शरीर
– रात में मत जा बेटे। सवेरे चले जाना। जमाना बहुत खराब है।
मसल दिखाया बेटे ने- मुझे क्या होगा? मुझे कुछ नहीं होगा। चिंता मत करो।
– मुझे यह मत दिखा। तू नहीं जानता, चोर-लुटेरों का गढ़ है यह शहर।
– ओह! बापू, कुछ नहीं होगा। कोई भी चोर-उच्चका मेरे पास नहीं फटकेगा, देखना।
उसने फिर से मसल दिखलाई। बापू सर पर हाथ दे बैठ गया। पैसे लेकर बेटा काम से जाना चाह रहा था। चिंता उसे शांति से बैठने नहीं दे रही थी।
– समझता ही नहीं। आजकल चाकू, गोली, बम कब चल जाए, कहना मुश्किल। बड़ा साहसी बनता है।
– बापू, अब बस भी करो। तुम मेरी नहीं, अपनी फिक्र करो। दरवाजा बंद कर सो जाओ। उग्रवादियों का शोर है हर तरफ।
बेटा निकल गया। दूसरे दिन बापू को अचानक खबर मिली, चोरी के इल्जाम में बेटे को थाने में रखा है। वह घबराया हुआ वहाँ जा पहुँचा।
– मेरा बेटा बड़ा शरीफ है। उसने कभी कोई गलत काम नहीं किया है।
– चुप! बड़ा शरीफ की औलाद बना है। यह शरीफ है , तो बदमाश कौन है, बोल।
– झूठ -मूठ का बंद मत करो साहब उसे। हम बहुत गरीब हैं। इसी का एक आसरा है साहब।
– हूँ!….. गरीब हैं? गरीब का ऐसा शरीर होता है? …..ज्यादा चूं – चप्पड़ की ना तो इस उग्रवादी को…।
बापू बेटे से बारंबार जानने की कोशिश करने लगा कि कहीं उसने सच में कोई बदमाशी तो नहीं की है । बेटा बिफर गया। बताया, सुनसान सड़क पर उसके पीछे लुटेरे लग गए। चाकू के बल पर पैसे लूटने लगे थे। वह उनसे भिड़ गया। उसने जैसे ही उन्हें मार भगाया, पुलिस आ धमकी और उसे ही पकड़ लिया।
– मेरा शरीर कसरती है ना बापू, इसलिए कोई विश्वास ही नहीं कर रहा कि…
– ….तेरा यह शरीर……तेरा यह शरीर!
और बापू बेटे के गठीले शरीर को छूता हुआ भरभराकर गिर पड़ा।
समझौता
घर के बगल के, बगल के, बगल में आग लगी, पड़ोसी ने आँखें बंद कर ली। चीख-पुकार मची, उसने कान बंद कर लिये। भगदड़ मची, उसने घर के द्वार पर ताला जड़ दिया।
अब आग तो किसी का कहा मानती नहीं। वह तो पूरी बेकहल है। आग की लपटें लहकीं-दहकीं और भी। वे लपकीं उनके घर की ओर। ताले को लांघकर उनके घर के अंदर आ पहुँचीं।
वे चौंके। बहुत चीखे। बहुत चिल्लाए। किसी के कानों पर जूँ तक नहीं रेंगी। इस विश्व बंधुत्व के समय में ये समय के साथ किया गया सबका अघोषित समझौता था।
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अनिता रश्मि