हास्य व्यंग्यः कृष्ण कन्हैया / अक्तूबर-नवंबर 2015

जन्मदिन
Gunda
 
आज मेरे जन्मदिन पर
शुभकामना नहीं दी, मेरी लुगाई
तो भैया, मेरे आश्चर्य की
परकाष्ठा हो आयी !
पर ग़लती मेरी थी
एक दिन पहले, मैंने ही
28 सितम्बर की महत्ता को
उनको बतलाया था
बड़े-बड़े लोगों का जन्मदिन
इसी दिन को पड़ता है,
उन्हें गिनवाया था I
मसलन-
कंठ-कोकिला लता मंगेश्कर,
शहीद भगत सिंह जी
और
ओलम्पिक विजेता अभिनव बिंद्रा I
शायद तुलनात्मक विवरण ही
इस मुसीबत का कारण रहा होगा
इसीलिये पत्नी के मुह से
‘HBD’ का शब्द नहीं निकल पाया होगा
इस शुभदिन को
पत्नी की बेरुख़ी से
कलेजा मुह को आ गया
मुझ नाचीज़ को
एक क्षण में ही
मेरी औक़ात बतला गया
साहस करके पूछ ही डाला
बतलाओ – क्या है गड़बड़झाला?
पत्नी बोली- ‘ऐ मेरे हमजोली’
इन नामी-गिरामी लोगों के बीच
आपकी अहमियत जैसे
निशाने से भटकी हुई  गोली
उनकी स्पष्ट बयानी
कहती थी मेरी कहानी
मेरी पर्सनालिटी को
ऐसा हल्क़ा बनाया
मुझे अपना ही चेहरा
आईने में भद्दा नज़र आया
उनका बयान था-
लताजी कंठ-कोकिला हैं
मधुर गाती हैं
और लोगों के दिलों को
ठंडक दिलाती हैं
शहीद भगत सिंह ने
अपनी जवानी को
देश पर क़ुर्बान कर दिया
हँसते- हँसते फाँसी के
फंदे पर जान दे दिया
और अभिनव बिंद्रा ने
ओलम्पिक में
भारत का नाम प्रशस्त किया
ताबड़तोड़ गोली दाग कर
पूरे विश्व के बन्दूक़ची को
ध्वस्त किया
आपमें ऐसा क्या है
जिसपर गुमान करूँ
आप जैसे मामूली आदमी का
कैसे मान करूँ
यह बात सुनकर
मेरा चेहरा उतर गया
अपनी काम आँकी गयी क़ीमत पर
ज़मीन में गड गया
पर मेरी कुछ दलीलों ने
इस ग़फ़लत से
मुझे बाहर निकाला
और पत्नी पर प्रहार का
क़रारा जुमला फ़ेंक डाला
मैंने कहा-
लताजी मधुर गाती हैं
जब उन्हें गाने को मिलता है
आपने तो मेरी बोलती बंद कर दी है
मेरे ज़ुबानी तबले से
मूक बोल ही निकलता है
तो गाना क्या ख़ाक़ गाऊँगा
‘जीहजूरी’ में सिर ही तो हिलाऊँगा
और रही भगत सिंह जी की बात
उनकी शहादत को मैं
कैसे काम आँक सकता हूँ
पर आपका यह सेवकराम
दिनभर में अनगिनत बार
शहीद होता है
यह मेरा आपसे वादा है कि
शहीद होकर भी
ज़िंदा रहने का जज़्बा
मुझमें भगत सिंह से
कहीं ज़यादा है
और रही अभिनव बिंद्रा की बात !
तो वह गोली चलाकर
ओलम्पिक में
एक स्वर्ण दिलवाता है
मेरी तरह सीने पर
रोज़ बातों की गोली
कितनी बार खाता है
मेरी दलीलें थी-
इतनी ज़बरदस्त
कि मेरी पत्नी की
हेंकड़ी हो गयी पस्त
अब उनकी सारी
शिक़वे- शिकायतें
फिरसे दूर हो गयी हैं!!!!!
और उनके लिए
मेरी कर्त्तव्य-निष्ठा
फिरसे भरपूर हो गयी हैं !!!!!
कृष्ण कन्हैया, बरमिंघम।

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