बनारस यात्रा का एहसास मन को गुदगुदाने वाला था lमैं और चंदा दीदी बनारस की पुण्य पावन भूमि शिव की नगरी नियत समय पर पहुंच गए। मन में उल्लास और उमंग की लहरों की हिलोरे ले रही थी क्योंकि यह मेरी पहली साहित्यिक यात्रा थी।
गंतव्य स्थान पर पहुंचकर इंदु दीदी और अभ्युदय के साथियों से मिलना एक सुखद अहसास था।
बनारस पहुंचने के बाद मंजरी दीदी से मिलने की इच्छा तीव्र होती जा रही थी जब मैं उनसे मिली उनके मुस्कुराते हुए चेहरे को देखते रहने का मन कर रहा था यह एक अलग ही एहसास था l
मंजरी दीदी के संयोजन में काव्य मंजरी द्वारा एक काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया था।काव्य गोष्ठी बहुत सफल रही ।मुझे भी काव्यपाठ का अवसर मिला।
वहां एक और बड़ी हस्ती से मिलने का सौभाग्य मिला शैल दीदी जिनको मैने जूम पर होने वाले कार्यक्रमों मे ही देखा था।पर आज करीब से देखने और उनके साथ समय व्यतीत करने का सुन्दर सौभाग्य मिला।मेरा मन खुशी से बाबला हो रहा था कारण इससे पहले किसी महान साहित्यकारा से नही मिली थी।
शाम को इन्दु दीदी द्वारा लिखित बुद्धा का नाट्य मंचन हुआ पूरा हॉल खचाखच भरा हुआ था उपस्थित सभी लोगों ने नाटक का भरपूर आनंद उठाया ।नाटक खत्म होने के उपरांत पूरा हॉल तालियो की गड़गड़ाहट से गूंज रहा था।
मुझे तो यह सब एक खूबसूरत स्वप्न की तरह ही लग रहा था।
कार्यक्रम के समापन के बाद सभी ने स्वादिष्ट भोजन का आनंद उठाया
गंगा घाट की ठंडी हवा का झोंका सिहरन पैदा करने वाली सर्दी की ढिढुरती सुबह बनारस के अस्सी घाट पर पहुंच कर सुन्दर नजारे का आनंद मिला । देव कन्याओं के साथ बैठकर हवन वेद मंत्रोच्चारण के साथ पूजन सुबह की गंगा आरती के दीये हमने अपने हाथों से सजाए थे ।अद्भुत प्राकृतिक दृश्य था।
माॅ गंगा की आरती.के दर्शन, कही शास्त्रीय संगीत की मधुर धुन, कही योगा करते लोग,सूर्य को उदित होते देखना
अद्भुत दृश्य था शायद अवरणीय । इतनी सुहानी सुबह का आनंद जीवन में पहली बार मिला। इस सुबह को मैं कभी भूलना ही नहीं चाहती हू।
दोपहर में अर्चना जी के सानिध्य एक ओर काव्य पाठ का आयोजन किया गया था।सभी बहुत सुन्दर काव्यपाठ किया पर मैने स्वरचित कहानी सुनाई । वहां उस कहानी को सुनने का एक उद्देश्य था क्योंकि वहां दसवीं और बारहवीं की बहुत सारी छात्राएं बैठी थी मैने उस कहानी के द्वारा एक सुंदर संदेश देने की कोशिश की थी ।
सभी ने कहानी की प्रशंसा की कुछ् छात्राओ ने कहा मैम आपकी की कहानी से हमने सीखा कि हमे अपने जीवन क्या करना है।
मन खुशी से फूला नहीं समा रहा था क्योंकि इसके पहले इतनी तारीफ कभी नहीं मिली थी।
शाम को शिव शंकर भोलेनाथ के दर्शन करने हम सब मंदिर के प्रांगण में पहुंचे ऐसा लग रहा था मानो मन भक्ति के सागर में गोते लगाने लगा मंदिर की विशालता और भव्यता देखते ही बन रही थी।बाबा भोलेनाथ के दर्शन का परम आनंद मिला।
बनारस आकर बनारसी साड़ियों खरीदने का मोह हम कहां छोड़ पा रहे थे शैल दीदी के साथ उनके परिचित की दुकान पर मैं चंदा दी और इंदु गए।
हम बनारस की खूबसूरत साड़ियो को देखने में व्यस्त थे पर थोड़ी देर बाद ही मुझे बहुत बैचेनी हो रही थी। मैने इंदु दीदी से वापस होटल चलने को कहा बिना विलंब किए मुझे लेकर होटल आ गई। इंदु दीदी ने होटल के मैनेजर से बात करके तुरंत डॉक्टर को बुलवाया डॉक्टर ने भी अपने हिसाब से दवाई और इंजेक्शन दे दिया और कहा जरूरत पड़े तो फिर बुला लीजिएगा पर मेरी तबीयत में बिल्कुल भी सुधार नहीं हो पा रहा था मुझे बहुत उल्टियां हो रही थी साथ ही चक्कर खाकर मैं बार-बार बेहोश हो जा रही थी । मुझे इस हालत में देखकर इन्दू दी और चंदा दी बहुत परेशान हो रहे थे ।
अंदर ही अंदर मैं भी बहुत डर रही थी कारण तबीयत में सुधार नहीं हो पा रहा था।
मैं खड़े होने की कोशिश कर रही थी की फिर से बेहोश होने लगी इंदु दीदी ने मुझे संभाल लेकिन मुझे संभालने में उनको बहुत चोट लगी मुझे खुद को इस दशा को देखकर बहुत खराब लग रहा था पर मेरे बस में शायद कुछ था ही नहीं ।
चंदा दीदी और इंदु दीदी ने मेरी देखभाल में कोई भी कसर नहीं छोड़ी उन्होंने मेरी बहुत अच्छी तरह देख भाल की हर समय मुझे सा॔तवना देती की सब ठीक हो जाएगा ।मेरा मन उन दोनो के प्रति नतमस्तक था।मुझे ऐसा लग रहा था कि यह तो कोई मां या बड़ी बहन ही कर सकती है वैसे भी मैं इन दोनों को मां और बहन दोनों रूप में ही देखती हूं क्योंकि बात यहां भावनाओं और संवेदनाओं की है।
रात भर स्लाइन चलने से सुबह तबीयत में थोड़ा सुधार महसूस हो रहा था इंदु दीदी ने मंजूरी दी को मेरी तबीयत के बारे में बताया सुबह-सुबह ही मंजरी दीदी मेरे लिए कुछ हल्का खाने का बना कर ले आई ।
हम तीनों उनके साथ उनके घर चले गए बीतते समय के साथ तबीयत सुधर रही थी ।
मेरी तबीयत में सुधार होता देखकर इंदु दीदी बेंगलुरु के लिए निकल गई ।
हमारी शाम 7:00 बजे की फ्लाइट थी सारा दिन मंजरी दीदी के साथ बिताया मंजरी दीदी ने भी मेरे खाने पीने का बहुत ध्यान रखा मंजरी दीदी के घर में एक अलग ही शांति और सुकून का अनुभव हो रहा था ।मंजरी दीदी मुझे और चंदा दीदी को तोहफा भी दिया ।
मंजरी दीदी चंदा दीदी और इंदु दीदी का धन्यवाद कैसे करूं नहीं है वह शब्द मेरे पास कि मैं आपका आभार प्रकट कर सकूं।????
जीवन भर के लिए ऋणी रहूॅगी ।
अगर जीवन के किसी मोड़ पर आप लोगों के किसी भी काम आ पाई तो खुद को सौभाग्यशाली ही समझूगी ।
इस अविस्मरणीय यात्रा के अहसास को अपनी ऑखो म॓ हमेशा हमेशा के लिए बंद कर लेना चाहती हूं ।
बनारस एक साहित्यिक यात्रा
सविता भुवानिया
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मेरे जीवन में घटी सच्ची घटना …..
कुछ बातें जीवन में ऐसी होती है कि वक़्त बीत जाने के बाद भी याद रह जाती है ।कुछ समय पहले की बात है दुर्गा पूजा के समय की बात है हम परिवार सहित पूजा देखने निकले थे रात का समय था।रात में भीड़ कम होती है इसलिए सोचा कि देखने में सुविधा रहेगी ।अचानक हमने देखा कि सामने सड़क पर दो लड़के गिरे हुए थे एक मोटर साइकिल बग़ल में उल्टी हुई पड़ी थी ।सब गाड़ियाँ बग़ल से निकल कर चली जा रही थी । किसी ने ध्यान नहीं दिया । शायद डर या कोई और वजह।दुर्घटना हुई थी ।लड़के घायल थे।मैंने गाड़ी रुकवाई उन घायल लड़कों को सबने मिलकर उठाया और कार में लिटा दिया ।काफ़ी खून निकल रहा था पर साँसें चल रही थी ।हमने कार दौड़ाई और अस्पताल ले गए ।भर्ती कराया ईलाज शुरू हुआ ।डाक्टर बोले वक़्त पर आ गये जान बच गई ।थोड़ी सी हिम्मत ने दो लड़कों की ज़िंदगी बचा दी । ज़िंदगी और मौत तो ईश्वर के हाथ है। पर वो हमें साधन बनाता है ताकि हम समय पर एक दूसरे की मदद कर सके।ये एक सच्ची घटना है ।इससे हमें यही सीख मिलती है कि समय की क़ीमत करें एवं कभी भी किसी की सहायता करने से पीछे ना हटे।निःस्वार्थ सेवा कभी व्यर्थ नहीं जाती। परोपकार करने से कम से कम मन को शांति बहुत मिलती है ।जो मैंने महसूस किया ।सबके साथ ज़िंदगी में ऐसे वक्त आते हैं ।बस महसूस करें और सोचें तब आपने क्या किया।और संकल्प करें भविष्य में ज़रूर सबकी मदद करेंगे ।बस भावना हो परोपकार की ।
चंदा प्रहलादिका
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