केवड़िया, गुजरात में एकता की मूर्ति- शैल अग्रवाल


( पटेल संग्रहालय व निवास, अहमदाबाद)
सरदार वल्लभ भाई पटेल, झवेरभाई पटेल एवं लाडबा देवी की चौथी संतान थे| सोमाभाई, नरसीभाई और विठ्ठलभाई उनके अग्रज थे। अपनी शिक्षा मुख्यतः उन्होने स्वयं ही की थी| वल्लभ भाई पटेल ने बैरिस्टर की पढाई लंदन जाकर की और वापस आकर अहमदाबाद में वकालत करने लगे। वे महात्मा गांधी जी के आंदोलनों से सहमत थे। उनके विचारों से उन्हे कोई द्वेष नहीं था बल्कि महात्मा गांधी के विचारों से प्रेरित होकर उन्होने भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन में भाग लिया और आजादी के बाद भी देश के निर्माण में उनका योगदान उसी लगन से जारी रहा। वे प्रथम गृह मंत्री और उप-प्रधानमंत्री बने। आजादी के बाद विभिन्न रियासतों में बिखरे भारत के भू-राजनीतिक एकीकरण में केंद्रीय भूमिका निभाने के लिए पटेल को भारत का बिस्मार्क और लौह पुरुष भी कहा जाता है. सरदार वल्लभ भाई पटेल ने भारत की आजादी के ठीक पूर्व (संक्रमण काल में) ही वीपी मेनन के साथ मिलकर कई देशी राज्यों को भारत में मिलाने के लिये कार्य शुरू कर दिये थे.वल्लभ भाई पटेल और मेनन ने देशी राजाओं को बहुत समझाया कि उन्हे स्वायत्तता देना सम्भव नहीं होगा| इसके परिणामस्वरूप तीन को छोडकर शेष सभी राजवाडे ने स्वेच्छा से भारत में विलय का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया. केवल जम्मू एवं कश्मीर, जूनागढ तथा हैदराबाद स्टेट के राजाओं ने ऐसा करना नहीं स्वीकार किया| जूनागढ के नवाब के विरुद्ध जब बहुत विरोध किया गया तब जूनागद का नवाब जूनागद से भागकर पाकिस्तान चला गया और जूनागढ भी भारत में मिल गया। हैदराबाद के निजाम ने जब भारत में विलय का प्रस्ताव अस्वीकार किया तो सरदार पटेल ने वहाँ सेना भेजकर निजाम का आत्मसमर्पण एक ही दिन में करा लिया किन्तु जवाहर लाल नेहरू ने कश्मीर को यह कहकर अपने पास रख लिया कि यह समस्या एक अंतरराष्ट्रीय समस्या है| जिसकी वजह से कश्मीर अलग है|

“दो स्कूली बच्चे चर्चा में मगन हैं,सरदार पटेल कोई नेता थे,
या कि अभिनेता थे?
मैं भी सोचता हूं –उनका कोई एक दुर्गुण याद कर,
दृष्टि को फेर लूं,होठों को सी लूं।
पर यह क्या?कलियुग के योग्य,
इस छोटे प्रयास में, लौह पुरुष की प्रतिमा, ऊंची, और ऊंची हुई जाती है।
आंखें आकाश में टिक जाती हैं –
पर ऊंचाई माप नहीं पाती हैं।
सरदार वल्लभ भाई पटेल की कवितायें|
खुशबू से जिसकी महका सारा हिन्दुस्तान
वो थे वल्लभ भाई पटेल भारत की शान।
प्रतिभाशाली, व्यक्तित्व के धनी थे सरदार
भारत की आजादी के नायक थे महान।।
आजादी के बाद बिखरी रियासतों का
किया एकीकरण,लौह पुरुष कहलाये।
स्वाध्याय से प्रांरभिक शिक्षा ली फिर लंदन
जाकर बैरिस्टर की पढ़ाई में प्रथम आये।।
बारडोली सत्याग्रह की सफलता के बाद
सरदार की उपाधि वहां की महिलाओं ने दी
दुश्मनों के लिए लौह पुरुष थे सरदार पटेल
इनको मरणोपरांत भारत रत्न की उपाधि दी।।
हृदय कोमल,आवाज में सिंह सी दहाड़ थी
भारतीय राजनीति के प्रखण्ड विद्वान थे।।
शत् शत् नमन ऐसे महान व्यक्ति को
वे भारत की आन बान और शान थे।।“
– उषा अग्रवाल
उषा अग्रवाल जी की यह कविता हर भारत प्रेमी के दर्द को बखूबी बयां करती है। याद है बचपन में पिता जी कहा करते थे कि यदि सरदार पटेल की बात मानकर सारे बेघर शरणार्थियों को जिनकी बड़ी संख्य़ा पंजाब से आ हिन्दु थे , काश्मीर में बसा दिया गया होता तो बहुतों के आंसू पुंछ जाते और किसी भी देश की काश्मीर की तरफ देखने की हिम्मत ही न होती।
सरदार वल्लभ भाई पटेल ने 562 बिखरी भारतीय रियासतों को एक समग्र और सशक्त भारत का रूप दिया जो विश्व के आगे विविधता में एकता की मिसाल बना। एक भारत को श्रेष्ठ भारत मानने वाले सरदार पटेल का जन्म 31 अक्टूबर, 1875 को एक साधारण कृषिक परिवार में हुआ था। वे विद्वान, दृढ चरित्र के परन्तु व्यवहार में बेहद सादगी भरे और विनम्र थे। त्याग और कर्म की प्रतिमूर्ति लौह पुरुष सरदार पटेल को फिजूल खर्ची कतई पसंद नहीं थी। अहमदाबाद में उनके जन्मस्थली के संग्रहालय के संचालक ने बताया था कि उनकी बेटी मनीबेन ने मरते दमतक उनकी सेवा की। कि वह कपड़ा बचाने के लिए अपने पिता के फटे कुरतों से ही अपने ब्लाउज सिला करती थीं। देश का विभाजन फिर गांधी की हत्या , काश्मीर की धारा 370 आदि कई बातें थीं जिन्होंने उन्हें पूरी तरह से तोड़ दिया था। गांधी ने उन्हें प्रधानमंश्री नहीं बनने दिया था क्योंकि उन्हें देश की एकता और शांति के लिए असाध्य श्रम करना था। उन्होंने उप प्रधानमंत्री का पद तो संभाला परन्तु उनकी और तत्कालीन नेहरू जी की विचारधारा बिल्कुल विपरीत थी। 15 दिसंबर, 1950 को हृदयाघात से उनकी मौत हो गयी।
सरदार पटेल का सबसे पहला और बड़ा योगदान भारत की स्वतंत्रता आन्दोलन में खेडा संघर्ष में हुआ| गुजरात का खेडा खण्ड भयंकर सूखे की चपेट में जीता था, तिसपर से अंग्रेजों ने किसानों पर भारी कर भी लगा दिये थे जो प्रत्येक किसान के लिए गरीबी में आटा गीला जैसी कठिन परिस्थिति हो चली थी| किसानों ने अंग्रेज सरकार से कर में छूट की मांग की लेकिन अंग्रेजों ने उनकी यह बात नहीं मानी, तब सरदार पटेल, गांधीजी एवं अन्य लोगों ने किसानों का नेतृत्व किया और उन्हे कर न देने के लिये प्रेरित किया| अन्त में सरकार झुकी और उस वर्ष करों में राहत दी गयी| यह सरदार वल्लभ भाई पटेल की पहली सफलता थी।

( एकता की मूर्ति, केवड़िया, गुजरात)
सरदार वल्लभ भाई पटेल के सम्मान में भारतीय सरकार, मोदी जी के नेतृत्व में 31 अक्टूबर 2013 को सरदार वल्लभ भाई पटेल की 137वीं जयंती के मौके पर गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गुजरात के नर्मदा जिले में सरदार वल्लभ भाई पटेल के एक नए स्मारक का शिलान्यास किया. जहाँ लौह से निर्मित वल्लभ भाई पटेल की विशाल प्रतिमा लगाने का निश्चय किया गया। स्मारक का नाम “एकता की मूर्ति” (स्टैच्यू ऑफ यूनिटी) रखा गया| यह “स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी (93 मीटर) से दुगनी ऊंची है.इस प्रस्तावित प्रतिमा को एक छोटे चट्टानी द्वीप पर स्थापित किया गया है जो केवाड़िया में सरदार सरोवर बांध के सामने नर्मदा नदी के बीच स्थित है| सरदार वल्लभ भाई पटेल की यह प्रतिमा आज दुनिया की सबसे ऊंची धातु मूर्ति है, जो 5 वर्ष बाद पूरी तरह से तैयार हो कर 31 अक्टूबर 2018 को भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के हाथों से उद्घाटित हुई थी। इस मूर्ति को बनाने में पूरे 2990 करोड़ रुपए का खर्चा सामने आया है और 2500 मजदूरों की टीम पांच वर्ष तक कार्यरत् रही थी। इसी वर्ष यानी पूर्ण होने के मात्र चार महीने बाद, फरवरी 2019 में आपकी इस मित्र को भी स्टैच्यू औफ यूनिटी देखने जाने का सौभाग्य मिला था और मन गौरव से भर गया था। भव्यता व प्रबंध देखने लायक था। पास ही एक कैम्प सिटी बनाई गई है जो सभी सुख सुविधाओं से पूर्ण है और स्टैच्यू के ऊपर एक हेलिकौप्टर राइड का भी प्रबंध है। इसके अतिरिक्त सरदार की जीवनी पर लाइट एँड साउन्ड शो भी होते हैं। न सिर्फ यह एक आकर्षक पर्यटक स्थल सिद्ध हो रहा है और भारत के राषिकोष में अभूतपूर्व इजाफा करेगा अपितु लौह पुरुष सरदार पटेल की स्मृति , उनके आदर्श और सिद्धांत, उनकी दृढ़ता को भी आने वाली पीढ़ियों के बीच जीवित रखेगा।
शैल अग्रवाल

1ए, ब्लैकरूट रोड, सटनकोल्डफील्ड
वेस्ट मिडलैंड्स, य़ू.के.
shailagrawal@hotmail.com

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