अन्तर्राष्ट्रीय पत्रिका ‘लेखनी’ के लिये विशेष रूप से श्रीमती शील निगम जी का साक्षात्कार किशोर श्रीवास्तव द्वारा-
किशोर जी- श्रीमती शील निगम जी,मुख्यत: आप शिक्षा के क्षेत्र में रही हैं और साहित्य से भी जुड़ी रहीं तो यह कैसे संभव हुआ? साहित्य पहले अपनाया या दोनों साथ साथ चलता रहा?
शील निगम- किशोर जी, शिक्षा के क्षेत्र में मैं पच्चीस वर्ष रही.दस वर्ष शिक्षिका और पंद्रह वर्ष प्रधानाचार्या.वह भी अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद. साहित्य यात्रा मेरी बहुत पहले से शुरू हो गई थी.जब मैं कक्षा नौ में पढ़ती थी.मेरा पहला आलेख विद्यालय की पत्रिका में छपा ‘विनय और शील’.यह आलेख नैतिक मूल्यों पर आधारित था.
भावुक मन होने के कारण कविताएँ लिखने लगी.पर ग्यारहवीं कक्षा में ही विवाह हो जाने के कारण घर-बच्चों और पढ़ाई पूरी करने में पूरा समय गुज़रा.
किशोर जी- आपके पति डिफ़ेंस सर्विसेज में थे, ज़ाहिर है साल दो साल में तबादले होते रहे होंगे. तो यह ताल-मेल कैसे बिठाया?
शील निगम- शुरू के दस वर्ष हम लोग साथ रहे पर उसके बाद बच्चों की पढ़ाई के कारण मैं बच्चों के साथ स्थाई रूप से मुम्बई में रही और पतिदेव तबादलों पर एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते रहे.
किशोर जी- आप काफी समय अकेली भी रहीं तो बच्चों की शिक्षा, अपनी नौकरी और घर कैसे मैनेज किया?
शील निगम- मैं करीब चौबीस साल अकेली रही.इस बीच बेटे विनय ने इंजीनियरिंग और एम.एस.सी. इकोनोनिक्स(ऑनर्स) की पढ़ाई की और बेटी गरिमा डॉक्टर बनी.अपनी नौकरी और बच्चों की देख-रेख मैंने अकेले ही की.पतिदेव छुट्टियों में हमारे पास आ जाते थे.
किशोर श्रीवास्तव- काफी समय आप विदेशों में भी रहीं. कौन कौन से देशों में रहीं आप?
शील निगम- बेटा विनय ऑस्ट्रेलिया में बैंकर रहा.अब फायनेंस में है. उसने अपनी टीम के साथ मिल कर फायनेंस से संबंधित करीब चालीस पुस्तकें लिखी हैं.बेटी और दामाद इंग्लैंड में डॉक्टर हैं.करीब सत्रह वर्षों से बच्चों के पास जा कर रहना होता रहा हैं.उनके साथ रह कर हम पति-पत्नी ने बहुत
से देशों की यात्राएँ कीं. जिनमें से प्रमुख हैं- सिंगापुर,ऑस्ट्रेलिया, फ़िनलैंड, इंग्लैंड, मालदीव्स,जर्मनी, फ्रांस, बेलजियम, नीदरलैंड्स आदि.
किशोर जी- यह तो हुई आपकी विदेशों में पारिवारिक यात्राएँ, साहित्य से संबंधित कौन से देश की यात्रा की आपने?
शील निगम- साहित्य से संबंधित कार्यक्रमों में मैं लंदन गई जहाँ मुझे श्री तेजेन्द्र जी के कार्यक्रम में, जो पाँच दिनों का अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन था, ‘हिन्दी गौरव सम्मान’ मिला.
इसके अलावा मैनचैस्टर की VOICE संस्था की ओर से कई बार वार्षिक काव्य गोष्ठियों में भाग लेने का अवसर प्राप्त हुआ. बर्मिंघम और बोल्टन में भी साहित्यिक कार्यक्रमों के कवि सम्मेलनों में काव्य पाठ किया.
किशोर श्रीवास्तव- साहित्य के क्षेत्र में कार्य करते हुए घर परिवार या ससुराल की तरफ़ से कभी कोई परेशानी या बाधा आई कभी?
शील निगम- जी नहीं.कभी नहीं. बल्कि प्रोत्साहन ही मिला. पति और बच्चों के अलावा अब मेरे नाती-पोते भी मेरे लेखन कार्य को सराहते हैं.
किशोर श्रीवास्तव- साहित्य के अलावा आप नाटक, नृत्य, फ़िल्म, टी. वी. सीरियल आदि से जुड़ी रहीं. कैसे संभव हुआ यह सब?
शील निगम- बचपन से ही मुझे नृत्य,नाटक और संगीत का शौक रहा.विद्यालय में हर विधा की प्रतियोगिता में भाग लेती और पुरस्कृत होती थी.यहाँ तक कि विवाह का प्रपोज़ल भी मुझे स्टेज पर देख कर पसंद करके ही दिया गया था. मैं एन.सी.सी. की कैडिट भी रही.
मुम्बई आ कर दूरदर्शन और टी.वी.सीरियल से जुड़ने का मौका मिला.ज़ी टी.वी. के ‘एक्स ज़ोन’ में मेरी कहानियाँ आईं.मराठी की एक फ़िल्म ‘स्पंदन’ का हिन्दी स्क्रीन प्ले लिखा.दूरदर्शन पर भी कई साहित्यक कार्यक्रमों की काव्य-गोष्ठियों में प्रतिभाग, संचालन तथा साक्षात्कारों का प्रसारण किया.
आकाशवाणी के मुंबई केंद्र से रेडियो पर कहानियों का प्रसारण अपनी आवाज़ में किया कुछ कहानियों के नाम हैं- ‘परंपरा का अंत’ ‘तोहफ़ा प्यार का’, ‘चुटकी भर सिन्दूर,’ ‘अंतिम विदाई’, ‘अनछुआ प्यार’ ‘सहेली’, ‘बीस साल बाद’ ‘अपराध-बोध’ आदि .
विद्यालयों में शिक्षण कार्य करने के दौरान बच्चों के साथ काम करने का अवसर मिला.कई नृत्य-नाटिकाएँ लिख कर निर्देशन किया. बच्चों को कठपुतली की भाव-भंगिमाएँ सिखा कर पपेट शो किये.नाटकों का मंचन और स्टेज शो की स्क्रिप्ट लिख कर प्रसारित कीं.इसमें बच्चों को काव्य-पाठ तथा वाद-विवाद प्रतियोगिता के लिये तैयार करना आदि भी शामिल है.मुझे बहुत खुशी मिलती थी जब मेरे द्वारा तैयार किये हुए बच्चे पुरस्कृत होते थे जिनमें मेरे बच्चे भी शामिल थे.
किशोर श्रीवास्तव- आपकी पुस्तकें भी हैं कुछ. कौन सी हैं?
शील निगम- साझा संकलन तो कई छपे जैसे- ‘अनवरत’, ‘मुंबई की कवयित्रियाँ’, ‘चौदह काव्य रश्मियाँ’, ‘प्रेमाभिव्यक्ति’, ‘सिर्फ़ तुम’, ‘मुम्बई के कवि’, ‘कहीं तुम मुझसे झूठ तो नहीं बोल रहे’ आदि.
पुस्तकें हैं- ‘काव्य बीथिका’, ‘मंद मंद मुस्कान’ तथा ‘कथा मंजरी’. बेटे विनय निगम के साथ मिलकर एक उपन्यास ‘टेम्स की सरगम’ का अंग्रेज़ी में अनुवाद भी किया जिसका नाम है-
ROMANCING THE THAMES
किशोर श्रीवास्तव- अब तक की कोई सबसे खास रचना या विचार जिसको पाठकों ने तो बहुत सराहा ही हो आप खुद भी उससे सदा प्रभावित रही हो.
शील निगम- मेरी लिखी कहानियाँ ‘ममता के आँसू’, ‘ज्योति-पुंज’ और ‘सौगात’ पुरस्कृत हुई और सराही भी गई हैं.इसके अतिरिक्त मेरी लिखी लघुकथाएँ ‘ब्लैक ब्यूटी’, ‘मिलन’, ‘मुखौटे’, ‘काठ की हाँडी’, ‘खट्टा-मीठा’ और ‘परिचय’ भी पुरस्कृत हुई हैं.
प्रतिलिपि.कॉम पर मेरे पाठकों की संख्या 594839 है.जो हर सप्ताह बढ़ती जाती है.सबसे ज्यादा कमेंट्स और सराहना मेरी लि़खी ‘ममता के आँसू’ को मिली जिसे अब तक 96621 पाठकों ने पढ़ा.
मेरी सभी रचनाएँ मेरे दिल के करीब होती हैं क्योंकि वे मेरे दिल की आवाज़ होती हैं.इसलिये मैं और मेरे पाठक उनसे प्रभावित होते हैं.
किशोर श्रीवास्तव- शील निगम जी, आपसे मिल कर बहुत अच्छा लगा.आप इसी तरह साहित्य के प्रचार-प्रसार में योगदान देती रहें,ऐसी मेरी शुभकामनाएँ हैं.
शील निगम- आभार किशोर जी.
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वार्ताकारः किशोर श्रीवास्तव
श्री किशोर श्रीवास्तव जी पूर्व केंद्र सरकार में प्रथम श्रेणी अधिकारी रहे हैं.वे महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की लोकप्रिय पत्रिका समाज कल्याण के पूर्व संपादक/कवि, गायक, अभिनेता, कार्टूनिस्ट/कला कर्मी हैं.उन्होंने एम ए, पत्रकारिता में परास्नातक डिप्लोमा तथा संगीत में शिक्षा प्राप्त की. बाल साहित्य सहित 13 पुस्तकें लिखने के अतिरिक्त वे रेडियो तथा टी.वी. के विभिन्न चैनलों पर प्रसारण कार्य में सक्रिय रहते हैं.