आलो बालो
रज्जो ने सज्जो के दोनों,
सज्जो ने रज्जो के दोनों ,
पकड़े कान।
कान पकड़ कर लगीं खेलने,
आलो बालो ,आलो बालो।
आगे पीछे कान हिलाकर,
बोलीं थोड़े कान खुजालो।
सज्जो बोली कान छोड़ अब,
कानों की ले अब मत जान।
फिर खेलीं, फिर चाल बढ़ाई,
खिचने लगे जोर से कान।
दर्द बढ़ा धीरे- धीरे तो,
फिर आई आफत में जान।
दोनों लगीं चीखने बोलीं,
धीरे कान खींच शैतान।
थके कान तो रज्जो बोली,
चलो खेल अब बंद करें।
कान छुड़ाकर सज्जों बोली,
कुछ मस्ती आनंद करें।
फिर दोनों ने उछल कूद कर,
खुशियों से भर दिया मकान।
हँसी-हँसी बस, मस्ती-मस्ती
हँसी- हँसी बस ,मस्ती -मस्ती
मुन्ना हँसता, मुन्नी हँसती,
रोज लगाते खूब ठहाके।
लगता खुशियों के सरवर में,
अभी आये हैं नहा नहाके।
उनको हंसते देख पिताजी,
माताजी मुस्काने लगते।
दादा दादी भी मस्ती के
जल में नाव चलाने लगते।
गुंड कंसहड़ी थाल जताते।
खुशियाँ ढम- ढम -ढोल बजाके।
पीछे रहती क्यों दीवारें,
छप्पर छत कैसे चुप रहते।
होती घर में उछल कूद तो,
मन ही मन में वे भी हँसते।
दरवाजे भी धूम मचाते।
अपने परदे हिला- हिला के।
एक कटोरा
भरा दूध का ,
बिल्ली अभी
छोड़कर आई |
बोली उसको
नहीं पियूंगी,
उसमें बिलकुल
नहीं मलाई |
कल का दूध
बहुत फीका था ,
शक्कर बिलकुल
नहीं पड़ी थी |
घर की मुखिया
दादी मां से,
इस कारण वह
खूब लड़ी थी |
दूध ,मलाई
वाला होगा ,
खूब पड़ी होगी
जब शक्कर|
और मनाएंगी
जब दादी,
दूध पियूंगी तब
उनके घर |
प्रभुदयाल श्रीवास्तव
छिंदवाड़ा, मध्य प्रदेश