साया बनकर…
साया बनकर साथ चलेंगे इसके भरोसे मत रहना
अपने हमेशा अपने रहेंगे इसके भरोसे मत रहना
सावन का महीना आते ही बादल तो छा जाएँगे
हर हाल में लेकिन बरसेंगे इसके भरोसे मत रहना
सूरज की मानिंद सफ़र पे रोज़ निकलना पड़ता है
बैठे-बैठे दिन बदलेंगे इसके भरोसे मत रहना
बहती नदी में कच्चे घड़े हैं रिश्ते, नाते, हुस्न, वफ़ा
दूर तलक ये बहते रहेंगे इसके भरोसे मत रहना
सच के हक में…
सच के हक़ में खड़ा हुआ जाए ।
जुर्म भी है तो ये किया जाए ।
हर मुसाफ़िर में ये शऊर कहाँ,
कब रुका जाए कब चला जाए ।
हर क़दम पर है गुमराही,
किस तरफ़ मेरा काफ़िला जाए ।
बात करने से बात बनती है,
कुछ कहा जाए कुछ सुना जाए ।
राह मिल जाए हर मुसाफ़िर को,
मेरी गुमराही काम आ जाए ।
इसकी तह में हैं कितनी आवाजें
ख़ामशी को कभी सुना जाए ।
वक़्त तो लगता है
प्यार का पहला खत लिखने में वक़्त तो लगता है
नए परिंदों को उड़ने में वक़्त तो लगता है।
जिस्म की बात नहीं थी, उनके दिल तक जाना था
लंबी दूरी तै करने में वक़्त तो लगता है।
गाँठ अगर लग जाए तो फिर रिश्ते हों या डोरी
लाख करें कोशिश खुलने में वक़्त तो लगता है।
हमने इलाज-ए-ज़ख़्म-ए-दिल तो ढूँढ लिया लेकिन
गहरे ज़ख़्मों को भरने में वक़्त तो लगता है।
नए परिंदों को उड़ने में वक़्त तो लगता है
प्यार का पहला खत लिखने में वक़्त तो लगता है।
मेरी कहानी तेरा फ़साना
सच कहना और पत्थर खाना पहले भी था आज भी है ।
बन के मसीहा जान गँवाना पहले भी था आज भी है ।
दफ़्न हजारों ज़ख्म जहाँ पर दबे हुए हैं राज़ कई
दिल के भीतर वो तहखाना पहले भी था आज भी है ।
जिस पंछी की परवाज़ों में दिल की लगन भी शामिल हो
उसकी ख़ातिर आबोदाना पहले भी था आज भी है ।
कतना, बुनना, रंगना, सिलना, फटना फिर कतना, बुनना
जीवन का ये चक्र पुराना पहले भी था आज भी है ।
बदल गया है हर इक क़िस्सा फानी दुनिया का लेकिन
मेरी कहानी तेरा फ़साना पहले भी था आज भी है ।
हस्तीमल हस्ती
(11-2-46 से 24-6-24)
अनुपम शब्द शिल्पी और भावों के चितेरे
अब बस स्मृति शेष।
लेखनी परिवार की तरफ से भावभीनी श्रद्धांजलि स्वरूप पुनः प्रस्तुत जनवरी-फरवरी अंक से चयनित गजलें।
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