आज फिर मम्मा और डैडी में बहस हुई है। मैं सुन रहा था। मम्मा बार-बार कह रही थी इस बार क्रिसमस की छुट्टियों में हम लोग इंडिया चलेंगे और डैडी बार-बार मना कर रहे थे। बाद में चीख पड़े कि नहीं जाना हैं इंडिया। कितनी गंदगी है वहां, कितना शोरगुल रहता है। जहां देखो धूल। हर कोई ठगने की फिराक में रहता है। कहने को लोग दोस्त हैं, रिश्तेदार हैं पर पैंसे खर्च करते वक्त चाहेंगे कि उन्हें जेब मे हाथ न डालना पड़े, हमेशा ही करते रहें। कभी भी होटल में जाओ, टैक्सी से चलो, मूवी देखने जाओ, सब यही चाहते हैं कि खर्च मैं ही करु उन्हें न करना पड़े। ऐसे लोगों के साथ क्या उठा-बैठा जाए, उनके बीच क्या जाया जाए।
लगता है, डैडी की चीख ने मम्मा को चुप करा दिया। मुझे भी अच्छा ही लगा कि चलो अब इंडिया जाने से छुट्टी मिली। वैसे मुझे इंडिया की बहुत याद नहीं। मम्मी बताती है, दो साल पहले मुझे लेकर वहां गई थी। तब मैं बहुत छोटा था। तब का कुछ भी याद नहीं। अब डैडी की बातों से इंडिया के बारे में जाना। वह यह भी कहते हैं कि वहां बहुत से बेगर्स (भिखारी) होते हैं। लोग बड़े पुअर (गरीब) हैं। ठीक ही तो कहते हैं डैडी कि ऐसी जगह जाने की क्या जरुरत। वैसे मम्मा बताती हैं, वहां मेरी ग्रैनी हैं, ग्रैंड डैड हैं, कजन्स हैं, अंकल हैं। वहां ग्रैंड डैड को दादाजी, नानाजी, ग्रैनी को दादी माँ, नानीजी, अंकल को चाचाजी, मामाजी, आंट्स को चाचीजी, मामीजी, बुआ जी वगैरह कहा जाता है। तुम भी कहोगे। और वहां कई भइया, जीजी भी हैं।
इतने सारे लोग! कितना खराब लगेगा। क्या एक ही घर में कई लोग रहते हैं? कैंसे रहते होंगे इतने सारे लोग? यहां तो बस हम तीनों ही रहते हैं – मम्मा, डैडी और मैं। एकदम शांति रहती है। मै ही कभी-कभी थोड़ा हल्ला करता हूँ। जब किसी बात को मनवाना होता है, तब जिद्द करता हूँ। कभी मम्मा के मना करने पर भी मुझे देर तक टी.वी में कार्टून देखना ही है या और चाकलेट खाना है। सवेरे-सवेरे स्कूल के लिए तैयार होना है, तो क्या हुआ, मैं जल्दी बेड पर नहीं जाउंगा, जागूंगा। ऐसी बातो पर मम्मा मुझे डांटती है और मैं अड़ा रहता हूँ। पर आज इंडिया के बारे मैं डैडी से जो सुना उससे लगा कि वहां न जाना ही ठीक होगा।
वैसे लगता हैं, ग्रैंड पैरेंटस अच्छे होते है। जोनाथन ने बताया था कि इस बार वीकेंड में वह अपनी मम्मी-डैडी के साथ अपने ग्रैंड डैड-ग्रैनी के घर गया था। वहां खूब इंज्वाय किया और पाँल कह रहा था कि उसके गैंड पैरेंट्स तीन-चार दिन के लिए उसके घर आए थे तब उसके लिए ढेर सारे चाँकलेट तो लाए ही थे साथ में प्ले स्टेशन 2 भी लाए थे. जिससे वह नये-नये गेम खेलता है। पर इंडिया में तो लोग एक ही घर में रहते हैं। तब खाना भी तो इतने लोगों का एक साथ ढेर सा बनता होगा। कौन बनाता होगा? यहां हमी तीनों का बनाने में मम्मा परेशान हो जाती हैं। कभी-कभी जब वह गुस्से में रहती हैं, वह कह देती है, खाना नहीं बनायेगी उस दिन हम बाहर रेस्तरां में खाने जाते हैं। ना, बाबा ना। अच्छा होगा हम क्रिसमस की छुट्टियों में वहां न जाकर डिसनेलैंड जायें। वहां खूब मजा आयेगा। इंडिया मै इतने लोगों के साथ पंद्रह दिन एक ही घर में कैसे रहूंगा। वहां किसी होटल में तो रहना होगा नहीं कि अपना अलग बाथरुम और टी.वी होगा। होटल में कमरा बहुत बढ़िया रहता है। जब चाहे, जहां जाओ, आओ जो चाहे खाओ। जितनी देर तक चाहो. सोते रहो। कोई डिस्टर्व नहीं करता।
अगली शाम ‘टाँम एण्ड जेरी’ देखना शुरु ही किया था जो रुम के बगल में हैं, जहाँ मैं बैठा था। कुछ देर तक तेज-तेज आवाज आती रही, फिर धड़ाम! जरुर डैडी ने कुछ पटका है। मैं डर गया। पहले भी एकाध बार चीजों के पटकने की आवाज सुनी है, पर आज मम्मा के रोने की आवाज भी आई। यह मुझे अजीब और नया लगा क्योंकि जब भी मम्मा-डैडी बहस करते, दोनों की तेज-तेज आवाज आती और कभी-कभी धड़ाम। लेकिन आज तो वो रो रही थी जबकि रोया तो मैं ही करता था। उसे तो कभी रोते सुना ही नहीं था। मैं खूब डर गया। दुबक कर कब सोफे पर ही सो गया, मालूम नहीं।
सबेरे नींद खुली। मैं अपने बेडरुम मे अपने बिस्तर पर था। कुछ देर में मम्मा आई। रोज की तरह मुझे प्यार किया। उनका चेहरा कुछ अजीब सा लग रहा था। पर मैं तो स्कूल मैं, दोस्तो के बीच जाने के ख्याल से ही खुश हो रहा था। घर में तो साथ में कोई खेलने वाला हैं ही नहीं। हैरी का एक छोटा भाई हैं, जिसके साथ वह खेलता है। बिलियम बता रहा था, उसकी माँम एक गुड़िया-सी सिस्टर लाई है, जिसे वह देखता है, छूता है। मम्मा से मैंने कई बार कहा,‘मुझे भी एक गुड़िया सी सिस्टर चाहिए।’ वह कुछ बोलती ही नहीं। दोनों बिजी भी रहते हैं। मेरे लिए तो उनके पास टाइम ही नहीं रहता। सवेरे, किसी तरह जल्दी-जल्दी तैयार कर, मम्मा कार में बिठाकर मुझे स्कूल छोड़ आती है। डैडी तो और भी कुछ नहीं करते। जाते समय ‘बाई-बाई’ कर दिया, बस।
स्कूल की छुट्टी के बाद मिसेज ब्राउन के साथ उनके घर जाना होता है। तीन घंटा उनके यहां रहता हूँ। तब मम्मा मुझे लेने आती हैं। मिसेज ब्राउन भी उछलने-कूदने नहीं देती। चुपचाप कार्टून देखो, ड्रा करो या कोई गेंम खेलो।
घर पहुंचने पर मम्मा जल्दी-जल्दी चेंज करती है। मुझे भी यूनीफार्म चेंज करने को कहती है और खुद किचन में घुस जाती है। उस समय मैं वीडियों या आई पैड पर कोई गेम खेलता हूँ। आखिर क्या करुं। अकेले और कुछ कर भी तो नहीं सकता यों बगीचे में स्विंग, स्लाइड, क्लाइम्बिंग बार, ट्रैम्पोलियम, पैडलिंग पूल सब है। क्रिकेट का बैट और बैडमिंटन के लिए रैकेट भी है। बाइक तो है ही। उन पर खेलने जाता हूँ तो बोर हो जाता हूँ। कमरे में ही चला आता हूँ। यहां भी ढेर से तरह-तरह के खिलौने है लेकिन अब वे भी मुझे अच्छे नहीं लगते। आई पैड मैं और लोग भी दिखते हैं, जिनके साथ कंपटीशन कर पाता हूँ। बाद में डिनर। फिर कभी ड्राइंग करना, पेंट करना, नाइट सूट में चेंज होना। इसके बाद बेड पर लिटाकर, मम्मा मेरे लिए स्टोरी बुक पढ़ती और मैं सो जाता। पांच दिन यही रुटीन रहता है। वीकेंड में यह बदलता है। मम्मा के साथ शापिंग के लिए जाता हूँ, लाईब्रेरी जाता हूँ। रात में कुछ देर तक जागने की छूट मिलती है। मुझे सबसे अच्छा लगता है स्कूल में, जहां टॉम, जेफरी, जूलियन, हैरी सब होते है। क्लास में मिस कुछ-कुछ करवाती भी है और खेल के पीरियड मे हम धमाचौकड़ी भी करते है। खूब मजा आता है। आज जब मम्मा मुझे मिसेज ब्राउन के यहां से लेकर घर लौटी, खूब खुश दिखी। चहकती हुई बोली,“बेटे हम-लोग इस बार क्रिसमस की छुट्टियों में होलीडे के लिए इंडिया जायेंगे। सबसे मिलेंगे। खूब खेलना।”
समझ गया जरुर डैडी इंडिया जाने के लिए राजी हो गये हैं। याद आया, मम्मा रो रही थी। तो क्या उनके रोने से डैडी मान गए? जरुर यही हुआ होगा। मम्मा कितनी खुश है। लेकिन मुझसे किसी ने कुछ नही पूछा। जैसे मेरा मन कुछ है ही नहीं। वे लोग मुझसे पूछते तो मैं जाने को कभी राजी नहीं होता। डैडी से वहाँ के बारे में इतना कुछ जो सुनता रहता हूँ। वहाँ न जाना ही अच्छा होता।
दो दिन बाद फिर मम्मा ने कहा,“इंडिया जाने के लिए बुकिंग हो गई हैं। कितना अच्छा लगेगा। वहाँ न घर का कोई काम होगा न आँफिस जाना। जब तक चाहो, पड़े सोते रहो। कोई नहीं उठायेगा न उठना पड़ेगा। रोज तेल मालिश कराओ। खूब चाट खायेंगे।” वह खुश और मैं परेशान! यह ‘चाट’ क्या होता है, जिसे खाने के बारे मैं सोच कर ही मम्मा इतनी खुश हैं? और मालिश? यदि वहाँ मम्मा सवेरे नहीं उठेगी तो मैं जाग कर क्या करुंगा? कोई स्कूल तो जाना नहीं होगा कि—-।
मम्मा ने कहा, “अपना कैरी बैग ले लेना। उसमे अपने कुछ गेम्स ओर बुक डाल लेना। हाँ, ड्रा करने के लिए पैड और कलर्ड पेंसिल डालना मत भूलना, ताकि प्लेन में बोर न हो। आखिर करीब नौ घंटे की फ्लाइट है।”
बाप रे, नौ घंटे प्लेन में बैठना पड़ेगा। इसके बाद दिल्ली नाम के शहर मैं हमारा प्लेन लैंड करेगा। बाद में रात भर की जर्नी के बाद हम इलाहाबाद शहर पहुँचेंगे, जहाँ मेरे ग्रैंड पैरेन्टस और न जाने कौन-कौन लोग रहते है। क्या है वे लोग? कैसे होते होंगे? मम्मा ने बहुत सी चीजे सबके लिए खरीदी हैं। कैसी खुश-खुश दिखती हैं इन दिनों। डैडी चुप-चुप से रहते हैं।
दिल्ली एयरपोर्ट अच्छा लगा। साफ-सुथरा। हीथरो जितना बड़ा नहीं है पर है बड़ा सा। ढेर से स्टोर, जिनमें अच्छी-अच्छी चीजें थीं। वहाँ से बाहर निकलते ही भीड़ दिखी और लोग काले-काले, सूखे-सूखे लगे। मैंने मम्मा से कहा, “ This is your India!” वह कुछ नहीं बोली।
टैक्सी चली। पहले सड़क पर बहुत लोग नहीं दिखे। लेकिन थोड़ी देर बाद जगह-जगह खूब लोग दिखने लगे। कार और बस के सिवा और कई तरह की चीजें चलती दिखीं। साइकिल जैसी एक तिपहिया गाड़ी की ओर इशारा करते डैडी ने बताया कि वह रिक्शा है। देखा, उसमें दो लोग सीट पर बैठे थे और तीसरा आदमी कुछ उचाँई पर बैठा पैडल चला रहा था अभी तक मैंने चार पहियों वाली कार, लम्बी-लम्बी कई पहियों वाली बसें, दो पहियों की बाइक, मोटर साइकिल तो देखी थी, पर तीन पहियों का रिक्शा। मन हो रहा था उस पर बैठ कर देखूं कैसा लगता हैं। इस तरफ शोरगुल भी था। मैं चुपचाप आश्चर्य के साथ सब देखता रहा।
अगली सुबह ट्रेन इलाहाबाद पहुँची। ट्रेन रुकते ही कई लोग हमारे कम्पार्टमेंट के सामने आ गये। मम्मा लपक कर नीचे उतरी और हमें भी उतार लिया। वे तुरन्त एक लेडी से हग करने लगी। एक आदमी ने मम्मा डैड को बुके दिया और मुझे गोद में उठाकर ढेर सारे गुब्बारे दिये। सब लोग खूब खुश दिख रहें थे। लोग मुझे प्यार-दुलार करने लगे गोद में ले लेकर। पर मैं तो बड़ा सा था न! मुझे अजीब सा लग रहा था पर अच्छा भी लग रहा था। मम्मा-डैडी के साथ हर चार-छ माह बाद किसी न किसी देश में होलीडे के लिए जाता रहता हूँ लेकिन कहीं भी स्टेशन पर या एयरपोर्ट पर न तो कभी कोई मिलने आता है न ही कभी कोई चीज दी फिर हग और प्यार कहाँ।
हम कार में चले। मैं हैरान रहा। रिक्शा नाम की वह चीज तो थी ही, कहीं-कहीं मचान जैसी चीज को एक हौर्स (घोड़ा) खींच रहा था। मम्मा ने बताया, इसे इक्का कहते हैं। एक जगह एक लम्बी सी गाड़ी को खींचते दो बुल (बैल) भी दिखे। “देखो,यह बैलगाड़ी है।” मैं उसे देखता ही रहा। जरुर इन सब पर बैठना अच्छा लगता होगा। कैसे धीरे-धीरे चलती हैं ये चीजें। कार तो सरपट मागती है, यह नहीं, रास्ते में काऊ बुफैलो, गोटस, फिग्स (सुअर) भी दिखते रहे। मैंने तो ये सारे एनिमल्स केवल जू में ही देखे थे। क्या ये यहाँ खुले में रहते हैं? कहीं भी आ-जा सकते हैं। मुझे यह सब-देख कर जानवरों को ऐसे घूमते देखकर बहुत अच्छा लग रहा था। कार मैं नानी जी मुझे गोद मैं बैठाये थी। कैसी मुलायम-मुलायम गोद है। लंदन में न तो कभी मम्मा न ही डैडी मुझे गोद में बैठाकर कार में चलते हैं। हमेंशा ही अकेले कार सीट में बैठकर बेल्ट से बंधकर चलना पड़ता है।
मम्मा ने कहा, “सबसे पहले हम दादाजी-दादी माँ के पास चलेंगे। वही तुम्हारा घर है।” उनका घर मेरा कैसे? मेरा घर तो लंदन में है। यहाँ तो ग्रैंड पैरेंटस का घर है। जब कार एक घर के सामने रुकी तो में देखता ही रह गया। खूब बड़ा सा घर था मेरे फेवरेट कलर हरें रंग का मकान। बड़ा सा लाँन ढेर सारे गमले, रंग-बिरंगे जाने-अनजाने फ्लावरस्। पोर्टिको में लटके गमले। अभी मैं देख ही रहा था कि एक एजेड सी लेडी ने झट से मुझे गोद में उठा लिया और हग कर मेरा माथा चूमने लगी। मम्मा झुकी उनके पैर छुए। मुझसे भी कहा, “ये तुम्हारी दादी माँ है, इनके पैर छुओ।” मैं उनकी गोदी से उतर कर, मम्मा की तरह उनके पैर छुए। दादाजी के भी। मैंने देखा, दादी माँ की आंखे भरी थीं।
सोचा, इंडिया के लोग कितने अच्छे होते हैं। और कहीं जाओ तो कोई न तो दुलार करता है न कुछ देता है। बस कमरे में कोई आदमी सामान पहुंचा देता हैं और हुम तीनो रह जाते है। बाद में तैयार होकर हम घूमने जाते हैं। कहीं खाते हैं। कभी-कभी कुछ खरीदते हैं। मम्मा-डैड मेरे लिए गेम आदि लेते हैं अपने लिए मैगनेट। दस, पंद्रह दिन हम यहाँ वहाँ घूमते हैं, कई-कई चीजों को देखते हैं। कुछ बड़ी-बड़ी इमारते होती हैं, कभी म्युजियम तो कभी बढ़िया सा पार्क आदि। देख-दाखकर, घूम फिर कर हम प्लेन में बैठते है और लंदन वापस आ जाते हैं। बाद में मुझे उन चीजों की याद भी नहीं आती। हाँ, डिसनेलैण्ड अभी भी याद है, जहाँ तरह तरह के गेम थे, राइड्स थे। मैं कई राइड्स पर गया था। वहाँ बग्सबनी, मिकी माउस, गूफी आदि घूम रहें थे। परियां भी थीं। पानी में गोल-गोल चक्कर लगाते बाउल थे, जिन पर मैं बैठा था और भी न जाने कितने तरह की चीजें थीं, जिनके नाम अब मुझे याद भी नहीं। खूब इंज्वाय किया था। वैसे वहाँ भी बस मैं, मम्मा और डैडी ही साथ-साथ रहते थे। थे तो बहुत से लोग वहाँ, पर हमसे तो कोई बात भी नहीं करता था।
यहाँ जितने लोग है, सब मुझसे बात करते हैं। मैं कभी अकेला रह ही नहीं पाता। नाश्ते के लिए मेज पर सब लोग साथ बैठे। दो लोग नहीं बैठे थे, जिन्हें दादी माँ या चाची जी राधा और श्याम कह कर बुला रही थी। वे किचन से तरह-तरह के डिशेज ला-लाकर मेज पर रख रहे थे। यहाँ न तो मम्मा को कोई चीज लाकर देना पड़ा न डैडी को। फिर यहाँ हर दिन की तरह जूस, सीरियल, टोस्ट, दूध और फल ही नहीं बल्कि गरम-गरम खाने के सामान थे। किसी चीच को ‘चीला’ कहा जा रहा था, किसी को ‘पोहा’। एक मीठी चीज थी, जिसे लोग ‘हलवा’ कह रहे थे। खूब टेस्टी लगा। दूध पीने के लिए भी किसी ने जोर नहीं दिया। मैंने ‘लस्सी’ नाम की ठंडी मीठी चीज पी। मजा आ गया। दादी माँ मुझे खुद खिलाती रहीं। जबकि वहां मम्मा सीरियल आदि दे देती हैं और कहती रहती है,‘जल्दी-जल्दी खा लो, मैं तैयार हो रही हूँ वरना स्कूल के लिए देर हो जाएगी। अकेला बैठा मैं कुछ खा लेता था, कभी कुछ फोड़ देता था और कभी-कभी तो वह टोस्ट उठा लेने को कहती और उसके साथ ही कार में, सीट बेल्ट से बांध देती और कहती रास्ते में खाते जाना। अपने से ही कोट पहनना पड़ता, स्कूल वाले जूते पहनने पड़ते और हैट लगाना पड़ता। वह अपने कमरे से पूछती रहती, ‘पितान’, ने यह किया, वह किया? अभी तक ब्रेकफस्ट किया या नहीं? जूते पहन लिए? कभी मेंज पर ही पेल्ट, मग आदि पड़े रह जाते, कभी सिंक में और समय रहा तो डिशवाशर में। जल्दी-जल्दी मैं और मम्मा कार में जाते समय स्कूल ले जाकर, मुझे किस करती फिर मुझे वहॉ छोड़कर चली जाती। उसके बाद मैं दोस्तो के साथ इंज्वाय करने लगता था।
हाँ वीकेंड में इस रुटीन से छुट्टी मिलती। मम्मा-डैड बहुत देर तक सोते रहते थे। मेरी नींद रोज की तरह जल्दी खुल जाती। मैं बिस्तर पर पड़ा-पड़ा परेशान हो उठता। उनके कमरे में मैं एलाउड नहीं था। बिस्तर मैं कितनी देर रहता। उठकर मैं टाँयलेट जाता। कभी डी.एस कभी आई पैड लेकर बैठ जाता या फ्रंट रुम में जाकर टी.वी में कार्टून देखते लगता। थोड़ी देर में उससे भी बोर हो जाता। मम्मा डैड को तो 12 बजे से पहले उठना नहीं था। मुझे भूख लग आती। किचन में जाकर बिना ब्रश किए ही स्नैक ड्राअर से कुछ-कुछ निकाल कर खाने लगता था कभी चॉकलेट, कभी एप्पल पाई, टार्ट तो कभी क्रिप्स। ये सारी चीजें ठंडी रहती थी। यहाँ तो मजे ही मजे है। लोग कहते रहते हैं, ‘नमन’, जरा इसे खाकर तो देखो और चीला का एक टुकड़ा कैचप के साथ मेरे मुहं मे डाल देता हैं। सचमुच बड़ा ही टेस्टी लगता।
भइया. जीजी मुझे अपने कमरे में ले गए। वे लोग मुझसे थोड़े बड़े हैं। उन्होंने कहा,‘ चलो लूडो खेलें। हम लोग ‘स्नेक और लेडर’ खेलने लगे। कभी स्नैक काटता तो नीचे उतर आते कभी सीढ़ी से ऊपर चढ़ जाते। जीतने पर हम उछलते, शोर करते। स्नेक के काटने पर हाय-हाय करते। शोर करने पर न तो मम्मा मना करने आई न कोई और। रियली, मुझे तो पता ही नहीं था कि मम्मा हैं कहाँ पर। हम जितनी देर खेलते रहे मुझे मम्मा याद हीं नहीं आई। लंदन में भी मेरे पास लूडो है, पर खेलू तो किसके साथ? मम्मा को तो टाइम ही नहीं रहता। डैडी इस मामले में और भी बेकार। बहुत-बहुत दिनों के बाद मेरा फ्रेंड माइकेल आता। हम बगीचे में खेलने लगते। ज्यादा ठंड लगती तब अंदर जाकर, मन हुआ तो लूडो निकालते थे।
लूडो के बाद सोचा गया कि अब भाग दौड़ वाला कोई खेल खेला जाए। उन लोंगो ने लुका छिपी नाम का एक खेल बताया, जिसमें हम तीन में से दो को घर में कहीं भी छिप जाना था और तीसरे को आंख पर कपड़ा यों बांधना था कि वह देखने न पाए कि और लोग कहाँ छिप रहें हैं। छिपने के बाद जब कोई जोर से रेडी कहता, तब वह कपड़ा हटा देता और हमारे छिपने की जगह ढूंढता और मिलने पर उसे पक़ड़ लेता। हम खेलने लगे। वाह, क्या मजा आया। पूरे घर में दौड़ते रहो, ढूंढते रहों। न तो कोई मना करता न कुछ कहता। पकड़े जाने पर हम लोग ‘पकड़ लिया,पकड़ लिया,’ कहकर खूब चिल्लाते। पूरे दिन आज घर में ऐसे ही कई तरह के खेल खेलते बीता। बीच-बीच में कई-कई लोग मम्मा-डैड से मिलने आते रहें। हर बार मुझे भी बुलाया जाता। लोग दुलारते। कोई चाकलेट देता, कोई कुछ और चीज। मैं जरा सी देर उनके पास रुकता फिर भाग जाता जीजी-भइया के पास। हम तीनो चाँकलेट उड़ाते या क्रिप्स, जिसे जीजी-भइया चिप्स कह रहें थे। शाम को हम दो कारों में बैठकर सिविल लाइन नाम की जगह चले। हाँ, तब रास्ते में कहीं-कहीं मुझे कूड़े का ढेर दिखा। घर में कुछ भी कहीं गंदा नहीं दिखा था। सिविल लाइन में सबने चुरमुरा नाम की चीज ली। मुझे भी खाने को कहा गया। उसमें बहुत सी चीजें मिक्स थीं। मैंने पहली बार चुरमुरा खाया। मैं पूरा खा गया। बाद में लोंगो ने मसाला कोक लिया। मुझे भी दिलाया। कोक मैंने बहुत पिया था। यह मसाला कोक क्या हैं? अरे, यह तो कोका कोला से भी बहुत ज्यादा टेस्टी है। मैं अब से यही पिया करुगां। लेकिन जब तक यहाँ इंडिया में हूँ, तभी तक न! लंदन में न तो चुरमुरा मिलेगा न मसाला कोक!
घर लौटने पर न तो मम्मा को किचन में जाना प़ड़ा न वह डैड पर झुझलाई जैसा अक्सर लंदन में होता था, जब बाहर से लौटने पर उन्हें किचन में जाना पड़ता और डैड टी.वी के सामने बैठ जाते थे। कारण, यहाँ बढ़िया सा खाना तैयार था। सभी चीजों के साथ मेरा फेवरड डिश ‘मटर पनीर’ भी रखा था। वहाँ मम्मा तीन चार महीने बाद कभी मटर पनीर बनाती थी। कहा करती थी,‘ यह प्योर इंडियन डिश है। पर बनाने में बहुत समय लगता है। वहाँ तो ज्यादातर मुझे बर्गर, पास्ता या पिज्जा ही खाना पड़ता है।
यहाँ सेरे डिसेज राधा और श्यामू ने बना रखी थीं। पर वे लोग हमारे साथ खाने नहीं बैठें। मुझे अच्छा नहीं लगा, क्योंकि लंदन में दो-तीन वीक के बाद मम्मा क्लीनर को बुलाती थी तो वह हमारे साथ ही मेज पर बैठकर लंच करती। पूछने पर कि ये लोग हमारे साथ खाने क्यों नहीं आ रहे? मम्मा ने कहा, ‘ वे नौकर है, इसलिए बाद में खाएंगे।’ ‘नौकर’ क्या होता है जो हमारे साथ नहीं खा सकता? मैं सोचने लगा। दिखते तो हमारी ही तरह हैं। उन्हें भी तो भूख लगी होगी।
रात में दादी-माँ ने मुझे अपने साथ सुलाया। मैं उनके साथ कडल करके सोया। वहाँ मम्मा-डैड मुझे अपने साथ कभी नहीं सुलाते। मुझे अकेले अपने कमरे में सोना पड़ता यदि कभी बहुत जिद्द करता हूँ तब मम्मा अपने बेड पर सोने के लिए एलाउड कर देती है पर जब नींद खुलती तो पाता कि मैं अपने कमरे में अपने ही बिस्तर पर हूँ। यहाँ दादी माँ के साथ न केवल कडल किया बल्कि वे किंगक्वीन वाली कहानी भी सुनाती रहा, जिसे सुनते-सुनते मैं कब सो गया, मालूम नहीं।
सबेरे नींद देर से खुली। मैं बिस्तर मैं अकेले था। दादी-माँ उठकर जा चुकी थी। उसी समय वहाँ भइया-जीजी भी आ गए। मैं जल्दी से टाँयलेट गया। फिर हम तीनों एक दूसरे पर तकिया फेकने लगे। बिस्तर पर ही कूदने लगे। मन हो रहा था, सारे दिन ऐसे ही कूदता रहूँ। कितना मजा हैं इतने सारे लोगो के घर में रहने से। मुझे अकेले नहीं खेलना प़ड़ता, न सोना पड़ा। वहाँ चाहूँ तो टैडी थाँमस को कडल करके सोता हूँ। पर वह कभी भी बात नहीं कर सकता।
मम्मा ने पाँच-छ दिन बाद कहा “आज हमलोगों को दूसरे ग्रैंड पैरेंट नानाजी-नानीजी के घर जाना है।” कैसे होंगे वे लोग? क्या वहाँ भी होगा कोई, जिसके साथ सारे दिन खेल सकूंगा? वहाँ पहुचने पर और भी अच्छा लगा। वहाँ कई लोग थे। मामा जी, मामी जी, छोटी अवी, मौसी जी, उनके साथ मेरे ही बराबर का बकुल। साथ वाले घर में, बड़े नाना जी के यहाँ कई छोटे-छोटे भइया-जीजी। सब लोगों ने हमें घेर लिया। कई बड़े लोगो ने मुझे प्यार किया।
वहाँ हम छ बच्चे खेलने लगे। पूरा ग्रुप था। ऐसा लगा जैसे लंदन के अपने स्कूल में हूँ। हम धमाचौकड़ी करते रहे। बस, लंच के समय सबके साथ बैठना पड़ा। मुझे लगा कि आज मैं खाना हमेशा से ज्यादा खा ऱहा हूँ। और ‘लो इसे भी खत्म करो,’ कह कह कर खाने के लिए न तो मम्मा मुझे टोक रही न ही डैड डांट रहे है। मैं खुद ही, अपने मन से मांग कर खा रहा हूँ। आज मुझे खाना इतना अच्छा क्यों लगने लगा? थोड़ी देर मैं सोचता रहा हूँ। मम्मा कितनी ठीक थी। हमें गंदगी या भीड़ से क्या लेना-देना है।
इसी तरह शाम को जब नानी जी ने दूध पीने के लिए पुकारा तब मै जल्दी से दौड़ा और गट-गट पी गया। मुझे खेलने जाने की जल्दी जो थी। मम्मा को मेरे सामने बैठकर यह नहीं कहना पड़ा कि ‘पियो खत्म करो न ही यह कि दूध पी लोगे तो चाँकलेट देगे।’ मुझे यहाँ चाँकलेट की परवाह ही नहीं थी। सारा दिन तरह-तरह के खेल में बीत गया। कब सोया यह भी याद नहीं। हम तीनों छोटे एक ही पलंग पर सोये, इतना ही याद है। अगले दिन मम्मा ने कहा, “आज लंच के लिए हमे किसी के घर जाना है। उन्होंने बताया कि जहां जायेंगे, वह नानी जी की मौसी जी का घर है। यहाँ कितने ढेर सारे रिलेटिव्स हैं। केवल अंकल-आंटी नहीं न मिस्टर एंड मिसेज। हम लंच के लिए गये। मैं वहाँ चुप-चुप रहा क्योंकि वहाँ सभी बड़े-ब़ड़े लोग थे। पर लंच में इतने तरह की चीजें थी कि देख-देख कर ही मेरा मन भर गया। लंदन मैं तो कोई हमें अपने घर लंच के लिए बुलाता ही नहीं और रेस्तरां में जाओ तो मीनू देखकर जिस चीज का आर्डर दो, वही चीज आता है। जब हम उनके घर से लौटने लगे, उन्होंने हमें टीका लगया, एक लिफाफा पकड़ाया। मुझे चाँकलेट का एक बड़ा सा पैकेट भी दिया घर में बैठने पर जब मम्मा से मैने पूछा कि यह सब क्यों किया गया? उन्होंने कहा कि यह हमारा कल्चर है। बड़े लोग इससे अपना प्यार और अपना ब्लेसिंग देते हैं।
हम 15 दिनों के लिए इंडिया आए थे। पता ही नहीं लगा कि वे 15 दिन कैसे इतनी जल्दी बीत गए। हम कभी किसी के घर जाते कभी किसी के। एक दिन सबके साथ ‘मूवी’ देखने गया। लंदन में मैंने कभी मूवी देखा ही नहीं था। एक दिन मामा जी खूब सारे फायरवकस ले आए जिन्हें रात में हम सबने मिलकर खूब इंज्वाय किया।
आज हमें दिल्ली जाना था। फिर वहाँ से लंदन के लिए फ्लाइट लेनी थी। इस बीच मम्मा ने ढेर सी शापिंग भी की। दादी माँ, नानी जी, मामा जी ने वे सारी चीजें मुझे दिलवा दीं, जिन्हें मैं पसंद करता गया। ढेर सारे कपड़े और जादू का सामान भी। मम्मा-डैड ने सारा सामान पैक कर लिया। हम कार में बैठे। दादी माँ, दादा जी, चाचा जी, चाची जी, जीजी भइया सब लोग साथ में स्टेशन चले। वहाँ पहुँचने पर देखा, नाना जी, नानी जी, मामा जी और भी कई लोग आये थे।
गाड़ी आई। सामान कुली नाम के एक आदमी ने ट्रेन मे रख दिया। बेचारा कुली इतने भारी-भारी सूटकेस कैसे उठा रहा था? मम्मा-डैड भी अंदर चढ़ गए। दादी माँ ने मुझे उठाकर चिपका लिया। वह बार-बार मेरे माथे पर किस कर रही थी। वह मुझे गोद में लिए ट्रेन के डब्बे से सटी दरवाजे के पास खड़ी थी। ट्रेन चलने का समय होने पर सीटी बजी। वह मुझे मम्मा को पकड़ाने लगीं। पर मैं उनसे जोर से चिपट गया। शायद गाड़ी खिसकने लगी थी। मम्मा ने मेरा हाथ पकड़ा और जोर से अंदर खींच लिया।
उर्मिला जैन
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