कहानी समकालीनः छोटी माँ-पद्मा मिश्रा

जाडो की गुनगुनी धूप मन को बहुत अच्छी लगती हैं परऊंची ऊंची इमारतों के पार से झांकती सूरज की किरणें मेरी छत तक जरा देर से पहुंचती है फलस्वरूप मौसम की कंपकंपी और शीतलता से हमारी सुबह की क्रियाशीलता जरा देर से शुरू हो पाती है, मैंने एक बार बाहर खिड़की से झांका तो पाया कि धुंध अभी छटी नहीं है अतः प्रात:भ्रमण पर जाने की इच्छा का परित्याग कर तुरंत खिड़की बंद कर दी और रजाई मुंह तक खींचकर सोने का उपक्रम करने लगी,न जाने कब गहरी नींद आ गई,मेरी नींद पड़ोसी शर्मा जी के नाती पीयूष के जोर जोर से चीख कर रोने की आवाज से खुली,सारा आलस्य छोड़कर तुरंत गेट की ओर भागी कि अचानक क्या हो गया है, मालूम हुआ कि आज फिर “टी” नहीं आई है,, और मैंने राहत की सांस ली, मेरे चेहरे पर मुस्कान दौड़ गई,”की,यानि उनकी नौकरानी की छ वर्षीया बेटी छोटी”जिसे उनके दो वर्ष का नाती पीयूष”टी” कहता है,छोटी अपनी मां के साथ जब काम पर आती तो नन्हे पीयूष के साथ खेलने बैठ जाती थी, पीयूष की मां जाब में थी और पिता इंजीनियर साथ ही किसी दूसरे शहर में पदस्थापित, अतः घर पर बूढ़े नाना नानी के अतिरिक्त उसकी देखभाल करने वाला कोई नहीं था,उसका सात साल का बड़ा भाई जब स्कूल चला जाता तो अक्सर छोटी उस बच्चे के साथ खेलने के लिए रुक जाती थी दोनों में इतना प्यार और लगाव उत्पन्न हो गया था कि एक दूसरे के बिना न खेल में कोई रुचि न दूध न खाना पीना,,जब तक टी आकर खुद खाना न खिलाये,,वह खाना तो दूर कभी दूध भी नहीं पीता था,,, मुझे कभी कभी आश्चर्य होता कि वह छह वर्षीया छोटी सी बच्ची जिसे खुद अभी मां की जरूरत थी वह कैसे एक मां बनकर उतनी ही कुशलता से उसे नहलाती है कपड़े पहनाकर बाल संवार कर उसके पीछे पीछे दूध रोटी लेकर घूमती रहती है, कभी कुत्ता तो कभी गाय दिखाकर बच्चे के मुंह में कौर डालती रहती है नन्हा पीयूष अपने डगमगाते कदमों से कभी ऊपर नीचे, कभी सीढ़ियों पर तो कभी लान में दौड़ता रहता है ,,यदि कभी छोटी थककर बैठ जाती तो वह भी रुककर अपने पीछे उसके आने की प्रतीक्षा करता है,, फिर वही खेल!!!
छोटी को भी शायद भागदौड़ के इस खेल में मजा आता है इसी बहाने पीयूष के द्वारा छोड़े गए फल बिस्कुट आदि उसे भी मिल जाते हैं, जो उस अभावग्रस्तता और गरीबी में अपनी मां के घर में रहते हुए शायद ही कभी मिल पाते,, अंततः दोनों के बढ़ते लगाव से पीयूष की मां तो निश्चित हो ही गई थी उसकी बूढ़ी नानी ने भी चैन की सांस ली थी, उन्होने पांच सौ रुपए महीने पर छोटी को पीयूष की देखभाल के लिए रख लिया था इस प्रकार छः सात वर्ष की उम्र में ही छोटी को”जाब मिल गया था, पर छोटी थी तो बच्ची ही भला अच्छा खाने पहनने के अलावा उसे क्या चाहिए था?? जबकि उसी की हमउम्र बस्ती की लड़कियां मां के साथ मिल कर काम काज सीखने लगती है,,ताकि कहीं काम मिल जाए,,यह छोटी की गरीबी और पारिवारिक विवशता भले ही रही हो,वह उस घर की जरूरत बन गई थी,
विधाता मातृत्व का गुण लड़कियों को शाय़द उनके जन्म से ही सौंप देता है जब वे छोटे-छोटे गुड्डे गुड़ियों को प्यार करने लगती हैं, उनके ब्याह रचाती है और उन्हें विदा करते हुए ठीक एक मां की तरह शोक के सागर में डूब जाती हैं, और इस तरह वह नन्ही सी छोटी भी एक मां के रुप में ढल रही थी,, वह नन्हे पीयूष की मां बन गई थी*छोटी मां**बच्चे की मां जब छुट्टियों में घर पर ही रहती तो चाह कर भी कभी उसे अपने साथ नहीं रख पाती थी, क्योंकि पीयूष अपनी मां की गोद में भी बैठता तो छोटी भी जरूर बैठती और वह अपने नन्हे हाथों से कभी उसकी फ्राक तो कभी उसका हाथ पकड़े रखता था,ताकि छोटी उसे छोड़कर कहीं भाग न जाए,, फिर थोड़ी देर में उठ कर अपने खेल में व्यस्त हो जाता था,,
मैं अक्सर दोनों मां बेटे के खेल को देख देख कर आनंदित हो लेती और देखती कि छोटी भी अपनी मां की भूमिका में इस कदर डूब जाती है कि भूल जाती थी कि वह भी एक बच्ची ही है और अभी तो उसे भी मां की जरूरत है, हां,कभी कभी पीयूष जब सो जाता तो वह अक्सर घर के गेट पर आकर खड़ी हो जाती क्योंकि उसी रास्ते से उसकी मां अन्य घरों के काम समाप्त कर वापस लौटने वाली होती है, वह दौड़कर अपनी मां से लिपट कर खुद एक बच्ची की तरह दुलार करने लगती है मां से,,,,, उसकी मां मालकिन के घर से लाई नाश्ते की पूरियां या रोटी उसे खाने के लिए देकर उसके सिर पर हाथ फेरकर उदास भाव से आगे बढ़ जाती है,,
मातृत्व का यह भाव बोध लड़कियां शायद जन्म से ही लेकर पैदा होती हैं, और अनुकूल परिस्थितियां पाकर यह सुप्त भावना भी जाग जाती है,जो किसी उम्र की सीमा में नहीं बधी होती,, मैंने पीयूष के साथ टी के इस वात्सल्य को देखकर ही जाना था कि कैसे वह उसके एक इशारे पर अपनी आंखें बंद कर झूठ मूठ सोने का बहाना करता है और कभी कभी तो उसकी गोद में ही सो जाना है,,जब वह उसकी शैतानियों से तंग आकर डांट लगाती है**चुप रहो!!*तो अपनी नन्ही सी ऊंगली होंठों पर रख कर यूं सिमट कर बैठ जाता,मानो बोलना अभी सीखा ही न हो,,,,, एक बार छोटी अपनी मां के साथ गांव घर चली गई वहां से वापस लौटने पर उसे बुखार ने धर दबोचा और वह कई दिनों तक नहीं आ सकी,, इधर पीयूष अपनी टी को न पाकर बेचैन हो गया था,सारे दिन रोता रहता न खाता न पीता, अजीब जिद्दी और चिड़चिड़ा हो गया था, उसे भी बुखार हो गया और वह लगातार टी की रट लगाता रहा, अंत में बीमार बुखार से तपती हुई टी स्वयम् ही अपनी मां के साथ आ गई, क्योंकि पीयूष की बीमारी की खबर सुनकर वह भी उसे देखने की जिद करने लगी थी, घर पहुंच कर उसने जैसे ही पीयूष के माथे पर हाथ रखकर पुकारा*ब उआ !!*तभी पीयूष ने व्याकुल होकर अपनी आंखें खोल दीं, फिर क्या था, अपनी छोटी मां की गोद में बैठ कर उसने ब्रेड भी खाया और दूध भी पिया,इस घटना ने हम सबकी आंखों में आसूं ला दिये थे, कौन नहीं रोया था उस क्षण?? डाक्टर ने छोटी को भी दवा दी थी और वह ठीक हो गई थी,, एक दिन पीयूष की नानी बहुत नाराज़ थी और वह किसी को जोर जोर से डाट रही थी, मैंने बाहर निकल कर देखा तो छोटी थी,वे कुछ पूछ रही थी और छोटी पीयूष का हाथ थामे बौखलाई हुई खड़ी थी, पीयूष के माथे पर छोटी सी चोट लग गई थी शायद खेलते समय भागादौड़ी में गिर गया होगा,, नानी बेहद नाराज़ थी** बउआ क्यो इतना रो रहा है? जरूर तुमने उसे मारा है**
छोटी सहमी हुई थी, आंखों में आसूं,थरथराती आवाज में बोल उठी**नानी,हम उसे मारेगा?? अपने बउआ को??**
तब मिसेज शर्मा को अपनी गलती समझ में आई क्योंकि छोटी के इस प्रश्न का उनके पास कोई उत्तर नहीं था,वे छोटी को सांत्वना दे चुप कराने लगी,,यह कैसा पूर्व जन्म का संबंध था कि दोनों बच्चे एक दूसरे को जरूरत बन गए थे,चाहे अनचाहे, जाने अनजाने अपनी मजबूरियों से बंधे शर्मा दंपति भी एक तरफ से मजबूर थे, छोटी को पीयूष के साथ खेलने, रहने देने के लिए, दोनों का लगाव मां की कमी भी पूरी कर रहा था पीयूष के लिए,,, सुबह से शाम तक काम कर लौटने पर अपनी थकान के बीच कुछ पल चुराकर पीयूष को प्यार दे पाने में विफल हो जाती उसकी मां, अंत; छोटी ही पीयूष का सारा संसार हों गयी थी जैसे,,,
मैं चाय पीते हुए न जाने कौन सी यादों में खो गई थी कि फिर शोरगुल सुनाई दिया, आज़ फिर”टी”नहीं आई है और पीयूष जोर जोर से रो रहा है कि जब तक टी नहीं आएगी वह पलंग से नीचे भी नहीं उतरेगा और अपने नये जूते भी नहीं पहनेगा,,सभी परेशान हैं मैंने भी उसे मनाने की कोशिश की पर वो तो बस टी की रट लगाए हुए था, उसके नाना ने उसे दूध पिलाने की कोशिश की तो उसने गुस्से में जोर से हाथ मारकर पूरा दूध फर्श पर गिरा दिया,*टी को बुलाओ**की रट जिद का रुप लेती जा रही थी,,स्कूल जाने की जल्दी और आपाधापी में उसकी मां ने कसकर एक थप्पड़ लगाया उसे और सिर पर हाथ रखकर वहीं बैठ गई सारे कमरे में उसके द्वारा फेंके गए खिलौने तकिए, बिस्कुट के टुकड़े बिखरे हुए थे, घर में सभी नाराज थे कि टी अभी तक क्यो नही आई है,,
**बउआ !!!*तभी हंसते हुए दौड़कर नन्हे पीयूष की छोटी मां टी आ गई और झट से उसे गोद में उठा लिया वह चुप हो गया,टी की छाती से चिपक कर सिसकियां भरता पीयूष उसकी गोद में ही सोने लगा था और वह बड़े प्यार से उसके माथे पर हाथ फेर रही थी,कभी उसे माथे पर चूमती,, तो कभी न जाने कौन सी आदिवासी गीत गाते हुए उसे थपकियां दे रही थी वह सात वर्षीया नन्ही सी **छोटी मां*,,,
पद्मा मिश्रा

error: Content is protected !!