मत आओ.

ह्रदय से होटों तक एक तार है

जहाँ ज़िन्दगी का तार बुना जाता है

शब्द तार को तोड़ देते हैं

पर

खामुशी में राज़ बोलते हैं. ९६

 

अगर तुम सही काम करना चाहते हो

अपना समस्त ह्रदयउसे दे दो

सिर्फबातकरने सेकुछ नहीं होता

पानी की एकबूँद घर के अंदर

बाहर कीबहती नदी सेबेहतर है. १०७

 

 

 

 

13.

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मोती पाने के लिए

गहरे समुद्र में गोता लगाओ

मोती पाने के लिए

ज़िन्दगी के पानी में प्यासे उतर जाओ. १८०

 

 

 

अनुवाद: देवीनागरानी

पता: ९-डी॰ कॉर्नरव्यूसोसाइटी, १५/३३रोड, बांद्रा , मुंबई ४०००५० फ़ोन: 9987938358

 

 

 

 

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