हंस के समान दिन
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हंस के समान
दिन उड़ कर चला गया
अभी उड़ कर चला गया
पृथ्वी आकाश
डूबे स्वर्ण की तरंगों में
गूँजे स्वर
ध्यान-हरण मन की उमंगों में
बंदी कर मन को वह खग चला गया
अभी उड़ कर चला गया
कोयल-सी श्यामा-सी
रात निविड़ मौन पास
आई जैसे बँध कर
बिखर रहा शिशिर-श्वास
प्रिय संगी मन का वह खग चला गया
अभी उड़ कर चला गया
अगर चाँद मर जाता
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अगर चाँद मर जाता
झर जाते तारे सब
क्या करते कविगण तब?
खोजते सौन्दर्य नया?
देखते क्या दुनिया को?
रहते क्या, रहते हैं
जैसे मनुष्य सब?
क्या करते कविगण तब?
प्रेमियों का नया मान
उनका तन-मन होता
अथवा टकराते रहते वे सदा
चाँद से, तारों से, चातक से, चकोर से
कमल से, सागर से, सरिता से
सबसे
क्या करते कविगण तब?
आँसुओं में बूड़-बूड़
साँसों में उड़-उड़कर
मनमानी कर- धर के
क्या करते कविगण तब
अगर चाँद मर जाता
झर जाते तारे सब
क्या करते कविगण तब
कोइलिया न बोली
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मंजर गए आम
कोइलिया न बोली
बूटों के अपने
हाथ उठाए
धरती
वसंती-सखी को बुलाए
पड़े हैं सब काम
कोइलिया न बोली
मंजर गए आम
कोइलिया न बोली
पाकर नीम ने
पात गिराए
बात अपत की
हवा फैलाए
कहाँ गए श्याम
कोइलिया न बोली।
मंजर गए आम
कोइलिया न बोली
परिचय की वो गाँठ
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यों ही कुछ
मुस्काकर तुमने
परिचय की वो गाँठ लगा दी!
था पथ पर मैं
भूला भूला
फूल उपेक्षित कोई फूला
जाने कौन
लहर थी उस दिन
तुमने अपनी याद जगा दी।
परिचय की
वो गाँठ लगा दी!
कभी-कभी
यों हो जाता है
गीत कहीं कोई गाता है
गूँज किसी
उर में उठती है
तुमने वही धार उमगा दी।
परिचय की
वो गाँठ लगा दी!
जड़ता है
जीवन की पीड़ा
निष् तरंग पाषाणी क्रीड़ा
तुमने
अनजाने वह पीड़ा
छवि के शर से दूर भगा दी।
परिचय की
वो गाँठ लगा दी!
दुनिया का सपना
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तुम, जो मुझ से दूर, कहीं हो, सोच रहा हूँ,
और सोचना ही यह, जीवन है इस पल का,
अब जो कुछ है, वह कल के प्याले से छलका,
गतप्राय है। किसी लहर में मौन बहा हूँ,
अपना बस क्या। जीवन है दुनिया का सपना,
जब तक आँखों में है तब तक ज्योति बना है।
अलग हुआ तो आँसू है या तिमिर घना है।
बने ठीकरा तो भी मिट्टी को है तपना।
कल छू दी जो धूल आज वह फूल हो गई,
चमत्कार जिन हाथों में चुपचाप बसा है,
ऐसा हो ही जाता है। यह सत्य कसा है
सोना, जिस पर जमे मैल की पर्त खो गई।
पथ का वह रजकण हूँ जिस पर छाप पगों की
यहाँ वहाँ है; मूक कहानी सहज डगों की।
त्रिलोचन
कवि त्रिलोचन को हिन्दी साहित्य की प्रगतिशील काव्यधारा का प्रमुख हस्ताक्षर माना जाता है। वे आधुनिक हिंदी कविता की प्रगतिशील त्रयी ( त्रिलोचन शास्त्री, नागार्जुन, शमशेर बहादुर सिंह) के तीन स्तंभों में से एक थे।