पेड़ पीछे हटते गये
इंसान आगे बढ़ते गये
पेड़ पीछे हटते गये
इंसानों को अधिक जमीन चाहिए थी
वे लोभ से भरे थे
उनके हाथों में हाथियो का बल था
मशीनों में मगरमच्छ जैसे दाँत
आरे थे बड़े-बड़े लहरो से अधिक धार वाले
जो चीड़ को भी दो पल में काट सकते थे
नही था तो रहम
न मन में और न ही सँबंधों मेंं
वे भूखे थे मछली पकड़ने निकले
जहाज की तरह
उनके लिए कल नहों था
सब कुछ बांट लेना चाहते थे
आज के आज, अभी के अभी
पेड़ रुक गये एक दिन पीछे हटते-हटते
अब सामने समुद्र था या रेगिस्तान
यहाँ भी जीने की कोशिश करते वे
इसके पहले ही
विस्फोटकों से उड़ा दिये गये
अब पेड़ नहों थे और जमीन अधिक
न छाया थी, न पक्षी, न घोसला
हवा अधिक थी लेकिन
उसमें जीवन कम था
सवर्ण
जब वह डूबने लगा तो
दूर तक दिखलाई नही दिया
जब बचने को हुआ तो
थोड़ा-सा चेहरा दिखा
और चीख भी सुनाई दी
वह धीरे-धीरे रोशनी में आ रहा था
पानी से लगातार समझौता करता हुआ
अब उसका पूरा चेहरा प्रकाश में था
थोड़ी-बहुत ताकत भी शरीर में
बस एक हाथ का सहारा चाहिए था
मदद के लिए उसकी ओर बढ़े हुए
चाहे वह किसी अछूत का हो या दलित का
किसी को भी थामने को तैयार
मुसीबत में फंसा वह सवर्ण!
संगठन
हमारे मिलने-जुलने की शक्ति दृढ़ हो
कि हम मिलते रहें सारे मित्र आपस में
जैसे सात सुर एक साथ होते हैं
कि सैनिकों की टोपी, लिबास
जूते और दूसरे सामान एक साथ होते हैं
एक साथ हम रहें मित्र बनकर
न कि भीड़ की तरह
केवल इकट्ठे होकर
हम बूँद से बूँद मिलकर सागर बन जायें
या बारिश सूखे पर बरसने वाली
चाहे हमारे हाथ न बँधे हों आपस में
मन बँधा रहे एक-दूसरे के साथ
जैसे एक बीज से दूसरा बीज
जुड़ जाता हो खेतों की धरती में
हमारा संगठन एक टापू की तरह
बड़ी भूमि को बाँधे रखे
हम जो भी करें
उसमें सभी का हित दिखे!
ग्रीटिंग कार्ड
ग्रीटिंग कार्ड में एक किसान होगा
खेत होंगे, लहलहाती फसलें होंगी
काम करते लोग होंगे
कुँए और छोटे-से पोखर
चाहे वह नहों दे सकेगा इन्हें किसी को
लोग जरूर देते रहेंगे इसे एक-दूसरे को
सभी कहेंगे यह धरती कितनी खुशहाल है
प्रकृति के सौंदर्य से भरपूर
किसान कितना अनभिज्ञ रहेगा इनसे
नहों होगे कहों उसकी जुताई के हस्ताक्षर
न ही बीजोों को छिड़कने की प्रक्रिया
न ही धूप में रिसता उनका श्रम
हर चीज तो उनकी चुरा ली जाती है
दृश्य भी चुरा लिये गये तो क्या हुआ
पास रहेंगी इनकी बलिष्ठ भुजाएँ
पासवर्ड
माँ की हंसी के लिए
कोई पासवर्ड नहीं चाहिए
वह देखते ही हंसने लगती
अपने कंप्यूटर के आोंकड़ों को खोल देती
मैं निकाल लेता
ढेर सारे परामर्श
सारा कुछ
उसने जो भी
मुझे देने के लिए रखा
उसकी बेचैनी, उसकी हंसी
उसकी उकताहट
सारे चित्र उसकी दिनचर्या के
जिनसे पूरी हार्ड डिस्क भर चुकी
लगभग थोड़ी सी जगह बाकी
इसके बाद क्या होगा
कहीं पुराने डाटा डिलीट तो नहीं हो जाएंगे
यादों की तरह
इन्हें भी खोने नहीं देना चाहता
मैंने सारी हार्ड डिस्क क़ॉपी करकेे
माथे में रख ली है
जिसे वह चूमती है बार-बार
मां के पत्र
मैंने बहुत सारे पत्र लिखे अनेक को
मां को एक भी नहीं
लेकिन वह मुझे लिखती है
उसके पत्र लिखने का तरीका भी अनूठा
मेरे देर से लौटने पर
रोटी पर कुछ लिखती
मेरी चोट पर हाथ फेरते हुए कुछ लिखती
मेरे कपड़ों पर आयरन करते हुए
मेरी किताबोों को सजाते हुए
बस्ते में भी कुछ लिखती
हर पल लिखती ही जाती है
सचमुच बहुत कुछ लिखा उसने
मेरी देह भी पत्रों से भर चुकी
अब भी मेरी हर चीज पर
उसका लिखना जारी
स्याही कहाँ सूखी है अब तक
प्रेम का झरना
पर्वतों को लगता
सितारे उनके कंधों पर
उनके ही कंंधों पर बादल
यह सारा आकाश भी
चिड़ियों की उड़ान से ले कर
बहती हवा का स्पर्श तक
वे राजा हैं कभी न नष्ट होने वाले
सभी केवल अपनी ऊँचाई देखते
अपने शीष की हलचल से ही खुश
नहीं देखे पाते झुक कर
कि कोई माँ भी है सतह पर
उनका भार संभाले हुए
हर मांँ इसी तरह
बच्चों की चिन्ता से दबी हुई
फिर भी प्रेम का एक झरना
उसके हृदय से
लिपटा है हर पल
प्रेम
पन्द्रह साल पहले
स्कूल के बच्चों की टोली में
तुम्हें देखा था
वहीं प्रेम हुआ
फिर हम बिछड़ गए
कई साल बाद
फिर पति के साथ देखा
दोबारा प्रेम हुआ
फिर हम बिछड़ गए
एक बार पुनः मुलाकात हुई
तुम्हें बच्चों के साथ देखा
पुराना प्रेम फिर उमड़ा
लगा ये बच्चे जैसे मेरे ही हों
फिर हम बिछड़ गए
आज फिर बरसों बाद हम मिले हैं
जब तुम अकेली हो
आपदा की मार से
किसी तरह बची हुई
आखिरी मौका था प्रेम को
अपने में पिघला लेने का
इस बार भी तुमसे प्रेम हुआ
लेकिन साहस नहीं रहा
मेरे पीछे परिवार खड़ा था
आतंक
धरती टुकड़ों-टुकड़ों में बंट गयी
देश, प्रांत में बंट गये
आदमी, जाति में बदल गये
नाम भी उपनाम में बदल गये
रंग-रूप भी सभी के अलग-अलग
जीवन हुआ अलग-थलग
सभी ने उठा लिए अपने-अपने झंडे
इसे भी सबसे ऊंचा करने की होड़ में
फेंक रहे एक-दूसरे पर गोले
सिर छुपाने को कोई जगह नहीं
हर जगह दिख रहे
आतंक फैलाते चेहरे
सबसे कमजोर के पास केवल मृत्यु
छुपने के लिए कोई बंकर नहीं!
तुम्हारा न रहना
तुम्हारे अनगिनत बिम्ब
झाँकते हैं मेरी ओर
हजार हाथों से दस्तक देते हुए
और उलझन में रहता हूँ
कैसे उन्हें प्रवेश दूँ
जबकि जानता हूँ
वे आयेंगे नहीं भीतर
केवल झाँकते रहेंगे बाहर से
तुम्हारा पास न रहना
इसी तरह का आभास देता है
मुझे हर पल
रूमाल
एक पुराना-सा रूमाल
और मूंगफली के चंद दाने
मैंने उसकी ओर बढ़ाये
बस यही था आज देने को
यह छोटा नहीं बहुत बड़ा उपहार था
प्रेम को और निकट लाने के लिए
हम जमीन पर पास-पास बैठे रहे
घंटों नहीं सिर्फ चंद मिनट
काम की घंटी बजते ही
वह उठकर चली गई
बिना कुछ बोले, बिना एक पल रुके
बस एक मीठी नजर डालकर
इतने से ही मन खुश
साथ ही चिंतित भी कि
अगर आज पसीना बहा तो
कैसे पोंछॅूंगा?
वैसे रूमाल बड़ा सुंदर लग रहा था
उसके हाथों में हिलता हुआ
जैसे मेरे दिल को लिये जा रहा!
पहचान
सिर ढके काले कपड़ों में
तीन महािलाओं को देखा
वे मेरे समुदाय की नहीं थी
कुछ जो गहरे चटक रंग के कपड़ों में थी
वे राजस्थान की लगीं
लुंगी और कमीज पहने लोग
दक्षिण के लगे
पगड़ी वाला समूह
जो नजदीक आ रहा है
जरूर पंजाब का ही होगा
हर जगह, हर बार
इसी तरह पहचान होती रही
सभी मेरे देश के ही थे
केवल उन्हें ठीक से समझ नहीं पाया
कुछ जो थोड़े से कपड़ोंं में थे
कड़ी धूप में बीज बोते हुए
अपने काम में तल्लीन
सभी एक जैसे लगते थे
थे मेरे देश के ही
लेकिन किस प्रांत केे?
उतना ही मुश्किल
कितना आसान है
सारी दुनिया को
टीवी और मोबाइल पर देख लेना
आसान है थोड़ी देर साथ रहकर
भीड़ को अलग कर देना
आसमान से उड़कर लाखों की हत्या कर देना
आसान है मीलों दूर बैठ कर
किसी की भी मृत्यु तय कर देना
कितनी सारी चीजें आसान होती जा रही
एक स्विच औन करना कि
पूरे शहर में जगमगाहट लाने के लिए
एक वाल्व को बंद करना कि
असोंख्य नलोों में सप्लाई रोकने के लिए
बहुत आसान है
अदृश्य कीटाणुओं तक को मार देना
उतना ही मुश्किल
एक आत्महत्या करते को बचा लेना
सुरक्षा कवच
घर पहुँचकर सुरक्षा के सारे सामान
खूटीी पर टॅोंग देता हूँ
यह बूट, चश्मा, दस्ताने, हेलमेट
सेफ्टी कोट आदि
जिन्होने बरसों-बरस मुझे सुरक्षा दी
मेरे जीवन को बचाये रखा!
खुश होता हूँ
इनके भार से मुक्ति पा कर
बैठता हूँ जैसे ही मेज़ पर
चौंक जाता हूँ एक कागज पढ़कर
जिसे लिखाा होता है
पत्नी और बच्ची ने मिलकर
सभी की अपनी-अपनी
जरूरी आवश्यकताएँ थीं
उन्हें जल्द-से-जल्द
पूरा करने का आग्रह भी
मैं देखता हूँ सुरक्षा देने वाले
सामानोों की ओर बड़ी मायूसी से
और सोचता हूँ
अक्सर खचों की आने वाली बाढ़ से
बचने के लिए
क्या कोई सुरक्षा कवच भी होता होगा!
खिड़की
इस खिड़की ने कहा
बाहर देखो और प्रेम करो
मैंने झांका तो केवल पौधे दिखाई दिए
मुझे असमंजस में देखकर
फिर कहा प्रेम करो, थको मत
यकीन किया उसकी बातों पर
अगले दिन फूल दिखे खिले हुए
दूसरे दिन कुछ यात्री
हर दिन कुछ-न-कुछ नया
थोड़ा-थोड़ा प्रेम किया सभी से
अच्छा लगा जैसे मन
कैद से बाहर आ गया
रात में जुगनू भी दिखे
रोशनी की लम्बी रेखा खींचते हुए
लगा इनसे भी प्रेम कर सकता हूं
उसी समय कुछ जानवरों की आवाजें आयीं
इनसे भी जुड़ गया
जिस प्रेयसी के लिए सोचता था
वह कभी नहीं दिखी
लेकिन एक दिन
विवाहित जोड़ा गुजरा पास से
लगा मैं ही उसके साथ हूं
उसके प्रेम में डूब गया
इतना अधिक कि
भूल गया मैं खिड़की के भीतर हूं!
आतंक
धरती टुकड़ों-टुकड़ों में बंट गयी
देश, प्रांत में बंट गये
आदमी, जाति में बदल गये
नाम भी उपनाम में बदल गये
रंग-रूप भी सभी के अलग-अलग
जीवन हुआ अलग-थलग
सभी ने उठा लिए अपने-अपने झंडे
इसे भी सबसे ऊँचा करने की होड़ में
फेंक रहे एक-दूसरे पर गोले
सिर छुपाने को कोई जगह नहीं
हर जगह दिख रहे
आतंक फैलाते चेहरे
सबसे कमजोर के पास केवल मृत्यु
छुपने के लिए कोई बंकर नहीं!
तुम्हारा न रहना
तुम्हारे अनगिनत बिम्ब
झाूँकते हैं मेरी ओर
हजार हाथों से दस्तक देते हुए
और उलझन में रहता हूँ
कैसे उन्हें प्रवेश दूूँ
जबकि जानता हूँ
वे आयेंगे नहीं भीतर
केवल झाूँकते रहेंगे बाहर से
तुम्हारा पास न रहना
इसी तरह का आभास देता है
मुझे हर पल
प्रेम का पुनर्जन्म
यह पृथ्वी इतनी कलुषित हो गई
कि मैं सांस नहीं ले पा रहा हूं
थका हुआ महसूस कर रहा हूं
हांफता हूं बार-बार
बड़ी विनम्रता से तुमसे पूछता हूं
क्या तुम मुझे अपनी सांस दोगी?
तुम तो ऊर्जा से भरपूर
चमेली के फूल तुम में खिलते हैं
चेहरे में चमक सूरज-सी भरपूर
लहरों जैसी तीव्रता
क्या फर्क पड़ेगा
अगर थोड़ा-सा मुझे दे दिया
लो मैं अपने फेफड़ों को
तुम्हारी ओर करता हूं
इसे ही मेरा हृदय समझो
यह जिंदा रहा तो
मेरा हृदय फिर से जी उठेगा
इस तरह से होगा
हमारे प्रेम का पुनर्जन्म
कारखाने में ताला
आज रात से
इस कारखाने में ताला लगा
कल से सभी की रोजी-रोटी पर
सन्नाटा पसरा है यहाँ
उससे अधिक सभी के घरों में
एक स्थिर तालाब की तरह
बंद हुए सभी घरों में
कैद चारदीवारी में
हर अंग पर ताले पड़े हों जैसे
सभी की चाबी गुम
केवल छेद-ही-छेद चारों ओर
जीने की लय
मेरी छत में छेद है
मेरी बाल्टी में छेद है
मेरी पतलून में छेद है
कहां है वैसी चीज मेरे पास
जिसमें छेद नहीं है
शरीर तक में
और लोगों से बहुत अधिक छेद है कि
पसीना-ही-पसीना चूता है
थोड़े-से श्रम से
पेट का छेद भी थोड़ा बड़ा
बहुत अधिक रोटी मांगता है
छेद वाली नाव ही मेरे पास
छेदों से भरी मेरी चप्पल
छेद-ही-छेद मेरी टूटी हुई फर्श पर
फिर भी समझता हूं इन्हें
एक बांसुरी की तरह
चाहे इनमें कितने भी छेद क्यों न हों
जीने की लय तो जरूर है
नरेश अग्रवाल
1 सितम्बर, 1960 को जमशेदपुर में जन्म।
अब तक साहित्यिक कविताओं की 14 पुस्तकों का प्रकाशन, स्वरचित सूक्तियों पर 3 पुस्तकों, शिक्षा सम्बन्धित 4 पुस्तकों का प्रकाशन। ‘इंडिया टुडे’ एवं ‘आउटलुक’ जैसी पत्रिकाओं में भी इनकी समीक्षाएँ एवं कविताएँ छपी हैं।
देश की लगभग सारी स्तरीय साहित्यिक पत्रिकाओं में कविताएँ प्रकाशित जैसे हंस, वागर्थ, आलोचना, परिकथा, जनसत्ता, कथन, कविकुंभ, किस्सा कोताह, आधारशिला, मंतव्य, समय सुरभि अनंत, अक्षरा, वीणा, वर्तमान साहित्य, दोआबा, दस्तावेज, नवनिकष, दैनिक जागरण, प्रभात खबर, बहुमत, ककसाड़, दैनिक भास्कर आदि।
पिछले 10 वर्षों से लगातार ‘मरुधर के स्वर’ रंगीन पत्रिका का सम्पादन कर रहे हैं, जो आर्ट पेपर पर छपती है।
‘हिंदी सेवी सम्मान’, ‘समाज रत्न’, ‘सुरभि सम्मान’, ‘अक्षर कुंभ सम्मान’, ‘संकल्प साहित्य शिरोमणि सम्मान’, जयशंकर प्रसाद स्मृति सम्मान, अंतरराष्ट्रीय विश्व मैत्री मंच कविता सम्मान, स्पेनिन साहित्य गौरव सम्मान, झारखंड-बिहार प्रदेश माहेश्वरी सभा सम्मान, सतीश स्मृति विशेष सम्मान, किस्सा कोताह कृति सम्मान, कमला देवी पाराशर हिन्दी सेवा सम्मान, ‘हिंदी सेवी शताब्दी सम्मान’ देश की ख्याति प्राप्त संस्था बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन, पटना द्वारा महामहिम राज्यपाल के कर कमलों द्वारा दिया गया।
यात्रा के बेहद शौकीन तथा अब तक 14 देशों की यात्रा कर चुके हैं।
निजी पुस्तकालय में साहित्य एवं अन्य विषयों पर करीब 5000 पुस्तकें संग्रहीत।
सम्पर्क –
नरेश अग्रवाल
हाउस नंबर 35, रोड नंबर 2
सोनारी गुरुद्वारा के पास
कागलनगर, सोनारी
जमशेदपुर – 831011