दीपावली’ पर हाइकु
अँधेरी रात
अकेला है जलता
माटी का दिया ।
उजालों में भी
पलते हैं अँधेरे
दीपक तले
रंगोली सजी
हर देहरी द्वार
दीपों के साथ
स्नेह का दीप
खुशियों से भरता
घर -आँगन ।
जिस घर में
नारी का हो सम्मान
लक्ष्मी का वास
लक्ष्मी की पूजा
करता दरिद्र भी
लक्ष्मी न आएं ।
घर – महल
उजास ही उजास
दीवाली रात
झोपड़ी -दीप
जला है रात भर
तम न हटे
कभी न बुझे
आशा का दीप जले
अँधेरे पिए ।
अँधेरी रात
ढिबरी का प्रकाश
जलती रूह ।
उजाले देता
मुफलिसी में जीता
अँधेरे पीता ।
बिकती कला
कौड़ियों के भाव में
मिट्टी के दीये ।
दीये गढ़ता
प्रकाश भरने को
कुम्हार हूँ मैं ।
दिया व बाती
संग -संग जलते
प्रीत निभाते
दीप लघु हूँ
अंधेरो को पीता हूँ
तन्हा जीता हूँ ।
डॉ रमा द्विवेदी
झिलमिल हैं
नेह भरे नयन
दियों के साथ
जगमग ये
घर-आंगन सारे
आपके साथ
आकाशदीप
बन राह दिखाए
एक विश्वास
माटी के दिए
ले आए फिर आज
नेह की जोत
नेहिल दिए
सजे ड्योढ़ी पर
उजास भरे
शैल अग्रवाल