दो लघुकथाएँः शराफत अली खान


सह-अस्तित्व

किसी के बहकाने पर एक दिन पेड़ ने पत्तों से कहा,” तुम बहुत घमंडी हो,और ये भूल रहे हो कि तुम्हारा अस्तित्व मेरी कृपा पर निर्भर है।”
पत्ते कुछ देर खामोश रहे, फिर बोले,” नहीं, ऐसा नहीं है। हमारे बिना आपका अस्तित्व भी अधूरा है, यदि आप असहमत हैं तो हम आपसे अलग हो रहे हैं।”इतना कहकर पत्ते नाराज़ होकर एक एक करके पेड़ से गिर पड़े।

काफी समय गुज़र गया। उस पेड़ पर पत्ते नहीं हुए। तब उस पेड़ को सूखा जानकर जड़ से काट दिया गया।


शोर
शाम होते ही गांव के मन्दिर की घंटी बजने लगी,तभी उसके समीप स्थित मस्जिद में मग़रिब की अज़ान होने लगी।अज़ान की आवाज़ मन्दिर की घंटी की आवाज़ से दबने लगी।अगले दिन सुबह ही मौलवी साहब ने विश्वस्तों से सम्पर्क किया और मस्जिद में लाउडस्पीकर लगा दिया गया।
दूसरी शाम मस्जिद की अज़ान की आवाज़ से मन्दिर की घंटियों की आवाज़ दब गई।अब पुजारी जी ने अपने विश्वस्तों से सम्पर्क किया और शीघ्र ही मन्दिर में भी लाउडस्पीकर लग गया।
अगली शाम वातावरण में मन्दिर की घंटी की आवाज़ और मस्जिद की अज़ान की आवाज़ आपस में गड्मड हो गई और अब न तो मन्दिर की घंटी की आवाज़ सुनाई दे रही थी और न ही मस्जिद की अज़ान की आवाज़।
वातावरण में सिर्फ़ एक शोर सा व्याप्त था।

शराफत अली खान.
343,फाइक इन्क्लेव, फेस-2,बरेली-243006(उ.प्र.)
मो. 7906859034
ईमेल-sharafat1988@gmail.com

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