प्रेम
प्रेम सिखाता है देना
ब्रह्मांड भी जिसके लिए छोटा है
प्रेम बटोर लेता है
छोटे-छोटे पलों से कितना कुछ
जिंदगी के हर मोड़ पर
प्रेम थमा देता है भरी झोली
हम समझ भी नहीं पाते
जिंदगी का सूरज अस्त होने तक
अपनी रिक्त किंतु समृद्ध हथेलियों को
आसमान की तरफ उठा कर
तमाम शिराओं को निस्पंद होते
महसूस कर
हम पुकार उठते हैं
ईश्वर ,अल्लाह ,जीसस
मैंने प्रेम को जिया
अब प्रेम की आखिरी सांस
मृत्युंजय तुझे समर्पित
हाल पूछा है तभी
मै मोहब्बत के सफे पर
इक तारीख सी सजी हूँ और तू मेरे दिल के गोशे में हिना बन के रचा है
जब भी ये दिल किसी का होता है दर्द कम नहीं बेहिसाब होता है इक समँदर सा
नज़दीक ही उमडता है
हर लहर का हिसाब रखता है
मौजें दिल के करीब आती हैं लफ्ज़ कश्ती से थरथराते हैं नुकई पाज़ेब की तरन्नुम बन
चलती पतवार छनछनाती
सुन के वो टूटता,दरकता है मैं घटा बन के बरस जाती हूँ मैं अँधेरों की रोशनी उसकी
वो चाँद बन के दरीचों में जगमगाता है
वो इधर से ज़रा सा क्या गुज़रा मैकदा पास लगा,
मैकशी का आलम भी
बहके बहके से लगे
सारे नज़ारे तौबा जब लगा यूँ कि बहक जाउँगी मर जाउँगी
इश्क हीरा है,चाट जाउँगी
हाल पूछा है तभी मेरे गमगुसारों ने
बंद लिफाफा
उन दिनों
हम मिला करते थे
चर्च के पीछे
कनेरों के झुरमुट में
विदाई के वक्त
हमारी अपार खामोशी में
तुमने दिया था लिफाफा
इसे तब खोलना जब
हरकू के खेतों में
धान लहलहाए
उदास चूल्हे में
रोटी की महक हो
फाकाकशी से कंकाल काल हुए
बच्चों की आँखों में
तृप्ति की चमक हो
ठिठुरती सर्दियों में
गर्म बोरसी हो
बरसात में टूटे छप्पर पर
नई छानी हो
बस तभी खोलना इसे
बंद लिफाफे को खोलने की
जद्दोजहद में
उम्र गुज़र गई
आज जब खुला तो
उसमें तुम्हारे जाते हुए
कदमों की केवल पदचाप दर्ज़ थी
तुम साथ होते हो तो
तुम साथ होते हो तो मैं जान लेती हूँ
चोंच में दाना लेकर घौंसले के पास लौटती चिडिया की अधीरता
बासी फूलों का झर कर
लम्बी घास में समा जाना
और घास के सिरों पर अटकी शबनम का किरणों की छुअन से सतरंगी हो जाना
तुम साथ होते हो तो पूरब और पश्चिम
भ्रमित नहीं करते ढलते सूरज और उगते चाँद के
एक जैसे पथ को
तुम साथ होते हो तो
समझ में आ जाती है समँदर की अकुलाहट
बार बार तट से टकराती लहरों की बेचैनी
और सीप के खुले मुँह में टपकी
स्वाति की बूँद का मोती बन जाने को
पल भर थरथराना फिर स्थिर हो जाना
मेरे लिये कहीं
कुछ भी नहीं रह जाता
जिसे मैं मालूम न कर सकी तुम्हारे साथ होने पर
तुम दीप बन आओ
मेरे सपनों का हरापन
जब भी लहलहाता है
तुम सैंकड़ो दीप का उजाला बन
दिल की मुंडेरों पर जगमगाते हो
खिल पड़ते हैं
सारे महकते मौसम
दीपकों की लौ में
जिंदगी भरपूर
नजर आने लगती है
प्यास के सारे तजुर्बे
उन दीपों के स्नेह से
गुजरते हैं
भीग भीग जाता है मन
भीतर समाई प्रेम की
तड़प को चीर
हथेलियों पर गोल गोल
घूमती है नेह की बत्तियां
तुम्हारी तलब के मुहाने पर
रखती जाती हूं एक एक बाती
बाल देती हूं प्रेम अगन से
आओ इन दीपों में
उजाला बन
उतर आओ
मेरे मन के तहखानों में
हम जिंदगी से मुट्ठियाँ भर ले
सुर्ख जज़्बातों को
दीपों की बत्तियों में बाल
कैद कर लें इक दूजे को
घोंसला
इश्क दुआ बन जाता है
जब सहेज लेता है कोई
ढाई अक्षर की इबारत
दिल की किताब पर
संवर उठती है कायनात
सूरज के लाल दरवाजे तक
तोरने बंध जाती हैं
ढोलक पर गाए जाते हैं गीत
अनंत जन्मों के
आंधियां ठिठक कर
पुकार उठती हैं
मर्हबा ……मर्हबा
तब कहीं से एक तिनका
उड़ता आता है
और दिल के वीराने में
घोंसला बुन जाता है
ठिठका देता है
रिमझिम रिमझिम
बरखा के बीच ,झील पर
हम दोनों नाव में
हसीन लम्हों की छुअन संग ठिठकी है नाव
आडी झुकी बेंत की डाल से
ठिठका देता है
कितना कुछ इसी तरह
जब हम होते हैं साथ
बेचैन है इतिहास
मांडवगढ़
पहाड़ियों के घुमावदार रास्ते
अटे पड़े हैं अधूरी प्रेम कहानी से
हर तरफ बिखरे हैं मोहब्बत के रंग
बेखुदी में चूर है कायनात
मांडू का हर जर्रा तड़प रहा है
आह! क्यों न हुआ ऐसा
कि तख्तो ताज की नजरें
वापस लौट जाती
इश्क की अंगूठी का हीरा
नहीं चीरता रूपमती का दिल
दीवाना आशिक
रूपमती की समाधि पर
सिर पटक पटक कर
जान नहीं दे देता
नर्मदा फटी फटी आंखों से
नहीं देखती
युद्ध ,प्रेम ,संगीत और कविता के
अद्भुत मेल से उपजी
जादुई प्रेम कहानी
लिल्लाह ……
क्यों इश्क के फलसफे में
छुपी रहती हैं काली नजरें
ख्वाबों को उधेड़ने की
नुकीली साजिशें
क्यों नहीं जी पाती रूपमती
क्यों तख्त की नजरों से
हलाक हो जाता है बाज बहादुर
मेरे सवाल टकरा रहे हैं
मांडू महल से
बैचैन है वक्त की पेशानी पर खुदा इतिहास
सवाल फिर भी सर उठाए हैं
मांडव मालवा से गुलजार है
या मालवा मांडव से लहूलुहान
संतोष श्रीवास्तव
email:kalamkar.santosh@gmail.com