प्रेम के रंग कई हैं, कुछ कोमल तो कुछ बेहद खुरदुरे, जिन्दगी की तरह ही। कई-कई रिश्तों से जुड़ता है यह हमसे। इस तालेबंदी ने बहुत कुछ सुझाया और समझाया है। भय और असुरक्षाएँ भी दी हैं। जीवन के प्रति भी और जीविका के प्रति भी। अति कोई भी अच्छी नहीं होती, फिर इस समस्या का तो कोई अंत ही नहीं दिखता। तरह-तरह की सावधानियों की हर कदम पर जरूरत है । जो प्रिय है,अपना है, जिन्दगी में बस वही जरूरी है. सर्वाधिक मूल्यवान निधि है जीवन की, यही कूट-कूटकर समझाया है हमें इस आपदकाल ने। सोचने और थमने को मजबूर किया है हमारी भागती दौड़ती जिन्दगी को । इस अप्रत्याशित और कठिन समय के प्रभाव में मानो हमारी जीवन शैली ही बदल गई है है। काम और कमाई जो आज के भौतिकवादी जीवन का केन्द्र-बिन्दु था परिधि में जा चुका है और परिवार केन्द्र में। कोई और विकल्प ही नहीं बचा किसी के पास क्योंकि बाहर के सारे रास्ते ताले बन्दी में हैं।
संरक्षण के इस प्रयास में बरसों से खीची लक्ष्मण रेखाएँ टूटने लगी हैं। लोगों के पास ऐसी साधारण से साधारण चीजों को भी देखने और मदद करने का वक्त है अब, जो पहले नहीं था। पति भी चौके में मदद और घर में झाड़ू-पोंछा करते दिख रहे हैं। जिसको जैसे वक्त मिलता है संभालता है। साझा मोर्चा बन चुका है जीवन, इस दृढ़ विश्वास के साथ कि मिलजुलकर कठिन से कठिन समस्याओं को भी सुलझाया जा सकता है, हर लड़ाई जीती जा सकती है।
पर करोना काल का यह कोहासा छटने का नाम नहीं ले रहा और कब तक घरों में बन्द रखेगा, कोई नहीं कह सकता। एक नन्हा तारा एस्ट्रा जैनेका की तरफ से कोरोना वैक्सीन के रूप में उम्मीद के आकाश में उभरा तो है, पर रौशनी की यह लकीर कबतक हमतक पहुँचेगी, कहा नहीं जा सकता। दावेदार कई हैं और संसाधान सीमित।
महीनों की लम्बी इस तालेबन्दी से चारो-तरफ बेचैनी और छटपटाहट बढ़ती दिखने लगी है। अब तो मौत और मृतकों की संख्या भी उतना नहीं दहलाती, न तो जनता को और ना ही देश के नेता और निर्णायकों की। अभ्यस्त से हो चले हैं सब। पूरे विश्व की ही आर्थिक व्यवस्था कहीं ठप्प न हो जाए भय सबको ही कुतरने लगा है। बाहर आना और बाजार खोलना भी जरूरी हो गया है। भय कहें या ऊब सभी अपने-अपने दरबों से बाहर निकलने को आतुर है। कुछ उपद्रवी तो व्यग्र छटपटाहट में शस्त्र तक उठा चुके हैं, शायद ऐसे ही कुछ उत्तेजना मिले नीरस और सपाट जीवन से, बोरियत दूर हो…मरना तो वैसे भी है ही एक दिन… आक्रमक और अराजक यह रवैया मानसिक ग्रन्थियाँ बनकर उभरता दिख रहा है और पलायनवादी प्रवृत्ति को जन्म दे रहा है। चाहे व्यक्ति हो या समाज, सामंती और विस्तारवादियों को अतिक्रमण का अच्छा मौका दिख रहा है इन बीमार परिस्थितियों में। छुटपुट पटाकों की तरह फूटते, बरसों से क्या दशकों से गुरिल्ला लड़ाई लड़ते और भटके, लक्षहीन तो मानो अब दुगने जोश से आत्महत्या की राह पर चल पड़े हैं। इस गहन मतिभ्रम और बेबसी में मुनाफाखोरों की भी एक नई जमात उठ खड़ी हुई है। पर साहित्य राजनीति नहीं और यूँ चुपचाप सब स्वीकारते जाना, सचेत न होना भी सही नहीं।
अज्ञान का पोषण ही तो ज्ञान का सबसे बड़ा क्षय है।
अंधेरा यूँ ही नहीं आता, इसका भी एक प्रयोजन है- सच के सूरज को अधिक स्पष्टता और चमक के साथ आँखों के आगे लाना।
हमें भी धैर्य के साथ आसपास के दुःखदर्द पर आँख रखनी है। जरूरत हो और जहाँ तक संभव हो, मदद करनी है-यही वक्त की सबसे बड़ी जरूरत है इस वक्त।
जब सबकुछ हाथों से फिसलता-सा जान पड़ रहा है तो लेखनी का यह अंक जीवन की इन्द्रधुनषी छलनाओं पर नहीं …मानव मन के अनगिनत जाने-अनजाने भ्रमों पर भी नहीं..किसी भी वजह से और कितनी भी दूर हों, दूर ही सही, झिलमिल ख्वाइशों पर, रौशनी की एक लकीर पर केन्द्रित है। ये छलते अवश्य हैं, पर भांति-भांति के अवसाद और निराशा भरे कोहरे में सहारा भी तो यही देते हैं। सांत्वना और प्रेरणा के साथ-साथ जिम्मेदारियों के प्रति जागरूकता और सतर्कता पर केन्द्रित है। जो बचाने लायक है उसे बचाने की कामना करता हुआ, रोशनी की हर नन्ही लकीर के सहारे आगे बढ़ने की कामना और प्रेरणा पर है। कई मन बहलाती. प्रेरक रचनाओं को संजोया है हमने इस अंक में। कुछ रचनाएँ बदलते समाज को परिलक्षित करती हैं तो कुछ हवा-पानी की तरह जीवन के स्थाई भावों को। खुशी की बात है कि कुछ नए कवि साहित्यकारों का भी स्वागत कर रहे हैं हम इस अंक से अपने लेखनी परिवार में । युवा आवाजों की उड़ान और बेचैनी दोनों ही सुनेंगे आप।अगले अंक की परियोजना समाज और सीमा पर खड़े सेनानियों के जीवन और सुख-दुख के साथ-साथ समय की दूसरी और प्रखर मांग स्वाधीन भारत, सुखी भारत पर आयोजित व केन्द्रित है। सैनिकों और उनके परिवार के प्रति अपने-अपने तरीके से आभार व्यक्त करने का भी आप सभी के लिए यह एक अच्छा अवसर होगा। रचना भेजने की अंतिम तिथि 25 अगस्त है।
एक और नए अंक के साथ सितंबर में आपसे फिर मुलाकात होगी। अपना और अपनों का ख्याल रखिएगा।…
शैल अग्रवाल
संपर्कः shailagrawal@hotmail.com