आदमी स्वभाव से ही अन्वेषक है, सैलानी है। आदमी ही क्यों पशु-पंछी तक दिखते हैं सदा एक अनंत यात्रा पर। चलना ही तो जीवन है और जीवन है तो जिज्ञासा है…सबकुछ जानने, समझने और भोगने की ललक है। कई देश और सैकड़ों शहर ( भारत के ही नहीं, विश्व के) घूमने के सुअवसर दिए हैं जिन्दगी ने। कुछ पुनः पुनः भी खींचते रहे हैं। कई ऐसे शहर और गांव थे जिनसे कभी मन भरा ही नहीं। सदा और-और जानना चाहा उनके बारे में। एथेंस या फ्लोरेंस की सड़कों पर, नौर्वे और स्विटजरलैंड की बर्फीली नदियों और गहरे जंगलों के बीच घूमते लगा था यहाँ तो आ चुकी हूँ कई बार फिर भी यहाँ आराम से रह सकती हूँ ऐसे ही घूमते हुए, इन्हें देखते-समझते हुए। इटली, ग्रीस, तुर्की और राजस्थान व दक्षिण भारत के कई शहरों में तो इतना कुछ था देखने और जानने को कि जितनी बार भी गए, जितना भी समय बिताया, हमेशा कम ही लगा। पर जीवन-सी ही सैलानी की भी तो मजबूरी और सीमाएँ है-समय की परिधि में बंधा है सब, ठहर जाना संभव ही नहीं। महाबलीपुरम, गुप्तकाशी, बुडापेस्ट , प्राग, हैम्बर्ग, बर्लिन, पीटर्सबर्ग और बेजिंग व जियान आदि कई ऐसे शहर थे, जो कई-कई अबूझ और अनजान रहस्यों की अनावृत परतों के पीछे छुपे-से लगे और वैनिस , पैरिस, मिलान, मुंबई और गोआ आदि बहती नदियों से उन्मुक्त जीवन से भरपूर और खिलखिलाते हुए।
हर जगह का अपना एक मिज़ाज, एक माहौल… एक संस्कृति होती है; कोई अपनी नफ़ासत के लिए विख्यात है तो कोई नज़ाकत के लिए। कोई धार्मिक अनुष्ठानों के लिए प्रचलित है तो कोई इतिहास के लिए। कोई नैसर्गिक आभा और सौंदर्य के लिए तो कोई अपनी क्रूर इतिहास के लिए। कई तो अपने रुखेपन और फ़ाकामस्ती तक के लिए भी विख्यात हो जाते हैं। यदि हम ऋषिकेश, जलियांवाला बाग, बंगलौर, मुम्बई या पुरी और मदुराई या काशी और वृदावन कहते हैं तो भारत की ही कितनी विभिन्न छवियां और यादें उभरती हैं मन और मस्तिष्क में फिर यदि वैश्विक संदर्भ में पैरिस, लौस एंजिलिस, वेनिस , शंघाई या रियाद और काठमाण्डू को जोड़ दिया जाए…लक्सौर या तेलवीव को जोड़ दिया जाए, बगदाद और काबुल को जोड़ दिया जाए, तो संस्कृति और छवियों का माहौल कितना विविध होगा; स्वाद कितना खट्टा-मीठा और नुनखुरा होगा आराम से अंदाज लगाया जा सकता है। फिर जो आंखों से दिखता है, चंद दिनों में मन महसूस करता है, उससे आगे भी तो बहुत कुछ होता है , जिसे हम उस शहर या जगह की आत्मा भी कह सकते हैं…समाहित परंपराएँ और अनलिखा इतिहास कह सकते हैं; वह आँखों से नहीं दिखता। उसे वहां रच-बसकर ही जाना और महसूस किया जा सकता है। इस ‘विशेष’ को जानने के लिए उसके अपनों के बीच रहना उन्हें समझना जरूरी हो जाता है। वही उसकी आंतरिक छवि प्रस्तुत कर सकते हैं। पर्यटक माहौल का स्वाद ही दे सकते हैं, अपने-अपने अनुभवों के आधार पर तारीफ में कसीदे पढ़ सकते हैं…बखिया उधेड़ सकते हैं पर जगह का , संस्कृति का असली परिचय वहाँ जीवन गुजारने वालों से ही मिलता है। पर्यटक तो रुचि अनुसार चन्द दर्शनीय स्थल देखकर लौट आएगा। खट्टी-मीठी ऐसी ही कुछ यादों का पिटारा है यह अंक भांति-भींति के याज्ञा संस्मरणों की रोचक कैंडीज संजोए। आज जब हम महामारी के इस कठिन और सुपरिचित लेखकों के रोचक संस्मरणों के अलावा इस अंक द्वारा हम लेखनी परिवार में विशेष स्वागत कर रहे हैं विनय कुमार तिर्की जी का जो हमारे लिए चार रोचक यात्राओं की यादें लेकर आए हैं। उम्मीद है कुछ आपको गुदगुदायेगा तो कुछ सोचने पर भी मजबूर करेगा। समृतियों के पंखों पर चढ़कर हमने उन पलों को छूना चाहा है जिन्होंने कभी अंतस् को छुआ था। स्मृतियों के पंखों पर सवार कहीं भी घूम आते हैं हम, विशेषतः उन जगहों, उन व्यक्तियों, उन स्मृतियों तक जिन्हें एक गहरी संवेदना के साथ अनुभव किया गया हो, जैसे पानी सोख लेती है तिरकती मिट्टी, रच रम जाती है उसी में ये यादें भी सदा रहती हैं हमारे साथ। इस अंक में कुछ ऐसी ही यात्राओं के पलों को संजोया है हमने। साथ में कविताएँ और कुछ खूबसूरत कहानियाँ भी हैं । लेखनी परिवार में विशेष स्वागत है अर्चना के. शंकर का जो लेखनी के पाठकों के लिए प्रस्तुत कर रही हैं अपनी सशक्त और मार्मिक कहानी-कन्यादान। इस कठिन वक्त में जब हम घरों में बन्द हैं, एक कठिन और बेहद असहाय वक्त से गुजर रहे हैं ये यादें और वर्णन, यह रचनाओं का रंगबिरंगा गुलदस्ता…सोच की एक ताजी हवा से कुछ-न कुछ तो राहत अवश्य देगा ही, थोड़ा बहुत तो मन को बहलाएंगे ही। आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतजार रहेगा। मित्रों मन की बात कहने में हिचक न किया करें। आपके विचार हमें हौसला तो देते ही हैं , हमारा मार्गदर्शन भी करते हैं।
एकबार फिर माहौल को हल्का फुल्का रखने के लिए जुलाई-अगस्त का अंक बाल विशेषांक होगा। इस चारो तरफ कुसमय के मृत्यु ताण्डव से हमारे नन्हे पाठक भी तो प्रभावित हो रहे हैं। तो फिर देर किस बात की उठाइये कलम और लिख डालिए कुछ रोचक और प्रेरक इनके लिए। आपकी कविता, कहानी, लेख , संस्मरण आदि का हिन्दी और अंग्रेजी दोनों ही भाषा में हमें इंतजार रहेगा shailagrawal@hotmail.com पर। रचना भेजने की अंतिम तिथि 15 जून है।
आपके स्वस्थ व सुरक्षित जीवन और सर्वे भवन्तु सुखिनः की प्रार्थना के साथ, अगले अंक में फिर मिलते हैं, मित्रों।
शैल अग्रवाल
पुनश्चः अप्रैल ने जाते-जाते हम सबके प्रिय गीतकार कुंवर बेचैन जी को भी हमसे छीन लिया। पहले 17 अप्रैल को नरेन्द्र कोहली जी और अब 29 अप्रैल को कुंवर बेचैन जी। कितना सूना लगेगा हिन्दी का साहित्य आकाश इन दो दैदीप्यमान नक्षत्रों बिना। समस्त लेखनी परिवार की तरफ से अश्रुपूर्ण विनम्र श्रद्धांजलि।
शैल अग्रवाल
संपर्क सूत्रःshailagrawal@hotmail.com
shailagrawala@gmail.com