युवावस्था में मैं अपने करियर को लेकर गंभीर नहीं था। सपने जरूर थे, जैसे नईदुनिया का संपादक बनना। उन दिनों राजेंद्र माथुर नईदुनिया के संपादक थे और म.प्र. की राजनीतिक दिशा यह अखबार तय करता था। मेरे प्रोफ़ेसर चाहते थे मैं सीएसआईआर की स्कॉलरशिप ले लूँ और भौतिकी में ‘थिन फिल्म्स’ पर काम करूँ। अंततः मैंने बैंकिंग को अपना क्षेत्र चुना। नौकरी करते हुए ‘एडवांस्ड बैंकिंग एंड इंटरनेशनल मनी मार्केट’ के विशेष विषय के साथ अर्थशास्त्र में एम.ए. किया। बैंकिंग से संबंधित पेशेवर परीक्षाएँ उत्तीर्ण कीं। मेरा लक्ष्य था भारतीय बैंकिंग के शिखर पर पहुँचना, पर विदेश सेवा के बारे में मैंने न कभी सोचा-विचारा, न कोई प्रयत्न किए।
सन उन्नीस सौ बानवे की धुलेटी के दिन की बात है। उन दिनों मैं धार (म.प्र.) में बैंक ऑफ इंडिया में प्रबंधक था। मेरे क्षेत्रीय प्रबंधक का फोन आया कि ‘फॉरेन पोस्टिंग’ के लिए इंटरव्यू हेतु मैं चुना गया हूँ। यह संसदीय चुनाव के लिए टिकट मिलने जैसा था। अपने क्षेत्रीय और आंचलिक प्रबंधक से ऊपर मेरी पहुँच नहीं थी। झाबुआ जिले से आया था तो, मेरे परिचित राजनेताओं का राजनीतिक प्रभाव शून्य-सा था। यूँ भी म.प्र. से पिछले कई सालों में एक-दो अधिकारी ही ‘फॉरेन पोस्टिंग’ के लिए चुने गए थे। मेरी हमसफर हंसा दीप, उच्च शिक्षा विभाग में सहायक प्राध्यापक थीं और वे विदेश नहीं जाना चाहती थीं। ‘फॉरेन पोस्टिंग’ को ले कर मेरी इच्छा भी बलवती नहीं हो पाई। कुल मिलाकर यह तय रहा कि इस बहाने मैं मुंबई या दिल्ली घूम आऊँगा और अपने नामांकन का ताउम्र जश्न मनाऊँगा।
इसी बीच मेरा तबादला धार से इंदौर हो गया। मुझे रामबाग शाखा सौंपी गई। यह चुनौतीपूर्ण शाखा थी। सीबीआई की जाँच चल रही थी और मुझे वहाँ का प्रभार लेना था। ब्रीफिंग हुई, प्रबंधन वर्ग ने अपेक्षाएँ बताईं। मैंने टास्क फोर्स की माँग की और काम शुरू हुआ- बड़े डिफॉल्टर्स के साथ एकमुश्त समझौता या कानूनी कार्रवाई। डॉन टाइप लोगों की धमकियाँ लगभग रोज ही मिलती थीं। इसलिए परिवार बैंक के सुरक्षित आवास में धार ही रहा और मैं अकेला इंदौर में। फॉरेन पोस्टिंग की बात एकदम गुम हो गई थी। एक दोपहर कार्मिक विभाग के प्रमुख का फोन आया कि मैं तुरंत दिल्ली पहुँचूँ। कल या परसों कभी मेरा इंटरव्यू हो जाएगा। इस खबर ने हंसाजी को परेशान कर दिया। मैं सिर्फ यही कह पाया कि मैं इस प्रक्रिया का अनुभव लेना चाहता हूँ। चयन की कोई संभावना है नहीं और मैं इसे सिर्फ एक मजाक के रूप में ले रहा हूँ।
सवेरे की उड़ान पकड़ी और दिल्ली। लंच के बाद इंटरव्यू तय हुआ। इंटरव्यू कक्ष के बाहर कई उम्मीदवार मिले, अधिकतर दिल्ली से ही थे। सारे सूट-बूट में थे, एक अकेला मैं आधी बाँह की बुशर्ट पहने था। जैसे-तैसे तो दिल्ली पहुँच पाया था। उम्मीदवारों से मालूम हुआ कि कौन इंटरव्यूकर्ता थे, कौन प्रमुख थे और कौन किसको पहचानता था। मैं दब्बू-सा एक कोने में शाम की फिल्म के बारे में योजना बना रहा था। इंटरव्यू दिल्ली की बजाय भोपाल में होता तो मेरा हौसला बढ़ाने के लिए बीस साथी होते, यहाँ कोई नहीं था।
मुझे पुकारा गया- डीपी जैन। इंटरव्यूकर्ताओं से दुआ-सलाम हुई। पहला प्रश्न था बैंकिंग में डीपी का क्या महत्त्व? बातचीत सहज होगी यह संकेत प्रश्नकर्ताओं ने मुझे दे दिया। मैंने उत्तर दिया- डिमांड प्रॉमिसरि नोट, जो बैंकिंग का आधार है। डीपी बिल्स, जहाँ हम भुगतान पा कर दस्तावेज सौंपते हैं। डिफर्ड पेमेंट, जहाँ हम चूककर्ता देनदारों को देर से भुगतान की सुविधा देते हैं। और ड्रॉफ्ट्स पेएबल, जिसका मिलान करने में हमारा दम निकल जाता है। आखिरी उत्तर पर अच्छा ठहाका लगा। दूसरा प्रश्न तत्काल आया- आप फॉरेन पोस्टिंग क्यों चाहते हैं?
मैंने कहा- मैं फॉरेन पोस्टिंग नहीं चाहता सर। मैं न्यूयॉर्क शाखा में काम करना चाहता हूँ।
– न्यूयॉर्क ही क्यों?
मेरी शेयर बाजार में गहरी रूचि रही। न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज में होने वाली उथल-पुथल और वहाँ का वायदा बाजार सारे विश्व के शेयर बाजारों को किस तरह प्रभावित करता है इसकी बुनियादी जानकारी मुझे थी। इसे आधार बनाकर मैंने कहा कि मैं दुनिया की आर्थिक राजधानी में क्यों काम करना चाहता हूँ। इस विषय पर प्रतिप्रश्न और प्रत्युत्तर लंबे चले। मैं उन्हें उस गहराई तक ले जाना चाहता था जितना मैंने पढ़ा था और जानता था। प्रमुख ने खुश होकर कहा- बैंकिंग पर आपकी पकड़ बहुत अच्छी है पर न्यूयॉर्क जाकर आपको क्या मिलेगा?
– सर, दुनिया के सबसे ज्यादा नोबेल पुरस्कार विजेता वहाँ रहते हैं और वहाँ आदमी की कद्र उसके काम से होती है।
प्रमुख ने हँसते हुए कहा- तो आप यह कह रहे हैं कि बैंक आपके काम की कद्र नहीं करता।
– नहीं सर, मेरा यह आशय बिल्कुल नहीं था। मैं बैंक का आभारी हूँ कि मैं आज आपके साथ यहाँ हूँ। इंटरव्यू समाप्त हुआ। अपने अंतिम उत्तर से मुझे अच्छा नहीं लगा। कुछ ज्यादा ही स्पष्ट बोल गया था। अपरिचित लोगों से मुझे पूरी प्रणाली को लेकर व्यंग्यात्मक बात नहीं करनी चाहिए थी।
इंटरव्यू हुए लगभग पाँच महीने बीत गए थे। मैं अवकाश पर परिवार के साथ धार में था। सुबह की चाय हो रही थी कि फोन टनटना उठा। मेरे मित्र श्री संतु कोठारी को फोन था। वे उन दिनों ऑफिसर्स एसोसिएशन में पदाधिकारी थे। मेरे फोन उठाते ही वे बोले- डीपी हो गया।
– क्या हो गया?
– फॉरेन पोस्टिंग के लिए तुम्हारा सिलेक्शन।
मेरे होश उड़ गए ऐसे परिणाम की न मुझे उम्मीद थी, न ही कोई तैयारी। थोड़ी ही देर में आंचलिक प्रबंधक और फिर मेरे क्षेत्रीय प्रबंधक के फोन आ गए। जब उन्होंने कहा कि हमें आपका उत्तराधिकारी खोजना होगा, आप कुछ नाम सुझाइएगा, तब मेरा धैर्य टूट गया। रुआँसा हो कर मैंने कहा- ‘सर मैं विदेश जाना नहीं चाहता। मैं कभी इसे लेकर गंभीर था ही नहीं।’ मुझे तुरंत काम पर लौटने और उनसे मिलने की सलाह मिली। माँ और पिताजी को यह खबर दी तो उनकी पहली प्रतिक्रिया थी परदेस जाकर क्या करना। कहीं जाने की जरूरत नहीं है, अपन यहीं अच्छे। अगले रविवार सवेरे जब मैं अपने घर मेघनगर पहुँचा तो माँ मंदिर में अपने इष्ट के पास बैठी रहीं और पिता खेत में अपनी गायों-भैंसों में व्यस्त हो गए। कोई संवाद नहीं, अबोले हम अपनी नजरें मिलाते तो डबडबाती आँखों के सिवाय कुछ नहीं दिखता। मैं निराश, घर से रात ही भोपाल के लिए निकल गया, आंचलिक प्रबंधक से मिलने। उनके सामने मैं लगभग रो रहा था। उन्होंने कहा- आपने खुद न्यूयॉर्क पोस्टिंग माँगी थी, अन्यथा ये पोस्टिंग बहुत खास लोगों के लिए ही है। आपका नाम केंद्र सरकार के अप्रूवल के लिए जा चुका है। शायद ही किसी को विदेश में अपनी मनचाही जगह जाने का अवसर मिलता है, वह भी ऑफिशयल पासपोर्ट, अपने परिवार और सारी सुविधाओं के साथ।
भारी मन से सितंबर, उन्नीस सौ तिरानबे में मैं न्यूयॉर्क आ गया। मुंबई एयरपोर्ट पर आशीष देने के लिए माँ आईं, पर पापा नहीं आए। एक महीने बाद पत्नी और बच्चे भी न्यूयॉर्क में थे। भारत कुछ सालों के लिए छोड़ा था, वह जीवन भर के लिए छूट गया। कभी कल्पना नहीं की थी कि मैं अपने ही देश की मिट्टी पर परदेसी बन कर आया करूँगा।
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धर्मपाल महेंद्र जैन
प्रकाशित पुस्तकें: व्यंग्य संकलन – “इमोजी की मौज में”, “दिमाग़ वालो सावधान” और “सर क्यों दाँत फाड़ रहा है” एवं कविता संकलन – “कुछ सम कुछ विषम” और “इस समय तक” प्रकाशित। पच्चीस साझा संकलनों में।प्रकाशित पुस्तकें: व्यंग्य संकलन – “इमोजी की मौज में”, “दिमाग़ वालो सावधान” और “सर क्यों दाँत फाड़ रहा है” एवं कविता संकलन – “कुछ सम कुछ विषम” और “इस समय तक” प्रकाशित। पच्चीस साझा संकलनों में।
चाणक्य वार्ता एवं सेतु में स्तंभ लेखन। नवनीत, कादम्बिनी, आजकल, लहक, अक्षरा, कथा क्रम, पहल, व्यंग्य यात्रा, अट्टहास, पक्षधर, साक्षात्कार, सुख़नवर, यथावत, समावर्तन, कला समय, अमर उजाला, जनसंदेश, ट्रिब्यून, दुनिया इन दिनों, सृजन सरोकार, साहित्य अमृत, विश्व गाथा, हिंदी चेतना आदि में रचनाएँ प्रकाशित।
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