आज अधिरथ को नींद नहीं आ रही थी, दिन भर के कठिन परिश्रम के पश्चात् भोजन कर जब वह पर्यंक पर विश्राम करने जाते थे ,तत्क्षण निद्रादेवी उन्हें अपने अंक में ले लेती थी, रात्रि के तृतीय प्रहर में अधिरथ चिंतामग्न थे …
अधिरथ महा पराक्रमी भीष्म के सारथी थे । उन पर भीष्म का अटूट विश्वास था। प्रजा में भी सारथी अधिरथ का पर्याप्त सम्मान था। वे अपनी पत्नी राधा के साथ अपने भवन में निवास करते थे -अधिरथ और राधा कर्ण के पालक माता पिता थे । कर्ण के लालन पालन में दम्पति ने अपना सारा स्नेह लगा दिया था। वे कर्ण के जैसे सुदर्शन ,वीर ,होनहार पुत्र पर गर्व करते थे ।
अधिरथ अपने संस्कार के कारन कर्ण को सदा मृदुभाषी ,ईमानदार ,और धर्म का पालन करने की शिक्षा देते । अधिरथ का कहना था कि समाज में सम्मान पद से नहीं चरित्र से मिलता है । कर्ण भी अपने पालक माता पिता से प्रेम करता था पर वह महत्वकांक्षी था और अपने पौरुष पर उसे विश्वास था। पिता की भांति वह भी दानी था –
आज राजसभा में कर्ण का अपमान हुआ था। कर्ण को सूतपुत्र कहा गया था और राजकुमारों के साथ प्रतियोगिता के लिए उसे अयोग्य घोषित किया गया था। दुर्योधन ने यदयपि उसे अंग प्रदेश का राजा बना दिया था और उससे कर्ण के अतृप्त मन को तृप्ति मिली थी ,और वह पूर्ण मनोयोग से दुर्योधन का भक्त बन गया था।
–कर्ण के राजा बनने की सूचना पाकर राधा हर्ष से विभोर हो गई थी ,कर्ण भी माँ की प्रसन्नता से आह्लादित था । उसने अधिरथ को भी सूचना दी, वे गम्भीर हो गए -कुछ बोले नहीं।
कर्ण ने पूछा –”पिताश्री क्या आपको मेरी राजा होने से प्रसन्नता नहीं हुई ?”
अधिरथ ने कठिनाई से कहा –”वत्स ,कल्याण हो ”
भोजन के समय राधा ने कहा -”हमारे पूर्व जन्म के पुण्य से हमें यह अवसर मिला है ,मैं राजमाता हो गई हूँ ,–आप अनमने से क्यों हैं ?”
अधिरथ ने कहा –”मुझे भय है कि कर्ण को अधर्म का साथ देना पड़ेगा ”
अधिरथ सोच रहे थे -दुर्योधन हठी हिय -कुचक्री है ,उसने राजा धृतराष्ट्र को पंगु बना दिया है, वह कर्ण का सहयोग पाकर पांडवों पर अत्याचार करेगा -दुर्योधन को कोई नहीं समझा सकता, भीष्म भी प्रतिज्ञा से बंधे हैं हस्तिनापुर के राजसिंहासन की रक्षा करेंगे चाहे उस पर बैठने वाला अँधा हो ,रोगी हो ,या कायर हो ,पता नहीं यह कैसी प्रतिज्ञा है ? मैंने भी भीष्म की आजीवन सेवा की शपथ ली है ऐसी अवस्था में विधवा कुंती और पांडवों का अहित होगा ही -कर्ण को भी मैं बहुत कुछ नहीं कह सकता गांधारी ने कर्ण को बता दिया है कि वह मेरा पुत्र नहीं अपितु अज्ञात कुल शील बालक है -ऐसी अवस्था में मेरे समझने से कर्ण यही समझेगा कि मैं उसकापिता तो हूँ नहीं –उसकी प्रगति से भी अप्रसन्न हूँ ”, सोचते सोचते अधिरथ व्याकुल हो गए, वे उठे -शीतल जल का पान किया फिर –”हे गोविन्द ”कह कर अश्वशाला की परिक्रमा करने लगे – -.
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