योग्यता
“गुड मॉर्निंग कैसे हैं”? अशोक जी ने सामने से आते रमेश जी को देख कर कहा
“बस सब बढ़िया है आपकी दुआ से आप के चक्कर पूरे हो गए हो तो पार्क में बेंच पर बैठे कुछ देर”। रमेश जी बोले।
थोड़ी देर बाद दोनों पार्क की बेंच पर बैठे बातचीत में मशगूल थे।
“आपने शर्मा जी की बेटी के बारे में सुना “अशोक जी बोले।
“कौन से ,वह कोने के मकान वाले जिनकी बेटी बैंक में अफसर है ,उन्हें क्या हुआ?” रमेश जी ने पूछा
“हां वही ,हुआ कुछ नहीं, सब ठीक ही है, उनकी उस अफसर बेटी ने अपनी पसंद से अलग धर्म के लड़के से शादी करली है ,वह भी सबकी मर्जी के खिलाफ मुझे तो शर्मा जी पर बहुत तरस आ रहा है अब इस उम्र में बेटी ने उन्हें यह दिन भी दिखा दिया”! अशोक जी ने पूरी बात बताई।
“हां मैंने सुना तो था ,पर मैंने तो यह भी सुना है कि उनका दामाद किसी ऊंचे पद पर नौकरी करता है और स्वभाव का भी बहुत अच्छा है।”रमेश जी बोले
“कितना भी अच्छा हो पर है तो दूसरे धर्म का ,आज तो उस लड़की ने जोश में शादी कर ली है देखना बाद में पछताएगी, ऐसी शादियां ज्यादा दिन नहीं चलती ” अशोक जी ने अपनी राय दृढ़ता से रखते हुए कहा।
“आपको पता है शर्मा जी ने अपनी बेटी की शादी अपनी जाति बिरादरी में किसी छोटे पद वाले लड़के से तय करी थी अब जरा सोचो अफसर लड़की उस निम्न पद वाले लड़के से शादी करके क्या सुखी रहती ,मुझे तो लगता है उनकी बेटी ने ठीक किया शादी के लिए उचित वर के मापदंड में धर्म और जाति से पहले लड़के की शिक्षा और योग्यता की जगह होनी चाहिए तभी जीवन सुखी हो सकता है।” रमेश जी अपनी बात पूरी करके घर जाने के लिए खड़े हो चुके थे।
आज का सत्य
रसोई से सविता के छींखने की आवाजें आ रही थी, मदन चढ़ते हुए कहा “सारा शगुन खराब कर दिया मैं जरा बाहर जा रहा था।”
“सुनो तो सही सुबह-सुबह कहां जाना है पहले मेरी बात सुन ले “सविता की आवाज आई।
मदन ने जाकर देखा तो सविता रसोई घर में जमीन पर बैठे हांफ रही थी।
“अरे यहां क्यों बैठी हो क्या हुआ तुम्हें? चलो उठो,” मदन ने उसकी तरफ हाथ बढ़ाया मगर सविता पीछे सरक गई।
“तुम मुझसे दूर रहो मुझे तेज बुखार है जुकाम भी लग रहा है और गले में दर्द भी हो रहा है हो सकता है मुझे कोरोना होगया हो मैंने पड़ोस वाली डॉक्टर मैडम को फोन पर सब बता दिया है एंबुलेंस आती ही होगी मुझे ले जाने के लिए तुम अपना और घर का ध्यान रखना मेरी वाली गलती मत करना मास्क हमेशा पहन कर रखना”। सविता आगे कुछ बोलती उससे पहले ही एंबुलेंस का सायरन सुनाई देने लगा
मदन ने बेबसी से सविता की तरफ देखा तो सविता की आंखें भी नम थी भरे गले से बोली “घर और अलमारी की चाबी मेज पर है घर में खाने का सामान बहुत है तुम्हें दिक्कत नहीं होगी शायद कल से नौकरानी भी ना आए तुम संभाल लेना। मैं अगर ठीक होकर वापस आ गई तो सब अच्छा ही है मगर अगर ऐसा नहीं हुआ तो तुम मुझे दोबारा नहीं देख पाओगे ,मैंने गलती की है तो मुझे भुगतनी ही पड़ेगी काश मैंने तुम्हारी बात मान ली होती और मास्क पहनने का ध्यान रखा होता”।
सविता जोर जोर से रोने लगी
मदन की भी आंखों में आंसू निकल आए इसी के साथ उसकी नींद टूट गई सपना ही था यह जानकर राहत महसूस हुई नजरें घूमाई तो देखा पास में सविता गहरी नींद में सोई थी।
मास्क है तो जिंदगी है आज यही बात सविता को पक्के से समझानी है, करवा चौथ अगर साथ मनानी है तो मास्क का घुंघट पहनना ही होगा।
नौकरीपेशा
ऑफिस से निकल कर तेज कदमों से चलते हुए स्कूटी तक आई और कुछ ही पलों में तेज़ रफ़्तार से उसकी स्कूटी सड़क पर दौड़ लगा रही थी, दिमाग में बस एक ही बात थी कि उसे अमर से पहले घर पहुंचना है, क्योंकि अगर ऐसा नहीं हुआ तो मनु को अमर के सवालों का सामना करना पड़ेगा … कहां रुक गई थी?,किससे बात कर रही थी?, तुम्हें समय का कुछ ध्यान भी है?, रोज़ इतनी बातें किससे करती हो??
दस सालों से नौकरी करते हुए भी मनु के लिए ये सब हर उस रोज होता था जब अमर उससे पहले घर पहुंच जाता था। दोनों की छुट्टी का समय एक ही है इसलिए कोई भी पहले आ जाता है।
मनु आज तक इंतजार में हैं कि न जाने वो दिन कब आएगा जब अमर की नजरों में “महिला कर्मचारी” से वो “साधारण नौकरीपेशा” बन जायेगी और सवालों की बौछार भी बंद हो जायेगी।
विचारों में उलझी मनु घर पहुंच गई, सीढ़ियां चढ़ कर उपर पहुंची तो दरवाजे पर ताला लटका हुआ था। मनु के चेहरे पर हंसी दौड़ गई।
-डॉ शालिनी गोयल राजवंशी
जोधपुर
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सबसे बड़ा निन्दक
दो मुसाफिर सडक पर पैदल चले जा रहे थे कडी धूप में चलते चलते थक चुके थे अचानक उन्हे सड़क के किनारे एक हरा भरा पेड़ नजर आया और दोनो ने पेड़ के नीचे आराम करना चाहा कुछ देर तरो ताजा होने के बाद वह जाने के लिये उठे तो एक मुसाफिर बोला – . कौन सा पेड़ है भई क्या खाने लाइक फल भी देगा दूसरा मुसाफिर बोला बिलकुल बेकार पेड़ है। न फल देता ना अच्छी लकड़ी ‘ ।
अभी अभी तो आपने मेरी छाया में आराम किया है आप कैसे कह सकते है में सबसे बेकार अनुपयोगी हूं, पेड़ ने कहा । — किसी व्यक्ति का सबसे बडा निंदक उससे सबसे ज्यादा लाभ उठाने वाला व्यक्ति ही होता है
हनुमान
राज्याभिषेक के बाद एक दिन राज्य सभा मे लंका की चर्चा होने लगी हनुमान जी बोले अशोक वाटिका में कमल के फूल लाल रंग के थे तभी सीता जी ने कहा फूल सफेद रंग के थे हनुमान जी जीहट करने लगे ‘ मैने अपनी आंखो से देखा है लाल कमल थे कैसे मानू कि वो सफेद रंग के थे सीता जी कहने लगीं मे इतने दिन अशोक वाटिका में रही रोज ही सफेद कमल देखती थी वे कैसे लाल रंग के हो सकते है । तभी रामचंद्र जी ने विवाद सुलझाते कहा – फूल वाकई सफेद थे पर उस वक्त क्रोध आ रहा था आपको हनुमान आंखो की लाली कमलो पर प्रतिबिंवित होने के कारण कमल लाल दिख रहे थे अपने भीतर जो होता है वही बाहर दिखता है ।
विश्वनाथ तोमर
अप्रत्याशित
दीदी जी! ओ दीदी जी! ज़ोर-ज़ोर से आवाज़ें लगा रहे थे वे घर के गेट पर।
उनकी तीखी आवाज़ें कानों में सीसा सा घोल रही थीं उसके, “इन्हें क्या फर्क पड़ता है, कोई जिए या मरे, इन्हें तो बस अपनी ही चिंता है” बड़बड़ाती हुई अपना ही जी जला रही थी महिमा।
वैसे तो वह कभी ऐसा नहीं सोचती थी, पर जब से उसकी मां का देहांत हुआ था, वह चिड़चिड़ी सी रहने लगी थी।
यूं तो मां की हर सीख विदाई के साथ ही चुनरी की गांठ में बांधकर लाई थी वह। बचपन से ही मां के दिए संस्कार समस्याओं पर अक्षुण्ण तीर से साबित होते।
मां की कही बात रह-रह कर गूंजने लगी थी कानों में, ‘बिटिया ! घर के दरवाज़े से कोई खाली हाथ न जाए , अपनी सामर्थ्य के अनुसार कुछ न कुछ अवश्य देना चाहिए|’
दीदी जी! ओ दीदी जी! आवाज़ें लगातार धावा बोल रही थीं।
“अरे भाई , दे दो इनका दीपावली का ईनाम, वही लेने आए होंगे, हम तो दीपावली नहीं मनाएंगे, पर ये तो हर होली, दिवाली की बाट जोहते हैं न! इन्हें क्यों निराश करना” पति ने आवाज़ पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा।
“दी…दी… जी !! अबकी बार स्वर और तेज़ था ।
उनका स्वर व उसका गुस्सा आपस में मानो प्रतिस्पर्धा पर उतर आए थे।
“आ रही हूं” अलमारी में से पैसे निकाल कर भुनभुनाती हुई चल दी वो गेट खोलने ।
” दीदी जी, हम तो आपका दुख बांटने आए हैं। दिल तो हमारे पास भी है, मां से जुदा होने का दुख हमसे बेहतर कौन जानता है । बस आपको देख लिया , जी को तसल्ली हो गई, भगवान आपका भला करे।” आशीर्वादों की बौछार करते व ताली बजाते हुए, चल दिए वो, अगले घर की ओर।
महिमा की मुट्ठी में नोट व जले कटे शब्द ज़बान में ही उलझ कर रह गए ।
भोज
” ढूंढ, ढूंढ परेशान हो गई मैं! अबकी नौ कन्याएं मिलना मुश्किल हो गई!केवल चार जिमाई …बस ”
नवरात्री में कन्या भोजन पर कन्याओं की कमी से परेशान दादी झुंझला रही थी।
” नसीब अच्छा है दादी आपका,कम से कम चार मिल गयीं…आगे तो कन्या जिमाने की एडवांस बुकिंग करवानी पडेगी ! जब कोख में ही मार देंगे लोग तो कमी तो होगी ही!न भक्ति होगी न शक्ति मिलेगी। मातारानी का प्रकोप होगा ,सो अलग ! ”
दृढनिश्चय
वह लगातार सिगरेट के कश खींच रहा था। एक सिगरेट खत्म होते ही दूसरी जलाता , होठों में दबाता, धुएं के छल्लों में गुम हो रहा था। नौकरी में बढ़ रहे काम के बोझ, दबाव से अवसाद में घिरता जा रहा था। सोफे पर निढाल , अधलेटा बैठा एक बहुराष्ट्रीय कंपनी का विज्ञापन पढ़ रहा था। विज्ञापन उसकी शैक्षणिक योग्यता (प्रोफाइल ) के अनुकूल था। पढ़ते- पढ़ते वह अंतिम पंक्ति तक जा पहुंचा।
अंतिम पंक्ति में लिखा था ” स्मोकर्स नीड नॉट टू अप्लाई ….( धूम्रपान करने वाले आवेदन ना करें ! )
पंक्ति पढ़ते ही उसने सिगरेट को ऐश ट्रे में दबाकर बुझा दिया। सिगरेट के धुएं के छल्ले धीरे-धीरे हवा में विलीन हो रहे थे……. लैपटॉप पर उसकी उंगलियों ने गति पकड़ ली थी।
रेत के दानें
” बेटा , इस बार जन्मदिन पर तुम्हें क्या चाहिये ? ” पिता ने अपने लाड़ले से प्यार से पूछा।
” कुछ नहीं… ”
” यह कैसे हो सकता है ? कुछ तो चाहिये जो तुम मुझसे छुपा रहे हो ! बोलो ! शानदार तोहफ़ा दूंगा। ”
” रहने दीजिये पिताजी , आप नहीं दे पायेंगे ! ”
” क्या ! मैं नहीं दे पाऊंगा ! ”
अपने बंगले की ओर देखते हुए बोले
” यह सब तुम्हारा है , और जो मांगोगे दे सकता हूं…ये दौलत ,शोहरत , इज़्ज़त… सबकुछ तुम लोगों के लिये है !बताओ, क्या खरीदना है ! ”
जवान हो रहे बेटे ने कहा
” खरीदना नहीं है , जन्मदिन आपके साथ मनाना चाहता हूं पिताजी , क्या आप मुझे अपना वक्त़ दे पायेंगे ! ”
पिता की मुठ्ठी से रेत के दानों के मानिंद दौलत ,शोहरत पल भर में फिसलकर ज़मीन पर बिखर गई थी ! वे खुली हथेलियों को ताक रहे थे !
लाइलाज
अस्पताल की लेखा शाखा में दोनों लिपिकों की आपस में चर्चा चल रही थी।
” सरकार ने हर मरीज पर राशि भेजी है ! ”
” अच्छा! कितनी ! ”
” पचास हज़ार प्रति मरीज ।”
” बहुत है! ”
” कुर्सी तन्नक इधर लो …हाँ ऐसे! मरीज तक दस हज़ार का इलाज पहुँच रहे हैं । ”
” बाकी चालीस हज़ार! ”
” मंत्रियों, अफसरों, स्वास्थ्य विभाग के अन्य अधिकारियों की तंदुरुस्ती बनाने में… हेंहेंहें..! ”
” महामारी का पैसा भी ड़कार लेंगे! हद है ! ”
” लालच… लाचारी, महामारी को नहीं देखती! ”
” हाँ मित्र, ये महामारी तो एक समय बाद खत्म हो जायेगी लेकिन भ्रष्टाचार की महामारी…ये लाईलाज है!
वसुधा गाडगिल
वैभव अपार्टमेंट जी – १ , उत्कर्ष बगीचे के पास , ६९ , लोकमान्य नगर , इंदौर – ४५२००९. मध्य प्रदेश.
कोशिश
“राधा, यह क्या हालत बना रखी है? कितनी कमजोर हो गयी हो। चेहरा पीला पड़ा हुआ है।और ये क्या, तुम फिर से गर्भवती……?” डॉ सुधा अपनी प्रिय सहेली की दशा देखकर खिन्न हो गयीं|
“क्या करूं सुधा, मेरे सासु सुसर दोनों ही बीमार हैं। उनकी इच्छा है कि मरने से पहले हम पोते का मुँह देख लें।”
“राधा, तुम पढ़ी लिखी हो। उन्हें समझाओ। तुम तीन बेटियों की माँ हो। अब तुम्हारी शरीरिक क्षमता जवाब दे चुकी है| अतःचौथे बच्चे का जन्म तुम्हारे लिये घातक सिद्ध हो सकता है। और क्या गारंटी है कि अगला बच्चा बेटा ही होगा?”
“सुधा, तुम एक डाक्टर हो अतः ये बातें समझ रही हो।लेकिन वे लोग नहीं समझते।”
“राधा, अपनी बच्चियों को पढ़ा लिखा कर बेहतर इंसान बनाओ।आजकल बेटियाँ भी खूब नाम कमा रही हैं।”
“तुम्हारी बात तो ठीक है।मगर मेरी सुनता कौन है?”
“यार अपने पति को सुना ।अपनी सेहत का वास्ता दे।”
“वह भी मेरी नहीं सुनते। अपने मां बाप के सुर में सुर मिलाते हैं।कहते हैं कि हमारा वारिस तो होना ही चाहिये|”
“यार ये सब दकियानूसी बातें हैं| तू उनको यहाँ लेकर आना, मैं समझांऊंगी कि आजकल बेटे बेटी में कोई फ़र्क़ नहीं रह गया है|”
“कोई फायदा नहीं? पहले तो वे यहाँ आयेंगे ही नहीं। उन्हें अपने बिजिनिस से ही फ़ुरसत नहीं मिलती।”
“फिर तो यार तुझे ही कुछ करना होगा।”
“तुम मेरी डाक्टर होने के साथ मेरी सबसे अच्छी सहेली भी हो , तुम ही बताओ मैं क्या करूं यार?”
“देख राधा, तुझे अपनी आवाज ऊँची करनी होगी क्योंकि तेरे परिवार वाले सब बहरे बने हुए हैं।”
“पर मैं तो अकेली पड़ जाती हूँ। वे तीनों एक ओर हो जाते हैं|”
“तू अकेली नहीं है। तुम भी चार हो। तू अपने साथ अपनी बेटियों की आवाज भी मिला।”
रात को खाने की मेज पर राधा की तीनों बेटियों के फ़्रॉक पर एक संदेश के स्टिकर लगे हुए थे,
“हमें माँ की बलि देकर भाई नहीं चाहिये।”
कच्ची फसल
“माँ, मुझे अभी और पढ़ना है। आप बापू को समझाओ ना। वे इतनी जल्दी क्यों मेरा विवाह करना चाहते हैं?”
“ठीक है बेटी। मैं आज एक बार और कोशिश करके देखती हूँ।“
श्यामा के स्कूल जाते ही, राधा खेत पर मोहन के लिये खाना लेकर पहुँच गयी।
“मैं सोच रही थी कि आज इस गेंहू की फसल को काट लेते हैं। जल्दी से फ़ारिग हो जायेंगे।“
“पगला गयी हो क्या राधा? फसल पकने में वक्त है अभी।“
“क्या फ़र्क पड़ता है, दो चार दिन पहले काट लेंगे तो। मुझे श्यामा को लेकर पीहर जाना है।“
“आज ये कैसी मूर्खों जैसी बातें कर रही हो? तुम तो सदैव एक सुघड़ गृहिणी की तरह फसलों के बारे में मुझे सलाह देती रही हो| अधपकी फसल काटने से बरबाद हो जायेगी। किसी काम की नहीं रहेगी?”
“तुम भी तो कितने बीघे खेत के बड़े किसान होकर एक मामूली सी बात नहीं समझ रहे हो?”
“कौन सी बात?”
“अपनी श्यामा भी तो अभी कच्ची फसल है|”
घर वापसी –
“सौदामिनी , बधाई हो , सुना है तेरी बेटी सुनन्दा वापस आगई |”
“चाची जी, कैसी बधाई ? नहीं आती तो ज्यादा अच्छा था| ”
“क्या बोल रही है, ऐसा क्या होगया? ”
“वो हरामी देवो, मेरी फूल सी छोरी को प्यार का झांसा दे कर भगा ले गया और देह व्यापार कराने वाले गिरोह को बेच कर भाग गया ।पुलिस की रेड पड़ी तो एक साल बाद घर लौटी है ।अब वह किसी की बहिन और बेटी कहलाने लायक नही रही |”
“तू सब्र से काम ले, इसमें तेरा या तेरी बेटी का क्या कसूर? अच्छा एक बात बता, दिवाली पर तेरी सोने की चैन संडास में गिरी थी, तूने उसे निकाल कर गंगाजल से धोकर , शुद्ध कर लिया था। क्या तेरी बेटी इस तरह शुद्ध नही हो सकती? ”
रक्षा बंधन –
“बापू, मैं किसको राखी बांधूंगी? मेरा तो कोई भाई नहीं है|”
लखना की पांच साल की बेटी मोली सुबह से उससे सवाल किये जा रही थी| लखना समझ नहीं पा रहा था कि मोली को कैसे समझाये|
शाम को वह खेतों पर जा रहा था तो फ़िर से मोली वही प्रश्न कर दी|
“आजा, चल हमारे साथ, तुझे तेरे भाई से मिला देता हूं|”
मोली चहकते हुए अपने नन्हे हाथों में चार पांच राखी उठा कर बापू के पीछे चल दी| दोनों खेत पर आ गये|
“बापू, किधर है मेरा भाई?”
लखना ने आम के एक छोटे से पौधे की तरफ़ इशारा करते हुए कहा,”यह रहा तेरा भाई, इसको राखी बांध दे| यह बडा होकर तुझे झूला झुलायगा| तुझे धूप से बचायेगा| तुझे ठंडी छाया देगा| तेरी बकरी को खाने के लिये हरे हरे पत्ते देगा| तुझे मीठे फ़ल देगा| रोटी सेकने के लिये लकडी भी देगा|”
सबसे बडा दुख –
सत्तर वर्षीय राजेश जी के इकलौते बेटे किशोर की मृत्यु पिछले साल एक कार दुर्घटना में हो गयी थी|
पत्नी की मृत्यु किशोर की शादी से पहले ही हो चुकी थी|
अब परिवार के नाम पर राजेश जी और उनकी जवान पुत्र वधू वधु सीमा थी| वह भी बैंक में कार्य रत थी|
जवान किशोर की मौत के सदमे ने दोनों को लगभग मूक बना दिया था| दोनों ही किसी से बात चीत नहीं करते थे| बस यंत्र वत अपने अपने कार्य करते रहते थे|
किशोर की बरसी की रस्म पूरी होते ही राजेश जी ने सीमा को समझाया,”सीमा तुम पढी लिखी, सुंदर, जवान और कामकाजी महिला हो| तुमको अभी भी कोई अच्छा रिश्ता मिल सकता है| मैं सोचता हूं कि अखबार में इश्तिहार दे दूं|”
“नहीं बाबूजी, आपके मन में ऐसा विचार आया कैसे?”
“बेटी, मुझसे तुम्हारा दुख देखा नहीं जाता|”
“बाबूजी, मेरा दुख क्या आपके दुख से भी बडा है| बाप के कंधे पर जवान बेटे की अर्थी दुनियां का सबसे बडा दुख होता है| हम आपको छोड कर कहीं भी नहीं जायेंगे|”
तेज वीर सिंह “तेज”
पुणे – महाराष्ट्रा