रोमांचक यात्रा उनाकोटी कीः गोवर्धन यादव


आखिर वह कौन शिल्पकार था, जिसने मात्र एक छेनी और एक हथौड़ी के बल पर कठोर पत्थरों पर, एक करोड़ से एक कम चित्र उकेरे ?

आप यह जानकर हैरान होने लगेंगे कि किसी अनाम शिल्पकार ने, मात्र छेनी-हथौड़ी की सहायता से, विशालकाय तथा कठोर पत्थरों पर, एक नहीं बल्कि एक करोड़ में एक कम यानि निन्याबे लाख, निन्यानबे हजार, नौ सौ निन्यानबे चित्र बना डाले, वह भी केवल एक रात में ?. इस बात पर आप सहसा विश्वास नहीं करेंगे कि यह ऐसे कैसे संभव हो सकता है कि एक अकेले कलाकार ने एक रात में इतने सारे चित्र पत्थरॊं पर कैसे उकेर पाया होगा?. बात गले से नीचे नहीं उतरती.लेकिन ऐसा हुआ है. अविश्वास करते हुए भी हमें विश्वास करना पड़ता है.
हाँ मित्रो ! हाँ, भारत में एक नहीं बल्कि अनेक ऐसी जगहें हैं, जिनके सीने में छिपे राज को आज तक कोई नहीं जाना पाया. त्रिपुरा की राजधानी अगरतला से लगभग 150 किमी.दूर एक ऐसा स्थान है जिसे “उनाकोटी” के नाम से जाना जाता है. यही वह जगह है जहाँ किसी अनाम शिल्पी ने एक रात में निन्यान्बे लाख, निन्यान्बे हजार, नौ सौ निन्यानबे चित्र पहाड़ों की विशाल और कठोर छाति पर, केवल अपनी एक छेनी और एक हथौड़ी की सहायता से उकेर डाला. इस रहस्य को आज तक कोई भी सुलझा नहीं पाया है. जैसे कि- ये मूर्तियाँ किसने बनाई, कब बनाई और क्यों बनाई और सबसे जरुरी कि एक करोड़ में एक कम ही क्यों? हालांकि इन रहस्यमयी पहेलियों के पीछे कई कहानियाँ प्रचलित हैं, जो आपको हैरानी में डाल देने वाली हैं.
“उनाकोटी” एक ऐसा स्थान है, जो चारों ओर से ऊँची-नीची पहाड़ियों और घने जंगलों से घिरा हुआ है. एक ऐसे निर्जन स्थान में लाखों मूर्तियों का निर्माण कैसे किया गया होगा? इतनी विशाल संख्या में चित्र उकेरने में जहाँ कई-कई बरस लग जाएंगे, एक रात में बना पाना कैसे संभव हुआ होगा, जबकि इस स्थान में कोई बसाहट नहीं है. इस आश्चर्यजनक स्थान के रहस्यों को जानने समझने में बुद्धि भी चकराने लगती है. आज भी यह लंबे समय से शोध का विषय बना हुआ है.
इन रहस्यमय मूर्तियों के कारण ही इस जगह का नाम उनाकोटी पड़ा है, जिसका अर्थ होता है करोड़ में एक कम. इस जगह को पूर्वोत्तर भारत के सबसे बड़े रहस्यों में से एक माना जाता है. कई सालों तक तो इस जगह के बारे में किसी को पता ही नहीं था. हालांकि अभी भी बहुत कम लोग ही इसके बारे में जानते हैं.
इन रहस्यमयी मूर्तियो के निर्माण को लेकर एक पौराणिक कथा बहुत प्रचलित है. मान्यता है कि एक बार देवों के देव महादेव जी के समेत एक करोड़ देवी-देवता कहीं जा रहे थे. अनवरत यात्रा के दौरान रात्रि घिर आयी. अंधकार घिरता देख समस्त देवी-देवताओं ने महादेव जी से इसी स्थान में रुककर विश्राम करने की प्रार्थना की, जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया. निवेदन स्वीकार करने से पूर्व उन्होंने समस्त देवी-देवताओं से कहा कि सूर्योदय होने से पहले आप सभी इस स्थान को छोड़ देंगे. शिवजी अकेले जागते रहे थे, जबकि समस्त देवी-देवता आँखों में गहरी निद्रा आंजे सो रहे थे. सूर्योदय होने का समय हो आया था, लेकिन कोई भी देवी-देवता इससे पूर्व नहीं जाग पाए. यह देखकर शिवजी क्रोधित हो उठे और उन्होंए श्राप देकर सभी को पत्थर बना दिया. यही वह कारण था कि इस स्थान में 99 लाख, 99 हजार, 999 मूर्तियाँ हैं.( एक करोड़ में एक कम भगवान शिवजी को छोड़कर.)
एक और अन्य कथा प्रचलन में है. कहते हैं कि कोई कालू नाम का एक शिल्पकार था, जो भगवान शिव और माता पार्वती जी के साथ कैलाश जाना चाहता था. ऐसी मान्यता है कि कैलाश पर्वत पर केवल और केवल शिव परिवार ही रहता है. लेकिन भक्त की जिद थी कि वह वहाँ जाना चाहता था. भक्त की बात भगवान भोले नाथ कैसे ठुकरा सकते थे?. उन्हें तो हर हाल में अपने भक्त की इच्छा का सम्मान करना था. उन्होंने अपने भक्त के सामने एक विचित्र शर्त रखी कि यदि वह एक रात में एक करोड़ देवी-देवताओं की मूर्तियाँ बना देगा तो वे उसे अपने साथ कैलाश ले जाएंगे.
भक्त जानता था कि एक रात में वह एक करोड़ मूर्तियां नहीं बना पाएगा, लेकिन कैलाश जाने और अपने आराध्य के संग रहने की लालसा के चलते, उसने शिव जी की शर्त मंजूर कर ली और बड़े जोर-शोर के साथ पत्थरों पर मूर्तियों का निर्माण करने में जुट गया. उसने पूरी रात मूर्तियों का निर्माण किया,लेकिन तभी दुर्भाग्य से रात बीत गयी. सुबह जब मूर्तियों की गिनती की गई, तो पता चला कि उसमें एक मूर्ति कम है. भक्त शिवजी के मंशा के अनुरुप एक करोड़ मूर्तियों का निर्माण नहीं कर पाया, यही वह कारण था कि शिवजी अपने साथ उसे कैलाश नहीं ले जा पाए. एक करोड़ में एक कम होने के कारण इस स्थान का नाम “उनाकोटी” पड़ा.
यहाँ के पहाड़ इतने ऊँचे हैं कि आसमान से होड़ ले रहे होते प्रतीत होते है. गहराइयाँ भी इतनी अधिक है कि यहाँ बनी सीढ़ियों से नीचे उतरना जितना आसान है, उतना ही कठिन होता है, ऊपर चढ़कर आना. चढ़ाई चढ़ते समय व्यक्ति को भगवान की याद आने लगते है. हालांकि दूर-दूर तक फ़ैले सघन वनों से झर कर आती शीतल हवा के झकोरे उसे कुछ राहत प्रदान करते हैं. वहीं अल्हड़ बहती नदी का शोर भी पर्यटकों के आनंद को द्विगुणित कर देता है. ऐसा अद्भुत-अकल्पनीय “उनाकोटी” पूर्वोत्तर भारत का सबसे बड़ा रहस्य और अद्भुत सौंदर्य को अपने में समेटे हुए है, जो काफ़ी सालों तक अज्ञात बना रहा. आज भी लोग इस स्थान का नाम कम ही जानते है. घने जंगलों के बीच शैल-चित्रों और मूर्तियों के जो अक्षय भण्डार उतने ही अद्भुत और दिलचस्प है.
उनाकोटी में दो तरह की मूर्तियाँ मिलती हैं. एक-” पत्थरों को काट कर बनाई गईं मूर्तिया”. दूसरी- “पत्थरों पर उकेरी गईं मूर्तिया”. प्रायः सभी मूर्तियाँ हिंदू धर्म से जुड़ी हुईं प्रतिमाएं है, जिनमे शिव जी, देवी दुर्गा जी, भगवान विष्णु, गणेश आदि की मूर्तियाँ उकेरी गईं हैं. भगवान शिव की तीस फ़ीट की एक ऊँची प्रतिमा बनी हुई है, जिसे “उनाकोटेश्वर” के नाम से जाना जाता है. इसी विशाल प्रतिमा के पास शिव के वाहन नंदी की मूर्ति भी देखने को मिलती हैं. भगवान श्री गणेश जी की एक अद्भुत मूर्ति ऐसी भी है, जिनकी चार भुजाएं और बाहर की तरफ़ निकले तीन दांत को दर्शाया गया है. इसके अलावा श्री गणेश की एक मूर्ति ऐसी भी है जिसमें उनके चार दांत, आठ भुजाएं दिखाई देती हैं. लोग यहाँ श्रद्धा के साथ आकर पूजा-पाठ करते हैं. हर साल अप्रैल महीने के दौरान यहां मेले का आयोजन भी किया जाता है, जिसमे शामिल होने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहाँ आते हैं.
उनाकोटी, अगरतला से टैक्सी द्वारा लगभग एक सौ पचास किमी. की दूरी पर अवस्थित है. टैक्सी द्वारा 4-5 घंटे में आप यहाँ पहुँच जाते है. अगरतला से उनाकोटी रेलमार्ग द्वारा भी पहुँचा जा सकता है. धर्मनगर रेल्वे स्टेशन से अथवा कुमारघाट रेल्वे स्टेशन से पैदल रास्ते से आप उनाकोटी पहुँच सकते हैं. धर्मनगर से उनाकोटी सड़कमार्ग से दूरी 11.7 किमी है. लगभग इतनी ही दूरी धर्मनगर रेल्वे स्टेशन से तय करने के बाद आप उनाकोटी पहुँच सकते हैं. तब हम यह नहीं जानते थे कि ट्रेन से सफ़र करने के पश्चात धर्मनगर अथवा कुमारघाट रेल्वे स्टेशन पहुंचने के बाद, ग्यारह किमी, की दूरी तय करने के लिए कोई वाहन मिलेगा भी अथवा नहीं. चुंकि हमारे पास समय की कमी थी. अतः हमें टैक्सी द्वारा यात्रा करना सुविधाजनक लगा था.
उनाकोटी की यात्रा को सुगम बनाने के लिए हम आभारी है विकासखंड अधिकारी मान.श्री प्रशांत चक्रवर्ती जी के, जिन्होंने न केवल अगरतला में हमारे लिए होटेल बुक की और उनाकोटी के लिए टैक्सी की व्यवस्था भी की. इतना ही नहीं, हमें विमानतल तक पहुँचाने के लिए उन्होंने टैक्सी की व्यवस्था भी की थी. व्यस्ततम समय में से समय निकालकर वे होटेल तक जरुर आते और हालचाल जानते. मात्र एक अल्प परिचय में इतना सहयोग देना, उनकी हृदय की विशालता का परिचायक है. निः संदेह हम उनके बहुत आभारी हैं.
साउथ एशिया फ़्रेटेर्निटी द्वारा तीन दिवसीय कान्फ़्रेंस मणिपुर की राजधानी इम्फ़ाल में रखी गई थी. हमें इस शिविर में भाग लेने जाना था. छिन्दवाड़ा से नागपुर की 110 किमी की यात्रा कर हम नागपुर के विमानतल डा. बाबासहेब आंबेडकर अंतररा‍ष्ट्रीय विमानतल पर पहुँचे. नागपुर से सीधे इम्फ़ाल के लिए कोई उड़ान नहीं है. नागपुर से दिल्ली, फ़िर दिल्ली से होते हुए इम्फ़ाल के लिए हवाई सेवा थी.
तीन दिन शिविर में भाग लेकर अब हम चल पड़ते हैं इम्फ़ाल से गुवहाटी होते हुए अगरतला की ओर हवाई मार्ग द्वारा. चुंकि हमारा मुख्य उद्देश्य था आश्चर्य से भरे “उनाकोटी” की दिव्यता और भव्यता को जी भर के देखना और निहारना था. निहारना था उन सघन वनों को, जिनमें सूरज की किरणें बड़ी मुश्किल से भीतर प्रवेश कर पाती है. यहाँ के जंगल बारहों माह हरियाली की चादर ओढ़े रहते है. ऊपर खुलता नीला आसमान, सघन वृक्षो के झुरमुट के बीच से चलकर सरसराकर बहती शीतल हवा के झोकें और ऊँचे नीचे पहाड़ों के बीच से होते हुए यात्रा करना कौन नहीं चाहेगा?. जब भी आपका मन बने, एक बार उनाकोटी जाने का कार्यक्रम जरुर बनाएं.
इम्फ़ाल, मणिपुर, अगरतला में भ्रमण करते हुए हमने वहाँ के दर्शनीय स्थलों को देखा, जिसका उल्लेख फ़िर किसी अन्य आलेख में किया जाना उचित होगा. चुंकि हमारा उद्देश्य “उनाकोटी” जाना और वहां की अद्वितीय सुन्दरता और उसके गर्भ में समाए अनेक रहस्यों से परिचित होना था. अतः बात केवल उनाकोटी की ही की जाना मुझे उचित जान पड़ा है.
“उनाकोटी” त्रिपुरा राज्य के उनाकोटी जिले के कैलाश शहर उपखंड में स्थित एक ऐतिहासिक व पुरातात्विक हिन्दू तीर्थ स्थल है. यहाँ भगवान भोलेनाथ को समर्पित मूर्तियाँ और स्थापत्य, जिनका निर्माण 7 वीं-9 वीं शताबदी ईसवी या उससे भी पहले बंगाल व पड़ौसी क्षेत्रों के पाल वंश के राजकाल में हुआ था.
इस रोमांचक यात्रा के सूत्रधार थे हमारे मित्र (से.नि.) प्रो. राजेश्वर आनदेव. सहयात्री थे श्रीमती अनिता आनदेव, डा. ममता आनदेव, श्री जयंत डोले, श्रीमती सु‍षमा ढोले, श्री हरिश खण्डेलवाल, श्री सुनिल श्रीवास्तव.और स्वयं मैं. (हमारी यह यात्रा 8 नवम्बर से 19 नवम्बर तक निर्धारित थी.)_
उनाकोटी विश्व का एकमात्र ऐसा स्थान है जहाँ एक नही, दो नहीं, बल्कि 99 लाख, 99 हजार,999 देवी-देवताओं का निवास-स्थान है. दूसरे शब्दों में कहें कि स्वर्ग यहीं है., तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी.. अगर आपने ऐसा स्थान नहीं देखा, तो सच मानिए, आपने कुछ नहीं देखा.
उनाकोटी के जादुई आकर्षण में बंधकर और उससे लिपटे रहस्यों को जानकर हम लौट पड़ते हैं अपने-अपने-अपने घरों की ओर.

गोवर्धन यादव

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