कहानी समकालीनः गूंजते शब्द-अरुणा सबरवाल

गुलशन बड़े ज़ोर -शोर से तैय्यारियों में लगी थी । एक बहुत पुरानी सहेली को स्कॉट्लैंड मिलने जा रही थी ।मिलने की उत्सुकता और ख़ुशी के मारे उसका तन मन सुर लय ताल में झूम रहा था ।उसका अंग -अंग थिरक रहा था ।वह गा रही थी नाच रही थी ।आज वह बरसों पश्चात् अपनी लेडी हार्डिंग कॉलेज की घनिष्ट मित्र से मिलने जा रही थी । वह पिछले कयी वर्षों से वह यू के ,के केंट इलाक़े में जनरल मेडिकल प्रक्तिशनर का काम कर रही थी

वैसे तो वह दिल्ली हर वर्ष जाती थी ,पर इस बार कुछ ऐसा हुआ जिस से उसका ख़ुशी का ठिकाना न रहा ।एक दिन अचानक कनौट प्लेस में उसके बैच की दोस्त शिखा मिल गयी , उसने बताया कि “लाली भी आजकल स्कॉट्लैंड के ग्लासगो में ही है “ । “ तेरा मतलब जसवंत लाली ?” । “ हाँ ….हाँ ….जसवंत लाली “।लाली का सुनते ही उसकी ख़ुशी का ठिकाना न रहा ।वह मन ही मन बुदबुदायी ,कमाल हो गया , लाली ग्लासगो में है , और मुझे पता ही नहीं ।शिखा और गुलशन ने कौफ़ी पीते , क़ौलेज की यादों को कुरेदा ।हँसी प्यार के लम्हों को बाँटा ।जाते -जाते शिखा ने गुलशन को लाली का ग्लास्को का पता भी दे दिया ।

अब गुलशन को लंदन वापस जाने की बेसब्री से प्रतीक्षा थी ।लंदन पहुँचते ही उसने लाली को फ़ोन घुमाया , गुलशन की आवाज़ सुनते ही लाली बोली “ मेरी गुलो रानी बस अभी आ जा , अगली ट्रेन ले कर “। सच मानो तो गुलशन भी बेताब थी उसे मिलने के लिए ।वो भला लाली से दूर कैसे रह सकती थी ।इतना लम्बा ट्रैन का सफ़र सोच कर थोड़ा झिझकी , फिर सोचने लगी, दोस्ती के पीछे तो लोग चाँद पर भी पहुँच जाते हैं ।यह तो कुछ , घंटों की बात है । गुलशन ने लोकम (Locum) डॉक्टर का प्रबन्ध किया । नेट से एक सप्ताह बाद का टिकट बुक किया । बस लग गयी गुलशन , ग्लासगो जाने की तैयारी करने । उसकी ख़ुशी और चुलबुलाहट , उसकी आँखों से झलक रही थी ।वैसे भी यू के में वर्जिन ट्रैन एक सो बीस मील की रफ़्तार से भागती है । उसमें फ़र्स्ट क्लास जैसी सभी सुविधाएँ उपलब्ध हैं ।उत्सुकता में एक सप्ताह पलक झपकते ही बीत गया ।

वो दिन आ ही गया । कुरमुरी सुबह थी ,एक ताजगी भरी सुबह । ऐसी सुबह जिसे अपने सीने में मचलते महसूस कर सकते हैं ।एक पंछी की तरह उड़ने को बेताब हो उठते हैं , आज वह , सच -मुच उड़ने को तैयार थी ।वह जल्दी -जल्दी स्टेशन पहुँची । अपना डब्बा और सीट ढूँढ़ कर बैठ गयी।ट्रैन बहुत आरामदायक थी ।इतने में गुलशन के साथ वाली सीट पर एक भद्र महिला आ कर बैठ गई ।दो मिण्टो बाद और दो महिलायें सामने आ कर बैठ गयीं ।बीच में एक मेज़ था ।चारों में से दो महिलाएँ अंग्रेज़ थीं , एक एफ़रो कैरोबीयन क्रिस्टीन और गुलशन इंडीयन ।पोशाक और व्यवहार से सभी प्रोफ़्फ़ेशनल दिखती थीं ।धीरे-धीरे बातों का सिलसिला शुरू हो गया ।शुरू में तो वो गुलशन के बारे में थोड़ी संदिग्ध थी ,हिचकिचा रहीं थीं बात करने को ,कि शायद वह अंग्रेज़ी भी बोल सकूँती है या नहीं ?।बातचीत के पश्चात् उनकी यह शंका भी दूर हो गयी ।उन चारों के व्यवसाय अलग-अलग होने से वार्तालाप और भी मनोरंजक हो गयी ।दोनो अंग्रेज़ लिंडा और ऐन तो कार्लाईल पर उतर गयी । ग्लासगो पहुँचते ही ट्रैन से उतरते क्रिस्टीन ने हाथ मिलते कहा “ गॉड विलिंग , वी विल मीट अगैंन “ यह वाक्य सुनते ही गुलशन , सिहर उठी , उस के शरीर में अजीब सी झुरझरी पैदा हुई । जो कयी वर्षों से उसका पीछा कर रही है । आज सँदर्भ आते ही मायूस हो गयी।सोचने लगी क्यूँ होता है एसा ? क्यूँ लोग मिलते हैं, बिछुड़ते हैं ? क्यूँ चंद घंटो का साथ जीवन भर का सम्बंध बन जाता है ।

रेल से उतरते ही गुलशन ने इधर -उधर देखा ,अपना फोन निकाल ही रही थी कि “ ….गुलशन -गुलशन ओए , गुलशन , “ लाली की आवाज़ ने उसकी सोच की शृंखला तोड़ी । दस वर्ष के अंतराल के पश्चात् मिलीं थी दोनो ,कुछ भी तो नहीं बदला था ।दोनो एक दूसरे से जी भर के गले मिलीं ।थोड़ी देर में ही वो घर पहुँच गयीं ।सामान रख कर गुलशन ने पुछा “लाली पति देव कहाँ हैं ?” “दस दिन के लिए पेरिस एक कॉन्फ़्रेन्स मैं गये हैं ।अब आज़ादी ….बिलकुल ….आज़ादी फ़ील फ़्री ,बेधड़क पुरानी बातें कर सकते हैं । वो कहावत सुनी है …मियाँ मेरा घर नहीं , मुझे किसी का डर नहीं ।कह कर दोनो खिलखिला कर हसनें लगीं ।”गुलशन तुझे याद है वो मिस्टर डरपोक “? “ कौन “? “ वही , जिसे मोर्चरि में मर्दों के मुँह में छःव्वारा डालने को कहा था ,और रमेश भी वहाँ ,मुर्दों के साथ लेट गया था ।जब रमेश की बारी आयी वह ज़ोर से बोला , साले एक और , इतना सुनते ही विकास डर के मारे भागता भागता आया बोला , मुर्दा बोला ,मुर्दा बोला ।वही विकास ऑर्थपीडिक में प्रोफ़ेस्सर बन गया है ”।” सच में “ गुलशन ने हैरानी से पूछा ।“और वो रजिस्टर ?” गुलशन ने विस्मय से पूछा “ वो तो रहस्य बन कर ही रह गया है । उस गुथी को अभी तक कोई नहीं सुलझा सका ,वो तेरी शरारत थी , तू ही जाने “ कह कर दोनो, ठहाका मार कर हसनें लगीं ।अब तक तो रजिस्टर ‘डस्ट टू डस्ट , एशिश तो एशिश ‘ ही हो गया होगा ।

दोनो भीनी -भीनी बारिश में चाय की चुस्कियों का आनंद लेने लगीं। वैसे भी ग्लासगो में बारह महीने बारिश ही होती रहती है ।जब तक लाली जूठे प्याले रसोई में रख कर आयी , गुलशन खिड़की की ओर मुँह किये बारिश में खड़ी-खड़ी पुरानी इमारतों को ताक रही थी , जैसे कि उसकी भीगी यादें उन की दीवारों में मौजूद हों । लाली ने दो बार आवाज़ लगायी ।उसने शायद , सुना नहीं ।लगता था शायद वह अपने अतीत के अंधेरों – उजालों से आँख मिचोली खेल रही थी । अचानक किसी पुरानी बात की टीस पर बेबाक़ूफ की आँखों में बादल घिर आये ।
“क्या बात है यार ? क्या सोच रही है ? मेरी गुलो रानी ‘’ लाली ने स्नेह भरे लहजे से पूछा ।
‘’ नहीं यार , कुछ नहीं ,तुम्हारे शहर में बारिश की झड़ी का आनंद ले रही हूँ । चल बालकोनी में बैठते हैं ‘‘।
‘लल्लू कहीं की ,तेरी हड्डियाँ जुड़ जाएँगीं ।यह दिल्ली नहीं है ।’।
गुलशन मुस्कुराते बोली ‘‘ लाली तू नहीं बदली अभी से बूढ़ों जैसी बातें करने लगी है ‘’।
‘’ देख ,तू बात बदलने कि कोशिश मत कर ।मैं तेरी रग -रग से वाक़िफ़ हूँ । शराफ़त से उगल दे जो तेरे दिमाग़ में चल रहा है ‘‘।लाली ने शरारत से कहा ।
गुलशन ने एक गहरी साँस लेते कहा ‘’छोड़ यार तुमसे मिलने आयी हूँ ।तू बता क्या शुगल चल रहा है , आज कल ?’’।
‘’ तुझे तो पता है गुलशन , जब तक तू बताएगी नहीं , मैं चमगादड की तरह चमड़ी रहूँगी ।चल शुरू हो जा ‘‘।
‘‘ तो सुन , तीन शतक पश्चात् , आज लम्बे सफ़र में , किसी के एक शब्द ने ,दिल को उथल – पुथल कर डाला “।
‘’ कोई बोएफ़्रेंड बन गया था क्या ….?’’
‘’ तेरा ध्यान भी बस एक ही तरफ़ जाता है ‘’।
‘’ अब इतनी बोर क्यूँ हो गयी है ,लड़के तो तुझे बहुत अच्छे लगते थे ‘’।
‘‘ सब क़सूर उस क्रिस्टीन का है , जो मेरे साथ बैठी थी , उतरते समय बोली “ गॉड विलिंग , वी विल मीट अगैंन “
उसके इस साधारण से वाक्य ने मेरी स्मृतियों की शृंखला को झुँझला दिया और सब खट्टी -मीठी यादें सामने खड़ी हो गयीं ‘’।
‘‘ मैंने ठीक ही तो कहा था ,लव – शव का चक्कर लगता है , इंट्रेस्टिंग ‘’।
‘’लाली , प्लीज़ ….।जीवन मज़ाक़ नहीं है ‘’।
‘’चल हो जा शुरू मैने होठों पर ज़िप लगा ली है । यादों की गुत्थियों को खुल जानें दे , वन ,टू,थ्री गो ,उड़ेल दे ‘‘।
“ मन को सहज करने के लिये एक गहरी साँस ली और बोली ….तो सुन …..बात दो दशक पुरानी है , तभी से रेल का सफ़र पुराने घावों को ताज़ा कर देता है ।दिल धड़कने लगता है ।अतीत की स्मृतियाँ आँखो के सामने नृत्य करने लगती हैं , कभी कत्थक तो कभी – भारतनाट्यम । हमारी एक चाची जी गर्मियों की छुट्टियों में अपने दोनों बच्चों विशाल ,और सुमन दीदी को लेकर चाचा जी से मिलने आसाम , जाती थीं । उस वर्ष मैं भी उनके साथ गयी । हम बहुत ज़ोर -शोर से तैयारियो में जुट गये । सफ़र बहुत लम्बा था ।सभी बहुत उल्लासित थे । दिल्ली से नागालैंड जाने वाली गाड़ी नम्बर 2354 में हमारी चार स्लीपर्स बुक थीं । उत्साह में स्टेशन पर जल्दी पहुँच कर , हमने कैबिन में अपनी धाक जमा ली ।

अचानक एक ऊँची क़द काठी का सुदर्शन युवक और उसका दोस्त पाँचवीं और छटी सीट पर आ बैठे , रंग में भंग डालने । पल भर को लगा , क्या इस एलियन को हमारे कैबिन में ही जगह मिली थी । फिर सोचा हमारे कौन से बाप की गाड़ी है । रेल विभाग को तो टिकट बेचनी ही थी । हाँ मेरी नज़रें उसके चेहरे पर टिकी की टिकी रह गयीं । उसे देखते ही मेरे मन में गुदगुदी सी पैदा होने लगी । उसके चेहरे पर बला की संजीदगी थी ,स्वर में मिठास और व्यवहार में शिष्टता । उसे देखते ही , मेरा ह्रदय नवीन आकांशाओं से धड़क उठा ।एक दो घंटे की औपचारिकता के पश्चात् सभी , आपस में खुलने लगे । फिर रफ़ता -रफ़ता वो हमारे दिल के मेहमान हो गये ।मेरा क्या मिस्टर ऋशब कन्हैया ने सबका दिल जीत लिया ।सफ़र छःतीस घंटे का था , इस लिए दोस्ती करना ज़रूरी और मजबूरी थी ।बातों का सिलसिला आरम्भ हो गया ।

बातों से अब सब बोर होने लगे थे । सुमन दीदी ने सुझाव दिया, कि जब तक रोशनी है , “ क्यूँ न ताश खेली जाए “।सब ने मिल कर सीटों के बीच ट्रंक खिसका कर मेज़ बना लिया । बस हो गए शुरू कभी रम्मी ,कभी स्नैप और कभी फ़्लैश इत्यादि । जहाँ-जहाँ स्टेशन पर गाड़ी रुकती ,हमारी दावत शुरू हो जाती , कभी आलू पूरी ,कभी चाट ,कभी मसाले वाली चाय -वाए का दौर निरन्तर चलता रहा ।

धीरे -धीरे अंधेरा छितराने लगा ।धीमी रोशनी के कारण ताश स्थगित कर दी गयी ।खाने के बाद विशाल ने अंताक्षरी का सुझाव दिया । आंटी जी ने अंताक्षरी को अगले दिन पर टालते हुए कहा , आपस में बातें करते हैं ।बातों – बातों में ऋशब ने बताया “ वह एक इंजीनियर है ।हाल ही में तरक़्क़ी होने से वह नागालैंड में नयी नौकरी का चार्ज लेने के लिए बहुत उत्साहित है “। रोहित का तबालदा भी नागालैंड में हुआ है ।दोनो एक ही महकमें में काम करते हैं “।आंटी जी ने बताया की “ अंकल जी भी इसी महकमें में चीफ़ इंजीनियर हैं “।फिर इधर – उधर की बातें होती रहीं ।अंताक्षरी को कल पर छोड़ दिया गया।
‘’ गुल्लो रानी तू तो सपने देखने लग गयी होगी ‘’लाली ने छेड़ते हुए कहा “।
‘‘ क्यूँ नहीं , मैं तो रात भर सबकी नज़रों से बचा कर ऋशब को ही निहारती रही ।कितना सहज था उसका व्यक्तित्व ना कोई बनावटीपन , ना कोई छलावा ।चेहरे पर ताज़े खिले गुलाब सी मुस्कुराहट फैली रहती थी ।आज की सुबह और दिनों से अलग सी लगी । मगर सुबह अलग कैसे हो सकती है ।सुबह का स्वभाव तो एक ही होता है । बदली तो मैं हूँ ।मुझे तो सब कुछ बदला नज़र आ रहा है ।मेरा हृदय नवीन आकांशाओ से धड़क उठा ।

दूसरे दिन नाश्ते के बाद अंताक्षरी का दौर शुरू हुआ , मैन वरसिस वुमैन ।मैं , सुमन दीदी और आंटीजी एक तरफ़ विशाल , रोहित और ऋशब दूसरी तरफ़ । हम तीनों संगीत प्रेमी ही नहीं ,सुपर संगीत प्रेमी थे।गानों का ग्रंथ भी कह सकते हैं । होते भी क्यूँ ना मेरी तथा सुमन दीदी की कापी तो सदा रेडियो के पास ही पड़ी रहती थी ।हमारा मैच शुरू हुआ।लड़कों की बहुत पीटाई हुई….जो तय थी ।लड़के अपनी हार से कुंठित होने लगे “।

ऋशब हैरानगी से बोला ‘’कमाल है भई , यहाँ तो सारा कुनबा ही चलता-फिरता गानों का एनसाईकलोंपिड़िया (encyclopaedia ) है ‘’।”‘मैंने भी गर्व से कह दिया ,यही नहीं हमारी सुमन दीदी तो कोई भी संगीत वादन बजा सकती हैं “।“ अब हम अंताक्षरी के दूसरे विकल्प ढूँढने लगे जैसे …कभी सिर्फ़ मुहम्मद रफ़ी जी गाने ,कभी किशोर जी के , कभी लता जी के , वग़ैरा -वग़ैरा । हवाई जहाज़ तो था नहीं , नहीं तो फ़िल्म ही देख लेते ।कम्प्यूटर , स्मार्ट फ़ोन,और आई-पैड भी नहीं थे । रेडीयो की बैट्री भी धीरे -धीरे दम तोड़ रही थी ।हमारी भी बस हो चुकी थी ।

आज आख़री दिन था । हमारी मंज़िल क़रीब आ रही थी ।बिछुड़ने का समय आ गया था । मेरा दम निकलता जा रहा था ।अब तक मैं ऋशब के प्रेम में पूरी तरह रंग चुकी थी । पागलपन में मैंने उसका नाम अपने हाथों पर लिख कर चूमना शुरू कर दिया । मुझे पूरा एहसास हो गया था कि ऋशब को भी मुझ से प्यार हो गया है ।क्यूँ कि अंताक्षरी में वह प्यार के गीत ,प्यार से मेरी ओर देख कर ही गा रहा था जैसे ‘….न यह चाँद होगा , न तारे रहेंगे …..और हमें तुमसे प्यार कितना…। अब अंताक्षरी समाप्त करने का समय आ गया था ।क्यूँ कि कुछ ही घंटों में गुहाटी आने वाला था । अंत में ऋशब की बारी थी ,उसने जीवन के सफ़र में राही मिलते हैं बिछुड़ जाने को …और दे जाते हैं यादें तन्हाई में तड़पाने को गाया …..मेरे और ऋशब के मौन संवाद चलते रहे ।

अभी स्टेशन आने में थोड़ा समय था ।सबको भूख सताने लगी , हमारी मठिया , नमक पारे , बिस्कुट सभी समाप्त हो चुके थे । यूँ कहिये , हमारा चलता-फिरता ढाबा भी ख़ाली हो चुका था ।रोहित ने ऋशब को याद दिलाते कहा ….. “ यार अपना मिठायी का डब्बा तो निकाल “।
ऋशब ने अपने सामान में से बंगाली मार्केट का मिठाई का डब्बा निकाल कर सबके सामने रखा….।
‘’ वाह अच्छी मिठायी है , किस ख़ुशी में ?’’ ।
‘’वह शर्माते बोला ,… मेरी शादी की , पिछले हफ़्ते ही हुई है ….पत्नी के इम्तिहान हैं ,वो एक महीने बाद आएगी ‘’।
यह सुनते ही मैं , आकाश से धरती पर आ गिरी । ऐसा लगा मेरे दिल की धड़कन रुक गयी है , और मेरी मौत हो गयी है , पर कैसे , न गोली न हार्ट फ़ेल । क़िस्मत एक छोटी सी रोशनी ले कर आयी थी , चमकने से पहले ही बुझ गयी । मैंने मन को समझाया ….जज़्बातों को सम्भाला , उन लम्हों को अब तक सम्भालती आ रही हूँ “।
‘’ गुल्लो रानी , जीवन का कोई भी पहला अनुभव अच्छा हो या बुरा , यादों में हमेंशा चित्र की भाँति बसा रहता है । गुल्लो मेरी जान …. लम्हों के साये , जीवन क़ैद नहीं होते ….शिद्दतें चाहें महोब्बत की हों ,या आग की ,….जला कर राख कर देती हैं ।’’ लाली ने प्यार से कहा ।
‘‘ क्या करूँ …. मेरे बस में नहीं है लाली , महोब्बत एक ऐसा पौधा है , जो दिन ब दिन वृक्ष बन जाता है।
“ चुप हो जा , बता आगे क्या हुआ ….”।
ऋशब उत्सुकता से अपनी पत्नी की फ़ोटो दिखाता रहा ।उस वक़्त मैंने उसकी आँखों में ख़ुशी और प्यार देखा। उसकी पत्नी के क्षणिक विच्छोह के पीछे उसकी ख़ुशी का एहसास उसके अंग -अंग में थिरक रहा था ।सब ने उसे बाधायी दी । बिछड़ने का समय क़रीब था । उदासी परसने लगी थी । ऋशब और रोहित सोच रहे थे कि वह बाक़ी समय कैसे बितायेंगे। मंज़िल क़रीब थी । आंटी जी ने सबको समान समेटने को कहना ।बिस्तर बंद खोल कर समान समेटने में लग गये , उन दिनों रेल विभाग की ओर से कम्बल तकिए प्रदान नहीं किये जाते थे ।

सबने हाथ- मुँह धो कर नाश्ता कर लिया ।आंटी जी ने बढ़िया साडी डाली , मैकप किया ,सुर्खी बिन्दी लगा कर अंकल जी से मिलन के लिए तैयार थीं ।पूरे एक वर्ष बाद मिल रहीं थीं उनसे। जैसे ही गोहाटी पर गाड़ी लगी। अंकल जी वहीं खड़े थे ।अंकल जी ने प्यार भरी मुस्कान से आंटी जी की ओर देखा । आंटी जी शर्मा गयीं ।आंटी जी ने उन्हें ऋशब से मिलाया ।अंकल जी ने ऋशब और रोहित को दो दिन , गौहाटी में रुकने को कहा , और बोलें “ मैं सब संभाल लूँगा ’’। कर्तव्य बाउंड ऋशब ने सबसे विदा लेते क्रिस्टीन के वही शब्द दोहराये ….”गौड़ विल्लिंग , वी विल मीट अगैंन “ ।मुस्कानों के दौर से मुलाक़ात समाप्त हुई ।किन्तु मेरे लव ख़ामोश थे । मेरे जीवन में वह बरसात के रास्ते आया और धुँध में खो गया ।गले मिलते वक़्त सभी गुनगुना रहे थे .‘’जीवन के सफ़र में राही ……” ।

घर पहुँचते आधा घंटा लगा ।नहा – धो कर राहत मिली ।सब कुछ नया – नया लग रहा था । मकान ऊँचे थे और बाँस के बने थे , क्यूँ कि आसाम में भूचाल बहुत आते हैं । और साँप बहुत निकलते हैं । नौकर ने मेज़ पर खाना लगा दिया । टेलविजन तो नहीं रेडियो ज़रूर था ।अंकल जी दस बजे की ख़बरें सुन रहे थे ।ख़बरें सुनते -सुनते अचानक सबके मुँह खुले के खुले रह गये । अभी अभी ख़बर मिली है …..आज गुहाटी से निकलने के एक घंटे पश्चात् नागालैंड जाने वाली रेल नम्बर 2354 को आतंकवादियों ने पटरी काट कर रेल को गिरा दिया है। बहुत से लोग मारे गये ।अचानक इतनी भयंकर ख़बर सुन कर सबकी आँखों के सामने अँधेरा सा छा गया । यह सुनते ही सभी स्तब्ध ,निशब्द ,हो गए । सब की शक्ति क्षीण होने लगी ।रात बड़ी भारी गुज़री । घर में मुर्दागनी छा गयी । सबके मस्तिष्क में उसके गाये शब्द गुंजने लगे।अंकल जी लगातार फोने करते रहे , कि कुछ तो ख़बर मिले ।अगले तीन दिन तक कोई ठोस ख़बर नहीं मिली ।यूँ तो हमने सभी सम्भावनाओं को भली प्रकार से सोच समझ लिया था ।

थोड़े ही समय में ऋशब ने सबके दिल में घर बना लिया था , हम सब उसकी सलामती की प्रार्थना करते रहे । सबकी बैचेनी बढ़ती जा रही थी । तीसरे दिन अंकल जी के दफ़्तर में जीवित और मृतक लोगों की सूची लग गयी ।बड़ी हौंसले से उन्होंने सूची पढ़नी आरम्भ की ।सूची में पहला नाम ऋशब का और दूसरा उसके दोस्त रोहित का ।सुनते ही सब जड़ हो गए ,आंटी जी का गला रूँध गया ।उन्होंने कांपती आवाज़ से दो शब्द पूरे किए ‘“ ऋशब सबके दिलों में एक गहरी छाप छोड़ गया है । भगवान उनकी आत्मा को शान्ति दे ।”

“ भविष्य क्या है , कोई नहीं जनता । एक चुभता काँटा ऋशब मेरे दिल में सदा के लिये छोड़ गया है मुझे उस वक़्त ख़ूबसूरत चाँद भी , बदसूरत लग रहा था । मैं जानती हूँ , अतीत की आवाज़ हमेशा हमारी मौजूदा ज़िन्दगी से टकराती रहती है । मेरे मस्तिष्क में ऋशब के कहे आख़री शब्द घूमने लगे , जो ऋशब ने गुहाटी से नागालैंड जाते -जाते वक़्त रेल में खड़े – खड़े हाथ हिलाते , ज़ोर -ज़ोर से कहे थे …. बाय-बाय … गौड़ विल्लिंग , वी विल्ल मीट अगैंन ‘ उसके शब्द ज़िंदा हैं ….मरे नहीं ….”।


Aruna Sabharwal
2, Russettings
Westfield Park
Hatch End HA5 4JF
U. K

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