कहानी समकालीनः बंट्या-मोहन बैरागी

तेरह साल का ‘बंट्या‘ गाँव से शहर जा रही कच्ची, अधपक्की पगडंडी पर नंगे पैर पैदल चला जा रहा है। भरी गर्मी, जेठ की तपती दोपहरी में गर्मी से जलते पैरों को कुछ बचने बचाने की कोशिश करता….? हाफ अस्तिन की फटी सी पसीने से गीली शर्ट के नीचे से बहकर पसीना नेकर को गीला कर रहा है..? लेकिन उसे इसका कोई भान नहीं….? उसके दिमाग में सिर्फ एक बात चल रही है कि उसे तीस मिनट में तीन किलोमीटर लंबा सफर तय कर शहर पँहूचना है और कहीं से भी गाँव में बीमार पिता ‘रामभुवन‘ के लिए इंजेक्शन लेकर आना है। डाॅक्टर ने तीस मिनट का समय दिया है। ‘रामभुवन‘ को गर्मी की वजह से लू लग गई और बुखार उतरने का नाम नहीं ले रहा…..गाँव के एक आरएमपी डाक्टर ने बुखार उतारने का अंतिम इलाज इंजेक्शन ही बताया है।
‘बंट्या‘ के पैर तप कर कडक हो गये और अब प्यास भी लगने लगी है….हंसने खेलने की उम्र और इस बचपन में ही उस पर ऐसी जिम्मेदारी आन पड़ी, जिसका ठीक से उसको भान भी नहीं…लेकिन सवाल पिता ‘रामभुवन‘ के बुखार का है….और ‘बंट्या‘ जानता है इसकी गंभीरता को…? अभी डेढ़ बरस पहले ही उसकी माँ का देहांत इसी तरह से बुखार के बाद हुआ था। बाहर से पसीने से तर-बतर, सुखते गले और प्यास के मारे हाँफते करते आखिर ‘बंट्या‘ शहर में दाखिल हो गया…..। पगडंडी को जोड़ती मुख्य सड़क के किनारे घने बरगद की छांव में कुछ बच्चे कंचे खेलते दिखाई देते है…..पास ही एक हेण्डपंप भी है। ‘बंट्या‘ गर्मी से कड़क हुए पैरों में दर्द की चिंता किये बगैर लंगडाते हुए भागकर हेण्डपंप के पास पँहुचता है। अपने कद से ऊंचे हेण्डपंप के हत्थे को ऊचककर नीचे लाता, फिर पुरा ज़ोर लगाकर दो-तीन बार ऊपर-नीचे चला देता….उधर हेण्डपंप पानी उगलने लगा….‘बंट्या‘ हत्था छोड़कर मार छलांग हेण्डपंप के मुंह पर दोनो हाथों की ओक बनाकर पानी पीता है…..,उसे दो-चार ओक एक साथ पानी पीकर तो जैसे कुछ जान आई सी महसुस होने लगी, कि तभी एक फुटबाल आकर ‘बंट्या‘ का लगती है….दुसरी तरफ से आवाज आई….!
ऐ…ऐ…ऐ लड़के…हमारी फुटबाल उठाकर फेंक दे इधर….?, ‘बंट्या‘ अवाक्……उसने आज से पहले इतनी बड़ी गेंद न देखी थी..? उसे तो वहीं कपडे की गुथी हुई छोटी गेंद पता थी, जिससे वह अपने दोस्तों के साथ गदामार जैसे खेल खेतना था..? दोनो हाथों से फुटबाल उठाकर कुछ पल उसे निहार ही रहा था कि फिर आवाज़ आई…..ऐएएए….ऐ…लड़के, हमारी फुटबाल इधर पास कर दो प्लिज।
‘बंट्या‘ ने दोनो हाथों से अपना पुरा ज़ोर लगाकर फुटबाल को दुसरी तरफ फेंका और एक टक निहारता रहा, कैसे ये शहरी बच्चे पैरो से इस गेंद को एक दुसरों की तरफ उछाल रहे है…? उसके लिए खेल नया नहीं लेकिन इतनी बड़ी गेंद पहली बार देखना नया था…?
फुटबाल खेल रहे बच्चों में से एक बच्चा पुछता है..? ऐ…..क्या नाम है तुम्हारा…खेलोगे फुटबाल हमारे साथ..! ‘बंट्या‘ तुरंत भागकर बच्चों में शामिल होकर पथरीली कच्ची पक्की पगडंडी पर चलकर कठोर और कड़क हो गये पैरों से फुटबाल को किक मारने की कोशीश करता है, फुटबाल तिरछी हवा में उड़कर सड़क कि और भागने लगती है। अपने पैरो की बिना चिंता किये ‘बंट्या‘ खुद भागकर फुटबाल उठाकर ले आता है, तभी पास के घरों से बच्चों के अभिभावकों की आवाज़ आने लगती है…..‘‘चलो…अब गेम ओवर करो…पढ़ाई का टाईम हो गया।‘‘ बच्चों का लीडर अपनी फुटबाल लेकर बिना कुछ कहे घर की और चल देता है….‘बंट्या‘ को भी अपनी मंज़िल को भान होता है, उसे अपने पिता ‘रामभुवन‘ का चेहरा दिखाई देने लगता, और वह शहर में आगे की तरफ बढ़ने लगता है। ‘बंट्या‘ उधेड़बुन में है कि गाँव के डाक्टर ने उसे दवा की दुकान का पता जहाँ बताया था, वह उसी दिशा में जा रहा है…या कहीं गलत रास्ते पर तो नहीं निकल आया…? वह सोच ही रहा होता है कि सामने से भीड़ की शक्ल में कुछ लोग दौड़े चले आ रहे है, सभी के हाथ में चाकु-छूरे, लाठी-डंडे है…और कुछ विशेष तरह की गालियां देते हुए सड़क के आजु-बाजू पड़े वाहनों दुकानों घरों को तोड़ते फोड़ते नुकसान करते हुए आगे बढ़ रहे है…? यह सब कुछ देख मासूम ‘बंट्या‘ सहम जाता है…? वह छुपने की जगह देखने लगता है….तभी उसकी नज़र पास के मंदिर पर पड़ती है…तुरंत वह भागकर मंदिर के भीतर प्रवेश कर जाता है। भीतर घुसते ही पीले गमछे जिस पर कुछ श्लोक अंकित है, गेरूआ धोती पहले पहने दाढ़ी वाले एक बाबा दिखाई देते है….शायद वह इस मंदिर के पुजारी है..! हांफते-हांफते वह अंदर बढ़़ता है…. तभी पुजारी जी बोल पड़ते है
‘‘अरे बेटा…..कौन हो तुम….और इतना हांफ क्यों रहे हो…? आओ, इधर मेरे पास आओ…..घबराओं नहीं….। तुम श्री हरि की शरण में हो….यहाँ सबके दुख दूर होते है….। डरो नहीं…आओ पानी पी लो…कहाँ से आये हो…कौन हो तुम…घबराओ नहीं…। ‘बंट्या‘ बाहर उन्माद मचा रही भीड़ के बारे में बताते हुए अपने पिता के लिए इंजेक्शन लेकर जाने की बात कहता है।
पुजारी ‘बंट्या‘ को पानी देकर मंदिर के दरवाजे से बाहर झांककर देखता है, और चारो तरफ के शांत माहौल को देखकर कहता है….कोई नहीं है, सब उन्मादी चले गये शायद…इनको कोई भय नहीं ऊपरवाले का….आए दिन दंगा-फसाद करते रहते है। चलो, जाओ अब तुम भी….तुमको अपने पिता के लिए इंजेक्शन लेकर जाना है। ‘बंट्या‘ पुजारी के पिछे से छुपकर झांकते हुए मंदिर के दरवाजे से बाहर देखता है…सब कुछ शांत सा प्रतित होने पर वह बाहर निकल कर आगे सड़क किनारे बढ़ने लगता है।
कुछ दुरी पर उसे दवाई की दुकान नज़र आती है…वह दुकान की तरफ बढ़ ही रहा होता है कि इस बार एक और हुजूम कुर्ता पायजामा पहने टोपी लगाये लोगों का हाथ में तलवार लहराते दिखाई देता है….इस बार ‘बंट्या की घिघ्घी बंध जाती है….वह समझ नहीं पाता कि क्या शहर ऐसा होता है, छोटे से बचपन के आगे यह सफ खौफ के मंजर पहली बार असलियत में उभर कर सामने आ रहे थे…? फिर से खुद को बचाने की जुगत में सड़क किनारे खड़ी कार के पिछे छुप जाने कि चेष्टा करने लगता है…इस बार ‘बंट्या‘ की आँखों में डर के साथ आँसू भी हैं….तभी उसे हरे रंग की दीवारो वाली लंबे मीनार नुमा एक भवन दिखाई देता है….शायद यह मस्जिद है…। बिना कुछ सोचे ‘बंट्या‘ भागकर अंदर चला जाता है…। इस बार उसे कुर्ते पजामें और सफेद टोपी में कोई मौलाना सामने दिखाई देते है….वो ‘बंट्या‘ को देखकर ताज्जुब करने लगते है…इतना छोटा बच्चा यहां रो रहा है….? बेटा क्या हुआ,,,? तुम रो क्यों रहे हो…? बताओ…घबराओ नहीं…ये अल्लाह का घर है…..। ‘बंट्या‘ मौलाना को हिचकते हुए बिना देर किये सारी कहानी बता देता है……मौलाना को भी समझते देर न लगती…..वह ‘बंटया‘ को हाथ पकड़कर खुद आगे लेकर आते है….आओ चलो…पास में दवा की दुकान है…मै तुमको इंजेक्शन दिलवा देता हूँ….। ‘बंट्या‘ को जैसे मंजिल मिल गई थी, बिना कुछ सोचे वह मौलाना के साथ दवा की दुकान से इंजेक्शन खरीद लेता है…। अब उसे वापस घर जाने की जल्दी है…समय की काफी हो गया है….डाक्टर ने उसे जल्दी आने को कहा था। वह अपनी नेकर की जेब से रूपये निकाल दवा दुकानदार को देकर तुरंत इंजेक्शन की थैली हाथ में लेेकर उल्टे पैर दौड़ने लगता है। दवा की दुकान से चंद कदम दुर गया ही था कि सायरन बजाती…ट्वीईई….ट्वीईई….ट्वीईई…पुलिस जीप सामने आकर रूक जाती है….उसमें से एक पुलिस मेडम बाहर उतरतकर फटकार लगाते हुए….एै….एै…कहाँ भाग रहा है, बीच सड़क पर….देखता नहीं ट्रेफिक कितना है….कोई गाड़ी कुचल देगी…..कहाँ रहता है तु….? अबकी घबराहट के मारे ‘बंट्या‘ की हालत खराब…., उसने एक बार अपने गाँव में एक चोर की पीटाई देखी थी….पुलिस ने बेल्ट ही बेल्ट से उसे मारा था….? ‘बंट्या‘ हाथ के इंजेक्शन की थैली को पिछे पीठ की तरफ छुपाने की कोशीश करता है, गर्मी से बेहाल, ऊपर से पुलिस का खौफ…हलक से कुछ शब्द न निकलते…..गला रेगिस्तान सरीखा सुख गया….तुभी पुलिस मेडम पास आकर उसके हाथ को आगे कर थैली देखती है, जिसमें इंजेक्शन है….और थोड़ नर्म होते हुए…..ये क्या है बेटा….कहाँ ले जा रहे हो….कोई बीमार है…..? बड़ी मुश्किल से तुतलाती, लड़खड़ाती ज़ुबान से ‘बंट्या‘ पुलिस मेडम को सारी कहानी बयां कर देता है। पुलिस मेडम को मासूम की जिम्मेदारी और स्थिति समझते देर न लगती…! वह ‘बंट्या‘ को अपनी जीप में बैठाकर गाँव जाने वाली पगडंडी पर छोड़ आती है। ‘ंबंट्या‘ को अब न गर्मी का एहसास था, न थकावट का….वह दौड़कर उस उबड़-खाबड़ पगडंडी से पुरे तीस मिनट में इंजेक्शन लेकर अपने गाँव पँहुचता जाता है…….डाक्टर को इंजेक्शन ले जाकर देता है। डाक्टर ‘रामभुवन‘ को इंजेक्शन लगा देता है….अगले कुछ मिनट में ‘रामभुवन‘ का बुखार उतरने लगता है।

डाॅ. मोहन बैरागी
कवि/गीतकार/संपादक/पत्रकार
43, क्षीर सागर, द्रविड मार्ग, उज्जैन, मप्र.
मोबाईल- 9424014366

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