पूरा रास्ता ही रौशनियों से जगर मगर था । रात के 12 बजे के बाद भी घंटों पटाकों की धूम थी। किस बात का जश्न मना रहे हैं हम, भय और असुरक्षा का माहौल, आतंकवाद की समस्या करीब करीब ज्यों की त्यों, विश्व के कई हिस्से जलते हुए और असहाय…जो सुरक्षा और सहायता के लिए आए, वे खुद असुरक्षित या फिर अपहरित और ध्वस्त। डरावनी तस्वीर ही रही विश्व की सन 2016 में…अँधेरी और अवसाद मय जहाँ शत्रु तो शत्रु मित्र पर भी विश्वास करना आसान नहीं था। फिर 2016 की किस उपलब्धि पर इतने खुश हो रहे हैं हम, मनन जरूरी है कि क्या अपेक्षाएँ रखें हम वर्ष 2017 से।
वर्ष की नई शुरुवात तो हुई है पर संकल्प व विचार सब आपस में ही गुत्थम गुत्थ दिखे । पूरे विश्व में ही कई विवादित निर्णय लिए गए । ब्रिटेन का यूरोप संगठन छोड़ने का फैसला बोतल से निकली जीनी की तरह नित नई मुश्किलों का कारण बना हुआ है और आशय चाहे कितने ही नेक हों अमेरिका के नव निर्वाचित भावी राष्ट्रपति की उद्घोषणाएँ पद गृहण करने से पहले ही हलचल मचा रही हैं और विश्व का भरोसा व उम्मीदें डांवाडोल सी दिखती हैं। असुरक्षित इस माहौल में विश्वास और प्रगति की चारो तरफ कमी दिखती है। रूस और चीन की सहायता नीतियों पर विश्व का विश्वास अभी भी उतना मजबूत नहीं। पूरा मिडल ईस्ट और यूरोप अस्थिर है। तुर्की, फ्रांस जर्मनी, सभी अनचाहे आतंकवादी धमाके सह चुके हैं और दुनिया के अस्सी प्रतिशत देशों में यात्राओं के दौरान जान माल की विशेष सावधानी की चेतावनी दी जा रही है। ऐसे में हर सदाशयी के हाथ इस नववर्ष की शुरुवात में बस शांति और सद्भाव की प्रार्थना में ही जुड़े नजर आते हैं। झोपड़ियों को संगमर्रर के महलों में परिवर्तित करने का सपना देखने वाली आँखें अब झोपड़ियों के भी ढहने की आशंका से डरती सी प्रतीत हो रही हैं और भ्रमित जनता के आगे भारत में सरकार प्रतिदिन नीतियाँ बदल रही है। लाइन में लगे लोग परेशान खड़े हैं बैंकों के आगे और घरों में उदास गृहणियाँ हैं, उनका सारा छुपा खजाना अबतक छिन चुका है और नोटों के नाम पर सिर्फ दो हजार के नोट ही हैं, सब्जीवाले, दूधवाले सभी के लिए और किसी के पास इसको भुनाने की चिल्लड़ नहीं। इस नई नीति के प्रति देशवासियों का सारा कौतुहल, सारा उत्साह गायब होता सा दिख रहा है। कई कई विनोद भरी या दुखभरी कहानियाँ चारो तरफ भाप सी जमी हुई हैं और जनता की दूरदृष्टि को अवरुद्ध कर रही हैं।
ऐसे में हर सदाशयी के हाथ इस नववर्ष की शुरुवात में बस शांति और सद्भाव की प्रार्थना में जुड़े नजर आ रहे हैं। झोपड़ियों को संगमर्रर के महलों में परिवर्तित करने का सपना देखने वाली आँखें अब झोपड़ियों के भी ढहने की आशंका से डरती सी दिख रही हैं। हमारे जैसे सभी पर्यटक जो मात्र मौज-मस्ती और मिलने-जुलने की यात्रा पर ही भारत में थे वे भी पूरी तरह से इस नई नोटबंद व्यवस्था के उलझन पूर्ण तंत्र में फंस गए।
भारतीयों के लिए तो परिस्थिति और भी विषम और कष्टकारक थी, जिनके पास काला धन था उन्होंने कई रास्ते निकाल लिए थे और जो गरीब थे वह पहले से भी बदतर थे, फिर भी सब स्वीकारते पंक्तिबद्ध थे क्योंकि निर्णय देश के हित में था और भृष्टाचार के लुरुद्ध था।
प्रगति और शांति की कामना किसे नहीं, परन्तु विश्व पटल पर भी वर्ष 2017 एक तनाव और भय के वातावरण में ही आया है । आतंक वाद का राक्षस देशों की सरहदें पार करता अब पूरे विश्व को ही निगलने के लिए मुंह फाड़ चुका है और यह लड़ाई अब मात्र शांति के लिए नहीं , पूरी मानवता पर आसन्न खतरे की है। आम जनता के साथ-साथ विश्व के सशक्त और सक्षम राज्यों व राजनेताओं को भी अपने-अपने निजी स्वार्थों से ऊपर उठकर , एकजुट होकर ही इससे लड़ना होगा। आर्थिक उन्नति व सहयोग के साथ-साथ सुरक्षा व आत्म संरक्षण किया जा सके सोचने की बात है कि अगर देश न रहे , देशवासी न रहे, किसके लिए उत्पादन होगा और कौन खरीदेगा व कौन बेचेगा ?
भयभीत नहीं स्थितिप्रग्य होने की जरूरत है आज।
लेखनी की तरफ लौटें तो अपने इस 107 वें अंक में हमने बहुत कुछ ऐसा संजोया है जो आपको सोचने पर तो मजबूर करेगा ही, हंसाएगा और रुलाएगा भी , पानी सा गहरे पैठकर तरल कर जाएगा। प्रतिक्रिया देंगे तो दलदल और बाढ़ का खतरा तो नहीं , इसका ध्यान रखा जा सकेगा।
इस अंक के साथ लेखनी अपनी सृजन-यात्रा के 10 वर्ष पूरे कर रही है और लेखनी का मार्च-अप्रैल अंक 11 वें वर्ष का प्रवेशांक है जिसे हमने नव अंकुर और नई संभावनाओं, प्रगति और उपलब्धियों यानी मानवता के बढ़ते कदम पर रखने का मन बनाया है। ‘नया’ व ‘नूतन’ ही विषय है इसका। तो फिर मित्रों देर किस बात की, हो जाएं शुरु और लिखें कुछ विचारोत्तेजक और नया। सदा की भांति आपकी रचनाओं-लेख , कहानी, कविता और विमर्श आदि का इंतजार रहेगा।
नया वर्ष विश्व में और आप सभी के जीवन में सुख शांति व समृद्धि लेकर आए, लेखनी परिवार की ओर से अशेष शुभकामनाएँ।
शैल अग्रवाल