उसको मुड़कर नहीं देखना है, कतई नहीँ। थोड़ा रुक कर उसने जोर से सांस ली और छोड़ी, आंखें कसकर मींच ली। हां, अब ठीक है। वह आगे बढ़ रहा था और सोच रहा था कि यह लेन इतनी लंबी क्यों है। उसके मन में जबरदस्त इच्छा उठी पीछे मुड़कर देखने की, हालांकि वह जानता है कि पीछे कुछ नहीं है,कोई भी नहीं है, जो उसको हाथ हिलाकर विदाई दे, खिड़की से झांकती दो आंखें उसका पीछा कर रही होंगी ऐसा भी नही है। पर वह चाहता है , पूरे मन से चाहता है कि ऐसा हो।पर क्यों ?और अचानक समय का पहिया 40 साल पीछे चला गया…. सालों पहले आया था पत्नी और बच्चे के साथ देश से बाहर, ढेरों रंगीन सपनों के साथ ।माता-पिता थोड़ा थोड़ा दुखी और खुश दोनों ही थे एक साथ ।सालों बीत गए पराए देश को अपना बनाते बनाते। पहले पहल चिट्ठियों से बाद में फोन से समाचार मिलते रहे आत्मीय जनों के। ऐसे ही किसी एक दिन माता-पिता के चले जाने का समाचार भी मिला था, गया भी था वह अपने देश रस्म अदायगी के लिए।पर जब लौटा तो अंदर से कुछ सहमा सहमा सा था। सोचता रहा दौलत तो बहुत सी हो गई चलो अब वापस चलें। शायद उम्र के इस पड़ाव पर पहुंच कर पत्नी भी अपने पराए का भाव समझ रही थी। पर उसका बेटा आजाद था उसे वापस नहीं जाना था बल्कि उसको तो इस छोटे देश से बाहर किसी बड़े देश में जाने की इच्छा थी और वह चला भी गया।
अपने देश में पैर रखते ही ताकत आ गई थी उसे और पत्नी को। बड़ा बंगला, गाड़ी, नौकर चाकर और बीच-बीच में बेटे से वीडियो चैट।
लेकिन ज्यादा समय नहीं मिल पाया। पत्नी ने साथ छोड़ दिया। बेटा आया था रस्म रिवाज निभाकर चला गया ।
बड़ा घर बेचकर पहाड़ पर छोटा सा घर बनवा लिया था उसने ।लिखने पढ़ने में डूबाये रखा खुद को । साल दर साल बीतते चले गए कि अचानक मन में इच्छा हुई कि बेटे के पास चले और सच इतनी गहरी इच्छा कि चल पड़ा उससे मिलने बिना बताए। सरप्राइस का जमाना है खूब चलता है आजकल। सबसे पहले उस देश में गया जहां से उसने पराया होना शुरू किया था अपनों से ,अपने सपनों के लिए ।
घूमते घूमते उसने महसूस किया कि सब कुछ वैसा ही है जैसा छोड़ कर गया था सुंदर ,कोमल, मुलायम । कुछ पुराने लोग भी मिले । सभी बूढ़े हो चले थे । एक स्टोर से बेटे के लिए उसकी मनपसंद के कुछ चॉकलेट खरीदे उसने, मन में संकोच था कि अब उसको ये पसंद होगी कि नहीं। जहाज में बैठा बार-बार बेटे का बचपन याद करता रहा। बरबस मुस्कुराता रहा बातें याद कर के ।हवाई अड्डे पर पहुंचकर याद आया कि बेटे के घर का पता क्या है?
हां ,व्हाट्सएप पर है एक बार भेजा था न उसने । भला हो ,मोबाइल का, इस नए युग की सबसे अप्रतिम खोज का। टैक्सी से ज्यादा उसका मन उड़ा जा रहा था।
‘ यही घर है।” टैक्सी वाले ने कार रोक दी। सच ,मन काबू में नहीं था। बरसों हो गए थे बेटे से मिले। कांपते हाथों से लकड़ी का गेट खुलते ही लौंन में नीली नीली आंखों वाले छोटे से बच्चे ने उसे सहम कर देखा और खेल छोड़ भागकर घर में इत्तला दी कि कोई अजनबी बाहर खड़ा है।
‘ मैं—-का पिता।”
‘ आपने बताया नहीं पहले ।” भूरे बालों वाली लड़की ने बच्चे को गोद में उठा लिया और साफ अंग्रेजी में आइए कह कर घर के अंदर चली गई ।
अजीब असमंजस में पड़ गया वह। कहीं गलत घर में तो नहीं घुस आया.—- लेकिन लड़की ने तो कोई प्रश्न किया ही नहीं।इसका मतलब यह मेरे बेटे को जानती है।
बैठे-बैठे बोर हो गया। सोफे में सिर टिका कर आंखें बंद करते ही नींद आ गई उसको ।
अचानक कंधे पर दबाव महसूस किया उसने,आंखें खुली। थोड़ी देर तो समझ ही नही पाया कि कहां बैठा है।
‘ वह आप बिना बताए ऐसे कैसे चले आए पापा”। बेटा उनके बगल में बैठा था ।दूसरे सोफे पर वह लड़की और बच्चा बैठे थे। उसका मन हुआ कि बेटे को जोर से बाहों में भर ले। इससे पहले कि वह एसा कुछ करता, बेटा बोला – “यह नादेशदा है और यह हमारा बेटा रॉनी।’इस सूचना से असमंजस में पड गया वह …उसे खुश होना चाहिए या दुखी, अपमानित महसूस करना चाहिए या रोमांचित ?पर पता नहीं क्या हुआ कि उसने धीरे से ‘अच्छा” कह कर नादेशदा और रॉनी को देखा। नादेशदा असहज हो गई और बच्चे को लेकर वहां से चली गई ।
‘आपको बताना चाहिए था ना पापा कि आप आ रहे हैं” बेटे ने उसकी ओर देखा ।वह खामोश सिर झुकाए बैठा रहा ।
बेटा फिर बोला -‘कल हम लोगों ने स्पेन जाने का कार्यक्रम बनाया है। मगर आप चाहें तो यहां रह सकते हैं। हम तीन-चार दिनों में लौट आएंगे”— थोड़ी देर उसके उत्तर की प्रतीक्षा की बेटे ने पर उसको कुछ सूझ ही नहीं रहा था कि वह क्या बोले ।
बाहर से ऑर्डर कर इंडियन खाना मंगाया था नादेशदा ने ।खाना खाकर सोने के लिए कमरा दिखाने के बहाने बेटा साथ-साथ आया। कंबल को बेड पर फैलाते हुए बोला-‘ कुछ चाहिए तो बता दीजिएगा” थोड़ी देर खड़ा रहकर चला गया।
बिस्तर पर लेटे-लेटे उसको अपने मां पिता दिखाई देने लगे।’ ये सरिता है। मेरे साथ काम करती है। शादी कर ली हमने ।कोर्ट मैरिज —
मां पिता दोनों के मुंह से बोल नहीं फूट रहे थे ठीक ऐसे ही जैसे आज वो बेजुबान हो गया। शायद इसी तरह असमंजस ने उन्हें भी घेरा होगा उस समय ।
‘हम लोग हंगरी जा रहे हैं 2 हफ्ते बाद ,काम के सिलसिले में ।”उसे ठीक ठीक याद है शादी के 2 साल बाद उसने ठीक यही वाक्य कहा था मां पिता से।
‘ कब आओगे”?
‘पता नहीं चिट्ठी लिखते रहेंगे वहां पहुंचकर।” माँ सिसक पड़ी। पिता मां को समझाते रहे कांपती आवाज में कि वहां की जिंदगी बेटे के लिये कितनी अनुकूल है। तब से बिना पीछे देखे लगातार आगे भागता रहा है वह।
पर आज सुबह जब बेटे से किसी तरह यह झूठ कहकर निकला कि वह सिर्फ 1 दिन के लिए आया था यहां,वह लगातार पीछे देखना चाह रहा है ,और चाह रहा है कि दो हाथ उसकी विदाई के लिए हिले जरूर, दो जोड़ी आंखें, खिड़की से सटी, उसका जाना देखें ,जरूर- जैसे सालों पहले उसके माता-पिता ने किया था।
डॉ. उषा शर्मा
शिक्षा- एम. ए.- हिंदी, अंग्रेजी, स्नातक पत्रकारिता।
सत्य साई महाविद्यालय तथा संत हिरदाराम महाविद्यालय, भोपाल, सोफिया विष्वविद्यालय, बल्गारिया तथा वसंत कन्या महाविद्यालय, वाराणसी में हिंदी विषय का अध्यापन।
विभिन्न पत्र पत्रिकाओं – परिकथा, शब्द योग, साहित्य अमृत, दिनमान टाइम्स, जनसत्ता, साप्ताहिक हिंदुस्तान, बालहंस, दैनिक जागरण, सुमन सौरभ, पराग, बाल भारती आदि में कहानियाँ प्रकाशित।
आकाषवाणी से कहानियों का प्रसारण।
कहानी संग्रह ‘बर्फ‘ तथा ‘अप्रैल फूल और अन्य कहानियाँ‘ और लोक पर केंद्रित पुस्तक ‘मध्य हिमालयी लोक चेतना ‘ प्रकाशित। दूरदर्षन से अनेक नाटकों का प्रसारण। दूरदर्षन व आकाषवाणी के अनेक कार्यक्रमों में प्रतिभागिता।
अनेक देशों की अकादमिक यात्राएँ।
संप्रतिः बल्गारिया में निवासरत। स्वतंत्र लेखन
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