चार बालगीत-रामेश्वर कम्बोज हिमांशु


जब खेलने आए बच्चे

जब खेलने आए बच्चे-
हवा चली जी , हवा चली ;तेज चली जी ,तेज चली
टूटे पत्ते , छूटे पत्ते , बिखरे पत्ते ,पत्ते –पत्ते
पत्ते दौड़े ,आगे-आगे
पीछे –पीछे ,हम भी दौड़े
कभी इधर को ,कभी उधर को ,नहीं पकड़ में ,वे आ पाए
हम भी हारे , वे भी हारे आए पास में चुपके- चुपके
अब पकड़ में आए पत्ते ; सबने सभी उठाए पत्ते ।


पार्क

दादा और दादी के संग
रोज पार्क में जाते हम ।
दौड़ लगाते हर कोने में
नहीं पकड़ में आते हम ।
कभी झूलते हैं झूले पर
फूले नहीं समाते हम ।
तितली के पीछे भी दौड़ें
उसे पकड़ ना पाते हम ।


धूप की चादर

घना कोहरा छा जाता है ,ढकते धरती अम्बर ।
ठण्डी-ठण्डी चलें हवाएँ , सैनिक -जैसी तनकर ।
भालू जी के बहुत मज़े हैं-ओढ़ लिया है कम्बल ।
सर्दी के दिन बीतें कैसे ठण्डा सारा जंगल ।

खरगोश दुबक एक झाड़ में काँप रहा था थर-थर ।
ठण्ड बहुत लगती कानों को मिले कहीं से मफ़लर ।
उतर गया आँगन में सूरज बिछा धूप की चादर ।
भगा कोहरा पल भर में ही तनिक न देखा मुड़कर ।

प्यारे पक्षी

पक्षी हमको लगते प्यारे ,
बोली व रंग न्यारे – न्यारे ।

मीठी बोली सूरत काली ,
उड़ती कोयल डाली-डाली ।

फुर्र-फुर्र गौरैया आती ,
चहक-चहककर हमें जगाती ।

हरे पंख चोंच है लाल ,
मिट्ठू तोता खाता माल ।
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