लेखनी संकलनः माँ तुझे नमन


माँ जब तक रहेगी

माँ
जब तक रहेगी

छोटी-छोटी
क्यारियों में महकेगा
धनिया/पुदीना

खेतों की मेड़ों पर
खिलेंगे
गेंदे के पीले फूल

आँगन में
दाना चुगने आएगी
नन्हीं गोरैया

देहरी पर
सजी रहेगी रंगोली

कोठरी में
खेलेंगे
भूरी बिल्ली के बच्चे
रम्भाएगी बूढ़ी गाय

छत में सूखेंगी
कबूतरों-सी सफ़ेद धोतियाँ

माँ
जब तक रहेगी
बेटियों को मिलता रहेगा
प्रेम का नेग

तेरे बाद जैसे
दुनिया ही खत्म हो जाएगी
माँ मेरे लिए।

-विनीता जोशी

 
बेसन की सौंधी रोटी पर खट्टी चटनी जैसी मां

बेसन की सौंधी रोटी पर खट्टी चटनी जैसी मां
याद आती है चौका बासन, चिमटा फुकनी जैसी मां

चिड़ियों की चहकार में गूंजे राधामोहन अली अली
मुर्ग़े की आवाज़ से खुलती घर की कुंडी जैसी मां

बान की खुर्री खाट के ऊपर हर आहट पर कान धरे
आधी सोई आधी जागी भरी दोपहरी जैसी मां

बीवी, बेटी, बहिन, पड़ोसन थोड़ी-थोड़ी सी सबमें
दिन भर इक रस्सी के ऊपर चलती नटनी जैसी मां

बांट के अपना चेहरा, माथा, आँखें जाने कहाँ गयी
फटे पुराने इक एलबम में चंचल लड़की जैसी मां

  -निदा फाजली

   
अम्मा

लेती नहीं दबाई अम्मा
जोड़े पाई-पाई अम्मा
दुख थे परवत, राई अम्मा
हारी नहीं लड़ाई अम्मा
दुनिया के सब रिश्ते ठंडे
गरम-गरम रजाई अम्मा
इस दुनिया में सब मैले हैं
किस दुनिया से आई अम्मा
रोज गिरस्ती की चादर में
करती है तुरपाई अम्मा
बाबूजी थे छड़ी बेंत की
मक्खन और मलाई अम्मा
बाबूजी तो तनखा लाए
उसमें बरकत लाई अम्मा
अम्मा में से थोड़ी-थोड़ी
सबने रोज चुराई अम्मा
बच्चों का जी बहलाना था
चांद जमीं पर लाई अम्मा
कितनी रौनक है अम्मा से
है घर की शहनाई अम्मा
नाम सभी हैं गुड़-से मीठे
मांजी, मैया, माई, अम्मा
अम्मा से घर, घर लगता है
घर में घुली-समाई अम्मा
सभी साड़ियां छीज गई थीं
मगर नहीं कह पाई अम्मा
घर में चूल्हे मत बांटो रे
देती रही दुहाई अम्मा
बेटी की ससुराल रहे खुश
सब जेवर दे आई अम्मा
सबने मेरा ही कद देखा
थी मेरी उंचाई अम्मा
बाबूजी बीमार पड़े जब
साथ-साथ मुरझाई अम्मा
लड़ते-लड़ते, सहते-सहते
रह गई एक-तिहाई अम्मा
सभी पराए हो जाते हैं
होती नहीं पराई अम्मा।
-योगेश छिब्बर

 माँ का प्यार

कौन कहता है हम माँ को याद रखते हैं
सच तो यह है वो खुद ही याद आती है

याद है मुझको वो बचपन की पुरानी यादें
चोट मुझको लगी जाँ उसकी बिलक जाती है
 
माँ अमीरी में रहे चाहे ग़रीबी को सहे
माँ तो बस माँ है और माँ ही कही जाती है

हम परेशानी में झिटकार उसे देते हैं
माँ दुआयें हमें पल पल ही दिये जाती है 

ढ़ूढ़ते हैं नहीं मिलती हमें आशा की झलक
माँ की नम आखों में बेलौस नज़र आती है

हक़ तो माँ का न कभी कोई निभा पाये “रज़ा”
माँ वो गाथा है जो सदियोँ में कही जाती है।

 -अब्बास रज़ा अलवी  


ममता बिखेरती है

माँ हमारे जीवन का हैं
सशक्त मूल आधार
कष्ट-गरल को सहर्ष पीकर
दिखाती हमें संसार ।

सर्व-ज्ञात है यह सत्य कि
स्वर्ग से बढ़कर माँ है
संतान-संतति कुछ भी हो पर
दया दिखाती माँ है ।

श्रद्धा, विश्वास और स्नेह का
माँ एक महत पूंज है
नहीं कोई, कुछ साथ हो अगर
संग मातृत्व का अनुगूँज है ।

मान-अपमान सब सहकर भी
माँ ममता बिखेरती है
नवोत्कर्ष हो संतानों का-
यही कामना करती है ।

कल, आज और कल भी अगर
निःस्वार्थ जीव की बात हो
माँ ही होगी एकमात्र जो
इस जगत में ऐसी सौगात हो ।

मनोज आजिॉज आदित्यपुर-२, जमशेदपुर
9973680146

 माँ करती  तुझे मै नमन

ऐ माँ करती हूँ,  तुझे मै नमन
“तेरी परविरश, संघर्ष और तपस्या को“ करती हूँ नमन
हूँ, जहां आज मै, उसमे  तेरा बडा है योगदान
तेरी लगन और चाहत का, है ये परिणाम

प्यासे को मिलता जैसे पानी,
माँ तू है वो जिंदगानी ,
माँ तू ही तो पूरी करती, हर जिद मेरी
नौ महीनो तक सींचा तूने
लाख परेशानी सही तूने ,
पर कभी ना तू हारी
धूप सही तूने और दी मुझे छाया
भगवान का रूप तू ही है दूजा
मेरी खुशी मे ही तेरी खुशी होती
तेरे प्यार का मोल नही है कोई

तू ही तो मेरा हर दर्द महसूस करती
मीठी-मीठी लोरी गाती, मुझे रात सुलाती
रोज सुबह बिस्तर से उठाती
टिफन बनाती, यूनिफोर्म तैयार करती
रोज मुझे  स्कूल भेजती
मुझे कया अच्छा लगता, तुझे था सब पता
तेरी हाथ की रोटी के बराबर, नही है स्वादिष्ट कुछ दूजा
लाड प्यार से सदा सिखाया, तूने सच्चा ज्ञान

तू भोली, प्यारी न्यारी, मेरी माँ
तू सुखद कण की, एक फुहार
तू तपती आग मे नरम छाँव-सी
तुम मुश्किलो मे हमेशा राह दिखातीं
तुम मेरी खास प्रिय मीत सी
ऐ माँ करती हूँ , तुझे मै नमन

तेरे हर दर्द को महसूस मुझे अब करना
तेरे बुदापे का सहारा बनना
तेरी तपस्या को नही भूलना
तेरे हर ख्वाब को पूरा करना
तेरा मन नही दुखाना
तेरे आगे हर पल है शीश झुकाना
तू ही है मेरा जीवन
पाकर हुई हूँ तुझे मै धन्य

नही हैं शब्द करूँ मै कैसे तेरा धन्यवाद,
बस चाहिए तेरा आशीर्वाद,
तेरी महिमा ना होगी कभी कम
भले कर लें कितनी ही उन्नति हम

ऐ माँ तेरा धन्यवाद!
करती हूँ तुझको शत-शत प्रणाम
ऐ माँ करती हूँ  तुझे मै नमन!

-ज्योति चौहान

माँ 
दुनिया भर की दुख- तक़लीफें भुला लिया करता हूँ
माँ के दामन में जब सर को छिपा लिया करता हूँ
 
माँ  देती जब ढारस मुझको मेरी नाकामी पे
अपने  भीतर  दूनी  ताकत  जुटा लिया करता हूँ
 
खफ़ा खफ़ा सी नींद मेरी तब मुझे मनाती  हैं  
माँ की बांहों को तकिया जब  बना लिया करता हूँ

माँ ही मंदिर, माँ ही मस्जिद, माँ गिरजा – गुरद्वारा 
रब के बदले माँ को मैं सर नवा लिया करता हूँ

यही हुनर सीखा है मैंने हर पल खटती माँ से 
बोझ कोई भी हो हंस कर उठा लिया करता हूँ

मायूसी के अँधियारों में जब जब घिर जाता हूँ
माँ की यादों के दीपक तब जला लिया करता हूँ

  -सुभाष नीरव


” माँ ”

दिल में  प्यार  और  आँखों  में  ममता  छलकाती  हमारे  लिए 
लबों पे दुआ और चेहरे पे मुस्कान हमेशा रखती हमारे लिए 
न खुद की कोई चाह न करे परवाह वो फ़िक्र करे  हमारे लिए 
हम फूलो की सेज पे कदम रखें वो काँटों पे चलती हमारे लिए 
दुखों की चादर झाड़कर खुशियों का बिस्तर लगाये  हमारे लिए 
ज़रूरत पड़े तो बन जाए दोस्त तो कभी गुरु बने हमारे लिए 
कभी खुद ही बलैया ले कभी डर के नज़र भी उतारे हमारे लिए 
आ जाए कोई मुश्किल वो दुआ करे और राह दिखलाए हमारे लिए 

वो ”माँ” ही है बस जो हर पल खुशियाँ मांगे बस हमारे लिए 
वो ” माँ ” ही है  जिसने  दिया सब कुछ,मैं क्या  मांगू  उसके लिए 
ऐ  खुदा मेरी ” माँ” को हर पल मेरे करीब ही रखना 
ऐ  ”खुदा ‘ ”माँ ”की छाया में मुझे महफूज़ ही रखना 
ऐ ”खुदा” हर जनम मेरी ”माँ ”में ही मेरा वज़ूद रखना  ।
                                                                                        
-रश्मि तरीका

माँ

उसकी सस्ती धोती में लिपट
मैने न जाने
कितने रंगीन सपने देखे हैं
उसके खुरदुरे हाथ
मेरी शिकनें संवार देते हैं
उसकी दमे से फूली सांसें
पड़ाव हैं
कमजोर दो बाहें
मेरी ठांव हैं
उसकी झुर्रियों में छिपी हैं
मेरी खुशियां
और बिवाइयों में
भविष्य!
-दिव्या माथुर

मां के नाम चिठ्ठी

प्यारी माँ
तू कैसी है
क्या मुझको याद करती है  
तूने पूछा था कैसा  हूँ मै 
मै अच्छा हूँ
तेरी ही सोच के जैसा हूँ
यंहा  सब सो  गए हैं
मै अकेला बैठा  हूँ
सोचता  हूँ
क्या करती होगी तू
काम करते करते
बालों का जूडा बनाती होगी
या फिर
बिखरे समानो को समेटती होगी
पर माँ
अब समान फैलाता  होगा कौन
मै तो यंहा बैठा हूँ मौन 
सुनो माँ
तुमने सिखाया था
सच बोलो सदा
आज जो सच बोला
तो क्लास के बाहर खड़ा था
तुमने ने जैसा कहा है
वैसा ही करता हूँ
ख़ुद से पहले
ध्यान दुसरों का रखता हूँ
पर देखो न माँ
सब से पीछे रह गया हूँ
सब कुछ आता है मुझको
फ़िर भी
टीचर की निगाह से गिर गया हूँ
किसी पे हाथ न उठाना
तुम ने कहा था 
पर जानती हो माँ
आज
उन्होंने बहुत मारा  है मुझे
जवाब मै भी दे सकता था
पर मारना तो
बुरी  बात है न माँ
यंहा सभी मुझे
बुजदिल समझते  हैं
मै कमजोर  नही हूँ
मै तो तेरा बहादुर बेटा हूँ
हूँ न माँ
अब तुम ही कहो
क्या मै
कुछ ग़लत कर रहा हूँ
तेरा कहा ही तो कर रहा हूँ
तू तो
ग़लत हो सकती नही
फिर सब कुछ
क्यों ग़लत हो रहा है
बताओ न माँ
क्या
इनको ये बातें मालूम नही
माँ
एक बार यहां आओ न
जो कुछ मुझे बताया
इन्हे भी समझाओ न
एक बात बताओ
क्या आज भी तू कहेगी
कि तुझे  मुझपे  गर्व है
माँ बोलो न
क्या मै तेरी सोच के जैसा हूँ 
और तेरा राजा बेटा हूं!
-रचना श्रीवास्तव


मां
अपनी कमजोर आंखों से
चुन लेती है वह मेरे फूल शूल
अपने से सटा लेती है मुझे
अपने जोड़ों का वह दर्द भूल
हैं शुभ्र-केश प्रकाश स्तंभ
मेरी कश्ती कभी नहीं डोली
है ध्रुवतारे सी साथ सदा
मैं रास्ता कभी नहीं भूली
 
पांव पोंछता रहता है
उसका सदा उजला आंचल
आज भी मेरे सर पर है
उसकी दुआओं का गगनांचल

-दिव्या माथुर

माँ

अदृश्य ही रहीं तुम सदा
जरूरतें, फरमाइशें पूरी करतीं
सांसों-सी जीवन में रची-बसी
रक्षक और अन्नपूर्णा  

इतराना और मचलना
कभी रोना, तो मुस्कुराना
हक था हमारा तुम्हारे आगे
मिट जाते थे  आंचल में तुम्हारे
दुनिया भर के सुख-दुख
छुप जाते थे हम तुम

आज जब तुम नहीं
ये चांद तारे सूरज
क्यों रौशनी के बहाने
तुम्हारा ही चेहरा
ओढ़ आते हैं

दीवानगी की हद तो देखो
ढूँढूँ न ढूँढूँ मंदिर-मंदिर
डांटती, दुलराती, समझाती
तुम ही तुम तो
नजर आती हो
 -शैल अग्रवाल


आप के लिए, माँ!

जब मुस्कुराती हूँ मैं
तुम मेरी मुस्कराहट में होती हो
मेरे साथ मुस्कुराती हुई.

जब रोती हूँ मैं 
तुम्हारी आँखें भी नम देखी है 
मेरे साथ रोती हुई.

जब पग उठाती हूँ मंजिल की ओर
होती हो हर आशीष में तुम
मुझे हिम्मत देती हुई.

जब देखती हूँ अपनी लकीरों को मैं
दिखाई देती हो उनमें साथ मेरे
मेरा जीवन बनी हुई.

जब आँखों में काजल सजा होता है
होती हो हर खूबसूरती में
मेरा रूप बनी हुई.

जब चूड़ियों को पहन इठलाती हूँ
होती हो उनकी खनक में आप
खुश होती हुई मेरे साथ.

जब सोचती हूँ,
जब सांस लेती हूँ,
पाती हूँ आपको मेरी धड़कन बने हुए,
मेरे जीवन का सार बने हुए…
…हा, सच कहा किसी ने-
ईश्वर हर जगह नहीं हो सकता
इसीलिए बनाया उसने माँ को’,
इसीलिए तो-

मेरे हर वर्ष में,
हर मास में,
मेरे हर दिन में,

हर क्षण में,
रहती हो माँ आप..
आपको बहुत स्नेह ओर नमन!
 – शेफाली गुप्ता


 
 जाल

हर आशीष में तुमने कहा
चांद सूरज से आकाश पे चमको
जीवन के मनचाहे मुकाम पर पहुँचो
पर राह में गिरे इन थके लोगों का
क्या हो माँ, तुम ही कहो

जीवन की इस दौड़ में
गिरतों को झुककर उठा लूँ
साथ लेकर चलूँ या
रौंदकर आगे बढ़ जाऊँ

मत कहना फैसला यह
निजी खयाल का है
आदमी और अस्मद् के
अपने सवाल का है
अहमियत और सहूलियत के
अनगिनित टकराव का है

मेरे ख्याल से तो
शेर और बकरी बनाए
जिसने दोनों दुनिया में
उसी अनदेखे जाल का है…

 -शैल अग्रवाल

मां के हाथ का खाना

बहुत स्वादिष्ट खाना बनाती है 
तुम्हारी मां
कौन-से मसाले डालती है वो
पूछकर आना उनसे
कहा एक मित्र ने,
हंस पड़ी मां
स्वादिष्ट खाना क्या सिर्फ मसालों से बनता है?
कौन-सा घी इस्तेमाल करते हो तुम
पूछा दूसरे मित्र ने,
खाने में तरलता सिर्फ घी से आती है?
एक प्रश्न मस्तिष्क में कौंधा
इसमें कोई खास बात नहीं,
अगर हमारे पास समय हो
तो हम भी बना दें
इतना ही स्वादिष्ट खाना
जवान लड़कियों ने कहा

क्या सिर्फ समय देने से ही बन जाता है
खाना स्वादिष्ट
नहीं,
कुछ न कुछ अद्भुत जरूर है मां के पास
तभी तो
करेले में भी आ जाती है मिठास!

उन्हें बहुत अच्छा लगता है
गर्म-गर्म खाना और                                                                
अपने सामने बैठकर खिलाना
गुब्बारे सी फूल जाती है रोटी
मचल उठता है बच्चा
पहले मैं लूंगा

फूलों सी महक आती है उसमें
तैरता रहता है स्नेह का घी
सब्जी जीभ से लगते ही
सम्पूर्ण जिस्म बन जाता है जीभ
तृप्त हो जाती है आत्मा

मां देखती रहती है, मुस्कुराती रहती है
कभी-कभी आंसू छलक जाते हैं उसके,
सोचता हूं किसी मां के हाथ का खाना खाकर ही
ऋषियों ने कहा होगा-
अन्न ही ब्रह्म है!

    -अनिल जोशी


प्रवासी चिन्ता

मां आज व्याकुल है मेरा मन, चिंता तेरी सताती है।
तूने अपना सुख, अपना श्रम, अपना श्वेद सघन देकर,
मेरे सुख मे अपने सुख, दुख में अपने दुख बिलराकर,
जीने की कला सिखाई थी, उंगली मेरी पकड़-पकड़कर,
तेरा वह निश्छल निश्वार्थ प्रेम, तेरी वह अथक लगन,
स्नेहपूर्ण नयनों की छवि, अब भी मन मे आती है।

मां आज व्याकुल है मेरा मन, चिंता तेरी सताती है।
माना मैने ही की थी, तुझसे सात समंदर की दूरी,
इसे बनाए रखना अब, बन गयी है अपनी मजबूरी,
पर तू यह न समझना, मेरी भक्ति घटी है तुझमें,
तू निशिदिन प्रतिपल रहती है मेरे मन मंदिर में,
आ-आकर तू मेरे जागृत मन में या कभी सपन में,
कभी बनती है सघन छांव, कभी फुहार बरसाती है।
 
मां आज व्याकुल है मेरा मन, चिंता तेरी सताती है।

तेरे सम अपनी, तेरे सम प्यारी, मुझको मेरी मातृभूमि,
भवसागर की झंझा में उसको, बना न सका मैं कर्मभूमि,
उस मातृभूमि के ऊपर जब, संकट के बादल घिरते हैं,
उसके ही जाये पाले पोसे, विश्वासघात जब करते हैं,
पंजाब या कश्मीर की घाटी, लहू बहाता भाई का भाई,
नस-नस में रक्त उबलता है, फटने लगती यह छाती है।

मां आज व्याकुल है मेरा मन, चिंता तेरी सताती है।

चिता जलाए एक बार, चिंता पल पल सुलगाती है।
मां आज व्याकुल है मेरा मन, चिंता तेरी सताती है। 

 -महेशचन्द्र द्विवेदी  


                         
चिहुक 

चिहुक पपीहा अब ना गाए
कागज की नैया ले डूबी
पूरा जंगल…
बरसाती सब ताल-तलैया

नेहभरा मन 
टोहता आज भी
जलती मशाल ले
वही एक ढहती कुटिया
कंद में लिपटे धूल-धूसरित
गीता और रामायन…
सर्फ जो कुंडली मारे बैठे

धनकती एक आवाज
कनक किरन-सी कोना-कोना
आजभी करे उजागर…
मेरा ही यह नाम पुकारे
चलती-फिरती, कपड़े तहाती
बरी तोड़ती, हंसती-गाती

चहके ना पर सूखी तुलसी
बिन भोग उदास हैं ठाकुर
बिखरा पड़ा जलता नहीं
अब आरती का दिया…

          -शैल अग्रवाल


           
माँ
क्या सूरत क्या सीरत थी
माँ ममता की मूरत थी

पाँव छुए और काम हुए
अम्माँ एक महूरत थी
 
बस्ती भर के दु:ख-सुख में
मां एक अहम ज़रूरत थी

सच कहते हैं माँ हमको
तेरी बहुत ज़रूरत थी

 मंगल नसीम  

 

मुक्त किया

जाओ बेटे,
मैने तुम्हे आज मुक्त कर दिया।
मैने ही नही,
हर माँ ने अपने बेटे को मुक्त कर दिया।

 तुम्हे बाँध लिया था
मैने अपने आँचल में।
लेकिन बँध गई मैं
अपने ही बंधन में।

तुमने रेशमी डोर तोड़कर
स्वयं को स्वतंत्र कर लिया,
मैने तुम्हे आज मुक्त कर दिया।

 
तुम तो अतिथि थे मेरे,
अपना बसेरा बनाने से पूर्व
आश्रय लेने मेरे घर आए थे।
मैने ही घर की दीवारों पर,
तुम्हारा नाम लिख दिया।
मैने तुम्हे आज मुक्त कर दिया।

अपने अंक में भरकर,
तुम्हे अपना मान बैठी।
तुम्हारे सपनों पर,
अपना अधिकार जमा बैठी।
तुमने ही तो मुझे,
स्वयं को स्वयं से अलग करना सिखलाया।
मैने तुम्हे आज मुक्त कर दिया।

तुम्हारी अंगुली पकड़कर,
जिस राह पर चलना सिखलाया।
वह तो पगडंडी थी,
तुम्हे मुख्य मार्ग तक ले जाने वाली 
उसी दोराहे पर आकर,
तुमने मेरा हाथ छुड़ाकर अपना रास्ता अपना लिया।
मैने तुम्हे आज मुक्त कर दिया।

ईश्वर द्वारा नियुक्त
मैं धाय थी तुम्हारी,
जिसका दायित्व आज पूर्ण हुआ।
हे मेरी अनमोल निधि,
मैने तुम्हे आज जगत के हवाले कर दिया।
मैने तुम्हे आज मुक्त कर दिया।।

 रेणु ‘राजवंशी’ गुप्ता 


  
मां

द्वार पर बिछी हुई
मां के माथे की शिकन
प्रतिरात कुचली जाती है
मेरे पांवों तले,
न वह छोड़ती है
प्रतीक्षा करना
न मैं कभी आता हूँ समय से पहले

पद्मेश गुप्त

” माँ ”

माँ 
तुम्हें अपनी रचना में
स्थान दे रहा हूँ
मुझे मालूम है
तुम्हारा अपने गर्भ में
मुझे स्थान देने जैसा पुण्य कार्य
मेरे लिए सम्भव नहीं

माँ
मैं नहीं चाहता
कि  तुम्हारी परिभाषा
मेरे हाथों लिखी जाए
क्योंकि मैं तुम्हारे साथ-साथ
धरती माँ
और तमाम जीव जन्तुओं की
जननी का अपराधी कहलाऊँगा
क्योंकि माँ को
गिने-चुने शब्दों में
नहीं बाँधा जा सकता

माँ
तुम्हारा कार्य भी
प्रचारित करने जैसा नहीं
भीतर तक महसूसने
और स्वीकारने जैसा है

माँ
प्रसव के बाद
तुम गीली देह लिए
मौसमों से जूझती हो
आधी-अधूरी नींद में भी
तुम्हारे हाथ वहीँ जातें हैं
जहाँ कोमल नन्ही देह होती है

माँ तुम्हारे सीने में
अद्भूत जलधारा प्रवाहित है
जो बच्चे का रक्त संचारित करती है
करती है मस्तिष्क का निर्माण
फिर सागर की गहराई
और ब्रम्हाण्ड के सारे ग्रह नक्षत्र से
सीधे संवाद करता है आदमी

जहाँ से आरम्भ होती है
बच्चे की किलकारी
और जहाँ होता है अंतिम पड़ाव
दोनों ही देह
माँ की होती है
-सुधीर सोनी

 एक प्रश्न

यह जो भाई हमारे हैं
तेरी आँखों के तारे हैं
मैं कौन हूँ माँ
मेरा तुम्हारा रिश्ता क्या है?
बूढ़ी माँ के छुर्रियों वाले हाथों ने
मेरा सर सहलाया
मुझे बतलाया—-
‘ तू मेरा हृदय है बेटी
तेरे ही सहारे
मैने हर सुख-दुख
यह जीवन जिया है।

साँसों के इस रिश्ते को
समझ ले मेरी लाडली
मैने तुझे और तूने मुझे रोज ही
एक नया जन्म दिया है।”

 शैल अग्रवाल


मां

पूछा जब सूरज ने
घास के तिनके से
सूख सूख कैसे तू हरियाता है
इतनी ज्वाला सह जाता है
बोला वह हंसकर
बैठा हूँ मां की गोद में।

शैल अग्रवाल 


माँ

माँ…माँ संवेदना है, भावना है अहसास है
माँ…माँ-माँ संवेदना है, भावना है अहसास है
माँ…माँ जीवन के फूलों में खुशबू का वास है,
माँ…माँ रोते हुए बच्चे का खुशनुमा पलना है,
माँ…माँ मरूथल में नदी या मीठा सा झरना है,
माँ…माँ लोरी है, गीत है, प्यारी सी थाप है,
माँ…माँ पूजा की थाली है, मंत्रों का जाप है,
माँ…माँ आँखों का सिसकता हुआ किनारा है,
माँ…माँ गालों पर पप्पी है, ममता की धारा है,
माँ…माँ झुलसते दिलों में कोयल की बोली है,
माँ…माँ मेहँदी है, कुमकुम है, सिंदूर है, रोली है,
माँ…माँ कलम है, दवात है, स्याही है,
माँ…माँ परामत्मा की स्वयँ एक गवाही है,
माँ…माँ त्याग है, तपस्या है, सेवा है,
माँ…माँ फूँक से ठँडा किया हुआ कलेवा है,
माँ…माँ अनुष्ठान है, साधना है, जीवन का हवन है,
माँ…माँ जिंदगी के मोहल्ले में आत्मा का भवन है,
माँ…माँ चूडी वाले हाथों के मजबूत कधों का नाम है,
माँ…माँ काशी है, काबा है और चारों धाम है,
माँ…माँ चिंता है, याद है, हिचकी है,
माँ…माँ बच्चे की चोट पर सिसकी है,
माँ…माँ चुल्हा-धुंआ-रोटी और हाथों का छाला है,
माँ…माँ ज़िंदगी की कडवाहट में अमृत का प्याला है,
माँ…माँ पृथ्वी है, जगत है, धूरी है,
माँ बिना इस सृष्टी की कलप्ना अधूरी है,
तो माँ की ये कथा अनादि है,
ये अध्याय नही है…
…और माँ का जीवन में कोई पर्याय नहीं है,
और माँ का जीवन में कोई पर्याय नहीं है,
तो माँ का महत्व दुनिया में कम हो नहीं सकता,
और माँ जैसा दुनिया में कुछ हो नहीं सकता,
और माँ जैसा दुनिया में कुछ हो नहीं सकता,
तो मैं कला की ये पंक्तियाँ माँ के नाम करता हूँ,
और दुनिया की सभी माताओं को प्रणाम करता हूँ।

ओम व्यास ‘ओम’

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