माह के कविः बल्ली सिंह चीमा


पहाड़ी नगरॉ
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बर्फ़ से ढक गया है पहाड़ी नगर ।
चाँदी-चाँदी हुए हैं ये पत्थर के घर ।

ख़ूबसूरत नज़ारे बुलाते हैं आ,
मैं परेशान हूँ पहले देखूँ किधर ।

तेरे दाँतों-सी सुन्दर सफ़ेदी लिए,
रास्ते मुस्कराए मुझे देखकर ।

तेरे चेहरे-से सुन्दर मकानों में ही,
काश होता सनम एक अपना भी घर ।

चूमकर पैर पगडंडियाँ हँस पड़ीं,
तू गिरेगा नहीं देख इतना न डर ।

ठण्डी-ठण्डी हवाएँ गले से मिलीं,
और कहने लगीं हो सुहाना सफ़र ।

चीड़ के पेड़ कुहरे में उड़ते लगें,
टहनियाँ हैं या उड़ते परिन्दों के पर ।

दिल है मेरा भी तेरी तरह फूल-सा,
इस पे होने लगा मौसमों का असर ।

मुस्कराते हुए ये हँसी वादियाँ,
कह रही हैं हमें देखिएगा इधर ।

बर्फ़ की सीढ़ियाँ, बर्फ़ की चोटियाँ,
हैं बुलाती हमें आइएगा इधर ।

तेरी जुल्फ़ों-सी काली नहीं रात ये,
है बिछी चाँदनी देखता हूँ जिधर ।

काली नज़रों से, यारो ! बचाओ इन्हें,
इन पहाड़ों पे जन्नत है आती नज़र ।

ज़िन्दगी ख़ूबसूरत पहाड़न लगे,
साथ तेरा हो और हो पहाड़ी सफ़र ।

हम मिले अर्थ जीवन ने पाए नए,
देख ‘बल्ली’ का चेहरा गया निखर ।


नैनीताल
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लोग करते हैं बहुत तारीफ़ नैनीताल की ।
चल मनाएँगे वहीं पर छुट्टियाँ इस साल की ।

लोग रोनी सूरतें लेकर यहाँ आते नहीं,
रूठना भी है मना वादी में नैनीताल की !

अर्द्धनंगे ज़िस्म हैं या रंग-बिरंगी तितलियाँ,
पूछती है आप ही से ‘माल’ नैनीताल की !

ताल तल्ली हो कि मल्ली चहकती है हर जगह,
मुस्कराती और लजाती शाम नैनीताल की !

चमचमाती रोशनी में रात थी नंगे बदन,
झिलमिलाती, गुनगुनाती झील नैनीताल की !

अब यहाँ, पल में वहाँ, कब किस पे बरसें, क्या ख़बर,
बदलियाँ भी हैं फ़रेबी यार नैनीताल की !

ख़ूबसूरत जेब हो तो हर नगर सुन्दर लगे,
जेब खाली हो तो ना कर बात नैनीताल की !

मैं अमरीकी पिठ्ठू
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मैं अमरीका का पिठ्ठू और तू अमरीकी लाला है
आजा मिलकर लूटें–खाएँ कौन देखने वाला है
मैं विकास की चाबी हूँ और तू विकास का ताला है
सेज़ बनाएँ, मौज़ उड़ाएँ कौन पूछ्ने वाला है
बरगर-पीजा खाना है और शान से जीना-मरना
ऐसी–तैसी लस्सी की, अब पेप्सी कोला पीना है
डॉलर सबका बाप है और रुपया सबका साला है
आजा मिलकर लूटें–खायें कौन देखने वाला है
फॉरेन कपड़े पहनेंगे हम, फॉरेन खाना खायेंगे
फॉरेन धुन पर डाँस करेंगे, फॉरेन गाने गायेंगे
एन०आर०आई० बहनोई है, एन०आर०आई० साला है
आजा मिलकर लूट मचाएँ, कौन देखने वाला है
गंदा पानी पी लेते हैं, सचमुच भारतवासी हैं
भूखे रहकर जी लेते हैं, सचमुच के सन्यासी हैं
क्या जानें ये भूखे–नंगे, क्या गड़बड़-घोटाला है
आजा मिलकर राज करें, कौन देखने वाला है
रंग बदलते कम्युनिस्टों को अपने रंग में ढालेंगे
बाक़ी को आतंकी कहकर क़िस्सा ख़तम कर डालेंगे
संसद में हर कॉमरेड जपता पूंजी की माला है
आजा मिलकर राज करें, कौन देखने वाला है
पर्वत, नदिया, जंगल, धरती जो मेरा वो तेरा है
भूखा भारत भूखों का है, शाइनिंग इंडिया मेरा है
पूंजी के इस लोकतंत्र में अपना बोलम–बाला है
आजा मिलकर राज करें, कौन देखने वाला है
तेरी सेना, मेरी सेना मिलकर ये अभ्यास करें
हक़-इन्साफ़ की बात करे जो उसका सत्यानाश करें
एक क़रार की बात ही क्या सब नाम तेरा कर डाला है
आजा मिलकर राज करें, कौन देखने वाला है
मैं अमरीका का पिठ्ठू और तू अमरीकी लाला है
आजा मिलकर लूटें–खाएँ कौन देखने वाला है
मैं विकास की चाबी हूँ और तू विकास का ताला है
सेज़ बनाएँ, मौज़ उड़ाएँ कौन पूछ्ने वाला है


धूप में सर्दियों से …

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धूप में सर्दियों से खफ़ा कौन है
धूप से सर्दियों में ख़फ़ा कौन है ?
उन दरख़्तों के नीचे खड़ा कौन है ?

बह रही हो जहाँ कूलरों की हवा,
पीपलों को वहाँ पूछता कौन है ?

तेरी जुल्फ़ों तले बैठकर यूँ लगा,
अब दरख़्तों तले बैठता कौन है ?

आप जैसा हँसी हमसफ़र हो अगर,
जा रहे हैं कहाँ सोचता कौन है ?

रात कैसे कटी और कहाँ पर कटी,
अजनबी शहर में पूछता कौन है ?

आप भी बावफ़ा ’बल्ली’ भी बेगुनाह,
सारे किस्से में फिर बेगुनाह कौन है ?
बल्ली सिंह चीमा

02 सितम्बर 1952
जन्म स्थानः चीमाखुर्द गाँव,चभाल तहसील, अमृतसर ज़िला, पंजाब, भारत
संप्रतिः बाजपुर,उधमसिंह नगर, उत्तराखंड,

प्रमुख कृतियाँः तय करो किस ओर हो,(कविता-संग्रह) ख़ामोशी के ख़िलाफ़,(कविता-संग्रह) ज़मीन से उठती आवाज़, (कविता-संग्रह)।

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