दो गीतः सखी सिंह, रमा द्विवेदी/ अक्तूबर-नवंबर 2015

 

 

हो पाए तो,

boating

हो पाए तो मुझे दिला दो
मेरे अच्छे दिन लौटा दो
बीच भँवर में आन फँसी है
जीवन नैया पार लगा दो

 

सपनों की सौगातों के संग सीखे
जीवन जीने के ढंग
पल पल जीना, पल पल मरना
जीवन जैसे लड़ते हैं जंग
हो पाए तो मुझे जिता दो
मेरे अच्छे दिन लौटा दो

 

एक कली मासूम बड़ी थी
टहनी पे सर तान खड़ी थी
शैतान ने जब आ घेरा
सहमी सहमी वहीँ खड़ी थी
हो पाए तो उसे बचा लो
मेरे अच्छे दिन लौटा दो

 

सब के सब रोते फिरते हैं
उठते हैं नीचे गिरते हैं
चार कदम चलना है मुश्किल
पैरों में छाले पड़ते हैं
हो पाए तो पथ दिखला दो
मेरे अच्छे दिन लौटा दो।

– सखी सिंह, ग्रेटर नोएडा , देहली।

 

 

 

अगर प्यार के ये झरोखे न होते

boating

खुदा ने अगर दिल मिलाए न होते
तो तुम ,तुम न होते ,हम ,हम न होते ।
न ये हिम पिघलता न नदियाँ ये बहतीं
न नदियाँ मचलती न सागर में मिलती
सागर की बाँहों में गर समाए न होते
तो तुम ,तुम न होते ,हम ,हम न होते ।

 

न सागर ये तपता न बादल ये बनते
न बादल पिघलते न जलकण बरसते
जलकण धरा में गर समाए न होते
तो तुम ,तुम न होते ,हम ,हम न होते ।

 

न ऋतुएँ बदलती न ये फूल खिलते
न तितली बहकती न भौंरे मचलते
अगर प्यार के ये झरोखे न होते
तो तुम ,तुम न होते ,हम ,हम न होते ।

 

खुदा ने अगर दिल मिलाए न होते
तो तुम ,तुम न होते ,हम ,हम न होते ।

 

-डॉ रमा द्विवेदी ,हैदराबाद

 

 

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