17 मार्च 2007 से अबतक 132 अंक और हजार से अधिक समकालीन कवि व लेखक और बड़ी संख्या में धरोहर और कीर्ति स्तंभ में भारत और विश्व के अग्रज लेखक व कवियों को प्रस्तुत करते हुए एक रचनात्मक, खोजभरी और रोचक यात्रा की है लेखनी ई.पत्रिका ने। बहुत कुछ जाना समझा व सीखा है प्रति माह विभिन्न शीर्षकों के तहत हर उम्र और रुचि के पाठकों के लिए सामग्री प्रस्तुत करते हुए।
कम संतोष नहीं कि आज लेखनी के पाठक सूरीनाम, चीन और जापान, वियतनाम व रशिया और अमेरिका से लेकर भारत तक पूरे विश्व में फैले हुए हैं। पाठकों और विद्यार्थियों के आभार पत्र प्रायः मन को असीम सुख और संतोष देते हैं। शांति निकेतन के प्रौफेसर रामचन्द्र रॉय ने लेखनी के संपादकीय की हजारी प्रसाद द्विवेदी के संपादकीयों से तुलना की और जाने माने लेखक रवीन्द्र अग्निहोत्री जी ने लेखनी पत्रिका को धर्मवीर भारती के संपादन में प्रकाशित धर्मयुग व दिनमान के समकक्ष रखा।अधिक न कहकर इतना ही कहूंगी कि सदा सत्य शिव और सुन्दर की स्याही में डूबकर ही उकेरा है लेखनी ने खुद को और गागर में सागर भरने का लघु प्रयास करती आ रही है यह लगातार।
कई-कई मुद्दे उठाए हैं लेखनी ने अपने पिछले अंकों में जिनमें कुछ समाज की मूलभूत और उपेक्षित समस्याएं हैं जैसे शिक्षा, रंगभेद, निर्बलों और अभागों व नारी के प्रति समाज का भेदभाव व दोयम दर्जे का रवैया, टूटती शादी की प्रथा. गरीबी और भ्रष्टाचार , विछोह व मृत्यु, पैसावादी संस्कृति की मानसिक विक्षिप्तता, तो कई विशुद्ध संस्कृति और कला पर केन्द्रित अंक भी आए हैं जिनमें हमने कला सिर्फ कला के लिए रुख अपनाया है ललित व मनोहारी सृजन के साथ। छहों ऋतुओं पर विभिन्न विशेषांक, त्योहारों पर, पर्यटन पर, रामायण पर, लोक संस्कृति पर, सूरज पर, फूलों पर, बादल पर, माँ की ममता पर, वात्सल्य के बदलते स्वरूप पर, शाश्वत प्रेम पर और प्रेम में धोखे और बेवफाई पर और अब इस कठिन समय में करोना पर भी। बाल विशेषांक, हास्य विशेषांक, अनुवाद विशेषांक, नारी विशेषांक, करोना विशेषांक, आदि विभिन्न विषयों को उठाता व रेखांकित करता लेखनी का हर अंक विषयोन्मुख रखने का ही प्रयास रहा है, जिन्हें पाठकों ने खूब खूब सराहा भी है। सामग्री के साथ-साथ लेखनी का प्रस्तुतिकरण व रूप सज्जा भी पाठकों को पसंद आ रही है और यह हमारी मेहनत का बड़ा इनाम है। विद्यार्थी अब इसे संदर्भ कोष की तरह इस्तेमाल करते हैं और साहित्य-रसिकों की विश्राम स्थली बन चुकी है लेखनी।
साहित्य और संस्कारों में रुचि पैदा करना तो उद्देश्य है ही, लेखनी पत्रिका का ध्येय भारत और ब्रिटेन की संस्कृति के बीच सेतु का काम करना भी है। संस्कृतियों को जोड़ना है। यही वजह है कि हमने न सिर्फ विश्व का उत्कृष्ट साहित्य पाठकों तक पहुँचाया है, अपितु भारतीय संस्कृति की अमूल्य विरासत को भी पाठकों, विशेशतः भावी पीढ़ी तक पहुँचाने का प्रयास किया है। हम चाहते हैं कि आप सभी के सहयोग के साथ साहित्य प्रेमी ही नहीं युवा पीढ़ी भी इससे जुड़े ताकि इस शब्दों और अहसासों की विरासत को अक्षुण्ण रखा जा सके।
एक और विशेष बात है कि इस एक सौ बत्तीसवें अंक के साथ हम लेखनी पत्रिका का पंद्रहवाँ जन्मदिन भी तो मना रहे हैं।
महीनों से सोच रही थी-कैसे मनाया जाए लेखनी का यह पंद्रहवाँ जन्मदिन ? क्या कुछ विशेष किया जाए जिससे कि अधिक से अधिक रचनाकार आमंत्रित हो सकें लेखनी के इस उत्स और आनंद में और तब विचार आया कि क्यों न हम इसे लघुकथा विशेषांक कर दें-सौ रचनाकार और पांच सौ के करीब लघुकथाएँ जिनके पहले और आखिरी अंक का जोड़ होता है- 15-यानी कि लेखनी का पंद्रहवाँ जन्मदिन ! और बस तीस सितंबर 2020 की शाम को एक छोटी-सी पोस्ट डाली थी फेसबुक पर… और बस फिर क्या कई लघुकथाओं के कर्मवीर सहर्ष जुड़ते चले गए इस अभियान से। कई नए रचनाकारों का स्वागत कर रही है लेखनी इस अंक में। भार से छलकती आँखों के साथ विशेष धन्यवाद कहना चाहूंगी उन सभी रचनाकारों को जिनका नाम मुख पृष्ठ पर अंकित है। विशेष आभार माधव नागदा जी को जिन्होंने अपनी लघुकथा और आलेख , दोनों से ही लेखनी को समृद्ध किया। सखी और छोटी बहन-सी अनिता रश्मि को,भाई रूप सिंह चन्देल, बलराम अग्रवाल जी और सुभाष नीरव जी को। जोशीले शेख शहज़ाद उस्मानी जी और सुरेश वाहने जी को जिन्होंने तुरंत ही नामकरण करके एक हैश टैग दे दिया था इस अभियान को-ताकि सभी लघुकथाएं एक जगह पर एकत्रित हो सकें, महोत्सव में शामिल हो सकें। मुश्किल यह थी कि दो-दो हैश टैग पंक्तियाँ और नाम जुड़ चुके थे इस अभियान से। मैंने बिना किसी भेदभाव के पहले के साथ जुड़ना उचित समझा। दो जगह संचित हों उसमें भी कोई बुराई नहीं थी। परन्तु हिन्दी और अंग्रेजी दो भाषाएँ, फिर वर्तनी का फर्क …नतीजा यह हुआ कि पांच-छह जगह लघुकथाएँ एकत्रित हुईँ और पिछला पूरा महीना इन प्रत्येक ( मेरी समझ मात्र से प्रत्येक, वैसे तो भलीभांति अनुमान है कि कई रचनाएँ अवश्य छूटी होंगी-उन सभी रचनाकारों से क्षमा याचना सहित) सभी लघुकथाकारों की पांचो दिन की लघुकथाएं एकत्रित करने में ही गुजरा। लेखनी के महोत्सव के लिए उन्हें सजाने संवारने में ही निकल गया। अब यह तैयार अंक आपके हाथों में है और आपकी पसंद-नापसंद की उत्सुकता से प्रतीक्षा कर रहा है । उम्मीद है आपको यह शब्दों की नाव में बैठकर की गई साझी यात्रा उतना ही आनंद देगी, जितना कि मुझे इसे संजोने में सुख मिला। तैयारी का हर पल अद्भुत सृजन सुख में डूबा हुआ था। एक-से बढ़कर एक अनोखी कहानियाँ पढ़ने को मिल रही थीं। जीवन के हर पहलू को समेटे और छूती हुई। सिर्फ नाम ही नहीं, नए-पुराने मित्रों के कई दमकते और प्यारे-प्यारे चेहरे थे आंखों के आगे हर नई लघुकथा के साथ। सच कहूँ तो एक पूरा भरापूरा परिवार है अब 14 वर्षीय लेखनी पत्रिका का। बहुत-बहुत गर्व व आभार भरा अनुभव रहा यह मेरे लिए 117 लेखक और पांचसौ से अधिक लघुकथाओं का साथ। मित्रों, खुद ही पढ़कर बताएं कैसा रहा यह लेखनी का मार्च-अप्रैल लघुकथा विशेषांकः ‘शब्दों की नाव में ‘।
खुशी से छलकती आंखों के साथ सभी प्रिय कवि और लेखक मित्र व सुधी पाठक, आप सभी को धन्यवाद कहना चाहती हूँ इस निरंतर के संग-साथ व सहयोग के लिए। व्यस्त रखते हुए लगातार लिखने, पढ़ने और सोचने की वजह देने के लिए, सकारात्मक सृजन की तरफ प्रेरित करते रहने के लिए। आप हैं तो लेखनी है, मैं हूँ।
जीते-जी तो कलम की यह स्याही ना ही सूखे, इसी प्रार्थना के साथ आइये देखते हैं, क्या-क्या संजोया है हमने आपके लिए इस गागर में सागर-लघुकथा अंक में।
आज जब सच्चाई तक बदल चुकी है , हम करोना युग की नई सच्चाई से वाकिफ हो रहे हैं, तो आँखों के साथ-साथ शब्दों की चौकीदारी व जिम्मेदारी भी कई-कई गुना बढ़ चुकी है। लेखनी की शब्दों की इस नांव में साथ साथ बैठकर जब हम जग और आत्म- अवलोकन की अद्भुत यात्रा पर साथ साथ निकल ही चुके हैं तो हमारा फर्ज बनता है जो दिख रहा है, आसपास घट रहा है उसका न सिर्फ सही दस्तावेज रखें , अपितु खतरों और आने वाली मुश्किलों से भी पाठकों को अवगत कराएं, सुख-दुख की संपूर्ण और पूर्ण अनुभूति संप्रेषित करें। और लघु-कथा औषधि की खुराक की तरह यह काम भलीभांति करती है अपनी छोटी-छोटी मात्रा की तीव्र खुराकों द्वारा। हाथ कंगन को आरसी क्या-पढ़ें और बताएँ किन पांच लघु-कथाओं ने आपको सर्वाधिक छुुआ। निष्पक्ष रूप से मतों के आधार पर विजयी लघु-कथाओं की घोषणा हम अगले अंक में करेंगे। अपने इस लघु-कथा-विशेषांक में देश-विदेश के कई सशक्त लघु-कथाकारों को बहुत गर्व के साथ आपके समक्ष प्रस्तुत कर रही है। इनमें से कइयों को आप पहले भी पढ़ चुके हैं और उनकी कलम व नाम से भलीभांति परिचित हैं तो कइयों का पत्रिका पहली बार लेखनी परिवार में स्वागत कर रही है। परन्तु एक सूत्र सभी को जोड़ती है और वह है कथ्य की सशक्तता। उम्मीद है आपको अंक पढ़ने में भी उतना ही आनंद आएगा जितना कि मुझे संजोने में।
आपकी प्रतिक्रियाओं के इंतजार के साथ, पंद्रहवें जन्मदिन की बहुत बहुत बधाई लेखनी
पुनश्चः लेखनी का आगामी मई-जून अंक ‘खुली हवा में’ यानी यात्रा वृतांत है। कविता कहानी और आलेख आदि भेजने की अंतिम तिथि 15 अप्रैल है-shailagrawal@hotmail.com पर।