अफ्रीकन एशियन रूरल डेव्लपमेंट आरगेनाईजेशन नई दिल्ली से जैसे ही मेरा नामांकन पाकिस्तान में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय सेमीनार के लिए हुआ, सहसा मुझे विश्वास नहीं हुआ। अफ्रीकन एशियन रूरल डेव्लपमेंट आरगेनाईजेशन एक गैर राजनीतिक संगठन है, जो अफ्रीका तथा एशिया के तीस सदस्य देशों में कार्य करता है। जैसा कि पाकिस्तान के बारे आम हिन्दुस्तानियों की धारणा है, उससे मैं भी अछूता नहीं हूँ । एक बार तो मैंने सोचा कि सेमीनार में भाग लेने से मना कर दूं, पर मेरे पुत्र के यह कहने पर कि पापा आपको अमेरिका का वीजा तो आसानी से प्राप्त हो जाएगा, परंतु पाकिस्तान का वीजा इतनी आसानी से मिलेगा नहीं, अस्तु पाकिस्तान जाना ही चाहिए। मुझे अपने परिजनों और दोस्तों के साथ अपनी सुरक्षा की भी चिंता थी। हमारे रक्षामंत्री ने भी बयान दिया था कि पाकिस्तान जाना नर्क जाने के बराबर है। कश्मीर के हालात बद से बदतर होते जा रहे थे और कश्मीर में कर्फ्यू के लगतार दो माह व्यतीत हो चुके थे।
अपने और एक मित्र जिनका भी साथ में नामांकन हुआ था, के साथ मैं दिल्ली स्थित पाकिस्तान दूतावास के लिए रवाना हो गया। पाकिस्तान जाने के लिए इतनी भीड़ पूर्व में मैंने कभी किसी भी दूतावास में देखी थी। लगता था जैसे अस्सी के दशक में अमिताभ बच्चन की कोई फिल्म लगी हो। यह भी आश्चर्य है कि हिन्दुस्तान से पाकिस्तान जाने वाले भारतीयों की तादाद अन्य देशों में जाने वालों से कहीं अधिक है,। परंतु सामान्यतः जाने वाले अस्सी प्रतिशत भारतीय मुस्लिम होते हैं जबकि सिर्फ़ बीस प्रतिशत ही गैर मुस्लिम, जो कि मुख्यतः हिन्दू समुदाय से होते हैं। मैंने जिज्ञासावश पाकिस्तान वीजा प्राप्त करने वालों से जानकारी लेना प्रारंभ कर दिया। जानकारी हुई कि अधिकांश लोग अपने रिश्तेदारों से मिलने पाकिस्तान की यात्रा करते हैं। इसमें मुस्लिम यात्री तो भारत के विभिन्न भागों से होते हैं, जबकि हिन्दू मुख्यतः गुजरात तथा राजस्थान के सीमावर्ती क्षेत्रों से। इसमें मुख्यतः गरीब तबके के हिन्दू हैं। वीजा फार्म भरने वाले दलाल के साथ ही वीजा शुल्क जमा करने के लिए एक सौ बीस रू. के ड्राफ्ट को डेढ़ सौ रू. लेकर बेचने वाले यहाँ सैकड़ों दलाल मिल जायेंगे। दूतावास के सामने का दृश्य देखकर किसी को भ्रम हो सकता है कि वह किसी कचहरी के परिसर में आ गया हो। दूतावास के सामने वीजा के लिए सैकड़ों लोग कतार में तो सैकड़ों लोग टाटपट्टी, दरी बिछाये बाहर टिफिन खाते अपनी बारी आने का इंतजार करते मिलेंगे। यह देखकर मेरा मन खिन्न हो उठा। डिप्लोमेट वीजा पाने वालों की संख्या नगण्य होने के कारण वो वाली खिड़की खाली ही रहती है।
हमने वीजा फार्म जमा कर दिया। दोनों देशों की तल्खी यहाँ वीजा फार्म जमा करते समय भी दिख जाती है। वीजा फार्म लेने वाले अधिकारी ने भी हमसे बड़ी बेरूखी से बात की इस पर मैंने भी खीझकर यह भी कह दिया कि सर मैं आपके देश के अधिकारियों के आमंत्रण पर ही वीजा के लिए आया हॅूं, वैसे मुझे पाकिस्तान जाने का कोई शौक नहीं है। इस पर उस अधिकारी ने अगले दिवस आकर वीजा प्राप्ति के संबंध में पता करने को कहा। अगले दिवस खिड़की से हमारे समस्त दस्तावेज बिना किसी टिप्पणी के मूल में वापिस कर दिए गए। मैने ई-मेल से पाकिस्तानी अधिकारियों को सूचित कर दिया कि हमारा नामांकन निरस्त कर दिया जाये, क्योंकि आपके दूतावास के अधिकारियों को हमारा वीजा जारी करने में कोई रूचि नहीं हैं। मैं अपने मित्र के साथ वापसी के लिए एयरपोर्ट पहुंच गए, तभी इस्लामाबाद से सेमीनार आयोजक पाकिस्तानी अधिकारियों का फोन आया कि हम लोग अपना मन बदल लें और इस्लामाबाद जरूर आयें। उन्होंने कहा कि आप लोग पाकिस्तान आकर अच्छी यादें लेकर जायेंगे। उन्होंने यह भी कहा कि विदेश मंत्रालय पाकिस्तान से भारतीय प्रतिभागियों के वीजा के लिए पाकिस्तान दूतावास को पत्र भेजा जा चुका है।
एक दो दिन विचार करने के उपरांत हम पुनः पाकिस्तान दूतावास आ गये और प्रातः दलालों से वही ड्राफ्ट खरीदकर हमने वीजा फार्म जमा कर दिया। खिड़की में उपस्थित अधिकारी ने हमें शाम को वीजा के संबंध में जानकारी लेने को कहा। शाम चार बजे हम फिर पाकिस्तानी दूतावास में थे। हमें यह देखकर बड़ा सुखद आश्चर्य हुआ कि हमारा वीजा तैयार था। मैंने काउंटर वाले अधिकारी को धन्यवाद देते हुए कहा कि हम लोग शांति का पैगाम लेकर पाकिस्तान जायेंगे। यह सुनकर उस अधिकारी को थोड़ी प्रसन्नता भी हुई। कश्मीर प्रकरण को लेकर दोनों देशों में जबरदस्त तल्खी के साथ-साथ राजनयिक कड़वाहट दूतावास में भी देखने को मिलती है, यह मेरा पहला अनुभव था। वीजा प्राप्ति के दो दिनों के बाद हम लोग दिल्ली अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर थे। यह भी आश्चर्य की बात है कि दोनों देशों के बीच राजनैतिक कारणों से सीधी हवाई सेवा उपलब्ध नहीं है। पाकिस्तान जाने के लिए हवाई मार्ग से केवल दुबई होकर ही जाया जा सकता है। इमिरेट्स एयरवेज का बोर्डिंग पास लेते समय महिला कर्मचारी भी आश्चर्य करने लगी कि हम लोग इस्लामाबाद पाकिस्तान जा रहे हैं। मैंने उनसे पाकिस्तान जाने वाले यात्रियों के बारे में पूछा जिस पर उन्होंने ना के बराबर बताया। मेरे होश फाख्ता हो रहे थे। पाकिस्तान जाने के नाम से काफी घबराहट भी हो रही थी, पर मेरे मित्र को इससे कोई मतलब नहीं था। वह तो बस मेरे भरोसे विदेश यात्रा को लेकर रोमांचित था, क्योंकि यह उनकी पहली विदेश यात्रा थी, जबकि मैं पूर्व में सत्रह-अठारह देशों की यात्राएँ कर चुका था। हमें देखकर आव्रजन अधिकारी को भी बड़ा आश्चर्य हुआ। थोड़ी पूछताछ के बाद वे बोले – ‘‘आप लोग बड़े हिम्मती हो भाई‘‘ । उसके ऐसा कहने पर मै और ज्यादह डर गया। पर मैं यह सोचकर खुद को ढाढस बंधाया कि मैं भी कोई मिट्टी का पुतला नहीं हूँ. मेरी सोच यह थी कि अगर पाकिस्तान में मारे भी गए तो शासकीय कार्य में ही मारे गए कहलायेंगे।
दुबई पहुंच कर इस्लामाबाद जाने वाले वायुयान की प्रतीक्षा करते हुए मुस्लिम परिधानों से सजे-धजे यात्रियों को देखकर मुझे और ज्यादह डर लगने लगा। इक्का-दुक्का यात्री ही विदेशी लग रहे थे। पूरी यात्रा में मैं तनावग्रस्त ही रहा । खाने के दौरान मेरे मित्र ने वायुयान में शराब पीने की इच्छा जाहिर की। मैंने उसे मना करते हुए बताया कि पाकिस्तान में केवल हिन्दुओं और ईसाईयों को ही शराब पीने की इजाजत है, और हमारे शराब पीने से सह-यात्रियों को पता चल जायेगा कि हम लोग गैर मुस्लिम हैं। डर असल मैं यह सब बातें जाहिर नहीं होने देना चाहता था। दिल्ली में भी मैंने अपने मित्र की कलाई पर बंधे मौली धागे को उतरवा दिया था। यह सिर्फ इस बात का द्योतक था कि मैं पाकिस्तान यात्रा के नाम पर अंदरूनी तौर पर कितना सहमा हुआ था।
दुबई से चार घण्टे की यात्रा के बाद हमारा विमान इस्लामाबाद पहुंचा। आव्रजन अधिकारी को समस्त दस्तावेज दिखाने के बाद पुनः एक जगह हमें उपस्थिति दर्ज करानी पड़ी। इसी दौरान मैंने देखा कि सेमीनार आयोजन करने वाले तीन अधिकारी हमें लेने आये हैं। उन्हें देखकर मेरी जान में जान आई। वे हमसे ऐसे गले मिले जैसे कोई बिछुड़े हुए भाई मिल रहे हों । हमें बड़ी तसल्ली हुई। उन सभी की जुबान हिन्दी थी। एक पाक अधिकारी ने हमसे कहा कि उन्हें उम्मीद ही नहीं थी कि सेमीनार के लिये भारतीय अधिकारी आयेंगे, क्योंकि आपके रक्षामंत्री ने कुछ दिन पहले ही बयान दिया था कि पकिस्तान जाना जहन्नुम में जाने के बराबर है।
अगले दिन हमें स्थानीय पुलिस को सूचना देना था। पाक अधिकारी हमें स्थानीय पुलिस के समक्ष ले गए और हमें ’’निवास प्रमाण पत्र’’ दिया गया। यदि हमारे पास वाईट पासपोर्ट होता तो ये स्थिति नहीं आती। इसकी हमें कतई जानकारी नही थी, जबकि दिल्ली के अधिकारियों ने हमें वाईट पासपोर्ट के साथ पाकिस्तान यात्रा की सलाह दी थी। सेमीनार में कुल दस देशों के प्रतिभागी थे। सेमीनार का सत्र प्रारंभ होने के पूर्व कुरान का पाठ किया गया. मेज पर बिछे हरे रंग के कपड़े से साफ जाहिर हो रहा था कि इस देश में इस्लाम ही राजधर्म है। वहां पर सभी प्रतिभागियों के सामने उनके देश का झंडा लगा हुआ था, जिससे लगता था कि हम किसी अंतर्राट्रीय सेमीनार में शामिल हैं, परंतु ऐसे सेमीनार में सत्र के पूर्व कुरान का पाठ करना मेरी समझ से परे था। अगले दिन प्रतिभागियों को इस्लामाबाद से लगभग किलोमीटर दूर पर्यटन स्थल मुरी जाना था। हम लोग तैयार हो गए थे। सुबह नाश्ते के बाद हम भारतीय प्रतिभागियों को बताया गया कि चूंकि हमारा वीजा केवल इस्लामाबाद के लिए है, सो हमारा वहां जाना उचित नहीं रहेगा। मुझे इसकी आशंका पहले से ही थी। मुरी पंजाब प्रांत में स्थित है। मुझे काफी क्षोभ हुआ, पर पाकिस्तानियों के साथ भी तो भारत सरकार यही करती है, यह सोचकर मैं अपने दिल को तसल्ली देता रहा।
अगले दिन प्रशिक्षण के उपरांत हम सब प्रतिभागियों को फैजल मस्जिद ले जाया गया। टेन्टनुमा बनी हुई यह ईमारत एकदम भव्य है। हमें यह देखकर आश्चर्य हुआ कि हमारे साथ प्रशिक्षणरत पाकिस्तानी मुस्लिम लड़कियां भी मस्जिद के अंदर थी। यह तो मेरी कल्पना से एकदम परे था कि इस्लामी देश में जहां इतनी कट्टरता हावी है, वहां मुस्लिम महिलाएँ मस्जिद में प्रवेश कर सकती हैं। मैंने अपनी जिज्ञासा शांत करने के लिए उन्हीं से इस बारे में पूछा । इस पर उन्होंने मुझे जो बताया वह तो और भी ज्यादह अचंभित करने वाला था। हमें बताया गया कि पाकिस्तान में मुस्लिम महिलाएँ मस्जिद में न सिर्फ़ प्रवेश करती हैं, बल्कि नामाज भी अदा करती हैं, पर उनके लिए अलग से जगह निर्धारित है। महिलाओं हेतु पृथक से एक गैलरी बनी हुई है। इतनी आजादी तो शायद मुस्लिम महिलाओं को हिन्दुस्तान में भी नहीं है। पहाड़ी के नीचे हरी-भरी वादियों के बीच में बनी यह मस्जिद सचमुच वर्तमान वास्तुकला का एक बेजोड़ नमूना है। इसके पश्चात् हमें पाकिस्तान मोन्यूमेंट ले जाया गया। पाकिस्तान स्थापना को लेकर इसे बनाया बया है। मुगल कालीन हिन्दू सभ्यता व आजादी का संजीदगी से चित्रण किया गया है, पर एक भारतीय होने के नाते सच कहूं तो मुझे अच्छा नहीं लगा। फिर हमें एक पहाड़ी के उपर स्थित मोलन नामक जगह ले जाया गया। यहाँ की उॅंचाई से पूरे इस्लामाबाद शहर का दर्शन हो जाता है। वहां सारे महंगे रेस्टोरेंट थे जो कि आम आदमी के पहुंच के बाहर हैं. वहां पर बस भारतीय बालीवुड के गाने ही बजते रहते हैं।लगता था जैसे हम किसी शादी की पार्टी में हो।
इस्लामाबाद शहर की खूबसूरती देखकर किसी भी भारतीय को ईर्ष्या हो सकती है। चौड़ी-चौड़ी सड़कें, व्यवस्थित शहर, हरी-भरी वादियों के बीच में बसा यह शहर पेरिस के बाद दुनिया का दूसरा सबसे खूबसूरत शहर मना जाता है। इस्लामाबाद की धार्मिक जनसांख्यिकीय आंकड़ों को लेकर मैंने कई पाकिस्तानियों से जानकारी ली। हमें बताया गया कि इस शहर में हिन्दू न के बराबर हैं, जबकि ईसाई आबादी भी कुछ ही मात्रा में है, और उनकी स्थिति बहुत दयनीय है. सरकारी सेवाओं में उनकी उपस्थिति न के बराबर है। यहाँ शहर के साफ-सफाई कर्मी ज्यादातर ईसाई ही हैं। विभाजन के समय पाकिस्तान में गैर मुस्लिमों की आबादी लगभग बाईस प्रतिशत थी, जो कि अब घटकर डेढ़ से दो प्रतिशत के बीच ही रह गई है। ऐसा शायद इसलिए हुआ कि अपने प्राणों की रक्षा के लिए गैर मुस्लिमों ने इस्लाम धर्म ग्रहण कर लिया। जहां धर्म के कारण भेदभाव, प्रताड़ना व तिरस्कार हो वहां पर ऐसा हो जाना अवश्यंभावी हो जाता है। मैंने पाकिस्तान के ईशनिंदा कानून के बारे में भी जानकारी लेने की कोशिश की। बताया गया कि दूरस्थ क्षेत्रों में इसका दुरूपयोग होता है, परंतु शहरी क्षेत्रों में ऐसी घटनाएँ नहीं होती हैं । मुझे लगता है कि ईशनिंदा कानून से बचने के लिए भी गैर मुस्लिम लोग इस्लाम धर्म की ओर उन्मुख हो रहे हैं । पाकिस्तान में ईशनिंदा का सबसे चर्चित मामला आसिया बीबी का है जो कि एक ईसाई महिला है। इन सब कारणों से मुझे ऐसा लगता है कि आगामी कुछ वर्षो में टर्की के समान पाकिस्तान की आबादी भी शत प्रतिशत मुस्लिम हो जायेगी।
सेमीनार के अंतिम दिवस चार पाकिस्तानी अधिकारी हमें छोड़ने इस्लामाबाद एयरपोर्ट तक आये,. उस वक़्त रात के करीब ढाई बज रहे थे। वे फिर हमसे गले मिले। पाकिस्तान व हिन्दुस्तान के आबोहवा में ज्यादा फर्क नहीं है। यहां की जुबान, हर जगह बालीवुड के गाने, खानपान आदि से हमें ऐसा लगता रहा कि हम हिन्दुस्तान के ही किसी कोने में आ गये हों। आम हिन्दुस्तानी जिसमें मै भी शामिल हूँ, किसी पाकिस्तानी को संशय की दृष्टि से देखता है, परतु यह भाव कट्टरपंथियों को छोड़कर एक आम पाकिस्तानी में नहीं है। दोनों देशों की राजनैतिक तल्खी व कड़वाहट के कारण फिलहाल मित्रता संभव नहीं लगती है। पाकिस्तान का एक बड़ा तबका हिन्दुस्तान से दोस्ती ही चाहता है, परंतु यह तभी संभव है जब कोई राष्ट्र किसी धर्म विशेष का समर्थन न करता हो. धर्म आधारित राष्ट्र से अन्य धर्मालंबियों के विरूध्द कट्टरता और वैमन्यस्ता न पनपे ऐसा तो संभव ही नही है । वापसी में दिल्ली के आव्रजन अधिकारियों को भी बड़ा आश्चर्य हुआ कि हम लोग इस्लामाबाद यात्रा से वापस आ रहे हैं। मैंने उन्हें बताया कि सामान्य पासपोर्ट के कारण वहां कई प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है, जिससे बहुत खीझ सी होने लगती हैं। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान की यात्रा वाईट पासपोर्ट से ही करना उचित होता है, क्योंकि आम पाकिस्तानियों को भी सामान्य पासपोर्ट से हिन्दुस्तान की यात्रा में भी उन्हीं प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है। सच कहूं तो एक आम हिन्दुस्तानी यात्री को सामान्य पासपोर्ट से पाकिस्तान यात्रा करना नरक की यात्रा करने के सामान ही है। हालाँकि अंतर्राष्ट्रीय प्रतिभागी होने के कारण हम बहुत सारी दूसरी बाधाओं से मुक्त रहे। दोनों मुल्कों के बीच आपसी यात्राओं से बहुत कुछ हद तक इन समस्याओं से निजात मिल सकती है, जो कि वर्तमान हालातों में में कतई मुमकिन नहीं है।
विनय प्रकाश तिर्की
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