नमनः बाबूजी

।। बाबूजी ।।

सादर, स्मृति स्नेह और भावभीनी श्रद्धांजलि।

1 बाबूजीjpg

 

श्रीनाथ गुप्त

(जन्म- बेसवां 19अगस्त 1915, मृत्यु- वाराणसी 1 अप्रैल 1992)

 

(छायाचित्र वाराणसी , भारत 1978)

 

बिछुड़ते समय

तेज हवा पर सवार
पत्ती को देख समय ने कहा
“रुको, इतनी पुलकित सी
कहाँ उड़ी जा रही हो
तुम्हे तो श्रीहीन और क्लान्त होना चाहिए था
डर नहीं लगता अनजाने उस भविष्य से
दुख नही होता अपनों से बिछुड़ने का ? ”

पत्ती सहमी, थमी, फिर मुड़कर बोली,
” मत उपहास करो मेरे विश्वास का
उस स्नेहिल अतीत का
जिसकी एक-एक शाखा ने
मुझे सींचा और संवारा है
मेरी हर सोच को निखारा है
बिछुड़ते समय बूढे वृक्ष ने कहा था-

‘ मत रोना मेरी लाडली
कर्तव्य पथ के राही
मुड़कर नही देखा करते
जैसे आजतक तेरे लिए जिया हूँ
वैसे ही जिउँगा
तेरी सोच में ,यादों में
साथ-साथ रहूँगा
मूल में अँश
और हर अँश में मूल छिपा होता है
इस तरह से हम दोनो ही अमर हैं।’
प्रेम का बन्धन तो बहुत ही भारी है
जलता रहता है दिया
जब बाती बुझ जाती है।”

 

babuji-1

(छायाचित्रः बाबूजी ब्लैकपूल, इंगलैंड 1975)

अंतिम चित्र

(अंतिम चित्रः वाराणसी, भारत 6 जनवरी 1990
मै , बाबूजी और देवर जी माँ की अंतिम विदा के बाद)

 

1 Comment on नमनः बाबूजी

Leave a Reply

Your email address will not be published.


*


This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

error: Content is protected !!